लोकसभा चुनाव अभी कई महीने दूर है लेकिन उसकी
धमक सुनाई पड़ने लगी है। नरेन्द्र मोदी जल्दी पीएम बनने की छपटाहट में
चुनाव का बिगुल कुछ जल्दी बजा दिया है। भाजपा के इस चुनाव की कमान
नरेन्द्र मोदी और उनके गैंग के हाथ में है भले ही कार्य विभाजन बाहरी तौर
पर अलग अलग नेताओ के हाथ में दिखाई पड़े। चुनाव को दो छोरों से लड़ा जा रहा
है -उत्तर प्रदेश में अमित शाह के हाथ में दंगा भड़काने का कार्यभार है तो
केंद्र में हिन्दुत्त्ववादी राष्ट्रवाद का जहर और झूठ फ़ैलाने का काम मोदी
कर रहे है। क्रोधोन्मुख भाषण फायर ब्रांड मोदी को कितनी सीट दिलायेगा यह
तो समय बतायेगा लेकिन क्रोधमुखी व्यक्ति को भारत अच्छा नहीं मानता।
श्रीमद्भवदगीता कहती है क्रोध से न केवल व्यक्ति विभ्रमित होता
है बल्कि उसका बुद्धि नाश हो जाता है। न केवल उसकी अपनी बुद्धि का बल्कि
उनका भी जिसका वह प्रतिनिधित्त्व करता है। गुजरात में पंद्रह साल के शासन
में मोदी ने गुजराती नवयुवको/जनता को न केवल उन्मादी बनाया है बल्कि उन्हें
भ्रमित भी किया है।! यह एक वजह है कि पंद्रह सालों में गुजरात से न कोई
खिलाड़ी सामने आया और न किसी तरह की प्रगतिशील सोच का कोई साहित्य सामने
आया। क्रोधी नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषणों में राजनीतिक सदाचार की सारी
सीमाए लांघ दी है। हिंदी में रेटरिक को बोल बोलना कहते हैं और मोदी इसमें
सिद्धहस्त है लेकिन जब इससे झूठ को सत्य बनाने की कोशिश की जाती है तब यह
राजनीति खरतनाक हो जाती है।
दिल्ली की ऐतिहासिक रैली में भी मोदी ने दिल्ली की जनता को गुमराह करने
के इतर कोई दूसरा काम नहीं किया है। दिल्ली की जनता सेक्युलर और
प्रोग्रेसिव है लेकिन अब इसे भी उन्मादी बनाने की कोशिश की जा रही है।
दिल्ली में मोदी ने अपने भाषण की पिच विशुद्ध रूप से नाजी रखा। अपने
उन्मादी इन्टरनेट कार्यकर्ताओ से इनपुट लेकर उन्होंने खा की “पाकिस्तान के
पत्रकारों को ब्रेकफास्ट पर बुला कर नवाज शरीफ ने कहा कि हमारे
प्रधानमंत्री “देहाती औरत” जैसे हैं! यह देश की जानता की तौहीन है। हम इस
तौहीन को बर्दास्त नहीं करेंगे !” यह एक तरह का विशुद्ध नाजीवादी
दुष्प्रचार था! भाषण के तत्काल बाद गलत होने की पुष्टि पाकिस्तान के
पत्रकारों ने की थी। मान लें नवाज शरीफ ने अपनी बीवी से कुछ ऐसा कहा भी हो
तो क्या उसे राजनीति का विषय बनाया जाना चाहिए? अंतरराष्ट्रीय राजनीति रसोई
घर की बतकूचन पर आधारित नहीं होती बल्कि दर्ज वक्तव्यों पर संचालित होती
है।
लेकिन मोदी की राष्ट्रभक्ति का यह आलम है कि दिल्ली की रैली में विदेशी कूटनीतिज्ञ बुलाये गए थे! किसलिए बुलाये गए थे? यह कोई सरकारी कार्यक्रम नहीं था। कूटनीतिक संबंध सरकारी स्तर पर होते हैं इन्हें राजनीतिक स्तर पर नहीं स्थापित किया जाना चाहिए। लेकिन मोदी और मोदीवादी नाजीवाद एक नये तरह के राष्ट्र की कल्पनालोक में भ्रमण कर रहा है, उस कल्पनालोक में सिवाय मोदी के दूसरा कोई नहीं है। आखिर किस बिजनेस डील के लिए वहां विदेशी राजनयिक बुलाये गए थे? यह न सिर्फ अनैतिक है बल्कि देशद्रोह की श्रेणी में भी आता है जब राजनीतिक दल सीधे विदेशी राजनयिकों को अपनी रैलियों में बुलाने लगे। विदेशी कूटनीतिज्ञो को मोदी ने शायद इसलिए न्योता दिया था कि ”आकर अपनी आँखों से देख लो कि किस तरह मैं उन्माद फैला सकता हूँ कि क्यों मुझ पर दांव लगाना तुम्हारे लिए फायदेमंद है।” मोदी ने विदेशी कूटनीतिज्ञो को एक देशद्रोही की तरह बुलाया होगा कि ”केवल मोदी के मातहत ही वे भारत में अपना स्वर्णिम भविष्य बना सकते हैं!” स्वतन्त्र भारत में किसी राजनैतिक पार्टी या नेता ने ऐसा देशद्रोही काम पूर्व में नहीं किया है!
लेकिन मोदी की राष्ट्रभक्ति का यह आलम है कि दिल्ली की रैली में विदेशी कूटनीतिज्ञ बुलाये गए थे! किसलिए बुलाये गए थे? यह कोई सरकारी कार्यक्रम नहीं था। कूटनीतिक संबंध सरकारी स्तर पर होते हैं इन्हें राजनीतिक स्तर पर नहीं स्थापित किया जाना चाहिए। लेकिन मोदी और मोदीवादी नाजीवाद एक नये तरह के राष्ट्र की कल्पनालोक में भ्रमण कर रहा है, उस कल्पनालोक में सिवाय मोदी के दूसरा कोई नहीं है। आखिर किस बिजनेस डील के लिए वहां विदेशी राजनयिक बुलाये गए थे? यह न सिर्फ अनैतिक है बल्कि देशद्रोह की श्रेणी में भी आता है जब राजनीतिक दल सीधे विदेशी राजनयिकों को अपनी रैलियों में बुलाने लगे। विदेशी कूटनीतिज्ञो को मोदी ने शायद इसलिए न्योता दिया था कि ”आकर अपनी आँखों से देख लो कि किस तरह मैं उन्माद फैला सकता हूँ कि क्यों मुझ पर दांव लगाना तुम्हारे लिए फायदेमंद है।” मोदी ने विदेशी कूटनीतिज्ञो को एक देशद्रोही की तरह बुलाया होगा कि ”केवल मोदी के मातहत ही वे भारत में अपना स्वर्णिम भविष्य बना सकते हैं!” स्वतन्त्र भारत में किसी राजनैतिक पार्टी या नेता ने ऐसा देशद्रोही काम पूर्व में नहीं किया है!
दूसरा राज कर्म जो स्वतन्त्र भारत के देशभक्त किसी राजनैतिक पार्टी या
नेता ने पूर्व में नहीं किया है वह है ” रिटायर्ड सेना के जवानो और
अधिकारियो का भगवा नाजीकरण”। संघ और भाजपा के मोदी ने रेवाड़ी में सेना के
रिटायर्ड जवानो और अधिकारियो का नाजीकरण करने की कोशिस की थी जो की जनतंत्र
के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। छः दशको से सेना के जवानो और अधिकारियो
को संबोधित करने का अधिकार केवल देश के प्रधानमंत्री या रक्षा मंत्री को
रहा है। सवाल यह है की आखिरकार किस सीक्रेट राजनीती के वशीभूत हो सेना के
जवान और अधिकारी मोदी की रैली में इकठ्ठा हुए। मैं इस बात पर हतप्रभ था की
किस लिंक से उतनी बड़ी तादाद में सेना के रिटायर्ड अधिकारियों और जवानो को
रेवाड़ी में बुलाया गया था। गौरतलब है की रिटायर्ड सेना अध्यक्ष जनरल वीके
सिंह भी उस रैली में हिन्दुत्त्ववादी नाजियों की पार्टी में शरीक हुए थे।
हिन्दुत्त्व इस तरह कई छोरों पर नाजीकरण कर रहा है। धार्मिक संगठन से लेकर
सेना तक। भगवा नाजीकरण जनतंत्र और इसकी जनतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास
करने वाले राजनीतिक दलों के लिए बहुत बड़ा खतरा है! सभी राजनैतिक पार्टियों
को भगवा नाजीकरण को चुनाव का मुद्दा बनाना चाहिए।
एक और बात जो प्रमुख है वह यह है कि सेना के अधिकारियो की नियुक्ति पत्र पर एक नियम होना चाहिए की रिटार्मेंट में बाद उन्हें किसी राजनितिक पार्टी से जुड़ने या किसी राजनैतिक संगठन का हिस्सा बनने का अधिकार नहीं होगा क्योकि सेना की तमाम बाते उन्हें पता होती है जिससे वे देश का अहित कर सकते हैं। आरएसएस और नरेन्द्र मोदी द्वारा रेवाड़ी में सेना के जवानों और अधिकारियों का नाजीकरण इस चुनाव का विषय है जिसे भारतीय लोकतन्त्र में आस्था रखने वाली सभी पार्टियाँ उठाये। इस प्रसंग में 'टीवी टुडे' जैसी अल्ट्रा राइटिस्ट मीडिया भी चिंता का विषय है! नहीं तो आज जिस मोदीवादी उभार को कांग्रेस के सब कुकर्मों का विकल्प समझा जा रहा है उस मोदित्व के कर्म कांग्रेस के कुकर्मों से भी बुरे साबित होगें, और तब शायद विरोध करनेवालों के लिए कहीं कोई जगह भी नहीं बचेगी।
एक और बात जो प्रमुख है वह यह है कि सेना के अधिकारियो की नियुक्ति पत्र पर एक नियम होना चाहिए की रिटार्मेंट में बाद उन्हें किसी राजनितिक पार्टी से जुड़ने या किसी राजनैतिक संगठन का हिस्सा बनने का अधिकार नहीं होगा क्योकि सेना की तमाम बाते उन्हें पता होती है जिससे वे देश का अहित कर सकते हैं। आरएसएस और नरेन्द्र मोदी द्वारा रेवाड़ी में सेना के जवानों और अधिकारियों का नाजीकरण इस चुनाव का विषय है जिसे भारतीय लोकतन्त्र में आस्था रखने वाली सभी पार्टियाँ उठाये। इस प्रसंग में 'टीवी टुडे' जैसी अल्ट्रा राइटिस्ट मीडिया भी चिंता का विषय है! नहीं तो आज जिस मोदीवादी उभार को कांग्रेस के सब कुकर्मों का विकल्प समझा जा रहा है उस मोदित्व के कर्म कांग्रेस के कुकर्मों से भी बुरे साबित होगें, और तब शायद विरोध करनेवालों के लिए कहीं कोई जगह भी नहीं बचेगी।
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