कुमारमंगलम बिड़ला और उनकी कंपनी हिंडाल्को
इंडस्ट्रीज पर कोयला ब्लॉक आवंटन में सीबीआई की तरफ से आपराधिक साजिश की
एफआईआर दर्ज कराने के बाद पूरा कॉरपोरेट जगत तो कौआ-रोर कर ही रहा है। अब
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी हिंडाल्को इंडस्ट्रीज़ को क्लीनचिट दे दी
है। कमाल की बात तो यह है कि प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी इस मामले में
प्रधानमंत्री के पक्ष में खड़ा है। लेकिन जांच के दायरे में आए इस मामले को
किनारे रख दें तो हिंडाल्को इंडस्ट्रीज़ की बैलेंसशीट दिखाती है कि वहां
दाल में बहुत कुछ काला है और कंपनी शेयरधारकों की आंखों में धूल झोंक रही
है।
कैसे? हाल ही में इसका ब्योरेवार खुलासा किया रेटिंग एजेंसी
क्रिसिल की स्थापना में शामिल रहे स्वतंत्र विश्लेषक आर बालाकृष्णन ने
मनीलाइफ फाउंडेशन की तरफ से आयोजित एक सेमिनार में। बालाकृष्णन डीएसपी मेरिल लिंच से लेकर फर्स्ट इंडिया म्यूचुअल फंड व
एडेलवाइस तक से जुड़े रहे हैं। उन्होंने बड़े बेबाक अंदाज़ में कहा,
“कभी-कभी फ्रॉड इतना छिपा होता है कि उसे पकड़ना मुश्किल होता है। लेकिन
(बैलेसशीट के) आंकड़ों की असंगति (कंपनी) प्रबंधन के स्तर का भेद खोल देती
है। कंपनी पर ऋण का भारी बोझ हो और वो बढ़ता जाए तो मुझे चिंता होती है।
मैंने ऐसी कंपनियां देखी हैं जिनका ऋण बिक्री से कहीं ज्यादा रफ्तार से
बढ़ता जाता है। यकीनन, यह बड़े संकट का संकेत है।”
इसके बाद उन्होंने हिंडाल्को इंडस्ट्रीज़ की 2012-13 की अद्यन बैलेंसशीट
का विश्लेषण शुरू किया और फ्रेम रखा दस साल का, यानी 2003-04 से लेकर
मार्च 2013 तक का। इन दस सालों में कंपनी की बिक्री 8223 करोड़ रुपए से
बढ़कर 80,193 करोड़ रुपए पर पहुंच गई। लेकिन इस दौरान उसकी बिक्री 2007-08
में कई गुना उछलकर 2006-07 के 19316 करोड़ रुपए से 60,013 करोड़ रुपए पर
पहुंच गई, क्योंकि मई 2007 में उसने अपने से कई गुना बड़ी अमेरिकी कंपनी नोवेलिस का अधिग्रहण कर लिया था। यह अधिग्रहण उसने 600 करोड़ डॉलर में किया था। यह अधिग्रहण कंपनी की बैलेंसशीट में बड़ा छेद साबित हुआ है।
यहां से आगे 2007-08 से 2012-13 तक की अवधि को देखें तो बीते पांच सालों
में उसकी बिक्री की सालाना चक्रवृद्धि दर (सीएजीआर) मात्र 5.97 फीसदी रही
है। अगर हम इन सालों में औसत मुद्रास्फीति की दर को 10 फीसदी मानें तो
कंपनी की बिक्री बढ़ने की दर दरअसल ऋणात्मक है। इन सालों में अन्य आय के
9.06 फीसदी की दर से बढ़ने के बावजूद उसका शुद्ध लाभ 6.66 फीसदी की दर से
बढ़ा है। इसकी प्रमुख वजह यह है कि कंपनी ने लगातार कम टैक्स दिया। 2007-08
में उसने 40.25 फीसदी टैक्स दिया था, जबकि 2011-12 में 18.87 फीसदी और
2012-13 में 23.10 फीसदी। टैक्स की कारगर दर (effective tax rate) का घटना
यह भी दिखाता है कि उसका असली लाभ उतना नहीं है जितना कि वो बैलेंसशीट में
दिखा रही है।
हम सबसे नीचे दिए गए बैलेंसशीट के हिस्से से देख सकते हैं कि इस दौरान
कंपनी ने पूंजी बाज़ार से लगातार धन उठाया है, कभी जीडीआर से तो कभी
प्राइवेट प्लेसमेंट से। 2008-09 में उसकी फिक्स्ड एस्सेट में 27,841 करोड़
रुपए की भारी वृद्धि हुई क्योंकि साल भर ही पहले उसने अमेरिकी कंपनी
नोवेलिस का अधिग्रहण किया था। वर्क इन प्रोग्रेस उसका 2012-13 में 33,831
करोड़ रुपए है। ऐसा करना कैश फ्लो के लिए जरूरी हो सकता है। लेकिन सवाल
उठता है कि इसके लिए आप कितनी पूंजी को लॉक कर रहे हैं?
कंपनी के ऊपर मार्च 2013 के अंत तक 56,299 करोड़ रुपए का ऋण है। कंपनी
की औसत कैश प्राप्ति पिछले पांच सालों में छह-सात हज़ार करोड़ रुपए के
आसपासस है। आप खुद हिसाब लगा लीजिए कि अगर बिना ब्याज के भी कंपनी को यह
ऋण उतारना हो तो उसे कम से कम आठ साल लग जाएंगे। कंपनी कहेगी कि उसने
33,831 करोड़ रुपए काम पर लगा रखे हैं जिससे उसकी कैश प्राप्ति आनेवाले
सालों में बढ़ सकती है। लेकिन कंपनी का पिछला रिकॉर्ड इस बाबत संदेह पैदा
करता है।
इसलिए आगे या तो उसे ज्यादा धन बाज़ार से उठाना पड़ेगा या ऋण को इक्विटी
में बदलना पड़ेगा। कंपनी ने विदेश से भी काफी उधार ले रखा है जो पिछले
कुछ महीनों में डॉलर के 62 रुपए हो जाने से करीब 20 फीसदी बढ़ गया होगा।
कंपनी की बैलेंसशीट दिखाती है कि उसने हर साल भारी ऋण उठाया है। वहीं उसने
जो भी निवेश किया है, वो दुनिया भर में फैली उसकी 48 सब्सिडियरी इकाइयों
में फंसा हुआ है।
अब हम देखते हैं कि कंपनी अपने कामकाज से कितना कैश पैदा कर रही है। कैश
प्राप्ति में से नेट करेंट एस्सेट्स में बदलाव को घटाकर तो यह रकम निकाली
जाती है। यह रकम 2012-13 में 2767 करोड़ रुपए रही है। इसमें से अगर
डेप्रिसिएशन या मूल्यह्रास को घटा दें तो उसका फ्री कैश फ्लो ऋणात्मक 94
करोड़ रुपए हो जाता है। पिछले पांच सालों में से दो साल उसका फ्री कैश फ्लो
ऋणात्मक रहा है। डेप्रिसिएशन को घटाना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि वह एक तरह
का खर्च है जो मशीनरी वगैरह को दुरुस्त रखने के लिए करना जरूरी होता है।
यह बात भी नोट करने लायक है कि अच्छी कंपनी का फ्री कैश फ्लो उसके शुद्ध
लाभ का कम से कम 70 फीसदी होना चाहिए। हिंडाल्को के मामले में यह ऋणात्मक
है।
कमाल की बात यह है कि कंपनी इसके बावजूद शेयरधारकों को लाभांश
(डिविडेंड) देती रही है। एक रुपए के शेयर पर कभी 1.35 रुपए तो कभी 1.55
रुपए। जाहिर है कि यह लाभांश वो अपनी कमाई से नहीं, बल्कि बाज़ार से उठाई
गई पूंजी या ऋण दे रही है। एक और चौंकानेवाली बात यह है कि उसने जो ऋण
उठाया है उस पर ब्याज की लागत 4-5 फीसदी दिखाई गई है। नोट करने की बात यह
है कि विदेश से भी इतने सस्ती दर पर कर्ज नहीं मिलता। असल में बैलेंसशीट के
नोट्स से पता चलता है कि वह ब्याज को कैपिटलाइज़ करती है और उसे एस्सेट
कॉस्ट में जोड़ देती है। यह मामला ऐसा है कि मान लीजिए कि मैंने 100 रुपए
की कोई चीज़ 10 फीसदी ब्याज पर खरीदी तो उसकी लागत में मैं 110 रुपए दर्ज
कर देता हूं।
दूसरी तरफ कंपनी खुद जो निवेश कर रही है, उस पर उसने 8.74 फीसदी तक की
कमाई दिखाई है, जबकि वो इसे लिक्विड फंड वगैरह में ही लगाती है। इसलिए इतनी
कमाई का आंकड़ा भी संदेह पैदा करता है। इस तरह हासिल कमाई से वो आसानी से
अपने ऋण की ब्याज लागत घटा सकती थी। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। उसने अपनी
इनकम या आय को खुलकर दिखाया और खर्च बढ़ा रहने दिया। पिछले दस सालों के
दौरान बिजनेस से कंपनी की नेटवर्थ में 19,349 करोड़ रुपए जुटे हैं, जबकि
नेटवर्थ में कुल इजाफा 28,299 करोड़ रुपए का है। इसका मतलब कि नेटवर्थ में
से बाकी 8950 करोड़ रुपए नए इश्यू या इक्विटी से आए हैं।
अंत में कंपनी के धंधे से जुड़े कुछ अनुपातों पर नज़र। कंपनी का परिचालन
लाभ मार्जिन विदेशी कंपनी नोवेलिस के अधिग्रहण के बावजूद पिछले दस सालों
में 24.05 फीसदी से घटकर 9.77 फीसदी पर आ चुका है। शुद्ध लाभ मार्जिन 3.77
फीसदी पर पहुंच चुका है जो किसी मैन्यूफैक्चरिंग नहीं, बल्कि व्यापारिक
फर्म के बराबर है। सकल ब्याज कवर उसने 2.04 गुना और शुद्ध ब्याज कवर 4.26
गुना दिखाया है। लेकिन यह गलत है क्योंकि हकीकत में वह ब्याज का आधे से
ज्यादा हिस्सा कैपिटलाइज कर चुकी है। इसलिए उसका ब्याज कवर जो दिखाया गया
है, उसका लगभग आधा होना चाहिए।
अब दो अनुपात जो किसी की भी आखें खोलने के लिए काफी हैं। नियोजित पूंजी
पर रिटर्न का मतलब होता है कि कंपनी शेयर पूंजी + रिजर्व + लिए गए सारे
ऋण पर कुल कितना रिटर्न कमा रही है। इसे हम कर-पूर्व लाभ + ब्याज को
नियोजित पूंजी से भाग देकर निकालते हैं। हम बैंक की एफडी लेते हैं तो 8 से 9
फीसदी ब्याज मिलता है। सीनियर सिटीजन को पांच साल के डिपॉजिट पर 10.5
फीसदी तक सालाना ब्याज मिलता है। लेकिन हिंडाल्को इंडस्ट्रीज साल भर में
महज 6 से 8 फीसदी कमा रही है, जबकि अच्छी कंपनी के लिए यह अनुपात 15 फीसदी
से ऊपर माना जाता है। क्या इसे हिंडाल्को का अच्छा बिजनेस माना जा सकता
है?
फिर क्या कोई प्रवर्तक इतने कम रिटर्न पर कंपनी चलाना चाहेगा? जाहिर है
कि नहीं। इसलिए इससे एक बात और जाहिर होती है कि प्रवर्तक यानी, आदित्य
बिड़ला समूह और उसके मुखिया कुमारमंगलम ने हिंडाल्को से अपने रिटर्न के लिए
कोई दूसरा ज़रिया बना रखा होगा। हो सकता है कि जो नया कैपेक्स (कैपिटल
इक्पेन्डेचर) दिखाया जा रहा है, उसका अच्छा-खासा हिस्सा सीधे उनके पास
पहुंचता हो। या, कुमारमंगलम बिड़ला चक्रीय बिजनेस से गुजरनेवाली इस साठ साल
से ज्यादा पुरानी कंपनी को लेकर ऐसा कोई ख्बाव देख रहे होंगे कि अभी का
दबाव कल का उछाल बन सकता है।
अगर हम कंपनी के रिटर्न ऑन इक्विटी या रिटर्न ऑन नेटवर्थ की बात करें
तो यह 20.67 फीसदी से घटते-घटते 8.57 फीसदी पर चुका है। यह अनुपात
शेयरधारकों के धन पर हासिल रिटर्न को दिखाता है और इसे कंपनी के शुद्ध लाभ
को उसकी नेटवर्थ (शेयर पूंजी + रिजर्व) से भाग देकर निकाला जाता है।
रिटर्न ऑन इक्विटी की आदर्श स्थिति 20 फीसदी से ऊपर की मानी जाती है।
लेकिन हिंडाल्को इंडस्ट्रीज़ का यह अनुपात 2012-13 में मात्र 8.57 फीसदी
रहा है। इससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि कंपनी शेयरधारकों के धन का क्या
हाल कर रही है।
इन सबसे ऊपर कंपनी का ऋण-इक्विटी अनुपात 2007-08 में 1.87 था और अभी
2012-13 में भी 1.59 है। इन अनुपात का एक के ऊपर होना खतरे की घंटी माना
जाता है। हिंडाल्को के बारे में थोड़े संतोष की बात यह है कि प्रवर्तकों ने
अपनी इक्विटी का कोई हिस्सा गिरवी नहीं रखा है। कंपनी की कुल इक्विटी में
प्रवर्तकों का हिस्सा अभी 37 फीसदी है। जून 2013 तक यह 32.06 फीसदी था।
इसके बाद प्रवर्तकों ने खुद को जारी वारंटों को 15 करोड़ शेयरों में बदला
है जिससे उनकी हिस्सेदारी बढ़ गई।
गौरतलब है कि हिंडाल्को इंडस्ट्रीज़ कॉपर व एल्यूमीनियम के साथ अपने लिए
बिजली भी बनाती है। इसी बिजली के लिए वो कोयला खदानों को लेने की कोशिश
की है जिसमें उसके खिलाफ सीबीआई ने आपराधिक साजिश का मामला दर्ज किया है।
बालाकृष्णन ने हिंडाल्को की बैलेसशीट के तमाम पहलुओं पर गौर करने के बाद
बताया है कि कंपनी ने 184.53 रुपए की बुक वैल्यू बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया है।
कंपनी ने अपनी नेटवर्थ 35,330 करोड़ रुपए दिखायै है। लेकिन इसमें
15,428.91 करोड़ रुपए गुडविल या इनटैजिबल एस्सेट्स के हैं। इसे घटाने के
बाद समायोजित नेटवर्थ 19,901.09 करोड़ रुपए निकलती है और बुक वैल्यू घटकर
103.94 रुपए पर आ जाती है।
यह कंपनी देश को विदेशी मुद्रा का नुकसान भी कर रही है। जैसे 2012-13
में उसने 18,555.60 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा खर्च की, जबकि 7552 करोड़
रुपए की ही विदेशी मुद्रा कमाई। कहानी लंबी है। सार की बात यह है कि
2007-08 में विदेशी कंपनी का अधिग्रहण हिंडाल्को के लिए बहुत भारी पड़ा है
और कंपनी की हालत लगातार खराब होती जा रही है। इसलिए आदित्य बिड़ला समूह
के नाम पर इस कंपनी में छोटे या लंबे समय के लिए निवेश करना घातक हो सकता
है।
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