इस वक्त तेलंगाना विरोधी राजनीति का मिजाज
काफी गर्म है। इसके चलते कई इलाकों में कांग्रेसी विधायकों, सांसदों व
मंत्रियों पर हमले भी होने लगे हैं। पिछले दिनों प्रदेश कांग्रेस के
अध्यक्ष वी. सत्यनारायण के परिजनों पर आंदोलनकारियों ने हमला करने की कोशिश
की थी। किसी तरह से सुरक्षा बलों ने उन्हें बचाया था। दरअसल, आंदोलनकारी
कांग्रेसी नेताओं को घेरकर दबाव डाल रहे हैं कि वे अपने पदों से इस्तीफा
दें। इसी दबाव के चलते केंद्रीय मंत्रियों ने भी इस्तीफे की जिद्द पकड़ी
है। खुफिया एजेंसी आईबी ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को अगाह कर दिया है कि
यदि जगनमोहन रेड्डी की भूख हड़ताल जारी रही, तो सीमांध्र के हालात जल्दी ही
बेकाबू हो सकते हैं। क्योंकि, अनशन के चलते जगनमोहन की सेहत खतरे में
पड़ी, तो उनके समर्थक हिंसक वारदातें शुरू कर सकते हैं। वैसे ही तेलंगाना
के फैसले को लेकर लोग उत्तेजित हैं। हर दिन आंदोलन के नाम पर सरकारी
संपत्तियों का नुकसान किया जा रहा है। 100 से ज्यादा सरकारी वाहन
आंदोलनकारियों के गुस्से का शिकार हो चुके हैं। उल्लेखनीय है कि पिछले
सालों में कई बार तेलंगाना के मुद्दे पर हिंसक आंदोलन हो चुके हैं।
3 अक्टूबर को केंद्रीय कैबिनेट ने 29वें राज्य के रूप में
तेलंगाना गठन के प्रस्ताव पर मंजूरी देने के साथ ही सीमांध्र में विरोधी
आंदोलनों का दौर तेज हो गया है। वाई एस आर कांग्रेस के प्रमुख जगनमोहन
रेड्डी ने राज्य के बंटवारे के खिलाफ जोरदार अभियान चला दिया है। वे खुद
केंद्र के फैसले के खिलाफ आमरण अनशन पर बैठ गए। उनकी पार्टी के
कार्यकर्ताओं ने सीमांध्र के सभी 13 जिलों में आंदोलन तेज कर दिया है।
लोगों को तेलंगाना के विरोध में भावनात्मक रूप से काफी भड़काया जा रहा है।
इस मुद्दे पर तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) से उसका खास मुकाबला शुरू हो गया
है। लेकिन, वाई एस आर कांग्रेस के मुकाबले टीडीपी का आंदोलन ज्यादा चमकदार
नहीं बन पा रहा है। क्योंकि, तेलंगाना के मुद्दे पर इस पार्टी का रवैया एक
दौर में ढुलमुल किस्म का रहा है।
यह अलग बात है कि इस समय सीमांध्र की जनभावनाओं को देखकर टीडीपी प्रमुख
चंद्रबाबू नायडू धुर तेलंगाना विरोधी हो गए हैं। उन्हें लगता है कि इस
फैसले से केंद्र सरकार ने सीमांध्र के साथ भारी नाइंसाफी कर दी है। पूर्व
मुख्यमंत्री चंद्रबाबू का आरोप है कि राज्य का बंटवारा करके केंद्र ‘गंदी
राजनीति’ का खेल शुरू कर रहा है। इसीलिए, उनकी पार्टी आखिरी दम तक इस फैसले
का विरोध करेगी। चंद्रबाबू, तेलंगाना के फैसले का विरोध करने के लिए
दिल्ली में आमरण अनशन पर बैठ गए हैं। उनके अनशन का आज तीसरा दिन है।
तेलंगाना विरोधी टीडीपी और वाई आर एस कांग्रेस के खिलाफ कांग्रेस के
केंद्रीय नेतृत्व में भी पलटवार की रणनीति अपना ली है। कांग्रेस प्रवक्ता
भक्त चरणदास का दावा है कि ये दोनों पार्टियां तेलंगाना के मुद्दे पर लोगों
को गुमराह करने में लगी हैं। क्योंकि, टीडीपी का नेतृत्व तो आज तक यह तय
नहीं कर पाया है कि उसे तेलंगाना का विरोध करना है या नहीं। कांग्रेस
प्रवक्ता ने दावा किया है कि पिछले साल दिसंबर में चंद्रबाबू नायडू ने
केंद्रीय गृहमंत्री सुशील शिंदे से मिलकर कहा था कि उनकी पार्टी तेलंगाना
की जनभावनाओं के साथ है। इसी तरह जून में वाई एस आर कांग्रेस ने अपने एक
प्रस्ताव में कहा था कि पार्टी तेलंगाना के लोगों की जनभावनाओं का आदर
करेगी। बस, इतना चाहेगी कि तेलंगाना के मुद्दे पर सीमांध्र के साथ कोई बड़ी
नाइंसाफी न हो।
केंद्रीय मंत्री सुशील शिंदे ने मीडिया से अनौपचारिक बातचीत में कहा है
कि कुछ राजनीतिक दल महज वोट बैंक की राजनीति के लिए सीमांध्र के लोगों को
गुमराह कर रहे हैं। इस तरह की राजनीति काफी खतरनाक है। क्योंकि, इससे
लोगों के बीच बेहद संकीर्ण मुद्दे पर कटुता फैलाने की साजिश हो रही है।
शिंदे कहते हैं कि यदि बंटवारे के किन्हीं मुद्दों पर कोई ऐतराज हो, तो
बातचीत के रास्ते खुले हुए हैं। इस पर मिल-बैठकर बातचीत हो सकती है। वैसे
भी, बंटवारे को लेकर अभी बहुत से फैसले होने बाकी हैं। सरकार ने इसके लिए
केंद्रीय मंत्रियों का एक समूह (जीओएम) गठित कर दिया है। यह मंत्रि समूह
सभी पक्षों की भावनाएं समझकर अपनी सिफारिशें करने वाला है। लेकिन, कुछ
राजनीतिक ताकतें हिंसक वारदातें कराने में सक्रिय हो गई हैं। इन ताकतों को
जरूर पहचानना होगा। क्योंकि, ये चेहरे सीमांध्र के हितैषी नहीं हो सकते।
आंध्र में पृथक तेलंगाना की मांग बहुत पुरानी है। अलग राज्य के लिए लंबे
समय से आंदोलन चलते आए हैं। 2004 के लोकसभा चुनाव में पहली बार कांग्रेस
ने अलग तेलंगाना बनाने का वायदा अपने घोषणा पत्र में किया था। लेकिन,
गैर-तेलंगाना इलाकों में विरोध के स्वर मुखर हो जाने के कारण पार्टी ने इस
मुद्दे पर चुप्पी साधने का विकल्प बेहतर समझा था। हालांकि, तेलंगाना के
मुद्दे पर ही कांग्रेस और तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के बीच चुनावी
गठबंधन हुआ था। इस पार्टी के प्रमुख के. चंद्रशेखर राव यूपीए की पहली पारी
में मंत्री भी बने थे। लेकिन, जब मनमोहन सरकार ने तेलंगाना के मुद्दे पर
लंबे समय तक टाल-मटोल का रवैया अपनाया, तो उनका मोह कांग्रेस से भंग हो गया
था। उन्होंने कांग्रेस से अपनी पार्टी का गठबंधन तोड़ दिया था।
टीआरएस प्रमुख चंद्रशेखर राव कहते रहे हैं कि यदि केंद्र सरकार तेलंगाना
गठन का फैसला कर ले, तो वे अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर लेंगे।
लंबी जद्दोजहद के बाद सरकार ने तेलंगाना गठन पर अपनी मुहर लगा दी है। नए
राज्य के गठन के बारे में एक 10 सदस्यीय जीओएम भी गठित कर दिया गया है। इस
मंत्रि समूह को डेढ़ महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपनी है।
उल्लेखनीय है कि यह मंत्रि समूह नए राज्य के गठन को लेकर एक विस्तृत
रिपोर्ट सरकार को देगा। जिसमें इस बात का उल्लेख होगा कि राज्य के संसाधनों
का बंटवारा किस-किस आधार पर किया जाए? लेकिन, सीमांध्र में जिस तरह से
आक्रामक आंदोलन शुरू हुए हैं, ऐसे में इस मंत्रि समूह को स्थानीय स्तर पर
मंत्रणा-विमर्श करना भी मुश्किल हो रहा है।
अगले साल लोकसभा का चुनाव होना है। इस चुनाव के लिए सभी प्रमुख दलों ने
अपनी-अपनी चुनावी जोर-अजमाइश शुरू कर दी है। 2009 के चुनाव में यहां
कांग्रेस को भारी सफलता मिली थी। उसने 42 में से 33 सीटों पर जीत हासिल कर
ली थी। इस तरह से आंध्र, कांग्रेस का सबसे मजबूत राजनीतिक किला बनकर उभरा
था। लेकिन, 2009 में आंध्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी
की मौत एक हैलीकॉप्टर दुर्घटना में हो गई थी। दरअसल, रेड्डी की अगुवाई में
ही कांग्रेस को इतनी बड़ी सफलता मिली थी। लेकिन, उनके अचानक निधन से
कांग्रेस के तमाम राजनीतिक सूत्र बिखरते गए। शुरुआती दौर से ही राजशेखर
रेड्डी के युवा सांसद बेटे जगनमोहन रेड्डी ने मुख्यमंत्री बनने की जिद्द
शुरू की थी। जबकि, केंद्रीय नेतृत्व एकदम नौसिखिया नेता को इतनी महत्वपूर्ण
जिम्मेदारी सौंपने के पक्ष में नहीं था। लेकिन, जगनमोहन, अपने पिता की
राजनीतिक विरासत का हवाला देकर दबाव बनाने की राजनीति पर अड़े रहे थे।
यहां तक कि कांग्रेस आलाकमान के समझाने के बाद भी जगनमोहन ने विरोधी
तौर-तरीका बनाए रखा। अंतत: उन्होंने विद्रोह की डगर पकड़ ली। केंद्रीय
नेतृत्व ने दबाव बनाने के लिए कई हथकंडे अपनाए। लेकिन, जगनमोहन इससे डरे
नहीं। दबाव बनाने के लिए उनके बड़े कारोबार के तमाम गोरखधंधों पर केंद्रीय
एजेंसियों ने जांच के घोड़े दौड़ाने शुरू किए। इसी फेर में जगन फंसने लगे।
आय से अधिक संपत्ति के मामले में वे घिर गए, तो उन्हें जेल जाना पड़ा।
पिछले दिनों ही वे 16 महीने तक जेल में रहने के बाद जमानत पर बाहर आए हैं।
बाहर आते ही उनकी लोकप्रियता काफी बढ़ गई है। उनकी सभाओं में भारी भीड़ जमा
हो रही है। सीमांध्र में उनके पक्ष में सहानुभूति की लहर दिखाई पड़ती है।
इसके चलते कांग्रेस का नेतृत्व बेचैन रहा है।
केंद्र सरकार की सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि मुख्यमंत्री किरण रेड्डी का
रवैया भरोसे लायक नहीं रहा। दरअसल, मुख्यमंत्री रेड्डी रॉयल सीमा के रहने
वाले हैं। ऐसे में, वे अपनी निजी राजनीति को बचाने के लिए धुर तेलंगाना
विरोधी बन गए हैं। वे लगातार बयान दे रहे हैं कि केंद्र सरकार ने तेलंगाना
का फैसला करके घोर अन्याय किया है। इससे कांग्रेस की राजनीतिक जड़ें हमेशा
के लिए सूख जाएंगी। केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देशों के बावजूद आंध्र
सरकार हिंसक आंदोलनकारियों के खिलाफ कारगर कार्रवाई नहीं कर रही। ऐसे में,
हालात नियंत्रण से बाहर जाने की आशंका बनी हुई है। हालांकि, दिल्ली में
बैठे कांग्रेस के रणनीतिकारों ने मुख्यमंत्री पर दबाव बनाने के लिए कई
तौर-तरीके अपनाए हैं। लेकिन, मुख्यमंत्री ने अपना रवैया नहीं बदला।
ऐसे में, केंद्र सरकार ने अनुछेद-356 के जरिए राज्य सरकार को बर्खास्त
करने के विकल्प को भी टटोलना शुरू कर दिया है। इसके संकेत मुख्यमंत्री तक
भिजवा दिए गए हैं। केंद्रीय गृहमंत्री सुशील शिंदे ने प्रधानमंत्री से
मिलकर तेलंगाना के मुद्दे पर राज्य के हालात पर अपनी रिपोर्ट दी है।
प्रधानमंत्री कार्यालय ने संकेत दिए हैं कि हालात बेकाबू हुए तो राष्ट्रपति
शासन के विकल्प का भी फैसला हो सकता है। यह बात अलग है कि कांग्रेस
नेतृत्व आखिरी विकल्प के रूप में ही राष्ट्रपति शासन का फैसला करेगा। कांग्रेस के प्रवक्ता भक्त चरणदास कहते हैं कि फिलहाल, राष्ट्रपति शासन
लगाने की नौबत नहीं आई है। लेकिन, राज्य सरकार ने केंद्र को लगातार ठेंगा
दिखाने की कोशिश की, तो केंद्र सरकार जरूरत के हिसाब से फैसला लेगी। इस
मुद्दे पर जगनमोहन ने कांग्रेस पर अपने राजनीतिक निशाने तेज कर दिए हैं।
उन्होंने तेलंगाना विरोध में तमिलनाडू की मुख्यमंत्री जे. जयललिता और
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भी फोन पर समर्थन मांगा है। इस
तरह से जगन, कांग्रेस विरोधी राजनीतिक चक्रव्यूह को भी मजबूत करने में लग
गए हैं।
टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू भी कांग्रेस विरोधी मुहिम में पीछे नहीं रहना चाहते। कांग्रेस की सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि राज्य की राजनीति में उसके ‘अपने’ ही चुनौती देने लगे हैं। इस तरह से तेलंगाना के मुद्दे पर कांग्रेस के इस मजबूत किले में खतरनाक दरारें तो आ ही गई हैं। अब चुनौती यही है कि नेतृत्व किसी तरह से अपना यह गढ़ पूरी तरह से ढहने से बचा ले। मजेदार बात यह है कि तेलंगाना के फैसले के बाद भी टीआरएस के प्रमुख के. चंद्रशेखर राव ने भी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। वे भी कांग्रेस का सिरदर्द बढ़ा सकते हैं। क्योंकि, उनके पास भी ‘किंतु-परंतु’ का पर्याप्त राजनीतिक मसाला तो है ही।
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