बिहार में मोदी प्रवेश दुखद बम धमाकों के बीच
हुआ। विस्फोट की दुखद घटना के बाद भी पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में
मोदी की हुंकार रैली का जैसा आगाज होना चाहिए था। वैसा ही हुआ। नीतीश से
अलग होने के बाद बीजेपी की तरफ से यह पहला बड़ा आयोजन भी था, इसलिए इसे
लेकर पार्टी के स्तर पर पूरी मेहनत भी जरूर की गई होगी। लेकिन परिणाम मेहनत
से ज्यादा दिखाई दिया तो कारण कुछ और नहीं बल्कि बिहार का वह मोदी प्रेम
है जो शायद गुजरात से भी ज्यादा हो गया है। ऐसा शायद इसलिए कि बिहार और
यूपी दो ऐसे राज्य हैं जो नेता निर्मित करने के सिद्धहस्त राज्य हैं। और
अगर किसी में चमत्कारी गुण दिखाई देने लगते हैं तो बिहार उसे अपना नेता मान
लेता है। फिर चाहे वह गांधी हों कि मोदी।
नीलहों की बड़ी
दुर्दशा है। आपके नेतृत्व की जरूरत है। राजकुमार शुक्ल गांधी से जब यह बात
कह रहे थे तब गांधी कांग्रेस के मंत्री भी न थे। तो राजकुमार शुक्ल ने
गांधी जी के अंदर कोई ऐसी चमत्कारिक शक्ति देखी थी जिसके बारे में बाद में
डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने भी आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा था कि न जाने क्यों
राजकुमार शुक्ल को गांधी जी में इतना विश्वास था।
अब न तो गिरिराज सिंह राजकुमार शुक्ल हैं और न ही नरेन्द्र मोदी महत्मा
गांधी। लेकिन नरेन्द्र मोदी में भी कोई बड़ी चमत्कारिक राजनीतिक शक्ति है,
इसे सबसे पहले बिहार के जिस मंत्री ने अनुभव किया उनका नाम गिरिराज सिंह
है। वे नीतीश सरकार में भाजपा के कोटे से मंत्री थे। अदना से। लेकिन जब
उन्होंने बिहार में मोदी गान शुरू किया तब इसे उनकी चापलूस प्रवृत्ति समझी
गई, लेकिन मोदी की तारीफ का यह कोरस जब पूरी पार्टी से उठने लगा तब मोदी की
ही पहल पर नीतीश कुमार सरकार से बीजेपी को अलग कर दिया गया। गुजरात के
मोदी की पहल न होती तो शायद बिहार के मोदी (सुशील कुमार) नीतीश के साथ
वित्त मंत्रालय संभालते रहते। लेकिन उन्होंने इस बंटवारे की सबसे ज्यादा
पुरजोर वकालत की। मोदी का जादू बिहार की बीजेपी के सिर चढ़ चुका था। दिल्ली
के सिर बहुत बाद में चढ़ा।
और जब दिल्ली के सिर चढ़ा तो बिहार ने मोदी को दल (बीजेपी) बल (राजनाथ,
अरुण जेटली) के साथ पटना बुला लिया। हुंकार रैली करने के लिए। तैयारी कुछ
ऐसी की गई थी कि राष्ट्रपति तक को अपना कार्यक्रम बदलना पड़ा और पूर्व
निर्धारित आईआईटी दीक्षांत समारोह को एक दिन पहले निपटाकर जाना पड़ा। कारण
बताया गया होगा कि बहुत भीड़ आयेगी। बहुत भीड़ आई भी और दिखाई भी दी, टीवी
पर। अपने बोलने के दौरान जेटली जी की सांस ही अटकी जाती थी। मानों इतनी
बड़ी संख्या में लोगों को देखकर उनकी आवाज उनकी सोच के साथ तालमेल नहीं
बिठा पा रही थी। राजनाथ सिंह ने तो स्वीकार भी किया कि उन्होंने अपनी पूरी
राजनीतिक जिन्दगी में इतनी भीड़ एकसाथ कभी नहीं देखी। राजनाथ सिंह और अरुण
जेटली भले ही उस कद के नेता न रहें कि इतनी बड़ी संख्या में भीड़ देख पाते
लेकिन जिन्होंने पटना का गांधी मैदान देखा होगा वे समझ सकते हैं कि गांधी
मैदान की भीड़ का मतलब क्या हुआ करता है। शहर के बीचोबीच इस मैदान में जन
समूह की मौजूदगी किसी के भी होश ठिकाने लगा सकती है। भर जाए तो भी और बिफर
जाए तो भी।
खुद नरेन्द्र मोदी को भी शायद ऐसे स्वागत का अंदाज न रहा हो इसलिए भाषण
खत्म करते करते उन्होंने भी स्वीकार कर लिया कि बिहार ने उनका जैसा स्वागत
किया है उसका कर्ज वे एक दिन जरूर उतारेंगे। कब उतारेंगे? उस दिन, जिस दिन
दिल्ली में मोदी की सरकार बन जाएगी। इस स्वागत सत्कार का क्या कर्ज
उतारेंगे? बिहार में नीतीश कुमार की सरकार ने केन्द्र की कांग्रेस सरकार से
पचास हजार करोड़ का विशेष पैकेज मांग रखा है। राजनीतिक हकीकत यह है कि
बीजेपी के साथ अपने आपको असहज महसूस कर रहे नीतीश को अपना शुभचिंतक बनाने
के लिए इसी संभावित पैकेज का भरोसा दिलाया है। अभी तक बिहार को वह पैकेज
मिल तो नहीं पाया है लेकिन पैकेज प्रदान करने के लिए बिहार को बीमार घोषित
करने क लिए जो जांच पड़ताल जरूरी है उसकी प्रक्रिया चल रही है। कब तक पूरी
होगी यह या तो कांग्रेस जाने या नीतीश लेकिन आज नरेन्द्र मोदी ने बिहार से
वादा जरूर कर लिया कि जिस दिन सरकार बनाएंगे उस दिन बिहार को ब्याज समेत
उसका कर्ज चुकाने का फर्ज अदा करेंगे।
वह तो मोदी तब करेंगे जब वे प्रधानमंत्री बनेंगे लेकिन आज अपनी रैली में
उन्होंने कुछ कर्ज ऐसे भी थे, जिसका हिसाब चुकता कर दिया। वह कर्ज नीतीश
का था। नीतीश कुमार की मोदी से अदावत कोई नई बात नहीं है और मोदी जैसे घोर
सांप्रदायिक व्यक्ति के लिए नीतीश की दोस्ती के राजनीतिक हाथ कभी खुलकर आगे
नहीं आये। लेकिन आज जब मोदी बिहार आये तो नीतीश का सारा हिसाब बराबर कर
दिया। अब तक जो बातें नीतीश इशारों में करते रहे थे, उसका जवाब मोदी ने
अपने "मित्र मुख्यमंत्री" को गांधी मैदान में खड़े होकर दे दिया। बकौल
नरेन्द्र मोदी वे नीतीश कुमार से ज्यादा सेकुलर इसलिए हैं क्योंकि उनके
राज्य का मुसलमान बिहार के मुसलमान से ज्यादा अमीर है। मोदी के गुजरात में
हज जाने के लिए कुल चार हजार सीटों का कोटा है लेकिन वहां का मुसलमान इतना
अमीर है कि वहां चालीस हजार फार्म जमा हो जाते हैं लेकिन बिहार के मुसलमान
इतने गरीब हैं कि साढ़े छह हजार का कोटा होने के बाद भी इतने मुसलमानों का
आवेदन नहीं आता है। यानी, बिहार और गुजरात का बंटवारा अमीर और गरीब के आधार
पर होना चाहिए, धर्म और मजहब के नाम पर नहीं।
हालांकि अपने संबोधन के दौरान नरेन्द्र मोदी ने तीन चार दफा जब जब बिहार
का जिक्र किया, उन्होंने मेरे बिहार शब्द का इस्तेमाल किया। कुछ कुछ उसी
तर्ज पर जैसे वे अपने गुजरात के लिए करते हैं। लेकिन विस्फोट के कारण छोटे
कर दिये गये संबोधन में नरेन्द्र मोदी जब बोल रहे थे तो अमीर गुजराती की
तरह ही बोलते दिखाई दे रहे थे। सिर्फ शासन प्रशासन और विकास के मामले में
ही नहीं। आमतौर पर जैसा अपनी हर रैली में वे गुजरात की अमीरी और विकास का
बखान करते हैं उसी तरह इस रैली में भी उन्होंने नीतीश कुमार को भरपेट खाना
खिलाने तक का जिक्र कर दिया। ऐसा कहकर शायद वे यह कहना चाहते थे कि गुजरात
भरपेट खाना खिलाता है तो उसकी कीमत भी वसूलना चाहता है। नरेन्द्र मोदी को
उम्मीद रही होगी कि नीतीश कुमार उनके खाने का कर्ज समर्थन देकर चुकाएंगे
लेकिन नीतीश ने नहीं चुकाया तो मित्र मुख्यमंत्री शत्रु देश का शासक हो
गया। और वह शत्रु देश कौन है?
कहने की जरूरत नहीं कि मोदी की नजर में वह शत्रु देश बिहार और वहां के
शासक नीतीश कुमार हैं जिन्होंने सेकुलरिज्म की दुहाई देकर मोदी के रास्ते
में सबसे बड़ा राजनीतिक पत्थर रख दिया। भले ही मोदी ने बार बार मेरा बिहार
कहा हो लेकिन बिहार की गरीबी को लेकर उनके मन की मनौती सामने आने से बच
नहीं सकी। बिहार में विकास नहीं हो रहा है। अमीर गरीब का फर्क करनेवाली
केन्द्र सरकार की रिपोर्ट भी बिहार को बीसवें नंबर का गरीब बताती है। मोदी
की यह बात इसलिए मायने रखती है कि उनका गुजरात अमीर है। लेकिन अमीरी गरीबी
का यह फर्क दिखाकर मोदी कोई दूर नहीं भागे जा रहे थे। उन्होंने वादा किया
कि "आपकी (बिहार की) चिंता करने का जिम्मा मैं लेता हूं।" जरूर लें। जिन्हे
पीएम बनना होता है उन्हें चिंता भी करनी पड़ती है। लेकिन यहां सिर्फ इतना
जान लेना काफी होगा कि बिहार उतना पिछड़ा नहीं है जितना मोदी समझ रहे हैं
या समझा रहे हैं।
मोदी ने अपने संदेश में साफ कहा कि बिहार गरीब राज्य है और वहां जो राजा
शासन कर रहा है वह जेपी और बीजेपी दोनों से धोखा कर चुका है। इसलिए अब
वक्त आ गया है कि बिहार बदला ले। और वह बदला कैसे ले? वह बदला हिन्दू
मुस्लिम होकर नहीं लिया जा सकता। इसलिए बिहार की जमीन पर नरेन्द्र मोदी ने
विकास का नारा दिया। अगर विस्फोट बड़ी खबर न बनते तो शायद बड़ी खबर यही
होती कि हिन्दुत्व की शर्त पर संघ से उम्मीदवारी का सरोपा पाये नरेन्द्र
मोदी ने नीतीश की जमीन पर खड़े होकर अपने आपको सबसे बड़ा सेकुलर घोषित कर
दिया है। लेकिन विस्फोट के कारण मोदी का वह सेकुलर पाठ कहीं दब गया। और
विकास का वह मोदी मंत्र भी कि हिन्दू मुसलमान आपस में लड़ें इससे अच्छा है
कि मिलकर गरीबी से लड़ें। विकास के लिए हिन्दू मुसलमान एक साथ आयें। पटना
में खड़े होकर मोदी इससे बड़ी और कौन सी राजनीतिक बात कह सकते थे, जो उनके
विरोधियों को परेशान कर सकती है?
विरोधियों को अब विस्फोट परेशान करेगा। भारतीय जनता पार्टी के भीतर भी
और पार्टी के बाहर भी। लेकिन इसका मतलब यह नहीं होगा कि राजनीतिक रूप से
पटना की इस हुंकार रैली का कोई महत्व नहीं रह जाएगा। अमीर गुजरात के इस
गरीब चायवाले ने गरीब बिहार में अमीर गुजरात की तरफ से जो चुनौती खड़ी की
है आनेवाले कुछ दिनों में बिहार इस चुनौती की बखिया उधेड़ेगा। और कौन जाने
कितने तर्क पैदा कर दिये जाएंगे। मोदी की एक एक बात का मीन मेख निकाला
जाएगा। वे तर्क वितर्क और मीन मेख ही बताएंगे कि बिहार में नरेन्द्र मोदी
राजकुमार शुक्ल के गांधी साबित होंगे या फिर गिरिराज सिंह के नड़ेन्द्र भाई
मोदी।
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