मुजफ्फरनगर
के दंगों
के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फर्जी नामजदगी और उत्तर
प्रदेश सरकार की तुष्टिकरण की नीति के खिलाफ गांव-गांव महिलाओं का नया आंदोलन
खड़ा होता दिखाई दे रहा है। मुजफ्फरनगर के 20 से अधिक गांवों में महिलाओं ने आक्रामक
पंचायत कर अब तक मुख्यमंत्री से लेकर कई नेताओं के पुतले फूंक दिये हैं। वहीं
हाथों में डंडे
लेकर वो सीधे सरकार को ललकार रही है कि गांव के लोगों को छेड़ा गया और झूठे मामलों में
फंसाया गया तो उसे महिलाओं से पहले लोहा लेना होगा। महिलाओं की लाशों से होकर ही पुलिस को
गांव में घुसना होगा।
पुलिस और प्रशासन के
लिए यह सिरदर्द अब इतना बढ़ता जा रहा है कि रविवार को मेरठ के सरधना क्षेत्र में की
महिलाओं की पंचायत में जमकर बवाल हुआ। मेरठ-मुजफ्फरनगर के साथ-साथ कई
अन्य स्थानों पर की महिलाओं का आंदोलन लगातार बढ़ता जा रहा है। महिलाएं सपा
सरकार की भेदभाव की नीति के खिलाफ मुजफ्फरनगर में 10 अक्टूबर में सर्वखापों की पंचायत कर
राष्ट्रपति कावन को घेरने की रणनीति बनायेंगी।
मुजफ्फरनगर में जब से
साम्प्रदायिक दंगे हुए हैं तभी से उत्तर प्रदेश सरकार पर जाट बाहुल्य गांव के लोग आरोप
लगा रहे हैं कि सरकार निष्पक्षता से कार्रवाई नहीं कर रही है और दंगों में
फर्जी नामजदगी कराकर गांव-गांव हजारों युवाओं का कैरियर खराब कर दिया
गया। पुलिस से बचने के लिए गांव के गांव खाली हो गये। गांव में इस समय केवल
महिलाएं, बच्चे और पशु ही रह
गये हैं।
मुजफ्फरनगर में पिछले एक हफ्ते से गांव-गांव में महिला पंचायतों का जो दौर शुरू हुआ वह
सरकार को सीधे टकराने का न्यौता दे रहा है।
फुगाना, खरड़, लिसाढ़, कुटबा, कोपा, कोकरहेड़ी, कुरथल, मौहम्मदपुर, राय सिंह सहित अनेक गांवों में महिला
पंचायत हो चुकी है। यहां महिलाओं और लड़कियों का एक ही सवाल है कि उत्तर प्रदेश सरकार
साम्प्रदायिक हिंसा के बाद तुष्टिकरण पर क्यों उतर आई? वह दंगों का दूध का दूध पानी का पानी
कराने के लिए क्यों नहीं सीबीआई की जांच होने देती और क्यों निर्दोष हजारों लोगों
को हिंसा के मामले
में नामजद कर जेल के सलाखों के पीछे भेजने की तैयारी की जा रही है?
गांवों में लड़कियों
में इतना आक्रोश है कि लड़कियों ने पढ़ाई छोड़ने की घोषणा करते हुए अपनी किताबों व कापियों
की होली तक जला दी। दिन निकलते ही महिलाएं गांव में डंडे हथियार लेते हुए
पंचायत करते हुए दिखाई देती है और साफ कहती है कि गांव में पुलिस घुसी तो
खैर नहीं। इन पंचायतों का दौर गांव-गांव बढ़ता जा रहा है। रविवार को
मुजफ्फरनगर के मोरना व कोपा के नन्हेड़ा में महिलाओं ने पंचायत कर यही
सवाल उठाये कि आखिर कब तक निर्दोष लोगों के सरकार फंसायेगी। एक ही समुदाय
के लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। यही नहीं उनकी फसलों व
ट्यूबवैलों को भी नष्ट किया जा रहा है। तिगरी, बसेड़ा, नंगला, गादला, पचैंडा में की लड़कियों ने दहशत के कारण
स्कूल जाना
छोड़ दिया। वहीं जौली गंगनहर पर हुई हिंसा में क्षतिग्रस्त 16 ट्रैक्टरों व छह बाइकों के मुआवजे के
बारे में की सरकार अभी तक चुप है।
कुटबा की पंचायत में महिलाओं ने कहा कि
यदि दो अक्टूबर से शासन व प्रशासन ने उनकी मांगें नहीं मानी तो वह 10
अक्टूबर को गांव कुटबा मे ही बालियान खाप के चौरासी की
महिलाओ की पंचायत आयोजित की जायेगी जिसमे दिल्ली मे राष्ट्रपति भवन को घेरने की रणनीति
बनेगी। पंचायत में आयी हजारों महिलाओ में सरकार के प्रति इतना आक्रोश था कि
उन्होने सरकार विरोधी नारे लगाते हुऐ मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का पुतला फुका।
सरधना में जिस तरह से
खेड़ा की महिला पंचायत में बवाल हो गया उसके बाद मुजफ्फरनगर के गांवों में पुलिस अगर
नामजद लोगों को गिरफ्तार करने का प्रयास करती है तो स्थिति यहां भी बिगड़
सकती है। हालांकि उत्तर प्रदेश शासन मुजफ्फरनगर के हालात पर बारीकी से नजर
रखे हुए हैं और गांव से लेकर शहर तक सुरक्षाबलों को तैनात कर चौकसी के
निर्देश दिये गये हैं। मुजफ्फरनगर के गांव और शहर में अब जो घटनाएं हो रही
है।
वो भी संभवत: साम्प्रदायिक हिंसा में प्रतिशोध का परिणाम मानी जा रही है।
जिलाधिकारी कौशलराज शर्मा कह भी चुके है कि मुजफ्फरनगर में जो अपराध हो
रहा है उसमें बाहरी लोग शामिल है। जिस तरह से महिला पंचायत सामने आई उसके
बाद सर्वखाप में भी सुगबुगाहट है। गठवाला खाप से लेकर बालियान खाप तक
महिलाएं हर तरह से उत्तर प्रदेश सरकार से टकराने का मन बना चुकी है। शासन ने
इस नाजुक स्थिति को नहीं भांपा तो मुजफ्फरनगर फिर एक बार गर्म हो सकता है।
No comments:
Post a Comment