06 October 2013

राम (राहुल+मनमोहन) राज्य और दादागीरी !

रामन केवल एक सनातन थिओलोजिकल कांसेप्ट है बल्कि पालिटिकल थिओलोजिकल भी है। राहुल-मनमोहन द्वन्द्व से रामका पुनर्जन्म हुआ है। रामसंक्षिप्त नाम है राहुल-मनमोहन द्वन्द्व का (रा=राहुल म= मनमोहन) इससे एक जनतांत्रिक बात सामने आई है। इसमें कोई संदेह नहीं कि द्वंद्व या डायलेक्टिक से सदैव कुछ बेहतर निकल कर आता है। डायलेक्टिक मार्क्सवाद की बपौती नहीं है यह सनातन सिद्धान्त है और इसका उपयोग भारत के दोनों महान दार्शनिक नागार्जुन और आदि शंकराचार्य ने अपने अपने दर्शनों में किया है। आचार्य शंकर का अद्वैत इस डायलेक्टिक की ही उपज है भगवन कृष्ण ने भगवदगीता में कहा है द्वन्द्वः सामासिकस्य च'' समासो में मैं द्वन्द्व हूँ

राहुल मनमोहन द्वंद्व से जो रामनिकला वह गरीब नवाजू है। जो राम गरीब नवाजू न हो वह राम नहीं है। ध्यान देने की बात है कि गरीब नवाजू तुसलीदास का शब्द नहीं है यह उन्होंने इस्लाम से लेकर रामचरित मानस में समाहित किया है। तुसली के राम सेक्युलर हैं, सोशलिस्ट हैं और हिन्दू मुस्लिम दोनों संस्कृतियों के द्वन्द्व से उपजे हैं। राहुल-मनमोहन के द्वंद्व से जो अस्तित्त्व में आया है उससे कमोवेश क्रिमिनालाइज्ड हो गये राजनीतिक तंत्र से जनता को छुटकारा मिलेगा। राम ने भी जनता को ऐसे असुरों से मुक्ति दिलाई थी, हाँ उन्होंने यह काम लड़कर किया, इन्होने अहिंसक ढंग से राजनैतिक विमर्श से मुक्ति दिलाने का मार्ग प्रशस्त किया।

इसलिए राजनीति में अपराधियों का संरक्षण करनेवाले विधेयक को फाड़ कर फेंक देने योग्य हैकहकर राहुल गाँधी ने कोई राजनीति नहीं की है बल्कि अपना राजधर्म निभाया है। दक्षिणपंथी हिन्दुत्त्व के प्रभाव में मीडिया के एक वर्ग को यह राजधर्म क्योंकर समझ में आता? दक्षिण पंथी इस मीडिया वर्ग ने जिसमे आजतक ग्रुप भी है नरेन्द्र मोदी के साथ सुर में सुर मिलाया कीराहुल ने प्रधान मंत्री की पगड़ी उछाल दी। इंडियन एक्सप्रेस के  एडिटर शेखर गुप्ता ने आननफानन में  हिन्दुत्त्व के पक्ष में रामको काउंटर करते हुए लेख ठेल दिया। इसी अख़बार में एक दूसरे महोदय संजय बारू ने यहाँ तक लिख डाला कि राहुल ने न केवल प्रधानमंत्री का बल्कि बिल को नॉनसेंस' कहकर सारी कैबिनेट का अपमान कर दिया है। महोदय को यह स्वीकार करने में एकदम दिक्कत थी कि राहुल ने पार्टी और कैबिनेट का निर्णय को सही किया है।

संजय बारू को तो नरेन्द्र मोदी के भाषणों में ग्रेस ही ग्रेस नजर आया होगा लेकिन राहुल का राजनैतिक प्रतिरोध अन- ग्रेसफुल था। इनके अनुसार राहुल का मोड़ ऑफ़ एक्सप्रेशन सही नहीं था। मिस्टर स्तम्भ कार थोडा मोदी के मोड ऑफ़ एक्स्प्रेशन पर भी लिखे| बनिस्बत इसके की मनमोहन सिंह ने पिछले दिनों स्वयं यह कहा था कि मैं राहुल गांधी के नेतृत्व में काम करके बहुत प्रसन्नता का अनुभव करुंगा।फिर भी मीडिया लिख रहा है कि राहुल लम्बे समय से पीएम को पदच्युत करने की फ़िराक में हैं “!!  फ़िराक?? हम भी इन दक्षिणपंथियों की फ़िराक में हैं। इस प्रसंग में अपने को सेक्युलर बताने वाली मीडिया से भी मुक्तिबोध की तरह पूछना पड़ेगा व्हाट इज योर पालिटिक्स पार्टनर!

दूसरी बात जो इन मोदीवादी हिन्दूवादी लेखकों और स्तंभकारों के बारे में हास्यस्पद है कि कांग्रेस की वर्तमान जन कल्याणकारी योजनाओं के कारण कांग्रेस पर सीधे समाजवादी और कम्यूनिस्ट होने का आरोप लगाते है, इस लेखक संजय बारू ने भी लेख अंत में यही किया। तवलीन सिंह को तो मानो समाजवादी और कम्युनिस्ट कहने की आदत सी है। मनमोहन सिंह मूल्यों से समझौता न करने वाले एक अनुभवी कांग्रेसी हैं यह दक्षिणपंथियों को पचता नहीं और वे उनको अनापशनाप बोलते रहते हैं। राष्ट्रपति बराक ओबामा और प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से मुलकात कर देश लौटते ही उन्होंने प्रेस कन्फ्रेंश में जो कहा उससे हिन्दुत्त्व की बोलती बंद हो गयी है।

दक्षिणपंथी लेखको को पीएम के वक्तव्यों को ठीक से पढ़ना चाहिए और दुष्प्रचार बंद करना चाहिए। उन्होंने प्रेस के सामने लौटते ही जो कहा उसका लबोलुबाब यह था जनतंत्र में जब मुद्दों से सरोकार रखने वाले अपनी बात सामने रखते हैं तो हमें समझना होगा कि मुद्दे की कौन से बात उन्हें परेशान कर रही है। कांग्रेस का कोई सदस्य अपनी बात सामने रख सकता है, यही तो जनतंत्र है।हम अथारिटेरियन पार्टी नहीं हैं।अथारिटेरियन पार्टी भाजपा है जिसने लालकृष्ण अडवाणी की एक न सुनी और नरेन्द्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर दिया। 

उन्होंने एक बेहतर पीएम की तरह स्पष्ट किया कि राहुल गाँधी के मुद्दे को कैबिनेट और कांग्रेस पार्टी की कोर कमेटी के सामने रखेंगे! दूसरी तरफ नरेन्द्र मोदी ने प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को देहाती औरतकहकर जो देश का अपमान किया था उसका भी उन्होंने करार जबाब दिया! मैं ऐसे बातों से रुबरूं हूँ। मैं बहुत आसानी से अपसेट नहीं होता हूँ। और फिर अक्खड़ अहंकारी हिन्दुत्त्व नरेन्द्र मोदी पर शुद्ध गांधीवादी तमाचा सभी सेक्युलर ताकतें मोदी के खिलाफ एक जुट होंमैं यह विश्वास करता हूँ कि यह होगा। आप थोड़ा इन्तजार करें जनता को भी (हिंदू नाजियों द्वारा बहकाए जाने का) अहसास होगा!” 

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