15 October 2013

चंबल के बीहड़ में शेरों की सैरगाह !

2003 मे जब उत्तर प्रदेश मे मुलायम सिंह यादव की अगुवाई समाजवादी पार्टी का गठन हुआ था उस समय इटावा समेत पूरी चंबल घाटी मे कुख्यात डाकुओ का आतंक चरम पर था, ऐसे मे मुलायम सिंह यादव ने डाकुओं की छाप से इटावा को मुक्त कराने के मकसद से पहले तो डाकुओ का सफाया कराया उसके बाद इटावा को पर्यटन मानचित्र पर लाने की गरज से बीहड़ में लायन सफारी की स्थापना की रूपरेखा शुरू कराई। और अब जिस तरह से तैयारियां चल रही हैं उससे अगले कुछ महीनों में ही कभी डकैतों की शरणस्थली रहे यमुना के इस बीहड़ में बब्बर शेर दहाड़ेंगे। यमुना के किनारे करीब 2912 एकड़ जमीन में फैला हुआ यह फिशर वन पिछले चार दशक से डकैतों की शरणस्थली हुआ करता था। इटावा में निर्माणाधीन लायन सफारी में फरवरी में बब्बर शेरों का जोड़ा रहने के लिये आ जायेगा। यह जोड़ा बनने वाले ब्रीडिंग सेंटर में आकर रहेगा। एशियाई बब्बर शेर को यहां पर लाया जायेगा।

 पूरे देश में केवल 411 शेर बचे हुये हैं। उनका यहां पर प्रजनन केंद्र भी खोला जायेगा। उन्होंने बताया कि लायन सफारी परियोजना 45.65 करोड़ की लागत से बन रही है। परियोजना में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मानक रखे गये हैं। ब्रीडिंग सेंटर का काम इस वर्ष के अंत तक पूरा कर लिया जायेगा। 1000 एकड़ क्षेत्र में पौधरोपण का कार्य किया गया है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 1 लाख 53 हजार 240 वें पौधे का रोपण किया है। पूरे क्षेत्र में 20 प्रजातियों के पौधे लगाये जा रहे हैं। प्रदेश में वन विभाग को 4.4 करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य दिया गया था जिसके सापेक्ष विभाग ने 5.5 करोड़ पौधे रोपे हैं। 

विलायती बबूल से फिशर वन को अगले कुछ सालों में बिल्कुल मुक्ति मिल जायेगी इसके प्रदेश सरकार ने वन क्षेत्र का ईको रेस्टोरेशन करने का फैसला लिया है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के निर्देश पर फिशर वन को विलायती बबूल से पूरी तरह मुक्त करके चौड़ी पत्ती वाली प्रजातियों के पेड़ों का रोपण करने का कार्य शुरू किया गया है। इस कार्यक्रम के तहत 1000 एकड़ में 1 लाख 53 हजार 200 पौधे रोपित किये गये। एक ही स्थान पर पौधों के रोपण का यह सबसे बड़ा प्रयास माना जा रहा है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत नीम, शीशम, पीपल, बरगद, पाकड़, बेल, महुआ, कदम्ब, सिरस, अकेसिया, अरिकुलीफार्मिसव इमली के पौधे रोपित किये जा रहे हैं।

कुख्यात डाकुओ की शरणस्थली के रूप मे बदनाम रही चंबल घाटी को पर्यटको के लिये आबाद करने की मंशा के तहत लायन सफारी प्रोजेक्ट के बहुत जल्दी पूरा होने की उम्मीद हो चली है। लायन सफारी को सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव का ड्रीम प्रोजेक्ट कहा जाता है लेकिन 2007 मे उत्तर प्रदेश मे मायावती ने सत्ता मे आते ही बदले की भावना से काम करते हुये इस प्रोजेक्ट को ठंडे बस्ते मे डाल दिया था। चंबल इलाके मे काबिज होने वाले इस प्रोजेक्ट के बारे मे कहा जा रहा है कि इससे पहले इस तरह का कोई दूसरा प्रोजेक्ट उत्तर प्रदेश के किसी भी दूसरे हिस्से मे नही है। देश मे इस तरह का प्रोजेक्ट सिर्फ गुजरात मे स्थापित है।

इटावा मुख्यालय से करीब 5 किलोमीटर दूर स्थित फिशर वन इटावा में आजादी से पहले तैनात रहे अग्रेज अफसरों के लिये मनोरजंन का स्थान बना रहा है। पहले इस इलाके में पानी को रोकने के लिये एक बड़ा बांध बनाया गया था लेकिन वक्त की मार के चलते यह बांध अब पूरी तरह से टूट चुका है। फिशरवन अग्रेंज अफसरों की यह शिकारगाह रहा है। यहां पर इटावा के महाजन लोग अग्रेंज अफसरों के लिये हिरन, सांभर, चीतल और तेदुओं को पहले शिकारियों के जरिये पकडवाकर अग्रेंज हुक्मरानों के सामने शिकार के लिये पेश किये जाते थे। फिर अंग्रेज गोली से उनका शिकार करके खुश हुआ करते थे। जानवरो के मरने के बाद उसके मांस को वही पर पका कर के खाने का क्रम भी अग्रेंज अफसर अपने परिवार के साथ किया करते थे। फिशर वन इलाका उस समय शीशम के पेडो से हरा भरा हुआ करता था खासी तादात मे इस इलाके मे शीशम के पेड हुआ करते थे लेकिन अब वन माफियाओ ने इस इलाके पर अपनी नजर गडा रखी है इस वजह से इस इलाके मे शीशम को कोई पेड नही रह गया है।

इस वन खण्ड में मुख्यतया बीहड़ तथा थोड़ी समतल बंजर भूमि है जहां यमुना और चम्बल की पुरानी कन्दराएं हैं। ऐसा आभास होता है कि नदी के किनारे की भूमि की संरचना कटान के कारण बीहड़ बनी है। इन बीहड़ों का विशाल क्षेत्र जो कि अन्य किसी भी उपयोग के लिये अनुपयुक्त था भारी चरान तथा अविवेक पूर्ण कटान व शाख तराशी का शिकार बना।

इटावा के तत्कालीन जिलाधीश जे.एफ. फिशर के सन् 1884 में अपने प्रारम्भिक प्रयासों से उन उम्मीदों को जिसके पास इटावा शहर के पश्चिम की दिशा में बीहड़ जमीन थी, को अपनी इच्छानुसार 1146.07 हे. जमीन जिलाधीश को सौंप देने के लिये राजी किया ताकि भूमि को क्षरण व अधिक ह्रास से बचाया जा सके तथा ईधन व चारे के आरक्षित वन बनाये जा सकें। जमीदारों को ही इस कार्य के लिये आवश्यक धन उपलब्ध कराना था तथा इससे जो भी लाभ होता उसको दिये गये धन तथा अर्जित की हुई भूमि के अनुसार विभाजित करके चुकाना था। कार्य उसी वर्ष प्रारम्भ हो गये, क्षेत्र चरान के लिये बन्द कर दिया गया और उसकी साधारण हल से जुताई कर इसमें बबूल, शीशम तथा नीम के बीजों को बोया गया। बीहड़ में जगह-जगह पर बन्धे बनाये गये ताकि जल व नमी का संरक्षण किया जा सके तथा जल स्तर ऊपर आ सके। बबूल की बढ़त इतनी उत्साहवर्द्धक थी कि कानपुर के कूपर एलैन कम्पनी ने सन् 1902 में पूरा जंगल बबूल की छाल निकालने हेतु 2.50 रू. प्रति है. पर 50 वर्ष के पट्टे पर लेने को आकर्षित हुई।

कानपुर के चमड़े के कारखानों में बबूल की छाल की आपूर्ति बढ़ाने तथा इतन कारखानों के निकट बबूल के भण्डार स्थापित करने के उद्देश्य से कालपी बीहड़ों में तथा आटा रेलवे स्टेशन के दक्षिण में स्थित पिपरायां में खेती योग्य जमीन जुताई कर बनाई गई। वनीकरण कार्य बीहड़ों में बंधे बनाने के कार्य के साथ प्रारम्भ किया गया। प्रारम्भ में परिणाम आशाजनक प्रतीत हुए परन्तु अन्तिम सफलता दूर ही रही। आर्थिक दृष्टि से यह रोपवन असफल रहा। सन् 1912 के प्रारम्भ में सरकार के सम्मुख नये जंगलों को लगाने की विशेष तथा उन जंगलों जिनकी आवश्यकता कृषि जनक मांगों को पूरा करने के लिये थी, के लिये एक निश्चित नीति निर्धारित करने की थी, परिणामस्वरूप उपलब्ध क्षेत्रों के साथ विभिन्न वर्गों की बंजर भूमि में वनीकरण के उपयोग के लिये आदेश दिये गये।

कूपर एलैन कम्पनी ने सन् 1914 तक फिशर वन का व्यवहारिक रूप से विस्तार कर लिया था जो कि उन्होंने 1902 में बबूल की छाल के लिये पट्टे पर लिया था। वन विभाग की निगाहें इस क्षेत्र पर पहले से थी, जिसमें कुछ सफलता दृष्टिगोचर हुई थी। अन्य क्षेत्रों में किये गये प्रथम वर्ष के वृक्षारोपण के उत्साहजनक परिणामों से वन विभाग अपने अधीन क्षेत्रों का विस्तार करने को इच्छुक था। कम्पनी ने रू. 2500.00 पट्टे की कीमत तथा रू. 2,382.00 जमीदारों के वार्षिक किराये सहित इस क्षेत्र के पट्टे को वन विभाग को स्थानन्तरित कर दिया। इस प्रकार फिशर वन 1914 से ही वन विभाग के नियंत्रण में है।

वनीकरण कार्य वर्ष 1913 के पश्चात् मुख्यतः दो प्रकार से किये गये, पहला नालों या अन्य उपयुक्त स्थलों पर बन्धें बनाकर बढ़ते हुये भू- क्षरण को रोकना, दूसरा उपयुक्त प्रजातियों का पौधा रोपण या बीजारोपण कर भूतल को एक वनस्पतिक आवरण प्रदान करना जो प्रारम्भ में भूमि को अपक्षरित होने से बचाए तथा भविष्य मे एक ईधन का भण्डार भी बने।

बीजारोपण तथा पौधारोपण की विधि के अंतर्गत ऊँची समतल भूमि पर 20 से.मी. गहरा हल चलाया गया, 3-3 मीटर की दूरी पर 30 से.मी. ऊँची तथा 60 से.मी. चौथी आधार वाली समानान्तर कूट बनाई गई जिनके ऊपर और एक उथली बनाई गई, जिसमें शीशम, नीम, कंजी आदि के पौधों का रोपण किया गया तथा बबूल, नीम, पापड़ी के बीजों का कूटों में बुहान किया गया। जगह-जगह पर जल व मृदा संरक्षण हेतु नालों मे बन्धे बनाये गये तथा सही विधि बीहड़ों के तल के मैदानी भागों के लिये भी अपनाई गई।

फिशर फारेस्ट (प्रतावित लॉयन सफारी पार्क) क्षेत्र में कालान्तर में चौड़ी पत्ती का अच्छा वन स्थापित हो गया था, जिसकी मुख्य प्रजातियां शीशम, सेमल, नीम, कंजी तथा बॉस थीं। जैविक दबाव के कारण चौड़ी पत्तियों की प्रजातियो के वृक्षों में निरन्तर ह्रास होता गया, इन परिस्थितियों में भूमि को क्षरण से बचाने तथा ईधन, चारे की निरन्तर बढ़ती आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु विलायती बबूल के बीजों का छिड़काव सन् 1985 तथा उसके बाद कई वर्षों में किया जाता रहा, क्योंकि यह एक ऐसी प्रजाति थी जो अत्यन्त ही अवनत भूमि पर कम से कम पानी की आवश्यकता के साथ शीघ्रता से बढ़ सकती थी। परिणामस्वरूप उक्त वन क्षेत्र में प्रोसोपिस (विलायती बबूल) का घनत्व बढ़ता गया एवं वर्तमान में इस खेत्र ने प्रोसोपिस वन का रूप ले लिया है, फिर भी बीच-बीच में वनस्पतियों की अन्य प्रजातियां भी हैं एवं उन प्रजातियो के रूट स्टॉक भी पर्याप्त मात्रा में फिशर फारेस्ट क्षेत्र में विद्यमान हैं।  

इटावा और आसपास के इलाके मे पर्यावरणीय दिशा मे काम कर रहे डा.राजीव चौहान का कहना है कि लायन सफारी प्रोजेक्ट के शुरू हो जाने के बाद इटावा जहा पर्यटक मानचित्र पर आ जायेगा वही इटावा की डाकू छाप से भी इटावा को मुक्ति मिल जायेगी। इस इलाके मे आसपास के लोग अभी भी नीलगाय जैसे जानवरो को शिकार करने के लिये आते रहते है। उनका कहना है कि जब इस इलाके मे लायन सफारी प्रोजेक्ट की शुरूआत हो जायेगी तब इस इलाके का व्यापक विकास शुरू हो जायेगा।

मुलायम सरकार ने एशियाटिक लायन (भारतीय) शेर को संरक्षण के लिये चंबल सेंचुरी क्षेत्र में यह परियोजना बनाई थी। यह शेर केवल गुजरात के गिर के जंगलों में ही पाया जाता है। इसको इटावा शहर के निकट यमुना और चंबल के बीहड़ में वन विभाग की फिशर फोरेस्ट जगह पर खोले जाने की योजना थी। 150 हेक्टेयर क्षेत्र में यह खुलना था। पर्यावरण को लेकर विशेष संजीदा रहने वाले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से इटावा के लोगों को उम्मीदें हैं कि यह परियोजना शीघ्र शुरू होगी। इससे इटावा को पर्यटन के क्षेत्र में एक नई दिशा मिल सकेगी। चंबल और यमुना के बीहड़ी क्षेत्र के प्रति बढ़ते टूरिज्म आकर्षण से ये योजना अब भी उतनी ही उपयोगी है। जितनी पांच साल पहले फाइल में कैद होने के समय थी। 

वन विभाग द्वारा बनाई गई कार्ययोजना विशेष श्रेणी के जू के रूप में तैयार की गई थी। योजना के महत्व के बारे में कहा गया था कि दो सौ साल तक उत्तर भारत में सहजता से पाया जाने वाला एशियाटिक लॉयन भारतीय शेर अब मुख्य रूप से केवल गुजरात के गिर के जंगलों में ही बचा है। वहां भी स्थान की तुलना में इनकी संख्या अधिक हो चुकी है। जो उनके स्वाभाविक विकास के लिए ठीक नहीं है। इस प्रकार एक अन्य प्राकृतिक आश्रय स्थल इस वन्य जीव के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है। इटावा के बीहड़ी क्षेत्र को इसलिए चुना गया था क्योंकि इसकी वनस्पतियों और वन्य स्थिति में गिर के जंगल से काफी समानता है।

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