नरेन्द्र मोदी ने 'पहले शौचालय फिर देवालय' का
नारा दे तो दिया है, और उसपर बहस भी चल पड़ी है, लेकिन सवाल है कि नरेन्द्र
मोदी ने शौचालय पर इतना जोर क्यों दिया? और क्या शौचालयों से ज्यादा ज़रूरी
देश में कुछ भी नहीं है? या फिर शौचालय के बाद प्राथमिकता पर सिर्फ देवालय
ही क्यों आता है? शौचालयों से पहले या बाद में यदि विद्यालयों को और उसके
बाद देवालयों को रख दिया जाए तो क्या हर्ज है?
वैसे भी नरेन्द्र मोदी अपनी सभाओं में नौजवानों के लिए बात करते
हैं। उनके लिए अवसर की बात करते हैं। उनके सामने अवसर न होने की बात करते
हैं। जिस नौजवान ने उनसे वह सवाल पूछा था उसके सामने नरेन्द्र मोदी ने
शौचालय और देवालय की बात ही क्यों की? आखिरकार क्यों वे नौजवान को शौचालय
और देवालय की बहस में ही उलझाकर रखना चाहते हैं? क्या वे यह तर्क नहीं दे
सकते थे कि उनके लिए देवालय से पहले विद्यालय है? आखिरकार सवाल एक नौजवान
ने पूछा था।
लेकिन नरेन्द्र मोदी का का उभार देंखे तो वे ऐसा करते दिखाई नहीं देते।
मोदी समस्याएं तो बताते हैं लेकिन उसका कोई भी समाधान उनके पास नहीं होता
है। वे सिर्फ समस्याएं बताते हैं उनके पास समस्याओं का कोई तर्कसंगत समाधान
नहीं होता है। जब समाधान बताने की बारी आती है तो वे बड़ी चालाकी से अपने
आपको सामने रख देते हैं। यानी सब समस्याओं का एक ही समाधान है, और उस
समाधान का नाम मोदी है। समझाया यह जा रहा है कि मोदी आयेंगे तो सब समस्याएं
खत्म हो जाएगीं। इतिहास में अब तक तो ऐसा हुआ नहीं है, फिर अबकी ऐसा कैसे
हो जाएगा? आप यदि समस्या बताते हैं तो उसके एक दो तर्कपूर्ण समाधान तो
बताना ही होगा। किसी समस्या को आप अपने उत्थान की सीढ़ी नहीं बना सकते।
भारत देश में मोदी का उभार मीडिया और सोशल मीडिया की देन है। नरेन्द्र
मोदी और उनकी पीआर कंपनी नयी सोच नई उम्मीद का नारा देती है। निश्चित रूप
से नये मीडिया के इस नये दौर में मोदी जैसे नेता ही नयी सोच और नयी उम्मीद
हो सकते हैं क्योंकि वे ऐसा होने का प्रचार करते हैं। मोदी ने अपने आपको
इलेक्ट्रोनिक मीडिया/पी.आर. एजेंसी और सोशल मीडिया द्वारा स्थापित तो कर
लिया है मगर उनके कई बयानों और विचारों पर उनकी पार्टी को ही कई बार बैकफुट
पर आना पड़ा है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो रहा है। मजबूरी में मोदी की वही
पार्टी मोदी के बयान पर तालियां बजा रही है जो जयराम रमेश के ऐसे ही बयान
पर उनके घर को सुलभ शौचालय बनाने की बात कर रही थी।
मोदी का बयान आया था कि 'पहले शौचालय फिर देवालय'। कुछ ऐसे ही बयान
जयराम रमेश पहले भी दे चुके हैं, जिसके कारण उन्हें भारी विरोध का सामना
भी करना पडा था, उनके बयानों के अनेक अर्थ निकाले गए थे, आज जो मोदी के इस
बयान पर गालियां और तालियाँ दे रहे हैं, उन्होंने ही उत्पात मचाया था।
खैर ...अब मोदी ने बयान दे दिया है तो समर्थन तो करना ज़रूरी है ही,
क्योंकि यह बयान मोदी ने जो दिया है। कई लोग तो इस बयान के समर्थन में
बहुत ही हास्यास्पद तर्क और तथ्य दे रहे हैं।
लेकिन सवाल यह है कि शौचालय और देवालय के बीच विद्यालय कहां हैं? यह भी
तो शिक्षा के देवालय हैं। हमारे देश में शिक्षा का भी हाल बुरा है, गरीबी,
विद्यालयों की कमी, शिक्षकों की कमी, माध्यमिक विद्यालयों में मूलभूत
सुविधायों की कमी आदि ऐसे अनेक कारण हैं जिनसे देश शिक्षा में पिछड़ा हुआ
है। गाँव में स्कूल ना होने के कारण लगभग 20% बच्चे स्कूल का मुंह तक नहीं
देख पाते, उनमें से लड़कियों की संख्या अधिक है! प्राथमिक और माध्यमिक स्तर
पर ही यदि शिक्षा क्षत विक्षत है तो नयी पीढ़ी कैसे शिक्षित होगी? और यदि
शिक्षित नहीं होगी तो उनको रोज़गार कैसे मिलेगा? बेरोज़गारी कैसे दूर होगी?
अशिक्षा शौचालय नहीं होने से ज्यादा हानिप्रद है। शौचालय का जुगाड़ तो लोग निजी तौर पर करते चले आ रहे हैं, और अब इस विषय पर लोगों में खुद ही जागरूकता भी आ रही है, मगर विद्यालय की व्यवस्था निजी तौर पर संभव नहीं है, यह सभी जानते हैं। इसके लिए सभी संसाधनों के लिए प्रशासन और सरकार ही ज़िम्मेदार है। फिर मोदी विद्यालय की बात क्यों नहीं करते? शिक्षित युवा ही देश के भावी कर्णधार होते हैं, देश को उन्नति, प्रगति के पथ पर ले जाने वाले। देश का गौरव बढ़ने वाले होते हैं, देश में जितने अधिक विद्यालय होंगे जितने अच्छे पढ़ाई के संसाधन होंगे। युवा पीढ़ी उतनी ही शिक्षित और संस्कारवान होगी !
देश में शौचालयों से काफी पहले विद्यालयों का निर्माण होना चाहिए। महाविद्यालयों का निर्माण होना चाहिए। बेहतर स्वास्थ्य के लिए रूग्णालयों (अस्पतालों) का निर्माण होना चाहिए। देश में रोज़गार के अवसरों का बढाने का प्रयास होना चाहिए। देश की उन्नति और प्रगति के लिए यह अत्यंत आवशयक हैं। बेहतर और उन्नत शिक्षा/स्वास्थ्य और रोज़गार से बेहतर/समर्थ और शिक्षित युवा आगे जाकर शक्तिशाली नागरिक बनेंगे और उस देश को शक्तिशाली बनाएंगे जिसकी कमजोरी को सीढ़ी बनाकर मोदी खुद शक्तिशाली बन रहे हैं।
अशिक्षा शौचालय नहीं होने से ज्यादा हानिप्रद है। शौचालय का जुगाड़ तो लोग निजी तौर पर करते चले आ रहे हैं, और अब इस विषय पर लोगों में खुद ही जागरूकता भी आ रही है, मगर विद्यालय की व्यवस्था निजी तौर पर संभव नहीं है, यह सभी जानते हैं। इसके लिए सभी संसाधनों के लिए प्रशासन और सरकार ही ज़िम्मेदार है। फिर मोदी विद्यालय की बात क्यों नहीं करते? शिक्षित युवा ही देश के भावी कर्णधार होते हैं, देश को उन्नति, प्रगति के पथ पर ले जाने वाले। देश का गौरव बढ़ने वाले होते हैं, देश में जितने अधिक विद्यालय होंगे जितने अच्छे पढ़ाई के संसाधन होंगे। युवा पीढ़ी उतनी ही शिक्षित और संस्कारवान होगी !
देश में शौचालयों से काफी पहले विद्यालयों का निर्माण होना चाहिए। महाविद्यालयों का निर्माण होना चाहिए। बेहतर स्वास्थ्य के लिए रूग्णालयों (अस्पतालों) का निर्माण होना चाहिए। देश में रोज़गार के अवसरों का बढाने का प्रयास होना चाहिए। देश की उन्नति और प्रगति के लिए यह अत्यंत आवशयक हैं। बेहतर और उन्नत शिक्षा/स्वास्थ्य और रोज़गार से बेहतर/समर्थ और शिक्षित युवा आगे जाकर शक्तिशाली नागरिक बनेंगे और उस देश को शक्तिशाली बनाएंगे जिसकी कमजोरी को सीढ़ी बनाकर मोदी खुद शक्तिशाली बन रहे हैं।
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