02 October 2013

राईट टू रिजेक्ट लागू मगर इसमें नया क्या है..?

उच्चतम न्यायालय के भारत के नागरिकों को नकारात्मक मतदान का अधिकार प्रदान करने के बीच कानूनी विशेषज्ञों ने कहा है कि यह नया प्रावधान नहीं है और जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 में उम्मीदवार को नापसंदकरने की व्यवस्था है, हालांकि इससे गोपनीयता सुनिश्चित होगी। शीर्ष अदालत के नकारात्मक मतदान या राइट टू रिजेक्टके पक्ष में फैसले से भारत उन गिने चुने देशों में शामिल हो गया है जहां नकारात्मक मतदान की व्यवस्था है। अमेरिका के एक प्रांत नवादा, यूक्रेन, स्पेन, यूनान, चिली, ब्राजील, बेल्जियम, स्वीडन, फ्रांस, कोलंबिया जैसे दुनिया के कुछ गिने चुने देशों में ही यह व्यवस्था है।
 
लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप का कहना है कि, ‘‘नकारात्मक मतदान का अधिकार नया नहीं है। जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 49 :ओ: में ऐसा प्रावधान है कि अगर कोई व्यक्ति किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देना चाहता है तो वह मतदान केंन्द्र पर जाकर इस बारे में इच्छा प्रकट कर सकता है और उसे एक कागज दिया जायेगा जिसमें वह कह सकता है कि उसे कोई उम्मीदवार पसंद नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि यह कोई नया प्रावधान नहीं है, बल्कि मतदान के अधिकार में ही यह निहित है। यह दो तरीके से होता है। चूंकि भारत में अनिवार्य मतदान का प्रावधान नहीं है, इसलिए व्यक्ति मतदान केंन्द्र पर नहीं जाकर ही अपनी इच्छा जता देता है । 

शीर्ष अदालत ने हालांकि मतदान की गोपनीयता के नियम का उल्लंघन करने वाले चुनाव संचालन नियम 41 (2) (3) और जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 49 (ओ) को चुनाव के संदर्भ में अनुपयुक्त ठहराया है। इस प्रणाली के तहत रूस में 1991 के चुनाव में इनमें से कोई नहींका विकल्प मतदाताओं को दिया गया था, हालांकि इसे 2006 के बाद समाप्त कर दिया गया। बांग्लादेश में 2008 में ना वोटका प्रस्ताव किया गया जबकि पाकिस्तान में इस प्रस्ताव को इसी साल चुनाव आयोग ने खारिज कर दिया। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि राइट टू रिजेक्टसे मतदान के प्रतिशत में वृद्धि होगी क्योंकि ऐसे लोग जो पसंद का उम्मीदवार नहीं होने के कारण मतदान करने नहीं जाते थे, वे अब राइट टू रिजेक्टका उपयोग करने के लिए मतदान केंद्र पर जायेंगे।

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