06 October 2013

क्या आसाराम परिवार के साथ ज्यादती हो रही है ?

आसाराम पर विवादों का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा। नाबालिग से तथाकथित दुष्कर्म का आरोप झेल रहे आसाराम के परिवार तक को इसमें अब घसीटा जा रहा है। ऐसे में मीडिया और प्रसाषन को लेकर कई अहम सवाल खडें होने लगे है। रेप के मामले में पहली बार आसाराम की पत्नी लक्ष्मी और बेटी भारती के खिलाफ भी मामला दर्ज कराया गया है। दोनों पर षड्यंत्र में शामिल होने का आरोप लगाय गया है। पहले आसाराम फिर उनके बेटा नरायण साईं और अब उनकी पत्नी और बेटी के उपर एफआईआर होने के बाद लोग इन आरोपों को लेकर सवाल खड़ा करने लगे है। हर कोई आज मीडिया और उसके द्वारा दिखाए जा रहे खबरों से हाय तौबा करने लगा है। दरअसल करे भी क्यों नहीं जिस तरह से शब्दों का इस्तेमाल खास कर टीवी चैनलों पर हो रहा है उससे कोई परिवार के साथ ऐसी खबरों को देखना पसंद नहीं कर रहा है। क्योंकि अब तो आसाराम और उनके परिवार तक को इसमें जिस रूप में पेश किया जा रहा है उससे कोई भी सभ्य सामाज सहमत नहीं हो सकता है, और ना ही उसे किसी भी एंगल से सही ठहराया जा सकता है।

आसाराम के तंत्र-मंत्र कि खबरों से लेकर, सम्मोहन का जाल, गुफा में लंबे वक्त तक बैठ कर रुहानी ताकतें हासिल करने जैसी भ्रामक और मनगढंत बातों को पेश करके, एक खास परिवार विषेश को निषाना बनाने के पीछे जो साजिस हो रही है। उससे मीडिया के एकतरफा रिर्पोटींग और विदेशी घरानों के हाथों में खेलने कि सच्चाई भी उजागर होने लगी है।  मीडिया में सनसनीखेज तरिके से आज जो खबरें पेश किया जा रहा उसको लेकर सर्वोच न्यालय के न्यायाधीष न्यायमूर्ति आर एम लोढ़ा और न्यायमूर्ति ए के पटनायक की पीठ ने प्रेस के एक हिस्से को असंवेदनशील होने पर अपनी चींता जता चुकी है।

इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया को अदालत से जुड़े मामलों को सनसनीखेज तरीके से पेश करने और सुनवाई के दौरान अदालत की टिप्पणियों का संदर्भ से हटकर मतलब निकालने पर जमकर फटकार लगा चुकी है। न्यायमूर्ति जे एम पांचाल और न्यायमूर्ति ए के पटनायक की खंडपीठ ने कहा था कि मीडिया को देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का अहसास होना चाहिए। मगर आज मीडिया को न तो कोर्ट के ऐसे फटकार का असर है और न ही खुद की जिम्मेदारी कि। इन सब के अलावे न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोशिएसन और इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फेडरेशन हरेक चैनल पर निगरानी रखने का दावा करती हैं।

ये संस्थाएं हरेक चैनल पर अपने ई-मेल ऐड्रेस और फोन नंबर भी स्क्रॉल पर चलाती हैं, लेकिन उन्हें बार बार शिकायत करने के बावजूद इस बारे में दिशा-निर्देश तो दूर कोई चर्चा तक नहीं की जाती है। अंधविश्वास फैलाने वाले चैनलों के बारे में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय तक को लोग इस संबंध में शिकायतें भेज रहे है। फिर भी कोई कर्रवाई नहीं हो रही है। तमाम आईपीसी और सीआरपीसी कि धाराओं कि धज्जियां उड़ रही है मगर न तो सरकार कोई गंभिरता दिखा रही है और न ही मीडिया को कंट्रोल करने के नाम पर चलने वाले संस्थान तो सवाल यहा ये खड़ा होता है कि क्या आसाराम परिवार के साथ जयादती हो रही है ? 

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