सपा नेता नरेश अग्रवाल ने नरेंद्र मोदी पर व्यक्तिगत टिप्पणी कर एक नये विवाद को जन्म दे दिया है। अग्रवाल के ऐसे बयान पर अविवाहीत देश भक्तों और राजनेताओं में जबरजस्त गुस्से का माहौल है। साथ ही अविवाहीत बनाम विवाहीत एक मुद्दा बन गया है। नरेश अग्रवाल ने मोदी के शादी न करने पर चुटकी लेते हुए कहा था कि उन्होंने शादी तो की नहीं, वह परिवार का मतलब कैसे जानेंगे। वह कैसे जानेंगे कि परिवार का आनंद क्या होता है। नरेश अग्रवाल ने ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया जिसे हम आपको सुना भी नहीं सकते। बीजेपी इसे राजनीति में शिष्टता की कमी बता रही है, तो वहीं दुसरी ओर महिला आयोग भी अग्रवाल के इस बयान पर विरोध जताया है।
नरेष अग्रवाल की जुबान कोई पहली बार नहीं फिसली है। इससे पहले नरेश अग्रवाल ही वह नेता हैं जिन्होंने लालू से चुनाव लड़ने का हक छीनने को गलत बताया था। साथ ही मुंबई गैंगरेप के बाद कहा था कि रेप की घटनाओं से बचने के लिए लड़कियों को अपने कपड़ों का ख्याल रखना चाहिए। ऐसे में नरेश अग्रवाल के इस बयान से राजीतिक भूचाल अपने चरम सीमा पर है। अग्रवाल के इस बयान से तीन नेता निशाने पर है, जिसमे पहला नाम नरेद्र मोदी का है। साथ ही इस बयान से अग्रवाल ने राहुल और मायावती पर भी निशाना साधा है। क्योंकि ये दोनों नेता भी यूपी में सपा के धुरविरोधी है।
अविवाहित रहने वाले सामाजिक और राजनैतिक व्यक्तित्व अपने लक्ष्यों के प्रति अधिक समर्पित होते हैं। अविवाहित रहना उनकी विचारधारा और पार्टी तथा देश के लिये फायदेमंद होता है। बात चाहे अब्दुल कलाम की हो या फिर अटल बिहारी वाजपेयी या फिर अन्ना हजारे, स्वामी रामदेव, राजिव दीक्षित, दयानन्द सरवस्ती, कांशीराम या नाना जी देशमुख की हर किसी ने देश के लिए मिशाल कायम की। तो सवाल ये खड़ा होता है कि क्या अविवाहीत रहना गुनाह है? क्या सपा सिर्फ भोग विलासिता में रहने वाले को ही राजनेता मानती है?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में तो बहुत पुरानी परम्परा है कि पूर्णकालिक स्वयंसेवक अविवाहित ही रहेंगे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं भाजपा के पितृपुरुष कुशाभाऊ ठाकरे। एक सूटकेस ही जीवन भर उनकी गृहस्थी और सम्पत्ति रहा। बात सिर्फ संघ या भाजपा तक ही सीमीत नहीं है। कम्युनिस्ट पार्टियों में भी यही ट्रेण्ड रहा है उनके भी कई नेता अविवाहित रहे और पार्टी की विचारधारा के प्रचार-प्रसार में उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया। स्वामी विवेकानंद भी अविवाहित थे जिन्होंने अपने देश और धर्म को गौरवान्वित किया। आज पूरा विश्व इस राष्ट्रपुरुष के आगे नतमस्क है। तो सवाल यहा भी खड़ा होता है कि क्या आज ऐसे महापुरुषों के विचारों से नरेश अग्रवाल अपने आप को अलग कर सकते है। जिन्होंने पूरे भारत को अपना परिवार माना। आज उसे कटघरे में खड़ा करना ये कहा का समाजवाद है।
क्या आज सपा की समाजवाद परिवारवाद में ही देश को जकड़े रखना चाहती है? आज कुछ लोग देश के लिए समर्पित होना चाहते हैं, कुछ लोग विज्ञान एवं शोध में समर्पित होना चाहते हैं, तो कुछ लोग अविवाहीत रह कर समाज सेवा करना चाहते है। तो क्या ये लोग परिवार का आनंद नहीं जानते? सपा नेता नरेश अग्रवाल के ऐसे बेतुके बयान से आज देष ये सवाल खड़ा कर रहा है की अविवाहीत रह कर देश सेवा करने वाले को अपमान क्यों?
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