कुल कितनी पूंजी का निवेश किया गया है, कुछ
पता नहीं। अफवाहें हैं और आधी अधूरी जानकारियां भी लेकिन एक बात सबको समझ आ
रही है कि मोदी के उभार के पीछे सिर्फ और सिर्फ सोशल मीडिया है जिसमें
फेसबुक पर सैकड़ों-हजारों सही गलत एकाउण्ट, ट्विटर एकाउण्ट और वेबसाइटें
शामिल हैं। बीते साल भर में सोशल मीडिया पर मोदी जाप की ऐसी लहर उठी कि
मुख्यधारा की मीडिया और खुद भारतीय जनता पार्टी के भीतर नरेन्द्र मोदी
निर्विवाद रूप से सबसे बड़े नेता मान लिये गये। सोशल मीडिया के उभार को
टीवी मीडिया ने अपनी टीआरपी से जोड़ दिया और सोशल मीडिया के दबाव और टीवी
की टीआरपी ने नरेन्द्र मोदी का नाम इतना मजबूत कर दिया कि पार्टी के भीतर
तमाम विरोध के बाद भी वे "सबसे पापुलर" नेता की पदवी के कारण भाजपा के भावी
कर्णधार घोषित कर दिये गये। कहा यही गया कि कुछ भी मोदी की पापुलरिटी बहुत
ज्यादा है, इसलिए उनके नाम को खारिज करके पार्टी कोई खतरा मोल नहीं ले
सकती। लेकिन क्या सचमुच मोदी इतने पापुलर हैं या फिर बहुत योजनाबद्ध तरीके
से उन्हें पापुलर बताया गया जिसके पीछे कोई और नहीं बल्कि खुद नरेन्द्र
मोदी ही काम कर रहे थे?
2002 के गुजरात दंगों के बाद मीडिया के लिए नरेन्द्र मोदी कमोबेश
2012 तक अछूत ही बने रहे। दिल्ली की मीडिया में आज भी दिल से मोदी को
सपोर्ट करनेवाला शायद ही कोई बड़ा पत्रकार मिल जाए। मोदी और उनकी रणनीतिकार
एपको कंपनी यह बात जानते थे इसलिए उन्होंने उभरते हुए नये मीडिया माध्यमों
के उपयोग का निश्चय किया होगा। अपने दूसरे मुख्यमंत्रित्व काल में
नरेन्द्र मोदी सोशल मीडिया पर दस्तक दे चुके थे। 2009 में लालकृष्ण आडवाणी
ने भले ही नेटीजन का नारा दिया हो लेकिन इसका सबसे कारगर उपयोग नरेन्द्र
मोदी और उनकी टीम ने ही किया। नरेन्द्रमोदी.इन नाम की वेबसाइट बनाने के साथ
साथ टीम मोदी ने फेसबुक और ट्विटर पर भी अच्छा खासा जोर दिया और फेसबुक और
ट्विटर की उन खामियों का जमकर इस्तेमाल किया जिसके जरिए कोई भी व्यक्ति धन
खर्च करके अपनी प्रतिष्ठा स्थापित कर सकता है। फेसबुक पर एकाउण्ट बनाने का
न तब कोई खास नियम कानून था और न अब है। अपनी इन्हीं उदार नीतियों के कारण
फेसबुक लोगों के बीच फेमस भी हुआ। ट्विटर पर हाल फिलहाल में एकाउण्ट
वेरीफिकेशन की सुविधा जरूर दी गई है लेकिन किसी एक फर्जी ईमेल के सहारे कोई
भी व्यक्ति जितना चाहे उतना फेसबुक एकाउण्ट या ट्विटर एकाउण्ट क्रियेट कर
सकता है। लेकिन बात सिर्फ यही खतम नहीं होती।
फेसबुक पर हर एक फर्जी
एकाउण्ट के जरिए पेज और ग्रुप क्रियेट किये जा सकते हैं और धन खर्च करके उन
पेज और ग्रुप को पापुलर भी किया जा सकता है। यह सारा काम आपको करने की
जरूरत नहीं होती है। फेसबुक आपसे इसकी कीमत वसूलता है और बाकी काम वह खुद
करता है। फिर फर्जी लाइक, फर्जी फालोवर का धंधा हैकरों और स्पैमरों का
अच्छा खासा कारोबार भी बन चुका है इसलिए एक गूगल सर्च करके आप उनकी सेवाओं
का लाभ भी ले सकते हैं। सोशल मीडिया के ये सारे फर्जीवाड़े भारतीय नेताओं
को अभी भी बहुत समझ में आते हों ऐसा नहीं लगता लेकिन नरेन्द्र मोदी और उनकी
अमेरिकन पीआर कंपनी को यह सब पता था। पर, शायद इतना भर करने से बात नहीं
बनती इसलिए फर्जी वेबसाइटों का एक जाल भी बुना गया और सैकड़ों लोगों को इस
काम पर लगाया गया कि वे दिन रात न्यू मीडिया के जरिए न सिर्फ मोदी का
गुणगान करेंगे बल्कि विभिन्न वेबसाइटों के जरिए मोदी नाम का पुनश्चरण भी
जारी रहेगा।
विरोध करने पर गाली देने का अतिरिक्त कार्यभार तो उन्हें सौंपा
ही गया। डिजिटल मीडिया में मोदी के उस उभार का संदेश साफ है कि नये मीडिया
में झूठ और कुप्रचार का ऐसा आभामंडल खड़ा कर दो कि वास्तविकता भी अपने
वास्तविक होने पर शर्माने लगे। जनबल को धनबल के सहारे ठगने और दिग्भ्रमित
करने का ऐसा सुनियोजित षण्यंत्र भारतीय गणतंत्र में शायद अभी तक अंजाम
नहीं दिया गया होगा जैसाकि नये मीडिया में नरेन्द्र मोदी को उभारने के नाम
पर किया जा रहा है। मोदी को पापुलर बनाने के इस सुनियोजित अभियान में जब
वेबसाइटों की बारी आई तो वहां भी उसी फर्जीबाड़े का सहारा लिया गया जो सोशल
मीडिया पर किया जा रहा था। मोदी की वेबसाइट (नरेन्द्रमोदी.इन) या फिर मोदी
के समर्थन में खड़ी वेबसाइटों का सारा जाल एक ही कंपनी बुनती है जिसका नाम
है नीतिडिजिटल। यह नीतिडिजिटल मुख्य रूप से न्यू मीडिया मार्केटिंग की
फर्म है और यही मार्केटिंग फर्म नीतिसेन्ट्रल नाम से हिन्दी और अंग्रेजी का
समाचार पोर्टल संचालित करता है जिसमें खबरों के नाम पर खुलेआम नरेन्द्र
मोदी की पक्षपातीय पत्रकारिता की जाती है। इस नीति डिजिटल के जो एमडी हैं
उनका नाम है, राजेश जैन।
राजेश जैन वह शख्स हैं जो मोबाइल और ईमेल
मार्केटिंग का कारोबार करते हैं, नेटकोर.कॉम के नाम से। नेटकोर वह कंपनी है
जो आपसे पैसा लेकर लोगों को एसएमएस भेजती है, ईमेल भेजती है और आपकी कंपनी
का प्रचार करती है। राजेश जैन की इस नीतिसेन्ट्रल के न्यूज डायरेक्टर कोई
और नहीं बल्कि कंचन गुप्ता है। वो कंचन गुप्ता जो पूर्वी पाकिस्तान से
रिफ्यूजी के रूप में भारत आये थे और बाद में भारत में उन्हें मीडिल इस्ट और
अरब के जानकार पत्रकार के रूप में जाना गया। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार
में वे पीएमओ में भी कार्यरत रहे और काहिरा के मौलाना आजाद सेन्टर के
निदेशक बनाकर मिस्र भी भेजे गये थे। अटल सरकार जाने के बाद वे चंदन मित्रा
के अखबार पायनियर में बतौर कॉलमनिस्ट कॉलम लिखते रहे लेकिन अचानक जब यह खबर
आई कि कंचन गुप्ता नीतिसेन्ट्रल जैसी किसी अनजान सी साइट के न्यूज
डायरेक्टर हो गये हैं तो यह हैरान करनेवाली जानकारी थी।
कंचन गुप्ता
नीतिसेन्ट्रल के सिर्फ डायरेक्टर ही नहीं हुए बल्कि उन्होंने उन नरेन्द्र
मोदी के लिए राजनीतिक अस्त्र शस्त्र इस्लेमाल करना शुरू कर दिया जिसके राज
में हुए दंगों के कभी वे आलोचक रहे थे। जाहिर है, कंचन गुप्ता का यह हृदय
परिवर्तन सिर्फ मोदी की खूबियों की वजह से तो बिल्कुल नहीं हुआ होगा।
क्योंकि जिस नीतिसेन्ट्रल का काम राजेश जैन शुरू कर रहे थे, वह सिर्फ और
सिर्फ मोदी की स्थापित करने के लिए ही शुरू किया जा रहा था। लेकिन सिर्फ
नीतिसेन्ट्रल तक बात होती तो भी इतना चौंकने की जरूरत नहीं थी। राजेश जैन
ने आज ऐसी आधा दर्जन से अधिक वेबसाइटें बना रखी हैं जिस पर तरह तरह से
सिर्फ नमो मंत्र का जाप चलता रहता है।
नरेन्द्र मोदी को पापुलर करने के ऐसे
ढेरों फर्जी रास्ते राजेश जैन और उनकी कंपनी द्वारा अख्तियार किये जा रहे
हैं। हाल फिलहाल में वनइंडिया.इन के बीजी महेश ने भी राजेश जैन से हाथ मिला
लिया है और खबर है कि महेश अपने बंगलौर दफ्तर को मोदी के लिए सोशल मीडिया
काल सेन्टर के बतौर इस्तेमाल कर रहे हैं। 2014 के चुनाव तक मोदी को सोशल
मीडिया का सरताज बनाये रखने के लिए राजेश जैन और बीजी महेश को विधिवत ठेका
भी मिल चुका है जिसका उल्लेख खुद महेश ने अपने विकीपीडिया प्रोफाइल पर किया
है।
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