22 October 2013

क्या विजय गोयल और हर्षवर्धन ही भाजपा की नैया डूबायेंगे ?

दिल्ली में विजय गोयल का नाम आता है तो चांदनी चौक का नाम अपने आप ही आ जाता है। पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक और सदर लोकसभा सीटों से वे लोकसभा सांसद भी रह चुके हैं और आज भी उनकी कर्मभूमि चांदनी चौक और सदर के बीच ही ज्यादा रहती है। लेकिन उस समय 2009 के आम चुनाव में अचानक ही विजय गोयल ने सदर या चांदनी चौक सीट से टिकट मांगने की बजाय नई दिल्ली सीट से टिकट मांग लिया था। उस वक्त भी पार्टी उन्हें चांदनी चौक से ही चुनाव लड़ाने के मूड में थी लेकिन विजय गोयल अड़ गये तो अड़ गये। उन्हें नई दिल्ली से टिकट मिला और वे चुनाव हार गये। तो क्या उन्होंने हारने के लिए नई दिल्ली से लोकसभा टिकट हासिल किया था? 

विजय गोयल ने हारने के लिए तो टिकट नहीं लिया था लेकिन उनका दांव उलटा पड़ गया। उस वक्त नई दिल्ली सीट से कांग्रेस ने अजय माकन को टिकट दिया था। दिल्ली की राजनीति में अजय माकन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के विरोधियों में गिने जाते हैं। चुनाव के दौरान ही यह चर्चा आम हो गयी थी कि शीला दीक्षित और विजय गोयल में एक गुप्त समझौता हुआ था जिसके तहत शीला दीक्षित ने विजय गोयल से वादा किया था कि वे नई दिल्ली सीट से टिकट लेकर मैदान में उतरें वे उन्हें जितवाने में पूरी मदद करेंगी। नई दिल्ली लोकसभा सीट के तहत आनेवाली गोल मार्केट विधानसभा सीट से ही शीला दीक्षित चुनाव जीतकर आती रही हैं। शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित ने भी उसी साल लोकसभा चुनाव लड़ा था और शीला ने उनके लिए ईस्ट दिल्ली की जिस सेफ सीट का इंतजाम किया था, बदले में विजय गोयल ने अपनी ओर से हर संभव मदद करने का भरोसा दिया था।

लोकसभा चुनाव हुए और दिल्ली में कांग्रेस सात की सात सीट जीत गई। संदीप दीक्षित तो जीते ही, अजय माकन भी जीत गये। अगर कोई हारा तो वह सिर्फ विजय गोयल नहीं थे, बल्कि दिल्ली में पहली बार भाजपा बुरी तरह हार गई थी। हालांकि उस वक्त भी विजय गोयल ने नई दिल्ली से टिकट मांगने के पीछे तर्क दिया था कि परिसीमन के कारण सदर लोकसभा सीट का एक बड़ा हिस्सा नई दिल्ली में समाहित हो गया है इसलिए उनका नई दिल्ली से टिकट मांगना बिल्कुल गलत नहीं था। उधर चांदनी चौक पहुंचे विजेन्दर गुप्ता को चांदनी चौक ने नकार दिया और कपिल सिब्बल को हिन्दू मुस्लिम एकता का फायदा मिल गया। हो सकता है विजेन्दर गुप्ता की हार में माननीय गोयल साहब का भी कोई रोल रहा है लेकिन ओवरआल उस चुनाव में भाजपा का भट्टा बैठ गया।

2009 में विजय गोयल के कारण भले ही भाजपा का भट्टा बैठ गया हो लेकिन विजय गोयल अपने संपर्कों के कारण मजबूत होते गये। दिल्ली में विजेन्द्र गुप्ता की जगह गोयल को जगह मिल गई और वे चुनावी मौसम में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बन गये। उन्होंने काम कुछ किया न किया लेकिन उनकी सक्रियता से अखबार हर रोज दो चार होते रहे हैं। विजय गोयल नीति और नीयत विहीन नेता हैं इसलिए उनसे यह उम्मीद करना बेकार ही था कि वे पार्टी को शीला दीक्षित के शासन के खिलाफ लामबंद कर पायेंगे। और जल्द ही उन्होंने यह बात साबित भी कर दिया। दिल्ली में विजय गोयल की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी अरविन्द केजरीवाल की बी टीम बनकर रह गई। अरविन्द ने बिजली का मुद्दा उठाया तो विजय गोयल भी बिजली की बत्ती जलाने लगे। दिल्ली में एक फ्लाप शो तक आयोजित कर दिया। अरविन्द केजरीवाल ने पोस्टरों बैनरों के जरिए दिल्ली में प्रचार अभियान शुरू किया तो विजय गोयल ने भी फोटोकॉपी कर लिया। अपनी काम काज की शैली के कारण उन्होंने दिल्ली में भाजपा को जाने अनजाने अरविन्द केजरीवाल की बी टीम बना दिया जो शीला दीक्षित से लड़ने की बजाय दिन रात यह देखता रहता कि अरविन्द केजरीवाल कल क्या करनेवाले हैं। हम भी वही करेंगे।

आम आदमी पार्टी के भीतर भी विजय गोयल के इस रुख से हंसी के फव्वारे छूट रहे थे। वे जानते थे कि वे जितना उन मुद्दों को उठायेंगे जिसे अरविन्द पहले ही उठा चुके हैं उतना ही अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को फायदा पहुंचेगा। और संभवत: इसका फायदा पहुंचा भी है। कांग्रेस और शीला दीक्षित जो जितना नुकसान कल दिख रहा था, उससे कम फायदा आज नहीं हो रहा है। कमोबेश दिल्ली में कांग्रेस जस की तस वाली मनस्थिति में बनी हुई है। लेकिन विजय गोयल के कारण एक बात जरूर हुई कि जिस भाजपा को कांग्रेस से भिड़ना था, वह अरविन्द केजरीवाल से भिड़ गई। वह भी उन्हीं की बी टीम बनकर।

जाहिर है, यह स्थिति दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए अच्छी साबित नहीं होगी। दिल्ली में अभी तक तो ऐसी अफवाह सुनाई नहीं दी है कि शीला दीक्षित की कोशिशों के कारण ही विजय गोयल को दिल्ली भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया है लेकिन जो परिस्थितियां हैं वह दिल्ली में एक बार फिर भाजपा को हार के कगार पर पहुंचा सकती है। हो सकता है भाजपा के आलाकमान लोग इस स्थिति को समझकर हर्षवर्धन का नाम आगे कर रहे हों ताकि वे अरविन्द केजरीवाल के मुकाबले एक साफ सुथरे नाम को सामने रख सकें लेकिन विजय गोयल के कारण वे भी सफल नहीं हो पा रहे हैं। ऐसे में भाजपा के सामने एक तरफ विजय गोयल के 'कुशल नेतृत्व' में हार के आसार है तो दूसरी तरफ हर्षवर्धन। भाजपा के सामने सचमुच विकट स्थिति है। उन्हें हार और हर्षवर्धन में किसी एक को चुनना है।

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