इस सप्ताह जब आप दीवाली की खरीदारी के लिए
बाजार जाएँ तो ज़रा इस स्थिति पर गंभीरता और बारीकी से गौर करें कि क्या आप
वही दीवाली मना रहे हैं जो दीवाली मनाने की परंपरा थी? शायद नहीं. आज के
दौर में नई दीपावली को चीनी ओद्योगिक तंत्र ने पूरी तरह से बदल दिया है.
दिया, झालर, पटाखे, खिलौने, मोमबत्तियां, लाइटिंग, लक्ष्मी जी की मूर्तियाँ
आदि से लेकर त्यौहारी कपड़ों तक सभी कुछ चीन हमारे बाजारों में उतार चुका
है और हम इन्हें खरीदकर दीवाली के दिन भारत की अर्थव्यवस्था का दीवाला
निकाल रहे हैं. ये हालात तब हैं जब चीन का उत्पादन चीन में बनकर भारत आ रहा
है किन्तु अब तो स्थिति और अधिक गंभीर हो रही है. गत सप्ताह हमारे
प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने अपनी चीन यात्रा के दौरान इस करार पर
हस्ताक्षर कर दिया है कि भारत में अब एक चाइनीज ओद्योगिक परिसर बनेगा जहां
चीनी उद्योग ही लगेंगे जिन्हें सरकार अतिरिक्त छूट और रियायतें प्रदान
करेगी.
यदि आप गौर करेंगे तो पायेंगे कि दीपावली के इन चीनी सामानों
में निरंतर हो रहे षड्यंत्र पूर्ण नवाचारों से हमारी दीपावली और लक्ष्मी
पूजा का स्वरुप ही बदल रहा है. हमारा ठेठ पारम्परिक स्वरुप और पौराणिक
मान्यताएं कहीं पीछें छूटती जा रहीं हैं और हम केवल आर्थिक नहीं बल्कि
सांस्कृतिक गुलामी को भी गले लगा रहें हैं. हमारें पटाखों का स्वरुप और
आकार बदलनें से हमारी मानसिकता भी बदल रही है और अब बच्चों के हाथ में
टिकली फोड़ने का तमंचा नहीं बल्कि माउजर जैसी और ए के ४७ जैसी बंदूकें और
पिस्तोलें दिखनें लगी है. हमारा लघु उद्योग तंत्र बेहद बुरी तरह प्रभावित
हो रहा है. पारिवारिक आधार पर चलनें वालें कुटीर उद्योग जो दीवाली के
महीनों पूर्व से पटाखें, झालरें, दिए, मूर्तियाँ आदि-आदि बनानें लगतें थे
वे तबाही और नष्ट हो जाने के कगार पर है. कृषि और कुटीर उत्पादनों पर
प्रमुखता से आधारित हमारी अर्थ व्यवस्था पर मंडराते इन घटाटोप चीनी बादलों
को न तो हम पहचान रहे हैं ना ही हमारा शासन तंत्र. हमारी सरकार तो लगता है
वैश्विक व्यापार के नाम पर अंधत्व की शिकार हो गई है और बेहद तेज गति से
भेड़ चाल चल कर एक बड़े विशालकाय नुकसान की और देश को खींचे ले जा रही है.
केवल कुटीर उत्पादक तंत्र ही नहीं बल्कि छोटे, मझोले और बड़े तीनों स्तर
पर पीढ़ियों से दीवाली की वस्तुओं का व्यवसाय करनेवाला एक बड़ा तंत्र निठल्ला
बैठनें को मजबूर हो गया है. लगभग पांच लाख परिवारों की रोजी रोटी को आधार
देनेवाला यह त्यौहार अब कुछ आयातकों और बड़े व्यापारियों के मुनाफ़ातंत्र का
केंद्र मात्र बन गया है. बाजार के नियम और सूत्र इन आयातकों और निवेशकों के
हाथों में केन्द्रित हो जानें से सड़क किनारें पटरी पर दुकानें लगानें वाला
वर्ग निस्सहाय होकर नष्ट-भ्रष्ट हो जानें को मजबूर है. यद्दपि उद्योगों से
जुड़ी संस्थाएं जैसे-भारतीय उद्योग परिसंघ और भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग
महासंघ (फिक्की) ने चीनी सामान के आयात पर गहन शोध एवं अध्ययन किया और
सरकार को चेताया है तथापि इससे सरकार चैतन्य हुई है इसके प्रमाण नहीं दीखते
हैं.
आश्चर्य जनक रूप से चीन में महंगा बिकने वाला सामान जब भारत आकर सस्ता
बिकता है तो इसके पीछे सामान्य बुद्धि को भी किसी षड्यंत्र का आभास होनें
लगता है किन्तु सवा सौ करोड़ की प्रतिनिधि भारतीय सरकार को नहीं हो रहा है.
सस्ते चीनी माल के भारतीय बाजार पर आक्रमण पर चिन्ता व्यक्त करते हुए एक
अध्ययन में भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) ने कहा है, "चीनी
माल न केवल घटिया है, अपितु चीन सरकार ने कई प्रकार की सब्सिडी देकर इसे
सस्ता बना दिया है, जिसे नेपाल के रास्ते भारत में भेजा जा रहा है, यह
अध्ययन प्रस्तुत करते हुए फिक्की के अध्यक्ष श्री जी.पी. गोयनका ने कहा था,
"चीन द्वारा अपना सस्ता और घटिया माल भारतीय बाजार में झोंक देने से
भारतीय उद्योग को भारी नुकसान हो रहा है. भारत और नेपाल व्यापार समझौते का
चीन अनुचित लाभ उठा रहा है.'
चीन द्वारा नेपाल के रास्ते और भारत के विभिन्न बंदरगाहों से भारत में
घड़ियां, कैलकुलेटर, वाकमैन, सीडी, कैसेट, सीडी प्लेयर, ट्रांजिस्टर,
टेपरिकार्डर, टेलीफोन, इमरजेंसी लाइट, स्टीरियो, बैटरी सेल, खिलौने,
साइकिलें, ताले, छाते, स्टेशनरी, गुब्बारे, टायर, कृत्रिम रेशे, रसायन,
खाद्य तेल आदि धड़ल्ले से बेचें जा रहें हैं. दीपावली पर चीनी आतिशबाजी और
बल्बों की चीनी लड़ियों से बाजार पटा दिखता है. पटाखे और आतिशबाजी जैसी
प्रतिबंधित चीजें भी विदेशों से आयात होकर आ रही हैं, यह आश्चर्य किन्तु
पीड़ा जनक और चिंता जनक है. आठ रुपए में साठ चीनी पटाखों का पैकेट चालीस
रुपए तक में बिक रहा है, सौ सवा सौ रूपये घातक प्लास्टिक नुमा कपड़ें से
बनें लेडिज सूट, बीस रूपये में झालरें-स्टीकर और पड़ चिन्ह पंद्रह रुपए में
घड़ी, पच्चीस रुपए में कैलकुलेटर, डेढ़-दो रुपए में बैटरी सेल बिक रहें हैं.
घातक सामग्री और जहरीले प्लास्टिक से बनी सामग्री एक बड़ा षड्यंत्र नहीं तो
और क्या है?
लगभग बीस लाख लोगों को
प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार और सामाजिक सम्मान देनें वाला शिवाकाशी
का पटाखा उद्योग केवल धन अर्जित नहीं करता-कराता है बल्कि इसनें दक्षिण
भारतीयों के करोड़ों लोगों को एक सांस्कृतिक सूत्र में भी बाँध रखा है.
परस्पर सामंजस्य और सहयोग से चलनें वाला यह उद्योग सहकारिता की नई परिभाषा
गढ़नें की ओर अग्रसर होकर वैसी ही कहानी को जन्म देनें वाला था जैसी कहानी
मुंबई के भोजन डिब्बे वालों ने लिख डाली है; किन्तु इसके पूर्व ही चीनी
ड्रेगन इस समूचे उद्योग को लीलता और समाप्त करता नजर आ रहा है. यदि घटिया
और नुकसानदेह सामग्री से बनें इन चीनी पटाखों का भारतीय बाजारों में प्रवेश
नहीं रुका तो शिवाकाशी पटाखा उद्योग इतिहास का अध्याय मात्र बन कर रह
जाएगा.
भारत में २००० करोड़ रूपये से अधिक का चीनी सामान तस्करी से नेपाल के
रास्तें आता है इसमें से दीपावली पर बिकनें वाला सामान की हिस्सेदारी लगभग
३५० करोड़ रु. की है. इतनें बड़े व्यवसाय पर प्रत्यक्ष कर निदेशालय की नजर न
पड़ना और वित्त, विदेश, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालयों का आँखें बंद किये
रहना सिद्ध हमारी शुतुरमुर्गी प्रवृत्तियों और इतिहास से सबक न लेनें की और
गंभीर इशारा करता है. विभिन्न भारतीय लघु एवं कुटीर उद्योगों के संघ और
प्रतिनिधि मंडल भारतीय नीति निर्धारकों का ध्यान इस ओर समय समय पर आकृष्ट
करतें रहें है. दुखद है कि विभिन्न सामरिक विषयों पर हमारी सप्रंग सरकार
और इसके मुखिया मनमोहन सिंह चीन के समक्ष बिलकुल भी प्रभावी नहीं रहें हैं
और विभिन्न मोर्चों पर चीन के समक्ष सुरक्षात्मक ही नजर आतें रहें हैं तब
इस शासन से कुछ बड़ी आशाएं व्यर्थ ही हैं किन्तु फिर भी इस दीवाली के अवसर
पर यदि शासन तंत्र अवैध रूप से भारतीय बाजारों में घुस आये सामानों पर और
इस व्यवसाय के सूत्रधारों पर कार्यवाही करे तो ही शुभ-लाभ होगा.
मेड इन चाइना की बाढ़
दक्षिण भारत के शिवाकाशी पटाखा और वस्त्र उद्योग आज चीनी समानों के चलते बंद होने के कगार पर है।
भारत में 2000 करोड़ रूपये से अधिक का चीनी सामान तस्करी से नेपाल के रास्तें होकर आता है।
दीपावली पर बिकनें वाला सामान की हिस्सेदारी लगभग 350 करोड़ रु. है।
भारत में ये आकड़ा 2015 तक 100 अरब डॉलर तक पहुँचे का अनुमान है।
लघु उद्योग तंत्र बुरी तरह से चीनी बाजारों के आगे प्रभावित हो रहा है।
वर्ष 2012 में दोनों देशों ने 66.4 अरब डॉलर का व्यापार किया है।
2011 में भारत चीन व्यापार 73.9 अरब डॉलर के बराबर रहा था।
मेड इन चाइना की बाढ़
दक्षिण भारत के शिवाकाशी पटाखा और वस्त्र उद्योग आज चीनी समानों के चलते बंद होने के कगार पर है।
भारत में 2000 करोड़ रूपये से अधिक का चीनी सामान तस्करी से नेपाल के रास्तें होकर आता है।
दीपावली पर बिकनें वाला सामान की हिस्सेदारी लगभग 350 करोड़ रु. है।
भारत में ये आकड़ा 2015 तक 100 अरब डॉलर तक पहुँचे का अनुमान है।
लघु उद्योग तंत्र बुरी तरह से चीनी बाजारों के आगे प्रभावित हो रहा है।
वर्ष 2012 में दोनों देशों ने 66.4 अरब डॉलर का व्यापार किया है।
2011 में भारत चीन व्यापार 73.9 अरब डॉलर के बराबर रहा था।
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