09 October 2013

मीडिया में पूँजीपतियों का दखल !

अब तक मीडिया की महत्ती भूमिका चुनाव पूर्व मतदान को प्रभावित कराने वाले एक तत्व के रूप में मानी जाती रही है। चुनाव पश्चात सरकार के गठन में उसकी भूमिका नगण्य रहती थी, लेकिन केन्द्र में पिछली सरकार के गठन में मीडिया ने बड़ी भूमिका निभाई। इसका खुलासा हाल की घटनाओं से हुआ। चौंकाने वाली इन घटनाओं ने भारतीय पत्रकारिता के साथ ही न्यायपालिका के रवैये पर भी सवाल खड़े किए है। इन्हीं सवालों के मद्देनजर जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ऑफ राजस्थान (जार) और पिंक सिटी प्रेस क्लब ने चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के 46 घण्टे बाद रविवार को जयपुर में एक सेमिनार का साझा आयोजन किया। 

सेमिनार में बताया गया कि सही मायने में तो मीडिया की भूमिका एक पोस्टमैन की है, लेकिन आज मीडिया का स्वरूप बदल गया है। मीडिया की बागडोर कॉरपोरेट घरानों के हाथों में है। उनके लिए नैतिकता कोई मायने नहीं रखती। वे मीडिया को भी एक कारिन्दे के तौर पर इस्तेमाल करने में लगे है। हाल ही समाचार पत्र और चैनलों की सुर्खियों में रहा कॉरपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया का टेपकांड इसका एक जीता-जागता उदाहरण है। नीरा राडिया का टेपकांड चुनाव पश्चात सरकार के गठन में मीडिया की भूमिका की परत-दर-परत का खुलासा करता हैं।

राडिया-टेप कांड और पत्रकारिता

सेमिनार के मुख्य वक्ता और चार दशक से पत्रकारिता में सक्रिय नई दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार विजय क्रान्ति राडिया-टेप कांड को भारतीय पत्रकारिता और लोकतंत्र के ताजा इतिहास का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण अध्याय बताते हैं। वे कहते है, इस टेपकांड से कुछ प्रभावशाली पत्रकारों का भ्रष्ट आचरण बेपर्दा हो गया है। लेकिन, चिंता की बात है कि उनके खिलाफ न तो कानून और न उन मीडिया संस्थानों ने कोई कार्रवाई की जिनमें ये पत्रकार काम करते हैं। ताज्जुब यह है कि इस शर्मनाक कांड का खुलासा होने के बाद भी इन पत्रकारों को उनके मालिक अपने सबसे बड़े ‘पोस्टर-ब्वाय’ और ‘पोस्टर-गर्ल’ की तरह पेश करते आ रहे हैं। उन्होंने कहा, राडिया-टेप कांड न केवल भारत की राजनीति और प्रशासन में आयी हुई सड़ांध का एक दुर्भाग्यपूर्ण नमूना है। साथ ही भारतीय पत्रकारिता के गिरते हुए नैतिक और व्यावसायिक स्तर की ओर ध्यान खींचने वाली खतरे की घंटी भी है। अगर इस घंटी की आवाज़ को अनसुना कर दिया गया तो यह भारत में लोकतंत्र और पत्रकारिता की बरबादी का कारण बनेगा।

मीडिया मूल्य बनाम कीमत

वरिष्ठ पत्रकार विजय क्रान्ति ने कहा, पिछले दो-तीन दशकों में मीडिया के मालिकाना चरित्र में एक आमूलचूल और दुर्भाग्यपूर्ण परिवर्तन हुआ हैं। इसने अच्छे पत्रकार के काम करने के वातावरण को बुरी तरह प्रभावित किया है। न्यूज़-टीवी और अखबारों में लगने वाली विशाल पूंॅजी और उनके माध्यम से राजनीति और प्रशासन को प्रभावित करने की नई क्षमता ने ऐसे लोगों को इस उद्योग की ओर प्रेरित किया है जिनके पास गलत रास्ते से कमाया गया बेहिसाब पैसा है। लेकिन, मीडिया के इस नए मालिक वर्ग के संस्कारों और सरोकारों में समाज या पत्रकारिता के लिए कोई स्थान नहीं है। इस नए वर्ग ने अपने हितों को साधने की आपाधापी में मीडिया में एक नई कार्यशैली का सूत्रपात किया है। इसने मूल्यों पर आधारित पत्रकारिता को मैदान से बाहर धकेलकर कीमत और मुनाफा आधारित एक बीमार प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया है। इससे ईमानदार पत्रकारों और व्यावसायिक तरीके से काम करने वाले प्रकाशक घरानों के सामने अस्तित्व का नया संकट खड़ा हो गया है। चुनाव के दौर में इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण प्रतिस्पर्धा का पत्रकारिता की सामाजिक साख पर भी बुरा असर पड़ेगा और लोकतंत्र को भी गंभीर नुकसान होगा।

गणतंत्र को सुधारने का चुनाव ही जरिया

सेमिनार में राजस्थान उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश पानाचंद जैन ने कहा कि गणतंत्र के चारों पायदानों में सुधार की जरूरत है। इनमें से एक भी अपने मार्ग से विमुख होता है तो लोकतंत्र के लिए घातक है। उन्होंने कहा कि गणतंत्र को सुधारने का चुनाव ही एकमात्र जरिया है। जनप्रतिनिधियों की चयन प्रक्रिया पर भी आपत्ति जताते हुए उन्होंने कहा कि इनके लिए न्यूनतम शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए।

खबर की बदली परिभाषा

सेमिनार में विषय प्रवर्तन करते हुए वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र बोड़ा ने कहा, चुनावों में मीडिया की भूमिका तीन स्तरों पर होती है। पहली “वाचडॉग” की, जिसमें वह चीजों को उजागर करके लोगों को सतर्क करता है और उन्हें बेहतर चयन के लिए जरूरी सूचनाएँ उपलब्ध कराता है। दूसरी - मतदाताओं के शिक्षण की। इसके लिए वह मुद्दों को सरल भाषा में स्पष्ट करता है और सभी पक्षों को अपनी बात कहने का मंच प्रदान करता है। तीसरी भूमिका समाज में शांति और सद्भाव का वातावरण बनाए रखने में मदद की। उन्होंने कहा, कभी खबर वह होती थी जो छपने लायक होती थी। मगर अब खबर वह होती है जो बिकने लायक होती है। इन हालातों को देखकर लगता है कि अखबार आज फिर उसी शुरुआती दौर में आ खड़े हुए हैं, जब विज्ञापनों के लिए पहला अखबार निकाला गया था।

सेमिनार में जार के प्रदेश अध्यक्ष ताराशंकर जोशी ने पत्रकारों से चुनाव में निष्पक्ष भूमिका निभाने का आग्रह किया। पिंकसिटी प्रेस क्लब के अध्यक्ष नीरज मेहरा ने कहा कि आज चहुं ओर नैतिकता का हृास हुआ है, पर मीडिया से देश को बहुत ज्यादा अपेक्षाएं है। कॉर्पोरेट के दबाव के बाद भी पत्रकार अपनी भूमिका का निर्वहन बखूबी कर रहे है। समारोह में जार के कार्यकारी अध्यक्ष प्रताप राव भी मौजूद थे। सेमिनार का संचालन जार के जयपुर जिला संयोजक आशीष पाराशर ने किया। सेमिनार में वरिष्ठ पत्रकार मिलापचंद डंडिया, गुलाब बत्रा, आनंद जोशी, अशोक चतुर्वेदी, अनिल चतुर्वेदी, आर. के. जैन आदि ने हिस्सा लिया।

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