आखिरकार भारत सरकार ने सचिन तेन्दुलकर के लिए
भारत रत्न की घोषणा कर ही थी। इसकी कोशिश पहले भी हुई थी लेकिन उस वक्त
आलोचनाओं की वजह से सरकार ने अपने कदम वापस खींच लिये थे। लेकिन इस बार
मौका ऐसा था कि कोई विरोध हो ही नहीं सकता था। सचिन तेन्दुलकर क्रिकेट से
सन्यास ले रहे थे और क्रिकेट प्रेमी उन्हें भावभीनी विदाई दे रहे थे, ऐसे
में सरकार की ओर से उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा ऐसी आलोचनाओं को
दरकिनार कर देती हैं जो सचिन तेन्दुलकर को भारत रत्न देने के कारण उठ सकती
थी। खेल उपलब्धि की बात है तो खेल के लिए प्रथम भारत रत्न का सम्मान मेजर
ध्यानचंद को क्यों नहीं मिला यह सवाल अस्तित्वविहीन बना रहा, यह बात भी
किसी रहस्य से कम नहीं।
सरकार ने सचिन के लिए अपने दो नियमों में संशोधन कर डाले। पहला
भारत रत्न के लिए खिलाड़ियों के वर्ग को शामिल किया जाना और दूसरा जीवित
व्यक्ति पर डाक टिकट जारी करने के लिए नियमों का संशोधन। मेजर ध्यानचंद
एक ऐसे भारतीय खिलाड़ी थे जिनकी गिनती श्रेष्ठतम खिलाड़ी में होती है। माना
जाता है की हॉकी के खेल में ध्यानचंद ने लोकप्रियता के जो कीर्तिमान
स्थापित किए है उसके आस पास भी आज तक दुनिया का कोई खिलाड़ी नहीं पहुँच सका।
बर्लिन में 15 अगस्त 1936 को जब ध्यानचंद ने हिटलर के सामने जर्मनी को
9-1 से ओलिम्पिक फाईनल में पराजित किया तब ध्यानचंद न केवल पहले भारतीय
खिलाड़ी थे बल्कि पहले भारतीय नागरिक भी थे,जिन्होंने विदेश में सार्वजनिक
रूप से तिरंगा फहराया। ब्रिटिश शासन के बावजूद बर्लिन जाते समय ध्यानचंद
तिरंगे को अपने बिस्तरबंद में छुपा कर ले गए थे।
जब हिटलर ने इस ऐतिहासिक फ़तेह के बाद ध्यानचंद को बुलाया और कहा था कि
भारत छोड़कर वो जर्मनी आ जाएँ तो उन्हें मुह मांगी कीमत दी जाएगी। इसपर
ध्यानचंद ने कहा की वो देश के लिए खेलते हैं पैसों के लिए नही। ध्यानचंद ने
लगातार तीन बार ओलिम्पिक में स्वर्ण पदक जीता और वो दुनिया के किसी भी खेल
में पहले खिलाडी बने और अबतक उनका यह रिकार्ड कायम है।
हालांकि केंद्रीय खेल मंत्रालय ने इस वर्ष अगस्त में सरकार को सिफारिश
की थी कि हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न दिया जाए। केद्रीय
खेलमंत्री जितेन्द्र सिंह ने संसद के मानसून सत्र में इस बात की जानकारी दी
थी। खेल मंत्रालय ने अपनी सिफारिश में कहा था कि वह स्वर्गीय ध्यानचंद को
सचिन के ऊपर प्राथमिकता देते हुए उन्हें भारत रत्न देने के लिए सिफारिश कर
रहा है।
खेल मंत्रालय ने उस समय अपनी सिफारिश में कहा था कि भारत रत्न के लिए
एकमात्र पसंद ध्यानचंद ही हैं। मंत्रालय को प्रधानमंत्री कार्यालय को इस
सर्वोच्च पुरस्कार के लिए सिर्फ एक नाम की सिफारिश करनी थी और उसने 3 बार
के ओलंपिक स्वर्ण विजेता ध्यानचंद के नाम की सिफारिश करते हुए कहा था कि
वही इस पुरस्कार के लिए एकमात्र पसंद हैं।
मंत्रालय ने कहा था- 'हमें भारत रत्न के लिए एक नाम देना था और हमने
ध्यानचंद का नाम दिया है। सचिन के लिए हम गहरा सम्मान रखते हैं, लेकिन
ध्यानचंद भारतीय खेलों के लीजेंड हैं इसलिए यह तर्कसंगत बनता है कि
ध्यानचंद को ही भारत रत्न दिया जाए, क्योंकि उनके नाम पर अनेक ट्रॉफियां दी
जाती हैं।'
अपने दो दशक के कैरियर में एक भी अंतरराष्ट्रीय मुकाबला नही हारने वाले
मेजर ध्यानचंद के लिए जितना लिखा जाना चाहिए उतना नहीं लिखा गया क्योकि आज
के दौर में एक कहावत बहुत मशहूर है और शायद कडवा सच भी,जो दिखता है वह
बिकता है।यह भी एक कड़वा सच है कि इस देश में इतिहास के अब मायने बदल गए
हैं।आज इतिहास को सियासत के नजर से देखने का चलन हैं यह बदला हुआ नजरिया ही
है के जिस खिलाड़ी के खेल और राष्ट्रभक्ति पर भारतीयों को गर्व है,उन्हें
भारत रत्न नहीं मिला। क्यों नहीं मिला यह सवाल लोगों के मन को कचोटता है,
लेकिन यह भी कडवा सच है की मौजूदा वक्त में यह सवाल उत्सव के शोर में
अनसुना सा बन कर रह गया है।
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