28 November 2013

क्या बांग्लादेशी घुसपैठियों को भगाना जरूरी है ?

देश की राजधानी दिल्ली बांग्लादेशी घुसपैठियों की बस्ति बन रही है। राजधानी में आए दिन राहगीरों को लूटने से लेकर रात में डाका डालने तक का काम ये घुसपैठिए कर हैं। पिछले चार-पांच साल में डकैती की जितनी भी घटनाएं हुई हैं उनमें सबसे जयादा बांग्लादेशी घुसपैठीयों का ही हाथ रहा है। दिल्ली उच्च न्यायालय पहले ही दिल्ली सरकार को ठोस कदम उठाने का आदेश  दे चुका है। मगर सरकार वोट बैक की राजनीति के आगे बेबस और लाचार नजर आ रही है।

हमारे देश में लगातार ये घुसपैठिए अपनी पैठ जमा रहे हैं। रोजी- रोटी से लेकर जमीन जयदात तक पर ये कब्ज़ा जमा चुके हैं। दिल्ली छावनी जैसे संवेदनशील इलाके में भी बंगलादेशियों की घुसपैठ हो चुकी है, जहा पर हमारे देश की सेना का अहम ठिकाने हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2003 में स्पष्ट रूप से आदेश दिया था कि प्रतिदिन दिल्ली से 100 घुसपैठियों को सरकार बाहर भेजे। मगर सौ तो दुर की कौड़ी है सरकार ने अब तक एक भी घुसपैठिए को पकड़ने के लिए कोई ठोस कदम उठाने को तैयार नहीं है। अदालत की बार-बार फटकार के बाद वावजूद भी पुलिस हरकत में नहीं आ रही है।

रिक्शा चलाने से लेकर मतदाता सूची में नाम चढ़वाने, राशन कार्ड जैसे सुविधाएं हासिल कर ये घुसपैठिए मौज कर है। वहीं हमारे देश के नागरीक इन सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या बांग्लादेशी घुसपैठियों को भगाना जरूरी है ?

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