कांग्रेस और भाजपा की
राजनीति चाहे जैसी भी रही हो और रमन सिंह की सरकार चाहे जिस तरह से भी चली
हो, अब इसके कोई मायने नहीं रह गए हैं। सच तो यह है कि 11 नवंबर को होने
वाले छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के पहले चरण में जिस पार्टी के पक्ष में
जनता अपना मत देगी, उसी की सरकार बनेगी। इस तरह की सोच स्थानीय जनता की भी
है और राजनीतिक दलों की भी। रमन सिंह की राजनीति और सरकार के प्रदेश में
क्या किया या नहीं किया और कांग्रेस की राजनीति कितनी धारदार रही, इस पर अब
प्रदेश की जनता अपना मोहर लगाने की तैयारी कर ली है। 11 नवंबर को पहले चरण
के तहत 36 सीटों के लिए मतदान होने हैं और चुनाव आयोग की तरफ से इसकी पूरी
तैयारी कर ली गई है, लेकिन केंद्र सरकार से लेकर स्थानीय प्रशासन और चुनाव
कवरेज करने वाली मीडिया की नजरें बस्तर संभाग पर टिकी हुई हैं।
बस्तर सम्भाग यानी नक्सलियों का ठिकाना। पिछले दो चुनावों से
नक्सलियों ने यहां चुनाव का बहिष्कार किया और जीत भाजपा की हुई। इस बार
क्या होगा? कहा नहीं जा सकता। कांग्रेस और भाजपा की सेनाएं बाजी मारने के
लिए तो तैयार हैं, लेकिन नक्सलियों की हुंकार से दोनों सेनाओं के पसीने भी
छूट रहे हैं। छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में चुनाव चिह्नों के आवंटन के साथ
ही सभी सीटों पर अब चुनावी तस्वीर साफ होने लगी है। बस्तर संभाग की सभी 12
सीटों में से 10 पर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला
होना तय है। बाकी के दो सीटों पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के साथ
त्रिकोणीय संघर्ष के आसार हैं। इस विधानसभा चुनाव में भाजपा, कांग्रेस और
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी तीनों दल अंतर्कलह से जूझते नजर आ रहे हैं। दोनों
पार्टियों में रूठे लोगों के मान-मनौवल का दौर जारी है। राजनीतिक रूप से
देखें, तो बस्तर की चार सीटों पर तो कांग्रेस अपने बागियों से परेशान है,
तो वहीं आधा दर्जन सीटों पर भाजपा को भी भीतरघात की चिंता सता रही है। एक
सीट पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी भी दलीय असंतोष का सामना कर रही है।
नाम वापसी के अंतिम दिन भाजपा अपने अधिकांश बागियों को मनाने में सफल
रही, जिसके चलते भाजपा के आधा दर्जन बागी चुनाव मैदान से बाहर हो गए।
कांग्रेस भी दो बागियों को मनाने में सफल रही, लेकिन बीजापुर, चित्रकोट,
कोंडागांव और केशकाल विधानसभा के बागियों ने नाम वापस लेने से इनकार कर
दिया, जिसके चलते इन विधानसभा सीटों पर कांग्रेस को भाजपा के साथ-साथ इन
बागियों से भी जूझना पड़ेगा। यहां कांग्रेस प्रत्याशी की राह आसान नहीं
मानी जा रही है। बस्तर टाइगर के नाम से चर्चित दिवंगत महेंद्र कर्मा की
दंतेवाड़ा विधानसभा सीट पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने पूर्व विधायक
नंदाराम सोरी का टिकट काटकर बोमड़ाराम को प्रत्याशी बनाया है। इस वजह से
यहां भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के कई पदाधिकारी नाराज हैं, जबकि गत
विधानसभा चुनाव में दंतेवाड़ा विधानसभा सीट पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
दूसरे नंबर पर थी।
दंतेवाड़ा विधानसभा सीट पर पर कांग्रेस ने दिवंगत महेंद्र कर्मा की
पत्नी देवती कर्मा को प्रत्याशी बनाया है, तो वहीं भाजपा ने भी अपने
वर्तमान विधायक भीमाराम मंडावी को प्रत्याशी बनाकर कांग्रेस और भारतीय
कम्युनिस्ट पार्टी को कड़ी चुनौती पेश की है। यहां मुकाबला रोचक होगा।
कांग्रेस नेता महेंद्र छाबड़ा की मानें, तो कांग्रेस इस बार बस्तर में
पिछले चुनाव की अपेक्षा अपनी सीटें निश्चित तौर पर बढ़ाएगी। कांग्रेस की
सबसे बड़ी परेशानी बीजापुर और कोंडागांव विधानसभा क्षेत्र को लेकर है।
बीजापुर में जिला पंचायत अध्यक्ष नीना रावतिया को मनाने का कांग्रेस ने
काफी प्रयास किया, लेकिन वह अंत तक नहीं मानीं और निर्दलीय चुनाव लड़ रही
हैं। वहीं कोंडागांव में पूर्व मंत्री शंकर सोढ़ी के निर्दलीय चुनाव लड़ने
के कारण यहां कांग्रेस की संभावनाएं प्रभावित होने लगी हैं।
केशकाल में दानीराम मरकाम और चित्रकोट में शंकर ठाकुर ने भी निर्दलीय
प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस को परेशानी में डाल दिया है। वहीं दूसरी ओर
भाजपा में बागियों के नाम वापसी के बावजूद अब भी मन नहीं मिल हैं। कांकेर,
भानुप्रतापपुर और अंतागढ़ तीनों सीटों पर असंतुष्ट लामबंद होकर अधिकृत
प्रत्याशियों के खिलाफ जुटे हुए हैं। इसी तरह केशकाल, बस्तर, कोंडागांव और
जगदलपुर सीटों पर भी असंतुष्ट घात लगाए बैठे हैं। भाजपाप्रवक्ता संजय
श्रीवास्तव की मानें, तो बस्तर में किसी प्रकार कि असंतुष्टि नहीं है, जो
नाराज हैं, उन्हें भी मना लिया गया है और वहां भाजपा का प्रदर्शन बेहतर
रहेगा। कुछ दिनों पूर्व केसरिया हुआ बस्तर के राजमहल पर भी अब सवाल उठने
लगे हैं। कांग्रेस प्रत्याशी की राजमहल में हुई बैठकों के बाद भाजपा और
कांग्रेस दोनों दलों में असंतोष गहराने लगा है। बस्तर महाराजा की हत्या का
आरोप कांग्रेस पर लगने के बाद कतिपय कांग्रेसियों के महल प्रेम पर दल में
ही विरोध के सुर सुनाई देने लगे हैं।
बहरहाल बस्तर में चुनावी बिगुल फूंका जा चुका है। प्रत्याशी चुनाव मैदान
में कूद गए हैं, बीहड़ों में प्रचार प्रसार भी प्रारंभ है। भारी सुरक्षा
व्यवस्था के बावजूद नेता लोग खुलकर प्रचार नहीं कर रहे हैं । जनता को
नक्सलियों ने फरमान के जरिये कह दिया है कि जो वोट डालेगा, उसकी खैर नहीं।
लेकिन इस तरह के फरमान यहां के लोग हर चुनाव में सुनते हैं और वोट भी डालते
हैं। राइट टू रिजेक्ट कानून बनने के बाद बस्तर की तस्वीर क्या होगी? इस पर
भी लोगों की नजरें टिकी हुई हैं । नक्सली लोकतंत्र में यकीन नहीं करते और न
ही सरकार के कामों को विकास मानते हैं। कहा जा रहा है कि जिस पार्टी की
जीत बस्तार संभाग से होगी, उसी कि सरकार बनेगी। जाहिर है कि बस्तर को जीतने
के लिए राजनितिक दलों में होड़ लग गई है।
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