30 November 2013

रेप के खिलाफ बढ़ता सामाजिक जागरूकता !

देश में रेप के खिलाफ खड़े किये गये माहौल की पहली खेप सामने आ चुकी है। राजनेता, नौकरशाह, धर्मगुरू, न्यायाधीश और मीडिया से जुड़े लोग अब तक ऐसी शिकायतों का शिकार हो चुके हैं जिसमें कहीं न कहीं किसी न किसी महिला ने नामी लोगों के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत की है और उस शिकायत के आधार पर आरोपी व्यक्ति के खिलाफ सिर्फ कानूनी कार्रवाई नहीं हुई है बल्कि सामाजिक बदनामी, विरोधियों की राजनीति सबकुछ अंजाम दिया गया है। ऐसा लगता है कि देश में रेप के खिलाफ खड़े किये गये माहौल का इस्तेमाल अब बड़ी चालाकी से विरोधियों को निपटाने के लिए किया जा रहा है। बजरंग मुनि मानते हैं कि आखिरकार ऐसे कानूनों और उन कानूनों की असामाजिक प्रसंशा से समाज विरोधी शक्तियां को मदद मिलेगी और वे इसका दुरूपयोग करेंगे। 

दुनिया में और विशेषकर भारतीय राजनीति में एक धारणा सफलता पूर्वक कार्यरत रही है कि समाज को कभी एकजुट नही होने देना है। उसे धर्म, भाषा, जाति, लिंग आदि आठ आधारों पर निरंतर बॉंटकर रखना है। छः आधारों पर तो समाज को बॉंट चुके थे। किन्तु लिंग और उम्र के आधार पर अब तक सफलता नही मिली थी, क्योंकि लिंग और उम्र के आधार पर समाज पहले परिवारों मे बॅंटा था और परिवारों में अविश्वास और टूटन के बिना इन्हें वर्गो मे बॉंटना और वर्ग संघर्ष की दिशा में ले जाना संभव नही था। पिछले कुछ वर्षों से समाज तोड़नेवाली सभी शक्तियां परिवारों को लिंग के आधार पर तोड़ने में लगी थीं किन्तु उन्हें बहुत मामूली और धीमी गति से सफलता मिल रही थी। किन्तु पिछले एक वर्ष से, वह भी 16 दिसम्बर 2012 की घटना और उसके बाद दिल्ली में हुए आंदोलन के बाद यह गति बहुत तेज हो गई है।

महिला और पुरूष को अलग-अलग समुदाय में बॉंटकर उनमें विद्वेष फैलाने में राजनेताओं की भी सक्रियता रही है, और न्यायलयों की भी। धर्मगुरू और मीडिया भी इस कार्य में तेजी से आगे-आगे बढ रहे हैं। समाज को तोड़ने के उद्देश्य से इन सबने मिलकर महिला सशक्तिकरण का जो जाल बुना था अब अपने ही बुने जाल मे एक वर्ष के भीतर ही चारों के प्रमुख संस्थानों के लोग एक-एक करके फॅंसने लगे। जहॉं आशाराम बापू और तहलका के प्रमुख मीडिया कर्मी तरूण तेजपाल जाल मे फंसकर छटपटा रहें हैं, वहीं नरेन्द्र मोदी तथा सर्वोच्च न्यायलय के न्यायाधीश सेक्सजाल से बचने के लिए प्रयत्नशील हैं।

अगर आप इन चारों चर्चित सेक्स कांड पर नजर दौड़ाएं तो चारों में से किसी भी घटना में बलात्कार नहीं हुआ है बल्कि चारों ने विभिन्न महिलाओं से सहमति प्राप्त करने के लिए कुछ अपनी हैसियत का दबाव डाला या उनके साथ कुछ छेडछाड भी की। आशाराम बापू की यदि और पोल नही खुली होती तो वह घटना भी इतनी गंभीर नही बनती किन्तु इस लड़की के आगे आने के बाद आशाराम बापू की ऐसी अनेक घटनॉंए तथा षडयंत्र प्रकाश में आने लगे जो समाज को उनसे घृणा करने के लिए पर्याप्त थे। यद्यपि अभी तक इस घटना को छोडकर उनके द्वारा किये गए बलात्कार की कोई घटना सामने नही आई है। यद्यपि वे अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिए आश्रम में महिलाओं या लड़कियों के ब्रेनवाश करते थे और ब्रेनवाश करके किसी को सहमत करना अनैतिक होता है, कानूनी अपराध है सामाजिक अपराध नहीं। फिर भी आशाराम ने जो किया वह पूरा का पूरा कार्य असामाजिक तो था ही, आशाराम बापू के पास ऐसा कोई तर्क नही है कि जिसके बल पर वे समाज मे अपना मुंह दिखा सके। कानून क्या करेगा वह अलग बात है।

तहलका के प्रमुख तरूण तेजपाल ने जो किया उसमे भी कहीं से कोई बलात्कार की गंध नही आती। तरूण तेजपाल को अनैतिक अथवा कानूनी अपराध का दोषी पाया जा सकता है। उन्होंने लड़की के साथ छेड़छाड़ करने की पहल की और जब लड़की ने कठोरता से अस्वीकार कर दिया तो उन्होनें प्रयत्न छोड़ दिया। फिर भी उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि दुबारा प्रयत्न मे लड़की मान जाएगी, किन्तु दुबारा भी लड़की नहीं मानी। लड़की ने यह बात अपने व्यवसाय से जुडे अभिभावकों को बताई और उन्हें ऑंतरिक दंड दिलाने का प्रयत्न किया। जिस आधार पर दोनों के बीच लगभग समझौता हुआ। तरूण तेजपाल संभवतः इसके पूर्व भी ऐसे दबावों के बाद कुछ सहकर्मियों से ऐसा करने मे सफलता प्राप्त कर चुके होंगे। यही कारण है कि उन्होने इंकार के बाद भी दुबारा प्रयत्न किया। तहलका की प्रबंध संपादक शोमा चौधरी को उस लडकी ने जो भी बताया उस पर शोमा चौधरी ने अपने तरीके से कार्यवाही की और किसी को नही बताया, पुलिस को भी नही, क्योंकि ऐसा करने के लिए वह कहीं से बाध्य नहीं थी।

यदि कोई व्यक्ति कोई अपराध करके मेरे पास मदद के लिए आता है और मैं उसे किसी भी प्रकार की मदद देने के लिए मना करता हूं किन्तु थाने मे रिपोर्ट नही करता या उसे नही पकड़वाता, मेरा ऐसा करना किसी भी दृष्टि मे न सामाजिक अपराध है न कानूनी अपराध, विशेषकर ऐसी परिस्थिति मे जब उस अपराध के लिए कोई वैधानिक कार्यवाही ना चल रही हो। मुझे समझ में नही आता है कि यदि कोई लड़की अपने मॉं-बाप से कोई ऐसी घटना बता दे, और मॉ-बाप उसे थाने जाने की सलाह देने के बजाए उस व्यक्ति को कोई ऑंतरिक दण्ड देने की सलाह दे दें तो क्या घटना के लिए मां बाप को दोषी मान लिया जाएगा? मैं अभी तक नही समझता कि उसके  मॉं-बाप ने ऐसा कोई अपराध किया जब तक उस लड़की की इच्छा के विरूद्ध उसे रोकने का प्रयत्न ना किया हो। यदि उस लड़की की सहेली ने, जो तरूण तेजपाल की बेटी भी हो सकती है, उसने उस लडकी से इस मामले मे चुप रहने का निवेदन कर दिया, तो ऐसे निवेदन को दबाव कैसे कहा जा सकता फिर भी तरूण तेजपाल के साथ जो कुछ हुआ है वह अच्छा ही हुआ है। अन्य स्थापित लोंगों की छोटी-छोटी गलतियों के लिए पगड़ी  उछालने को आपने यदि अपना व्यवसाय बना लिया है तो ऐसा अवसर पाकर आपकी भी पगड़ी उछले इसमें कोई अस्वाभाविक बात नही है, कोई असामाजिक प्रयत्न नही है। तरूण तेजपाल ने पूरे भारत मे अपनी पहचान ऐसे लोगों की पगड़ी उछालकर ही बनाई है, जिन्होनें कोई गंभीर अपराध नही किया था। यदि ऐसे साधारण अनैतिक कार्यों के लिए तिल का ताड़ बनाना और उसका लाभ उठाना आपके लिए कोई सामाजिक कार्य है, तो अब आपको उस जाल मे फॅंसने के बाद निकलने से रोकने का प्रयत्न भी कोई सामाजिक अपराध नही है।

गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री के संभावित उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने अपने राज्य में किसी लड़की की जासूसी कराई। जासूसी के समय उस लड़की के पिता ने मोदी जी से कुछ कहा कि नही यह अब तक स्पष्ट नही है। किन्तु जासूसी हुई है यह स्पष्ट है। लडकी का विवाह हो जाने के बाद लडकी के पिता से चिठ्ठी लिखवा लेना पीछा करने का कोई आधार नही होता। ऐसा लगता है कि लडकी अविवाहित थी और या तो उस लडकी का संबंध उस आईएएस ऑंफिसर से रहा होगा और लडकी के माता-पिता उस लडकी का विवाह उस आईएएस ऑंफिसर से करना चाहतें हों यह सच्चाई अभी तक छिपी है। दूसरी ओर नरेन्द्र मोदी उस लडकी की जासूसी उस आईएएस ऑंफिसर से बचाने के लिए कर रहे थे या अपने जाल मे फॅंसानें के लिए, यह भी स्पष्ट नही है। लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि उस लडकी के मामले मे नरेंन्द्र मोदी ने सारी सीमाओं को तोडकर रूचि और सक्रियता दिखाई और उस सक्रियता मे अपनी प्रषासनिक शक्ति का भरपूर दुरूपयोग किया। अब तक यह बात स्पष्ट नही हुई कि लडकी के माता-पिता उस लडकी को किस खेमे मे देना चाहते थे, लेकिन इतना स्पष्ट है कि यह कार्य महिलाओं पर किसी अपराध की श्रेणी मे न होकर पद के दुरूपयोग की श्रेणी मे आता है तथा अनैतिक भी हो सकता है।

किसी सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीश पर अधीनस्थ काम करने वाली अधिवक्ता लडकी के साथ छेड़छाड़ किया या नही यह तो बाद मे स्पष्ट होगा। किन्तु हम मानकर चलें कि उन्होनें किया। विचारणीय प्रश्न यह है कि उन्होनें क्या अपराध किया? हो सकता है कि उन्होंने उस लड़की को कोई पद का लालच भी दिया हो, यह हो सकता है कि कोई डर भी दिखाया हो। किन्तु इसमें सामाजिक अपराध क्या हो गया? उस लडकी ने उस न्यायाधीश की भूख मिटाने के लिए अपनी भौतिक उन्नति के साथ समझौता किया तो इस समझौते मे क्या अपराध हो गया? यदि कोई व्यक्ति किसी पदारूढ व्यक्ति के पास अपने किसी कार्य के लिए जाता है और वह व्यक्ति उस कार्य के लिए पैसे के उपर समझौता करता है अथवा अपनी शारीरिक भूख के उपर समझौता करता है, इसमें किसी प्रकार का अंतर नही है, न इसमें कहीं से बलात्कार आता है और न यौन शोषण आता है। सिर्फ और सिर्फ एक चीज आती है और वह है उसके द्वारा किया गया पद का दुरूपयोग। किसी समझौते के आधार पर लाभ उठाने के बाद उस बात को बताना या प्रसारित करना उस महिला का भी अनैतिक कार्य माना जाएगा। उस समय और भी ज्यादा अनैतिक होगा जब वर्षों बाद इस घटना को प्रसारित किया जाए।

यौन उत्पीड़न या महिला के साथ व्यभिचार से जुड़ी चारों घटनॉंए अलग-अलग है। अलग-अलग प्रकार की हैं। किन्तु चारों में ऐसे प्रमुख लोग फॅंस रहें हैं जो अलग-अलग क्षेत्रों के स्थापित व्यक्तित्व हैं, तथा चारों ही अपने-अपने क्षेत्र मे रहकर महिला उत्पीडन, महिला सशक्तिकरण, महिला जागरण की दुहाई देते रहते हैं। चारों ने समाज तोड़क प्रयत्नों के लिए महिला सशक्तिकरण शब्द को एक हथियार के रूप मे उपयोग किया है। राजनेताओं ने तो ऐसे प्रयत्नों मे भरपूर पहल की ही है। किन्तु मैने तो यहॉं तक सुना है कि न्यायाधीशों ने भी ऐसी सलाह दी है कि पति-पत्नी के बीच सहमति के बिना किए गये सेक्स को अपराध घोषित किया जाए। आश्चर्य है कि ऐसी सहमति कैसे होगी लिखित होगी कि अलिखित होगी। इस स्वाभविक प्रक्रिया के बारें मे सोचने की पहल नही की गई। मीडिया ने भी ऐसे मामलों को उछालने मे कोई कसर नही छोड़ी। छोटे छोटे बलात्कार रहित मामलों को तिल से ताड बनाने में, उसका मजा ले लेकर अपना रेंटिंग बढाने में, तथा अपना न्यूसेंस वैल्यू बढाने मे मीडिया कभी पीछे नही रहा है।

दो प्रतिशत तथाकथित आधुनिक महिलाओं को उभारकर राजनेताओं ने 16 दिसम्बर 2012 को जंतर-मंतर पर हल्ला करवाया। मीडिया ने उस हल्ले को आधार बनाकर सारे देश मे तूफान खडा कर दिया। धर्मगुरू भी उस तूफान मे खड़े हो गये तथा जिन नेताओं ने यह प्रर्दशन करवाया था, उन्ही नेताओं ने इसको आधार बनाकर बडे-बडे कानून बना दिये, यह भारत का हर व्यक्ति देख चुका है, जानता है। इन लागों ने कभी नही सोचा कि ऐसे कानून का परिवार व्यवस्था पर कितना दुष्प्रभाव होगा। इन्हें तो केवल उस तवे पर अपनी रोटी सेकने से मतलब था जिस तवे पर रोटी सेकने मे समाज व्यवस्था, परिवार व्यवस्था जलाई जा रही हो। इन्हें तो यह भी नही पता था कि ऐसे ऑंदोलन या महिला सषक्तिकरण के नाम पर बनाये गए कानून कभी उनकी भी जमात को अपने ही जाल में फॅंसा सकते हैं। मुझे व्यक्तिगत रूप से भी, पारिवारिक रूप से भी तथा सामाजिक रूप से भी यह अनुभव है कि भारत की आबादी के आधे से अधिक बालिग पुरूष जीवन मे कभी न कभी ऐसी गलतियॉं करते हैं जो बलात्कार तो नहीं होती किन्तु अनैतिक होती हैं, तथा 16 दिसम्बर के बाद बने कानून

के आधार पर अपराध भी होती है। ऐसे अनावष्यक कानूनों का सदुपयोग करने वाले कम और दुरूपयोग करने वाले अधिक होतें है। प्रत्येक व्यक्ति का सोच और चरित्र अलग-अलग होता है। उसे किसी वर्ग के साथ बॉंधना ठीक नही। यदि पुरूषों को ऐसे असीमित अधिकार देकर उनका दुरूपयोग करने की उन्हें सामाजिक छूट प्राप्त थी तो उस दुरूपयोग के परिणामों को सुधारने के प्रयास करने की अपेक्षा अब महिलाओं को छूट देकर पति-पत्नी के बीच संदेह पैदा करना या दीवार खडी करना कितना उचित है? किसी परिवार की सदस्य होने के बाद न पुरूष के कोई अंध शिकार होने चाहिए न महिला के। बल्कि सबको समान अधिकार होना चाहिए। जो भूल हमने पुरूष को एकाधिकार करके कायम की थी उसे खतम करके उस परिवार की संरचना को ठीक करना चाहिए था, न कि महिला सदस्यों को अधिकार देकर। लेकिन हमारे राजनेताओं ने अपने स्वार्थ मे पडकर महिलाओं को टकराव मे खडा कर दिया। किसने रोका था कि पारिवारिक संम्पति मे परिवार के प्रत्येक सदस्य को समान अधिकार दे दिया जाए। किसने रोका था कि पारिवार के प्रत्येक सदस्य को कभी भी परिवार छोडकर अलग होने की कानूनी छूट दे दी जाए। किसने रोका था कि परिवार के संचालन मे परिवार के सभी सदस्यों की समान भूमिका हो। किसी ने नही रोका था। किन्तु हमारे संविधान निर्माताओं की भूलवश अथवा समाज तोड़क योजनाओं के आधार पर ऐसे-ऐसे भेदकारी कानून बनाये गए और अब तो ऐसी योजनाओं का लाभ मिलने के बाद हमारे नेताओं को विशेष मजा आने लगा है कि वे ऐसी योजनाओं को और आगे तेजी से बढा सके। राजनीतिज्ञ तो बहुत तेजी से ऐसी योजनाओं पर काम कर ही रहें हैं, धर्मगुरू, मीडियाकर्मी तथा न्यायालय भी ऐसी योजनाओं को आगे बढा रहें हैं।

कुछ ही दिनो में स्पष्ट हो जाएगा कि महिलाओं और पुरूषों के बीच एक अविश्वास की खाई कितनी गहरी हो गई है। चरित्रवान और शरीफ महिलॉंए ऐसे कानूनों से कितना लाभ उठा पाएंगी यह तो पता नही, लेकिन जल्दी ही दिखने लगेगा कि धूर्त महिलॉंए अथवा धूर्त पुरूष, महिलाओं को हथियार बनाकर पुरूषों को ब्लैकमेल करना शुरू कर देंगें, और ऐसा होना समाज के लिए बहुत अहितकर होगा। यदि कानून इसी तरह महिलाओं के पक्ष में एकतरफा बनते रहे तो आपको 10-20 करोड़ लोगों के लिए जेंलें बनानी पड़ सकती हैं। कोई अपना कीमती हीरे का हार घर में सुरक्षित रखे और कोई सड़क पर लेकर उसे असुरक्षित घूमें तो हार लूट जाने के अपराध की गंभीरता एक समान नही होगी। महिला और पुरूष के बीच की दूरी जितनी ही घटेगी उतना ही विस्फोट का खतरा अधिक बढेगा क्योंकि महिला और पुरूष की तुलना आग और बारूद से की जाती है। जो महिलॉंए यौन शोषण के प्रति अधिक संवेदनषील हैं उन्हें ऐसी दूरी पर विशेष ध्यान देना चाहिए। अच्छा हो कि ऐसी घटनाओं से अपने को सुरक्षित मानकर मजा लेने की अपेक्षा ऐसे कानूनों के दुरूपयोग की आशंका से समाज को अवगत कराया जाए। अर्थात समाज के किसी वर्ग को विशेषाधिकार देकर इतना सशक्त ना बनाया जाए कि उस वर्ग का कोई भी संदिग्ध चरित्रवाला व्यक्ति ऐसे कानूनों का दुरूपयोग करके दूसरे लोगों को ब्लैकमेल कर सके।

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