छठ पर्व का महत्व सिर्फ अघ्यात्मिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक और एतिहासिक स्तर पर भी उतना ही महत्वपूण है। छठ पूजा के समय हम ब्रह्म मुहूर्त में बिस्तर छोड़ देते हैं। यह विलासिता का त्याग है। इसके साथ ही सूर्य की असंख्य किरणें ऊर्जा के रूप में हमारे अंदर समाहित होती हैं। सूर्य पूजा की परम्परा आदित्य कुल के भार्गवो ने शुरु करायी।
हिस्टोरियन हिस्ट्री ऑन दी वल्ड एवं मिश्र के पिरामिडो से मिले प्रमाणों के अनुसार महर्षि भृगु के वंशज भार्गवो ने इस महाद्वीप पर हिस्त्री खूफू मनस नामो से जाना गया। भार्गवो ने यहां सूर्य पूजा की परम्परा हजारो साल चलायी। इस बात की पुष्टीअलमरना मे हुई खुदाई से मिले पुरातात्विक साक्ष्यो और अमेरिकी विद्वान कर्नल अल्काट और प्रो0 ब्रुग्सवे के शोध ग्रंथो से साबित हो चुकी है।
यही कारण है की यह पर्व सिर्फ भारत ही नहीं अमेरिका सहीत पूरे विष्व भर में धूम धाम से मनाया जाता है। अमेरिका महाद्वीप पर 12 अक्टूबर 1492 तक यह परम्परा कायम रही है। 12 अक्टूबर 1492 को जब क्रिस्टोफर कोलम्बस नाम के पुर्तगाली नाविक जब यहां पहुंचे, तो उस समय इस महाद्वीप पर 10 लाख सूर्य पूजक भार्गव के वंशज मौजूद थे। इस महाद्वीपपर कब्ज़ा करने के लिए सूर्य भक्तों की निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई जिसके चलते ये परम्परा वहा पर समाप्त हो गयी !
प्राचीन इतिहासकार रांगेय राघव अपनी पुस्तक महागाथा मे लिखते है कि आदीकाल में लोग मानते थे कि ये देवता महासागर मे रहते है। महाप्रलय के बाद माता अदिति के सबसे छोटे पुत्र आदित्य के नाम पर रोज उजाला लेकर आने वाले इस चमकीले तारे का नाम आदित्य रख दिया गया। वैज्ञानिकों ने इस नकक्षत्र की चाल गति उष्मा, प्रकाश, ऊर्जा का अध्ययन किया। इसके बाद इसका नाम सूर्य रखा ।
छठ पर्वकी परंपरामें बहुत ही गहरा विज्ञान छिपा हुआ है, षष्ठी तिथि यानी की छठ एक विशेष खगौलीय अवसर है। उस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं। सूर्य के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा संभव है।
सूर्य को अर्घ्य स्वास्थ्य और मानसिक शक्ति के लिए लाभदायक माना जाता है। किंतु छठ पूजा के विशेष अवसर पर सूर्य को अर्घ्य बहुत ही शुभ प्रभाव देता है। इस व्रत का वैदिक और पौराणिक महत्व है। पौराणिक मान्यता है कि द्रौपदी के छठ पूजा के फल से ही पांडवों को युद्ध में विजय और राज्य प्राप्त हुआ।
पौराणिक मान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी के सूर्यास्त और सप्तमी के सूर्योदय के मध्य वेदमाता गायत्री का जन्म हुआ था। प्रकृति के षष्ठ अंश से उत्पन्न षष्ठी माता बालकों की रक्षा करने वाले विष्णु भगवान द्वारा रची माया हैं।
छठ पूजा में मिट्टी के बने हाथी चढ़ाए जाते हैं, जो इस पर्व के माध्यम से प्रकृति की अद्भुत जीव के संरक्षण का संदेश देती है।
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