08 September 2021

इस्लाम में मज़हबी सुधारों का विरोध क्यों ?

बेबाक अंदाज के लिए पहचाने जाने वाले एक्टर नसीरुद्दीन शाह ने तालिबान का समर्थन करने वाले भारतीय मुस्लिमों पर जमकर निशाना साधा हैं. शाह ने एक वीडियो जारी किया है, जिसमे उन्होंने हिंदुस्तानी इस्लाम और दुनिया के बाकी हिस्सों के इस्लाम के बीच का फर्क बताया है.

नसीरुद्दीन शाह ने बेबाक सवाल पूछा है कि तालिबान की पैरवी करने वाले भारतीय मुस्लिम अपने मजहब में सुधार चाहते हैं या पिछली सदियों जैसे वहशीपन के साथ जीना चाहते हैं? शाह सिर्फ यहीं तक नहीं रुके उन्होंने कट्टर मुसलमानों को आईना दिखाते हुए कहा...'हिंदुस्तानी इस्लाम दुनिया भर के इस्लाम से हमेशा मुख्तलिफ (अलग) रहा है, और खुदा वो वक्त न लाए कि वो इतना बदल जाए कि हम उसे पहचान भी न सकें.'

उर्दू में रिकॉर्ड किए गए इस वीडियो क्लिप में शाह ने कहा है, 'हालांकि अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता में वापसी पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है, लेकिन भारतीय मुसलमानों के एक तबके का इस बर्बरता को लेकर जश्न मनाना भी कम खतरनाक नहीं है.'

उन्होंने आगे कहा, 'हर भारतीय मुसलमान को खुद से पूछना चाहिए कि उसे अपने मजहब में रिफॉर्म (सुधार), जिद्दत पसंदी (आधुनिकता, नवीनता) चाहिए या वे पिछली सदियों के जैसा वहशीपन चाहते हैं.

मैं हिंदुस्तानी मुसलमान हूं और जैसा कि मिर्जा गालिब ने एक अरसा पहले कहा था, मेरे भगवान के साथ मेरा रिश्ता अनौपचारिक है. मुझे सियासी मजहब की जरूरत नहीं है.' शाह ने तो सच्चाई बता दी मगर अब उनका विरोध शुरू होगया गया है, तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है की इस्लाम में मज़हबी सुधारों का विरोध क्यों ?


नसीरुद्दीन शाह का बेबाक बयान


नसीरुद्दीन शाह ने तालिबान का समर्थन करने वाले भारतीय मुसलमानों पर जमकर निशाना साधा है

शाह ने एक वीडियो जारी किया है, जिसमे उन्होंने हिंदुस्थानी इस्लाम और दुनिया के बाकी हिस्सों के इस्लाम के बीच का फर्क बताया है

नसीरुद्दीन शाह ने बेबाक सवाल पूछा है कि तालिबान की पैरवी करने वाले भारतीय मुस्लिम अपने मजहब में सुधार चाहते हैं?

या भारतीय मुसलमान पिछली सदियों जैसे वहशीपन के साथ जीना चाहते हैं?

हिंदुस्थानी इस्लाम दुनिया भर के इस्लाम से हमेशा अलग रहा है

खुदा वो वक्त न लाए कि वो इतना बदल जाए कि हम उसे पहचान भी न सकें

अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता में वापसी पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है

भारतीय मुसलमानों के एक तबके का इस बर्बरता को लेकर जश्न मनाना भी कम खतरनाक नहीं है

हर भारतीय मुसलमान को खुद से पूछना चाहिए कि उसे अपने मजहब में रिफॉर्म, आधुनिकता, नवीनता चाहिए?

या वे पिछली सदियों के जैसा वहशीपन चाहते हैं?

मैं हिंदुस्थानी मुसलमान हूं मेरे भगवान के साथ मेरा रिश्ता अनौपचारिक है

मुझे सियासी मजहब की जरूरत नहीं है

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