27 November 2021

समान नागरिक संहिता का विरोध क्यों ?

देश में एक बार फिर से यूनिफॉर्म सिविल कोड की मांग तेज़ होगई है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अंतर्धार्मिक विवाह सम्बंधित जनहित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार से कहा है कि वो समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुझाए गए दिशा निर्देशों पर विचार करते हुए पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू करे. न्यायालय के इस सुझाव के बाद एक बार फिर समान नागरिक संहिता का विषय चर्चा में आगया है. इसी वर्ष जुलाई में भी दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी केंद्र सरकार से इस दिशा में कदम उठाने का सुझाव दिया था. इससे पहले वर्ष 2019 में सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ ने भी समान नागरिक संहिता न लाने के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया था.

पिछले कई वर्षों से समान नागरिक संहिता की मांग देश में होता रहा है. मगर जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इसे लागू करने कि बात कही तो ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को ये बात रास नहीं आई. आनन-फानन में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड प्रेस कांफ्रेंस कर विरोध में उतर आया. पर्सनल लॉ बोर्ड को समान नागरिक संहिता मंजूर नहीं है मगर उसको ईशनिंदा के विरुद्ध कानून जरुर चाहिए. ऐसे में सवाल मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सोच और कामकाज के ऊपर भी खड़ा होता है कि क्या ये देश में सरिया कानून लागू करना चाहते हैं?

संविधान निर्माताओं ने संविधान को अंतिम रूप देते हुए यह आशा व्यक्त की थी कि भविष्य में अलग-अलग धर्मों के लिए विवाह, तलाक़ और अन्य सम्बंधित कानूनी प्रक्रिया के लिए समान नागरिक संहिता को लागू किया जाएगा. इसी बात को आगे रखते हुए न केवल सर्वोच्च न्यायलय ने बल्कि अन्य उच्च न्यायालयों ने बार-बार सरकार से समान नागरिक संहिता बनाने का सुझाव दिया. 2019 के अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायलय ने कहा कि; हमारे संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 44 के तहत नीति निर्देश दिया था कि उचित समय आने पर सरकार पूरे देश के नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता बनाने और उसे लागू करने की अपनी जिम्मेदारी का पालन करेगी पर यह आज तक नहीं हो सका.

अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा था कि हिंदू एक्ट 1956 में लागू होने के बाद आज तक नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता की दिशा में सरकार द्वारा कदम नहीं उठाया जा सका और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा शाह बानो मामले में परामर्श के बावजूद सरकार ने इस दिशा में कोई प्रयास नहीं किया.

वर्तमान केंद्र सरकार से न केवल उसके समर्थक बल्कि एक वृहद भारतीय समाज लंबे समय से समान नागरिक संहिता लाने की मांग कर रहा है. पिछले कई वर्षों से संसद के लगभग हर सत्र से पहले इस बात की चर्चा होती रही है. संसद के शीतकालीन सत्र से पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा एक बार फिर से सरकार से जो बात कही गई है उसका कितना असर होता है, यह देखना आगे दिलचस्प होगा. मगर इसको लेकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अभी से घबराया हुआ है और इसका विरोध भी शुरू कर दिया है.

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