03 November 2021

दिवाली की वैज्ञानिक, आर्थिक, धार्मिक, मनोवैज्ञानिक, पारंपरिक इतिहास का विश्लेषण

देश की राजधानी दिल्ली में जब कुछ छोटे-छोटे बच्चों ने जब पटाखे फोड़े तो उनके माता पिता को गिरफ़्तार किया गया. लेकिन आज तक अनेकों बम फोड़ने वाले आतंकवादियों के माँ-बाप को कभी भी गिरफ़्तार नहीं किया गया. ऐसे में मुझे लगा कि इस विषय पर विस्तार से रिसर्च कर के लेख लिखूंगा. आज इस लेख में मैं कई सारे ऐतिहासिक दस्तावेज़, शोध ग्रन्ध और धार्मिक पुराण और विदेशी इतिहास और भारतीय संस्कृति पर आधारित विभिन्न सबूतों का जिक्र करूँगा. सबसे पहले जिक्र करता हूँ इतिहास का.


इतिहास:

पटाखों का हजारों वर्षों का देश-दुनिया में इतिहास है वेदों में हज़ारों वर्ष पूर्व में फटा शब्द का उल्लेख है.

दक्षिण भारत से लेकर कई देशों में बने स्थापत्य कला में आतिशबाज़ी की चित्रों का उल्लेख है

चाणक्य ने तीसरी-चौथी शताब्दी में अपने अर्थशास्त्र में अग्नि चूर्ण का उल्लेख किया है

इसे सॉर्ट पीटर अर्थात पोटेशियम नाइट्रेट कहा जाता है, यह अति ज्वलनशील पदार्थ है और मैदान में शत्रु के विरुद्ध लड़ने में उपयोगी होता है


नीलमत पुराण- (छठवीं शताब्दी) के इस कश्मीरी ग्रन्थ में आतिशबाज़ी से पितरों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का स्पष्ट उल्लेख है

चीनी साहित्य- (सातवीं शताब्दी) में पोटैशियम नाइट्रेट का उपयोग करके हीं नीले रंगों की ज्वाला निर्मित कर उससे आनंद उत्सवों का जिक्र है

Military Transition in Early Modern India इस पुस्तक में कौशिक रॉय जी ने इसका जिक्र किया है

ओडिशा के राज परिवार- के गजपति प्रताप रुद्रदेव (चौदहवीं शताब्दी) में कोतुक चिंतामनीनामक संस्कृत ग्रंथ में दिवाली के समय पटाखों और आतिशबाज़ी का वर्णन किया है

संत एकनाथ- (सोलहवीं शताब्दी) में लिखित रुक्मिणी स्वयंवरमें पटाखों की आतिशबाज़ी का स्पष्ट और बहुत विस्तार से उल्लेख करते हैं। 

 

छत्रपति शिवाजी महाराज जी का राज्याभिषेक (6 जून 1674) को हुआ. इसमें वर्णन है कि प्रभु राम चंद्र जी अयोध्या में आए थे तब दीपावली मनाई गई थी

औरंगज़ेब- ने 22 नवम्बर 1665 में गुजरात सुबेदार को लिखित में आदेश देकर अहमदाबाद में हिंदू श्रद्धालुओं को परम्परा के अनुसार दिए लगाने, पटाखे फोड़ कर आतिशबाजी पर प्रतिबंध का स्पष्ट आदेश देता है

पेशवा एवं मराठा- सरदारों (सोलहवीं शताब्दी) की कई पुस्तकों में मराठा बखर में कई बड़े बड़े महान योद्धाओं के दिवाली और पटाखा का उल्लेख मिलता है.

परम्परा:

राजस्थान ने मीणा समाज के लोग आज भी अपने पितरों के लिए आकाश में उड़ने वाले पटाखा फोड़ते हैं

सार्वजनिक कार्यक्रम के लिए मैदान को भी नागौर क़िले के पास आरक्षित रखा गया है

पूर्वोत्तर में रहने वाले भी बनवासी हो या पश्चिम में स्थापित आधुनिक राजे रजवाड़े

सभी परंपराओं में दिए जलाने, पटाखे फोड़ने, आतिशबाज़ी करने करने की परंपरा लंबे समय से चली आ रही है


वैज्ञानिक:

सोनोग्राफी से शरीर के अंदर के चित्र बनाने से लेकर ध्वनि को एलेक्ट्रो मैग्नेटिक तरंगो में बदलाव कर वायरलेस तकनीक का उपयोग होता है. ध्वनि के विभिन्न प्रकार के तरंगो का उपयोग कई प्रकार के उपचारों में भी होता है

मंदिरो में लगा घंटा जिससे हमारे मस्तिष्क में उठर रही अनावशक तरंगों और उससे उत्पन्न विचारो को बदलने की शक्ति होती हैं.

इसी तरह पटाखों के तेज ध्वनि से हमारे मन मस्तिष्क में उठ रहे तरंगों और उससे उत्पन्न विचारों से विमारियों पर सकारात्मक परिणाम होता हैं.

 

मनोवैज्ञानिक:

हमारा मन सबसे जटिल तंत्र है उसकी कोई शस्त्रक्रिया नहीं कर सकता है. कई प्रकार से उसपर प्रभाव निर्माण करने और उसे परावर्तित करने, प्रेरणा देने के लिए हम ध्वनि तरंगो का उपयोग होता है

पटाखों के आवाज़ का भी परिणाम हमको स्वीकार करना चाहिए. विज्ञान भी इसको स्वीकार करता है. जो बच्चा पटाखों से डरता हो वह आत्मरक्षा में भी बंदूक़ नहीं चला सकता

किसी भी प्रकार का आवाज़ उसको कमजोर बनाएगा. ऐसे में वह बम फोड़ने वालों से कैसे बचेगा ? साथ ही यह भी मनोवैज्ञानिल दृष्टि से समजना आवश्यक हैं की जब अन्य देश प्रदेशों में पटाखे फूटते हो और बच्चे अपने घर पर नहीं फोड़ पाते हों तो उसे निराशा अनुभव होती हैं. जो उसके विकास भे अधूरापन की अनुभूति के रूप में सदैव रहती हैं.

 

आर्थिक

हिन्दुस्थान में यह उद्योग अधिकृत तौर पर तीन हज़ार करोड़ का है. मझोले छोटे उद्योगों को जोड़कर यह  6 से सात हज़ार करोड़ रुपये तक का बनता है.


ये उद्योग हिन्दुस्थान में बंद होने से विदेशी कंपनियों को फ़ायदा होगा. चीनी कंपनियों को पटाखा उद्योग विरोधी माहौल बनाया जाता है.

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