07 June 2012

2 जी घोटाले की परत दर परत कहानी

अशोक रोड। संचार भवन। पहली मंजिल। दस जनवरी २००८। वक्त दोपहर पौने तीन बजे। संचार मंत्री एंदीमुथु राजा के निजी सहायक आरके चंदोलिया का दफ्तर। राजा के हुक्म से एक प्रेस रिलीज जारी होती है। २ जी स्पेक्ट्रम ३बजे ३० से४ बजे ३० के बीच जारी होगा। तुरंत हड़कंप मच गया। सिर्फ ४५ मिनट तो बाकी थे। वह एक आम दिन था। कुछ खास था तो सिर्फ ए राजा की इस भवन के दफ्तर में मौजूदगी। राजा यहां के अंधेरे और बेरौनक गलियारों से गुजरने की बजाए इलेक्ट्रॉनिक्स भवन के चमचमाते दफ्तर में बैठना ज्यादा पसंद करते थे। पर आज यहां विराजे थे। २जी स्पेक्ट्रम के लिए चार महीने से चक्कर लगा कंपनियों के लोग भी इन्हीं अंधेरे गलियारों में मंडराते देखे गए। लंच तक माहौल दूसरे सरकारी दफ्तरों की तरह सुस्त सा रहा। पौने तीन बजते ही तूफान सा आ गया। गलियारों में भागमभाग मच गई। मोबाइल फोनों पर होने वाली बातचीत चीख-पुकार में तब्दील हो गई। वे चंदोलिया के दफ्तर से मिली अपडेट अपने आकाओं को दे रहे थे। साढ़े तीन बजे तक सारी खानापूर्ति पूरी की जानी थी। उसके एक घंटे में अरबों-खरबों रुपए के मुनाफे की लॉटरी लगने वाली थी। जनवरी की सर्दी में कंपनी वालों के माथे से पसीना चू रहा था। मोबाइल पर बात करते हुए आवाज कांप रही थी। सबकी कोशिश सबसे पहले आने की ही थी। लाइसेंस के लिए कतार का कायदा फीस जमा करने के आधार पर तय होना था। फीस भी कितनी- सिर्फ १६५८ करोड रुपए का बैंक ड्राफ्ट। साथ में बैंक गारंटी, वायरलेस सर्विस ऑपरेटर के लिए आवेदन गृह मंत्रालय का सिक्यूरिटी क्लीरेंस वाणिज्य मंत्रालय के फॉरेन इंवेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड (एफआईपीबी का अनुमति पत्र । ऐसे करीब एक दर्जन दस्तावेज जमा करना भी जरूरी था। वक्त सिर्फ ४५ मिनट।

परदे के आगे की कहानी
२५ सितंबर २००७ तक स्पेक्ट्रम के लिए आवेदन करने वाली कंपनियों में से जिन्हें हर प्रकार से योग्य माना गया उन कंपनियों के अफसरों को आठवीं मंजिल तक जाना था। डिप्टी डायरेक्टर जनरल (एक्सेस सर्विसेज आर के श्रीवास्तव के दफ्तर में। यहीं मिलने थे लेटर ऑफ इंटेट। फिर दूसरी मंजिल के कमेटी रूम में बैठे टेलीकॉम एकाउंट सर्विस के अफसरों के सामने हाजिरी। यहां दाखिल होने थे १६५८ करोड़ रुपए के ड्राफ्ट के साथ सभी जरूरी कागजात। यहां अफसर स्टॉप वॉच लेकर बैठे थे ताकि कागजात जमा होने का समय सेकंडों में दर्ज किया जाए। किसी के लिए भी एक-एक सेकंड इतना कीमती इससे पहले कभी नहीं था। सबकी घडि यों में कांटे आगे सरक रहे थे। बेचौनी, बदहवासी और अफरातफरी बढ गई थी। चतुर और पहले से तैयार कंपनियों के तजुर्बेकार अफसरों ने इस सखत इम्तहान में अव्वल आने के लिए तरकश से तीर निकाले। अपनी कागजी खानापूर्ति वक्त पर पूरी करने के साथ प्रतिस्पर्धी कंपनियों के लोगों को अटकाना-उलझाना जरूरी था। अचानक संचार भवन में कुछ लोग नमूदार हुए। ये कुछ कंपनियों के ताकतवर सहायक थे। दिखने में दबंग। हट्टे-कट्टे। कुछ भी कर गुजरने को तैयार। इनके आते ही माहौल गरमा गया। इन्हें अपना काम मालूम था। अपने बॉस का रास्ता साफ रखना, दूसरों को रोकना। लिफ्ट में पहले कौन दाखिल हो, इस पर झगड़े शुरू हो गए। धक्का-मुक्की होने लगी। सबको वक्त पर सही टेबल पर पहुंचने की जल्दी थी। पूर्व टेलीकॉम मंत्री सुखराम की विशेष कृपा के पात्र रहे हिमाचल फ्यूचरस्टिक कंपनी (एचएफसीएल के मालिक महेंद्र नाहटा की तो पिटाई तक हो गई। उन्हें कतार से निकाल कर संचार भवन के बाहर धकिया दिया गया। दबंगों के इस डायरेक्ट-एक्शन की चपेट में कई अफसर तक आ गए। किसी के साथ हाथापाई हुई, किसी के कपड़े फटते-फटते बचे। आला अफसरों ने हथियार डाल दिए। फौरन पुलिस बुलाई गई। घडी की सुइयां तेजी से सरक रही थीं। हालात काबू में आते-आते वक्त पूरा हो गया। जो कंपनियां साम दाम दंड भेद के इस खेल में चंद मिनट या सेकंडों से पीछे रह गईं, उनके नुमांइदे अदालत जाने की घुड कियां देते निकले। लुटे-पिटे अंदाज में। एक कंपनी के प्रतिनिधि ने आत्महत्या कर लेने की धमकी दी। कई अन्य कंपनियों के लोग वहीं धरने पर बैठ गए। पुलिस को बल प्रयोग कर उन्हें हटाना पड़ा । आवेदन करने वाली ४६ में से केवल नौ कंपनियां ही पौन घंटे के इस गलाकाट इम्तहान में कामयाब रहीं। इनमें यूनिटेक स्वॉन डाटाकॉम एसटेल और शिपिंग स्टॉप डॉट काम नई कंपनियां थीं जबकि आइडिया टाटा श्याम टेलीलिंक और स्पाइस बाजार में पहले से डटी थीं। एचएफसीएल,पार्श्वनाथ बिल्डर्स और चीता कारपोरेट सर्विसेज के आवेदन खारिज हो गए। बाईसेल के बाकी कागज पूरे थे सिर्फ गृहमंत्रालय से सुरक्षा जांच का प्रमाणपत्र नदारद था। सेलीन इंफ्रास्ट्रक्चर के आवेदन के साथ एफआईपीबी का क्लियरेंस नहीं था। बाईसेल के अफसर छाती पीटते रहे कि प्रतिद्वंद्वियों ने उनके खिलाफ झूठे केस बनाकर गृह मंत्रालय का प्रमाणपत्र रुकवा दिया। उस दिन संचार भवन में केवल लूटमार का नजारा था। पौन घंटे का यह एपीसोड कई दिनों तक चर्चा का विषय बना रहा


परदे के पीछे की कहानी
इसी दिन। सुबह नौ बजे। संचार मंत्री ए राजा का सरकारी निवास। कुछ लोग नाश्ते के लिए बुलाए गए थे। इनमें टेलीकॉम सेक्रेट्री सिद्धार्थ बेहुरा डीडीजी (एक्सेस सर्विसेज आर के श्रीवास्तव, मंत्री के निजी सहायक आर. के. चंदोलिया वायरलेस सेल के चीफ अशोक चंद्रा और वायरलेस प्लानिंग एडवाइजर पी के गर्ग थे। कोहरे से भरी उस सर्द सुबह गरमागरम चाय और नाश्ते का लुत्फ लेते हुए राजा ने अपने इन अफसरों को अलर्ट किया। राजा आज के दिन की अहमियत बता रहे थे। खासतौर से दोपहर २बजे ४५ से ४बजे ३० बजे के बीच की। राजा ने बारीकी से समझाया कि कब क्या करना है और किसके हिस्से में क्या काम है चाय की आखिरी चुस्की के साथ राजा ने बेफिक्र होकर कहा कि मुझे आप लोगों पर पूरा भरोसा है। अफसर खुश होकर बंगले से बाहर निकले और रवाना हो गए। दोपहर तीन बजे। संचार भवन। आठवीं मंजिल। एक्सेस सर्विसेज का दफ्तर। फोन की घंटी बजी। दूसरी तरफ डीडीजी (एक्सेस सर्विसेज आर के श्रीवास्तव थे। यहां मौजूद अफसरों को चंदोलिया के कमरे में तलब किया गया। मंत्री के ऑफिस के ठीक सामने चंदोलिया का कक्ष है। एक्शन प्लान के मुताबिक सब यहां इकट्ठे हुए। इनका सामना स्वॉन टेलीकॉम और यूनिटेक के आला अफसरों से हुआ। चंदोलिया ने आदेश दिया कि इन साहेबान से ड्राफ्ट और बाकी कागजात लेकर शीर्ष वरीयता प्रदान करो। बिना देर किए स्वॉन को पहला नंबर मिला, यूनिटेक को दूसरा। सबकुछ इत्मीनान से। यहां कोई धक्कामुक्की और अफरातफरी नहीं मची। बाहर दूसरी कंपनियों को साढ़े तीन बजे तक जरूरी औपचारिकताएं पूरी करने में पसीना आ रहा था। अंदर स्वॉन और यूनिटेक को पंद्रह मिनट भी नहीं लगे। इन कंपनियों को पहले ही मालूम था कि करना क्या है। इसलिए इनके अफसर चंदोलिया के दफ्तर से प्रसन्नचित्त होकर विजयी भाव से मोबाइल कान से लगाए बाहर निकले। दूर कहीं किसी को गुड न्यूज देते हुए। ४५ मिनट के तेज रफ्तार घटनाक्रम ने एक लाख ७६ हजार करोड रुपए के घोटाले की कहानी लिख दी थी। राजा के लिए बेहद अहम यह दिन सरकारी खजाने पर बहुत भारी पड़ा था।



एक महिला ९ फोन लाइनें ३०० दिन ५८५१ कॉल्स


फोन कॉल्स में दर्ज फरेब
२जी स्पेक्ट्रम घोटाले की मुखय किरदार नीरा राडिया के नौ टेलीफोन ३०० दिन तक आयकर विभाग ने टैप किए। कुल ५बजे ८५१ कॉल्स रिकार्ड की गईं। इनमें से सौ का रिकॉर्ड लीक हो चुका है। अपने पाठकों के लिए भास्कर प्रस्तुत कर रहा है - टेप हुई गोपनीय बातचीत के मुख्य अंश। साथ में इससे जुड़े संपादकों और किरदारों की सफाई भी। ताकि पता चले कि दुनिया को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले खुद क्या कर रहे हैं।


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