आज के बदलते इस आधुनिक माहौल में देद्गा के अंदर लोगो का राच्च्ट्र सेवा के प्रति रूख भी बदल गया है। अगर पिछले पांच साल की बात करे तो देश के अंदर ४६,००० जवानों ने अर्घ्द्धसैनिक बलों से अवकाश-लेकर अपनी सेवाएं वापस ले लिए है। देद्गा के अंदर सेना में लगातार आत्महत्यों में बढ़ोतरी हुई हैं। इसका प्रमुख कारण लोगो में सेना के प्रति सकरातमक सोच का न होना भी है। सैनिकों और सैन्य-बलों की उपेक्षा इसी का परिणाम है। देद्गा के अंदर जो शिक्षा बेवस्था सरकार के द्वारा चलायी जा रही है, उसमें किसी प्रकार के कोई देद्गा प्रेम नजर नही आती है। इसका प्रमुख कारण आज के सरकार की सत्ता प्रेम की राजनीति भी शामिल है। अगर संसद पर हमला करने वाले को सजा सुनाई जाती है, तो पढ़े लिखे लोगो की एक बड़ी संखया तरफदारी करने के लिए खड़ी हो जाती है। इसका सिधा असर देद्गाभक्तो के उपर पड ता है। एक ओर जहा इस प्रकार के मामले में सरकार को कड़ी फैसला लेना चाहिए, जबकि यहा बिल्कुल उल्टा होता है। खुद सरकार वोट बैक की राजनीति करने लगती है। और फिर यही से सुरू होता है लोगो के मन में राच्च्ट्र प्रेम के भावना में कमी । सेना के अंदर आज योग्य उम्मीदवार न मिलने के कारण २७ प्रतिशत पद रिक्त पड़े हैं। भारत एक अरब जनसंखया वाला देश है। देद्गा में शिक्षित बेरोजगारों की संखया लाखों में है। फिर भी आज के युवा सेना में जाने से कतराता है। अगर लिपिक और चपरासी के दस-बीस पदों के लिए रिक्तिया आती है तो हजारों स्नातक आवेदन देते हैं, मगर सेना में अफसर बनने के लिए कोई भी आगे नही आना चाहता है। कुछ लोग अपने बच्चों को सैनिक स्कूलों में डर से नहीं भेजते। देश के शिक्षित वातावरण में आज देद्गा प्रेम का न होने के चलते सैनिकों का मनोबल गिरा है।
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