विश्व की सबसे बड़ी गौशाला श्री गोपाल गोवर्धन गौशाला पथमेड जहां लाखो की संखया में गायों का पालन पोच्चण हो रहा है। इस गौशाला के संस्थापक श्री दत्तद्गारणानन्द जी महाराज के निर्देद्गान में श्री ब्रज गो अभयारण्य का निर्माण किया जा रहा है। यह गौशाला राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित जड खोर में चलाया जा रहा है। इस गौशाला एकमात्र उद्देद्गय ब्रज के गायों का संरक्षण एवम् देख रेख करना और घर- घर में गो सेवा का सुरुआत करना है। इस गांव के लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं, मगर जब से यहां पर गौशाला की सुरुआत हुई है। यहां के लोगों में एक उम्मीद की आशा है। यह स्थान भगवान श्री कृच्च्ण की लीला भूमी है। एक समय था जब यहां पर करोड़ो की संखया में गौवंद्गा हुआ करता था। आज यहां पर मात्र २-३ लाख में सिमट कर रह गया है। यह गौशाला पहाड़ी इलाकों में स्थित है लिहाजा यहा पर प्रर्याप्त संखया में चारा की मौजूदगी बहुत ही कम रहती है खास कर मई-जून के महीनें में गौशाला के नज दीक ये पहाडि या गायों के लिए काफी उपयोगी भी हैं। इन पहाडि यों पर गायें चरने आती हैं और पूनः चारा लेने के बाद वापस गौशाला में लौट जाती है। गौशाला के अंदर अधिकतर गायें ऐसी हैं जो बिल्कुल दूध नहीं देती है। फिर भी इन गांयो को यहां पर रखा गया है ताकि गायों को समाप्त होने से बचाया जा सके। देद्गा के अंदर आज लगातार गायों की संखया घटती जा रही है। ऐसे में इसको बचाना बहुत ही आवद्गयक है। इसगौशाला में तरह तरह के गांय मौजूद है। मगर अधिकतर गांयें बिना दूध देने वाली ही हैं। इस गौशाला चारो तरफ से जालीदार लोहे के तार से घेराव किया गया है। ताकी जंगली जीवों से इनकी रक्षा की जा सके। गौशाला के आस पास बने ऊंची पहाडि यों के साथ साथ कांटेदार जंगल भी है। ऐसे में यहां पर गायों की सुरक्षा काफी अहम हो जाती है। इस गौद्गााला को संचालित होने के बाद से यहां के लोगों को रोजगार के साथ- साथ खेतों की उपज द्याक्ति में भी काफी ज्यादा वृद्धि हुई है। पहाड़ी इलाके में स्थित पथरीली भूमी आज हरे भरे फसलों से लहलहा रहे हैं। और इन सब का एक मात्र कारण यहा का गौशाला है। गोबर के इस्तेमाल से खेतों की प्राकृतिक उपज द्याक्ति बनी रहती है। साथ ही पैदावार भी काफी ज्यादा बढ जाती है। आज सबसे ज्यादा खराब स्थिती बछड की है। किसान ट्रैक्टर से खेती कर रहें हैं इसलिए बछडो के लिए खेतों में योगदान दिन प्रतिदिन बढ ते जा रहा है। जीव जंतु कल्याण बोर्ड के दिशा निर्दोशो अनुसार यह संस्थान कार्यशील है। इस संस्थान का प्रयास है की बैलों को पुनः खेती के कार्य में नियोजित किया जाय। साथ ही गोबर की खाद व गौमूत्र कीटनाद्गाक का बड़े स्तर पर उपयोग कर जैविक खेती द्धारा अन्न पैदा किया जा सके। इस गौशाला में लगातार गायों को लाया जा रहा है। इस समय यहां पर एक हजारो गायों को लाया जा चुका है। यहां पर कमजोर गायें एक महीनें के अंदर ही पुच्च्ट दिखाई देने लगती है। यहां पर गायों के लिए ३२ फिट चौड़े एवं ७०० फिट लंम्बे गो गृह का निर्माण हो चुका है। इतना ही नहीं यहां पर ११०० फिट लंम्बे एक और गो गृह का कार्य निर्माणाधीन है। इसके अलावा नंदीशाला भुसागोदाम संतनिवास के कार्य तेज गति से चल रहा है। इन सब के अलावा यहां पर गो संरक्षण के लिए हजारों मीटर में गो गृहों भूसा गोदाम तथा संत कुटियों का निर्माण कार्य आगे किया जा रहा है। इस गौद्गााला की स्थापना दिल्ली से महज १३५ किलोमीटर दूर ब्रज चौरासी के श्री कामां क्षेत्र में हो रही है। इस क्षेत्र में हज़ारों बीघा प्राकृति जंगल एवं पहाड मौजूद हैं। संतों महापुरुच्चों का मानना है कि यह वही क्षेत्र है जहां पर नंदबाबा तथा ठाकुर जी ने ग्वाल वालों के साथ गो सेवा किया था। गौ माता के लिए भूमिदान अक्षय दान के समान माना जाता है। वेद द्याास्त्रों में इसको अक्षय पुण्य कहा जाता है। जो कभी पूरा न हो नच्च्ट न हो। पृथ्वी तात्विक रुप से अबिनाशी । इसी लिए यह नच्च्ट नहीं होती है। मुगल काल में गो हत्या पूरी तरह से बंद हो गया था। यह भारतीय इतिहास के लिए एक स्वर्णर्निम लम्हा था। जिसे पूरा देद्गा ने स्वागत किया। मगर मुगल शासन के समाप्त होने के बाद से अंग्रेजों ने साम्प्रदायिक माहौल बिगाड नें के लिए देद्गा में कई जगहो पर कत्लखाने का निर्माण करवाया। यह भारतीय संस्कृति के लिए एक काला अध्याय था। जिसे एक सुर में पूरा देद्गा ने विरोध किया। मगर अंग्रेजो के तानाशाही और फुट डालो शासन करो की निती ने गौ हत्या प्रतिबंध आन्दोलन को कमजोर बना दिया। अंग्रेजो के अडि यल रूख और तोपों के परवाह किए बिना लोग अपनी मांगो को लेकर अवाज उठाते रहे । भले ही आज देद्गा में कुछ राज्यों ने कानून बना कर इसे रोकने का भर सक प्रयास किया हो मगर आज भी देद्गा हमारे देद्गा में गायों की संखया घटती जा रही हैं। यह एक चिंता विषय का है । जिस प्रकार से सेभ टाईगर का अभियान चलाकर बाघों को बचाने के लिए अभियान चलाया गया उसी तरह से सेव काउ के नाम से अभियान चलाने की मांगे उठने लगी हैं। साथ ही आज व्यापक स्तर पर गाय बचाने की अभियान चलना चाहिए। ताकी लगातार घटती हुई गांयों की संखया पर रोक लग सके। गायों को बचाने के लिए आज हर स्तर पर प्रयास सुरू हो चुका हैं, चाहे आम हो या खास इसके लिए जगह- जगह सभाए हो रही हैं। ताकी गौ वंद्गा को बचाया जा सके। राजस्थान, से भरतपूर नगर के भाजपा विधायक अनिता सिंह लगातार गायों को बचाने के लिए प्रयास कर रही है। अनिता जी गौ पूजन को अपना धर्म समझती हैं। गौशाला के निर्माण में इनका हर तरह से सर्मथन प्राप्त हैं। अनिता जी बताती है की यह स्थान वृज का क्षेत्र है लोगो को आज गाय की महत्व को समझने की जरूरत है । यह गौशाला पहाड़ी इलाके में स्थित है जहा पर आने जाने की समस्या है। मगर अनिता जी जल्द ही इस गौशाला तक पहुंचने के लिए सड को का निर्माण करवाने जा रही है ताकी ज्यादा से ज्यादा गायों को यहा पर लाया जा सके। गाय को पुराणो में काफी महत्व दिया गया है । गाय माता प्रत्यक्ष देव है । शास्त्रों में गाय के गोबर में महालक्ष्मी का निवास बताया गया है। गौमूत्र में भागीरथी गंगा का निवास बताया गया है । गाय माता जहा पर द्यवांस लेती है उस स्थान की सोभा में वृध्दि होती है । और वहा पे किया हुआ सारा पाप उतर जाता है । आज महानगरो की बात करे तो वहा पर ऐसी वेवस्था बन गई है की कोई चाह कर भी गाय नही रख सकता। बहुमंजिले इमारतो में सुख सुविधाओ की हर छोटी बड़ी बात का ध्यान रखा जाता है। कार के लिए अलग से गैरेज का निर्माण किया जाता हैं, मगर गाय को आज लोगो के घरो में रखने के लिए एक छोटे से स्थान नही है । रिहाईशी इलाको में गाय पालना प्रतिबंधित है। यह अपने आप में एक दुरर्भाग्य की बात है। गाय जीवन यापन के लिए सबसे बड़ी जरूरत है। साथ ही हिंदू धर्म में इसे मां का दर्जा दिया गया है । का गौद्का खुलना अति आवद्गयक हैं। गौशाला खुलने के बाद से यहा पर लोगो को एक रोजगार का साधन भी मिला है। इसे लेकर लोगो में काफी उत्साह है। यह गौशाला बहुत ही पिछड़े और पहाड़ी इलाके में स्थित है। गौशाला उची उची पहाड़ी के चोटियों से घिरा हुआ है। कुछ दिन पहले यह इलाका घने जंगलों से घिरा हुआ था, मगर अब यहां पर लोगों ने अपना जीवन यापन शुरू कर दिया है। इलाके की जमीन काफी ज्यादा उपजाऊ बन गई तथा यहां पर तरह-तरह के निर्माण कार्य किए जा रहे है। प्राकृतिक सुन्दरता और स्वच्छ वातावरण के कारण लोग यहां पर एकांतवास जीवन यापन करने के लिए अपना आशियाना भी बनाने लगे हैं। भरतपुर का यह इलाका बहुत ही सुंदर और दर्द्गान योग्य भी है। सुबह का सुर्योदय यहां की पहाडि यों से देखने का एक अलग ही अंदाज है। नारंगी के आकार में उगता हुआ सुरज ऐसा प्रतीत होता है मानो ये पहाडि यां इसे अपनी गोद में लेने के लिए लालायित हो। इन सभी प्राकृतिक सौंदर्य के बीच यहां के खेतों में लगी हुई फसल भी यहां के उगते हुए सूरज का स्वागत करने के लिए अपने पत्तो को फैला देती है। तो वहीं दूसरी ओर यहां के घने जंगलों में पंछी अपने कलरव और मिठे कोलाहल से मनमोह लेती है। इन सबके बीच यहां के किसान कुदाल उठाकर खेतों में चल देते है तो गौ सेवक गायो के सेवा में लग जाते है। यह पूरा प्राकृतिक घटनाक्रम एक जीवंत तस्वीर प्रस्तुत करता है। और यहां आने वाले शिलानियो का भी मनमोह लेता है।
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