जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर भारत सरकार द्वारा बनाई गई वार्ताकार समिति कि रिपोर्ट विवादो के घेरे में है। रिपोर्ट के अंदर कई ऐसे सुझाव दिए गए है जो जम्मू काद्गमीर को भारत से अलग करती है। रिपोर्ट के अंदर जो बाते कही गई है उसमें प्रमुख रूप से १९५२ के बाद से वहाँ लागू केंद्रीय कानूनों और भारतीय संविधान के अनुच्छेद जैसे मुद्दे द्यामिल है। रिपोर्ट में कहा गया हैं कि ये कानून और अनुच्छेद राज्य के विशेष दर्जे को क्षति पहुचाती है। इन सब के अलावे जो सबसे प्रमुख कानून की धारा ३७० है उसे राज्य में लागू रखने की बात कही गई है। जबकी इसे हटाने की मांग पिछले कई बर्च्चो से हो रही है। साथ ही धारा ३७० के लिए इस्तेमाल किए गए टेंम्पोरेरी द्याब्द को हटा कर इसे स्पेद्गाल द्याब्द में बदलने की बात कही गई है। इन द्याब्दों के पिछे भी कानूनी साजिद्गा है क्योकी अगर टेंम्पोरेरी द्याब्द को स्पेद्गाल में बदल दिया जाएगा तो इसे भारत के राच्च्ट्र नही हटा पाएगा इसे हटाने के लिए संसद के दोनो सदनो से दो तिहाई बहुमत से पास कर ही हटाया जा सकता है। तीन सदस्यों की वार्ताकार समिति ने लगभग १७९ पन्नों की अपनी रिपोर्ट सौपी है। ये वार्ताकार हैं राधा कुमार ,एम एम अंसारी और दिलीप पडगाओंकर । वार्ताकारों ने ये भी सिफारिश की है कि संवैधानिक जांच समिति की रिपोर्ट छह माह के भीतर सौंपी जाए और ये सभी पक्षों को मान्य हो। तो सवाल यहा भी खड़ा होता है की ऐसे कौन से आपात स्थिति आ गई की इसे छह महिने के अंदर लागू करने और सभी पक्षों को मान्य करने की वकालत की गई है। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है की संसद राज्य के लिए किसी भी तरह का कानून न बनाए जब तक कि वो देश के आंतरिक और बाहरी सुरक्षा और उसके आर्थिक सरोकारों के लिए जरूरी न हो। यानी की संसद को भी राज्य के लिए कानून नही बनाने के लिए बाध्य किया जा रहा है। शिक्षाविद राधा कुमार, एमएम अंसारी और पत्रकार दिलीप पडगाओंकर की इस समिति का गठन अक्तुबर २०१० में किया गया था। इसने प्रदेश के जम्मू, कश्मीर और लद्दाख - तीनों क्षेत्रों में ७०० प्रतिनिधियों से मुलाकात की और तीन गोलमेज सम्मेलन किए। रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य के तीनों इलाकों के लिए क्षेत्रीय काउंसिलों का गठन किया जाना चाहिए और इन तीनों क्षेत्रों को कानूनी, कार्यकारिणी और वित्तीय मामले में भी कुछ अधिकार हासिल होने चाहिंए। साथ ही ये भी कहा गया है कि राज्य की आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया जाए, नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा के आरपार लोगों और सामान की आवाजाही जल्द सुनिश्चित की जाए। साथ ही जम्मू-कश्मीर के पाकिस्तान अधिकृत हिस्सों में लोकतांत्रिक व्यवस्था को कायम किया जाए। अगर इन सब से उपर उठ कर रिपोर्ट के गहराइयो को टटोले तो ये अपने आप में आपको चौकाने वाला जरूर नजर आएगा, क्योकी यहा पर राज्यपाल की नियूक्ति राज्य सरकार के द्वरा सुझाए गए नाम के अनुसार करने, धारा ३७६, जो की राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में आता हैं इसके अलावे धारा ३१२ जारी रखने, राट्रपति के अधिकार में कटौती करने और केंन्द्र सरकार के दखल को कम करने, जैसे बाते शामिल है। मतलब साफ है की ये रिपार्ट जम्मू काद्गमीर को भारत से जोड ने के बजाय तोड ने वाली लग रही है। या कह सकते है की दुराग्रह से ग्रसित है जो जम्मू- काद्गमीर को शांति के रास्ते पर लाने के बजाय आग में घी डालने जैसा है।
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