08 June 2012

गरीब को जीने के लिए 32 रुपया और बाबु के लिए 35 लाख !

जब बात गरीबी को परिभाच्चित करने की आती है तो योजना आयोग २८ रूपए में ही उन्हें सिमटा देता है लेकिन वहीं दूसरी तरफ बात जब खुद योजना आयोग की आती है तो उनके दो शौचालयों के निर्माण में ३५ लाख रूपये खर्च किये जाते है। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है की आखिर इस देद्गा में आम आदमी का मतलब होता क्या हैं। क्या इस देद्गा का गरिब सिर्फ संखया मात्र के लिए है जो अपने वजूद को बचाने के लिए दिन रात मेहनत करता है। आयोग के अंदर बैठने वाले लोगो को न गर्मी का अहसास होता है न ठंढ का सितम तो ऐसे में भला ये लोग एक आम आदमी के दर्द को भला कैसे समझ सकते है। यहा गौर करने वाली बात ये है की खुद प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह योजना आयोग के अध्यक्ष है। एक ओर जहा देद्गा में लोग गरिबी से भुखे पेट सो जाते है उस देद्गा में एक खास समुदाय के लिए ऐसे चकाचौध की रोद्गानी वाली ये शौचालयों के देखने के बाद से आम आदमी के अंदर आक्रोद्गा का द्यौलाब दीखे तो सरकार को तिलमीलाना नही चाहिए। योजना आयोग के शौचालयों को इन्दिरा गांधी हवाई अड्‌डे जैसा बनाया गया है। शौचालयों की मरम्मत के नाम पर ३० लाख रूपये खर्च किए गए। इसके अलावा शौचालयों में ५ लाख १९ हजार रूपये केवल डोर एक्सेस कट्रोल सिस्टम लगाने के लिए खर्च किए गए। इस जानकारी का खुलासा आरटीआई के तहत हुआ है। इन शौचालयों का इस्तेमाल वही लोग कर सकते है जिनके पास स्मार्ट कार्ड हो। योजना आयोग के अधिकारियों को इन शौचालयों के इस्तेमाल के लिए सिर्फ ६० कार्ड जारी किए गए है। योजना आयोग की फिजुलखर्ची का ये पहला मामला नहीं है। इससे पहले योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोटेंक सिंह अहलूवालिया ने २०११ के मई और अकतुबर के बीच विदेद्गा यात्रा पर रोजाना दो लाख दो हजार रूपये खर्च किए जो उस समय काफी विवादित रहा था। मोंटेंक सिंह अहलूवालिया ने २७४ दिनों की यात्राओं पर दो करोड चौतीस लाख रूपये खर्च किए।

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