संकीर्ण दृष्टिकोण से उत्पन्न स्थिति के चलते आज देद्गा में सत्ता की छीना-झपटी, नागरिक समुदाय में राष्ट्र प्रेम की भावना का गिरता स्तर, व भय और घृणा का माहौल - ये हालात हर देशवासी को सोचने पर मजबूर कर देते हैं, कि हम आज कहाँ खड़े हैं और किस दिशा की ओर अग्रसर हैं ? राष्ट्रीय एकता का नारा आज हम भले ही बुलंद कर रहे है मगर देद्गा के अंदर लगातार रास्ट्रीयटा बढ ने के अलावे घट रहा है। लगातार देद्गा के अंदर कई सारे राच्च्ट्रीय संस्थाए काम कर कर रही है मगर आज वे अलग अलग मुद्दे को लेकर भटकाव की ओर बढ रहे है। कई सारे लोग देद्गा भर में अपने स्तर से मुहिम चला रहे है चाहे वह भ्रटाचार को लेकर हो या काले धन को लेकर हो या फिर नागरिक अधिकारो को लेकर हो । यहा बड़ा सवाल खड़ा होता है की क्या इन्हें एक साथ मिल कर काम नही करना चाहिए। अगर ये सभी लोग एक साथ मिल कर काम करते है तो कही न कही इसका एक ब्यापक स्तर पर इसका प्रभाव पडेगा । पर अफसोस कि देश की स्वतंत्रता के बाद हम सब राष्ट्रीय एकता के सबक को भूल बैठे है। जो कि हमारा पहला धर्म होना चाहिए था। एक अजीब स्थिती में आज देद्गा आ खड़ा हो गया है। कभी दुनिया को धर्म के मार्ग पर चलना सिखाने वाला राष्ट्र आज खुद धर्म के अर्थ से अलग होते जा रहा हैं। आज राट्रीयता के नाम पर पता नहीं कितनी संस्थाए काम कर रही हैं मगर कभी- कभी लाभ के मोह में ये संस्थाए अपनी ताकत खोती जा रही है। यही कारण हैं की देश के विशाल नागरिक समुदाय अलग अलग बटा हुआ है। राष्ट्रीय एकता के अभाव में ही अंग्रेजों ने अपने राज्यकाल में फूट डालो-राज्य करो की नीति से राट्रीयता के लिए काम करने वाले लोगो को आपस में लड़ाया लगता हैं हम सब देश के स्वतंत्र होने के बाद भी हमने इतिहास से सबक नहीं सीखा। राष्ट्रीय एकता के अभाव में हमारा देश उतनी प्रगति नहीं कर पा रहा है जितनी प्रगति की उम्मीद की राट्रीय सोच रखने वाले संस्थाए जिनका सोच एक हैं लक्ष्य एक है - फिर भी आज जनमत को जोड़ नही पा रहे है। आज हमारी भलाई एक हाने में है ना कि पृथक होने में और अपार जनसूह की शक्ति किसी एक धारा में लगा दिया जाये तो कोई भी कार्य असंभव नहीं रहता। अगर राष्ट्रीय एकता हो तो समाज टुकडो में नही बट पाएगा। और सरकार को भी राट्रीयता के लिए काम करने वाले लोगो के आगे झुकना पड़ेगा । राट्रीय संस्थाओ के आपसी मन मुटाव के चलते आज देद्गा में कोई बहुत बड़ा आंदोल खड़ा नही हो पा रहा है। अगर कोई कदम आगे बढावा है तो सरकार खुद दमनकारी नीती के तहद दबाने का प्रयास कर रही है। भारत के टुकड़े टुकड़े करने का पूरा षडयंत्र चल रहा है। और इसका सुत्रपात हो रहा है सिमापार और अमेरीकी के दबाव के चलते। चाहे आसाम हो या गुजरात, बंगाल हो या कश्मीर, राच्च्ट्रीय संस्थओ के जनाधार कमजोर होने के कारण छिन्न-भिन्न होते जा रहे है। राष्ट्र समृद्ध तभी संभव होगा, जब सारा राष्ट्रीय जनसमूह एक हो राष्ट्र के विकास के लिये प्रयत्नशील हो। राष्ट्रीय एकता जब हमारे लिये लक्ष्य न होकर हमारा धर्म हो जायेगा, यानि हमारी आदत बन जायेगा - तब ही हमारा देश गर्व से सर उठाकर जी सकेगा, उसका अपना अस्तित्व होगा। अगर हम समय रहते नहीं चेते तो इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा।
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