07 June 2012

हमले के बाद भी शान से दौड़ती मुंबई

कभी न रुकने-थकने वाला शहर मुंबई २६ नवंबर २००८ को थम गया था। मुंबईकरों ने ये सपने में भी नहीं सोचा था कि आतंकवादी इस तरह कहर कब मिलेगा मुंबईवासियों और देश को न्याय? १० हमलावरों ने मुंबई को खून से रंग दिया था हमलों में १६० से ज्यादा लोग मारे गए थे, कई घायल हुए थे। १० हमलावर कराची से नाव के रास्ते मुंबई में घुसे। रात के तकरीबन आठ बजे थे, जब ये हमलावर कोलाबा के पास कफ परेड के मछली बाजार पर उतरे, तो वहां से वे चार ग्रुपों में बंट गए और टैक्सी लेकर अपनी मंजिलो का रूख किया। कहते हैं कि इन लोगों की आपाधापी को देखकर कुछ मछुवारों को शक भी हुआ और उन्होंने पुलिस को जानकारी भी दी। लेकिन इलाके की पुलिस ने इस पर कोई खास तवज्जो नहीं दी और न ही आगे बड़े अधिकारियों या खुफिया बलों को जानकारी दी। १८७१ से मेहमानों की खातिरदारी कर रहे लियोपोल्ड कैफे की दीवारों में धंसी गोलियां हमले के निशान छोड गईं। १० बजकर ४० मिनट पर विले पारले इलाके में एक टैक्सी को बम से उड़ाने की खबर मिली जिसमें ड्राइवर और एक यात्री मारा गया, तो इससे पंद्रह बीस मिनट पहले बोरीबंदर में इसी तरह के धमाके में एक टैक्सी ड्राइवर और दो यात्रियों की जानें जा चुकी थीं। खासतौर से ताज होटेल की इमारत से निकलता धुंआ तो बाद में हमलों की पहचान बन गया। तीन दिन तक सुरक्षा बल आतंकवादियों से जूझते रहे, इस दौरान धमाके हुए, आग लगी, गोलियां चली और बंधकों को लेकर उम्मीद टूटती जुड ती रही और न सिर्फ भारत से सवा अरब लोगों की बल्कि दुनिया भर की नजरें ताज, ओबेरॉय और नरीमन हाउस टिकी रही लेकीन आज एक बार फिर से मुंबई अपनी उसी शान और रफतार से दौड रही हैं।

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