भारतीय पुरातत्घ्व सर्वेक्षण राष्ट्र की सांस्घ्कृतिक विरासतों के पुरातत्घ्व अनुसंधान तथा संरक्षण के लिए एक प्रमुख संगठन है । भारतीय पुरातत्घ्व सर्वेक्षण का प्रमुख कार्य राष्घ्ट्रीय महत्घ्व के प्राचीन स्घ्मारकों तथा पुरातत्घ्व स्घ्थलों और अवशेषों का रखरखाव करना है। लेकिन आज देद्गा के अंदर ऐसा लगता है की यह संगठन अपना उदेद्गय भूल गया है। प्राचीन स्घ्मारक तथा पुरातत्घ्व स्घ्थल और अवशेष अधिनियम, १९५८ के प्रावधानों के अनुसार यह देश में सभी पुरातत्घ्व गतिविधियों के उपर नजर रखता है। इस संगठन के पास मंडलों, संग्रहालयों, उत्घ्खनन शाखाओं, प्रागैतिहासिक शाखा, पुरालेख शाखाओं, विज्ञान शाखा, उद्यान शाखा, भवन सर्वेक्षण परियोजना, मंदिर सर्वेक्षण परियोजनाओं के माध्घ्यम से पुरातत्घ्व अनुसंधान परियोजनाओं के संचालन के लिए बड़ी संखघ्या में प्रशिक्षित पुरातत्घ्वविदों, संरक्षकों, पुरालेखविदों, वास्तुकारों तथा वैज्ञानिकों का कार्य दल है । मगर ये भी सिर्फ स्मारको के तरह चुप बैठे है। इस समय राष्घ्ट्रीय महत्घ्व के ३६५० से अधिक प्राचीन स्घ्मारक तथा पुरातत्घ्व स्घ्थल और अवशेष मौजूद हैं, मगर ये स्घ्मारक आज ऐसे हालातो से गुजर रहे है जैसे की कुड ेदान में किसी बस्तु को फेक दिया गया हो। ये स्मारक और अवद्गोस सिर्फ इतिहास के पन्नो में दब कर रह गये है। इनके लिए कोई उचित कदम सरकार की ओर से नही उठाया जा रहा है। इनमें प्रमुख रूप से मंदिर, मस्घ्जिद, मकबरे, चर्च, कब्रिस्घ्तान, किले, महल, सीढदार कुएं, शैलकृत गुफाएं तथा दीर्घकालिक वास्घ्तुकला तथा साथ ही प्राचीन टीले आदि शामिल हैं। इन स्घ्मारकों तथा स्घ्थलों का रखरखाव तथा परिरक्षण भारतीय पुरातत्घ्व सर्वेक्षण के विभिन्घ्न मंडलों द्वारा किया जाता है जो पूरे देश में फैले हुए हैं । मगर इन मंडलो के हालात भी आज प्राचिन स्मारको के तरह हो गया है।इन स्घ्मारकों के अनुसंधान तथा संरक्षण कार्यों को देखने के लिए इन मंडल कार्यालयो में फंड की कमी हैं। राष्घ्ट्रीय महत्घ्व के प्राचीन स्घ्मारकों तथा पुरातत्घ्व स्घ्थलों और अवशेषों के सुरक्षा के लिए सम्घ्पूर्ण देश को २४ मंडलों में बांटा गया है । इस संगठन के पास अपनी उत्घ्खनन शाखाओं, प्रागैतिहास शाखा, पुरालेख शाखाओं, विज्ञान शाखा, उद्यान शाखा, भवन सर्वेक्षण परियोजनाओं, मंन्दिर सर्वेक्षण विभाग होने के वावजूद भी ये संगठन आज देद्गा के धरोहरो को नही बचा पा रहे है। प्राचिन काल से ही जूनागढ़, गुजरात में ऐसे कई सारे साक्ष्घ्य मिला है, यह उन संरचनाओं पर किए गए थे जो तत्घ्कालीन समाज के लिए लाभकारी थे । फिर भी स्घ्मारकों को उनके महत्व के अनुरूप सुरक्षित नही किया जा सका। कला विध्घ्वंश को रोकने के लिए कानूनी जामा पहनाने के लिए आरम्घ्भ में दो प्रयास किए गए थे । दो विधान बनाए गए नामतरू बंगाल के रेगुलेशन ऑफ १८१० और मद्रास रेगुलेशन ऑफ १८१७ । फिर भी उन धरोहरो को आज तक को उचित स्थान नही मिल पाया ।अगर १९वीं शताब्घ्दी की बात करे तो जिन स्घ्मारकों और स्घ्थलों को नाम मात्र की धनराशि प्राप्घ्त हुई और जिन पर कम ध्घ्यान दिया गया उनमें ताजमहल, सिकन्घ्दरा घ्स्थित मकबरा, कुतुब मीनार, सांची तथा मथुरा थे । १८९८ में प्रस्घ्तुत प्रस्घ्ताव के आधार पर भारत में पुरातत्घ्वीय कार्य करने के लिए ५ मंडलों का गठन किया गया था । इन मंडलों से संरक्षण कार्य को ही करने की अपेक्षा की गई थी । मगर धरोहरो के बचाने के बजाय खुद इन मंडलो के अस्तित्व ही स्माप्त हो गया। बाद में प्राचीन स्घ्मारक तथा परिरक्षण अधिनियम, १९०४ इस प्रमुख उद्देश्घ्य से पारित किया गया कि धार्मिक कार्यों के लिए प्रयुक्घ्त स्घ्मारकों को छोड़कर ऐसे निजी स्घ्वामित्घ्व वाले प्राचीन भवनों का समुचित रख-रखाव और मरम्घ्मत सुनिश्घ्चित किया जा सके मगर ये भी पूर्ण रूप से प्रभावी नही है। भारत सरकार की यह नीति रही है कि प्राचीन स्घ्थलों से प्राप्घ्त किए गए छोटे और उन खंडहरों के निकट संपर्क में रखा जाए जिससे वे संबंधित है ताकि उनके स्घ्वाभाविक वातावरण में उनका अध्घ्ययन किया जा सके और स्घ्थानांतरित हो जाने के कारण उन पर से ध्घ्यान हट नहीं जाए। मगर यहा भी हालात जस के तस बना हुआ है। भारत के पास प्राचिन समय से निर्मित विरासत, पुरातत्घ्व स्घ्थलों तथा अवशेषों के रूप में असाधारण रूप से मूल्घ्यवान, विस्घ्तृत तथा विविध सांस्घ्कृतिक विरासत हैं । बड़ी संखघ्या में स्घ्मारक ही उत्घ्साहवर्धक हैं तथा ये सांस्कृतिक विचार तथा विकास दोनों के प्रतीक हैं । अब ऐसा प्रतीत होता है कि भारत की विरासत को स्घ्थापित करना इसके विद्यमान होने में शासित प्रक्रिया तथा किस तरह यह विरासत लोगों से संबंधित है, इसके अतीत के हमारे ज्ञान, समझ तथा शायद रुचि में कमी हुई है जो सांस्घ्कृतिक रूपों में औद्योगिक वृद्धि के युग में तेजी से बदल रही जीवन शैली में अपनी पारम्घ्परिक महत्घ्ता को खो रहे हैं । इसी प्रकार डाटाबेस के रूप में ऐसा कोई व्घ्यापक रिकार्ड नहीं है जहां इस प्रकार के पुरातात्घ्विक संसाधनों को निर्मित विरासतों, स्घ्थलों तथा अवद्गोसो के रूप में सुरक्षित किया जा सके। इसके परिणामस्घ्वरूप हमारे देश में सीमित, गैर-नवीकरणीय संसाधन भावी पीढियों के लिए कोई रिकार्ड रखे बिना तेजी से विलुप्घ्त हो रहे हैं । इस प्रकार के संसाधनों के उपयुक्घ्त सर्वेक्षण और सुरक्षा की तुरन्घ्त आवश्घ्यकता है ।
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