बांग्लादेश में पिछले
कई वर्षों से अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के खिलाफ लगातार हमले हो रहे हैं. वर्ष 1971
में बांग्लादेश के जन्म
होने के साथ ही हिंदू समुदाय के साथ मार-पीट, लूट, बलात्कार शुरू हो गई थी.
बांग्लादेश के जन्म होने के बाद 1974 में जनगणना हुई थी.
इसके मुताबिक देश में 1974 में 13.5 फीसदी हिंदू थे, लेकिन वर्ष 2011
में देश में महज 8.5 प्रतिशत हिंदू ही रह गए
थे. 2011
से 2021
तक इसमें करीब तीन
फीसदी की और गिरावट आ चुकी है. आज स्थिति यह है कि हिंदुओं की संख्या साल-दर-साल
लगातार घटती जा रही है.
इसके बाद से ऐसा कोई
साल नहीं जब अल्पसंख्यक समुदाय को हमले का सामना न करना पड़ा हो. पिछले नौ साल में
हिंदुओं पर 3600 से ज्यादा हमले हुए हैं. ये मानवाधिकार संगठनों का
आंकड़ा है. बांग्लादेश में 1990, 1995, 1999, 2002 में बड़े दंगे हुए थे.
इनमें हिंदुओं को ही निशाना बनाया गया था. अब तो बांग्लादेश में हिंदू मंदिरों में
तोड़फोड़ करना, हिंदुओं के घर जलाना, बच्चों और लड़कियों का
अपहरण,
दुष्कर्म जैसी वारदात
यहां आम हो गई हैं.
बांग्लादेश में हिंदुओं
के खिलाफ हिंसा की मुख्य वजह उनकी जमीन हड़पने की कोशिश है. बांग्लादेश के कई अख़बारों
और मीडिया संस्थानों ने भी इस तथ्य की ओर इशारा किया गया है. दरअसल, यहां के हिंसा के
पैटर्न में देखा गया है कि बहुसंख्यक आबादी गरीब हिंदुओं के घर जला देती है. घर
जलने से ये हिंदू परिवार पलायन करने को मजबूर होते हैं और जब वे पलायन कर जाते हैं
तो उनकी जमीन पर मुसलमान कब्जा कर लेते हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बांग्लादेश की पीएम शेख
हसीना से दिल्ली में मुलाकात की. इस दौरान भारत और बांग्लादेश के बीच कई अहम
समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. इसलिए अब हिन्दू समाज ये कह रहा है कि क्यों न बांग्लादेश में हिन्दुओं पर अत्याचारों
के अति के लिए बांग्लादेशी प्रधानमंत्री पर दबाव बनाया जाय ?
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