ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण बचपन में अपने पड़ोसियों के घर की हांडी तोड़कर उनमें से दूध, दहीं और माखन खाते थे.
माखन, दूध, दही आदि को गोपियां अपने घरों में रस्सी की मदद
से हांडी या मटकियों को काफी ऊंचाई पर लटका देती थीं.
लेकिन श्रीकृष्ण जी से वह नहीं बचता
था, वे बाल सखाओं की मदद से पिरामिड बनाकर माखन, दूध, दही आदि की मटकियों
तक पहुंच जाते थे.
श्रीकृष्ण जी की यही कला आगे चलकर दही हांडी उत्सव के रूप में प्रसिद्ध हुआ, इसलिए दही-हांडी उत्सव में हांडी यानि मटकी को फोड़ने की परंपरा सदियों से रही है.
गांव की महिलाएं इस तरह की आयोजन यशोदा मैया के साथ मिलकर करती थीं, दही-हांडी उत्सव भगवान श्री कृष्ण के बाल-स्वरुप की लीलाओं में से एक है.
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