SURAH 9, AAYAT 5
وَٱحْصُرُوهُمْ
وَٱقْعُدُوا۟ لَهُمْ كُلَّ مَرْصَدٍ فَإِن تَابُوا۟ وَأَقَامُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ
وَءَاتَوُا۟ ٱلزَّكَوٰةَ فَخَلُّوا۟ سَبِيلَهُمْ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
Faitha insalakha alashhuru alhurumu
faoqtuloo almushrikeena haythu wajadtumoohum wakhuthoohum waohsuroohum
waoqAAudoo lahum kulla marsadin fain taboo waaqamoo alssalata waatawoo
alzzakata fakhalloo sabeelahum inna Allaha ghafoorun raheemun
फिर जब हुरमत के चार महीने गुज़र जाएँ
तो मुशरिकों को जहाँ पाओ (बे ताम्मुल) कत्ल करो और उनको गिरफ्तार कर लो और उनको
कैद करो और हर घात की जगह में उनकी ताक में बैठो फिर अगर वह लोग (अब भी शिर्क से)
बाज़ आऎं और नमाज़ पढ़ने लगें और ज़कात दे तो उनकी राह छोड़ दो (उनसे ताअरूज़ न करो)
बेशक ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है
SURAH 9, AAYAAT 28
يَٰٓأَيُّهَا
ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ إِنَّمَا ٱلْمُشْرِكُونَ نَجَسٌ فَلَا يَقْرَبُوا۟
ٱلْمَسْجِدَ ٱلْحَرَامَ بَعْدَ عَامِهِمْ هَٰذَا وَإِنْ خِفْتُمْ عَيْلَةً
فَسَوْفَ يُغْنِيكُمُ ٱللَّهُ مِن فَضْلِهِۦٓ إِن شَآءَ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمٌ
حَكِيمٌ
Ya ayyuha allatheena amanoo innama
almushrikoona najasun fala yaqraboo almasjida alharama baAAda AAamihim hatha
wain khiftum AAaylatan fasawfa yughneekumu Allahu min fadlihi in shaa inna
Allaha AAaleemun hakeemun
ऐ ईमानदारों मुशरेकीन तो निरे नजिस हैं
तो अब वह उस साल के बाद मस्जिदुल हराम (ख़ाना ए काबा) के पास फिर न फटकने पाएँ और
अगर तुम (उनसे जुदा होने में) फक़रों फाक़ा से डरते हो तो अनकरीब ही ख़ुदा तुमको अगर
चाहेगा तो अपने फज़ल (करम) से ग़नीकर देगा बेशक ख़ुदा बड़ा वाक़िफकार हिकमत वाला है
SURAH 9, AAYAT 123
يَٰٓأَيُّهَا
ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ قَٰتِلُوا۟ ٱلَّذِينَ يَلُونَكُم مِّنَ ٱلْكُفَّارِ
وَلْيَجِدُوا۟ فِيكُمْ غِلْظَةً وَٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلْمُتَّقِينَ
Ya ayyuha allatheena amanoo qatiloo
allatheena yaloonakum mina alkuffari walyajidoo feekum ghilthatan waiAAlamoo
anna Allaha maAAa almuttaqeena
ऐ ईमानदारों कुफ्फार में से जो लोग
तुम्हारे आस पास के है उन से लड़ों और (इस तरह लड़ना) चाहिए कि वह लोग तुम में
करारापन महसूस करें और जान रखो कि बेशुबहा ख़ुदा परहेज़गारों के साथ है
SURAH 9, AAYAT 56
وَيَحْلِفُونَ
بِٱللَّهِ إِنَّهُمْ لَمِنكُمْ وَمَا هُم مِّنكُمْ وَلَٰكِنَّهُمْ قَوْمٌ
يَفْرَقُونَ
Wayahlifoona biAllahi innahum
laminkum wama hum minkum walakinnahum qawmun yafraqoona
और (मुसलमानों) ये लोग ख़ुदा की क़सम
खाएंगे फिर वह तुममें ही के हैं हालॉकि वह लोग तुममें के नहीं हैं मगर हैं ये लोग
बुज़दिल हैं
SURAH 9,AAYAT 58
وَمِنْهُم
مَّن يَلْمِزُكَ فِى ٱلصَّدَقَٰتِ فَإِنْ أُعْطُوا۟ مِنْهَا رَضُوا۟ وَإِن لَّمْ
يُعْطَوْا۟ مِنْهَآ إِذَا هُمْ يَسْخَطُونَ
Waminhum man yalmizuka fee
alssadaqati fain oAAtoo minha radoo wain lam yuAAtaw minha itha hum yaskhatoona
(ऐ रसूल) उनमें से कुछ तो ऐसे भी हैं जो
तुम्हें ख़ैरात (की तक़सीम) में (ख्वाह मा ख्वाह) इल्ज़ाम देते हैं फिर अगर उनमे से
कुछ (माक़ूल मिक़दार(हिस्सा)) दे दिया गया तो खुश हो गए और अगर उनकी मर्ज़ी के
मुवाफिक़ उसमें से उन्हें कुछ नहीं दिया गया तो बस फौरन ही बिगड़ बैठे
SURAH 9, AAYAT 111
إِنَّ ٱللَّهَ
ٱشْتَرَىٰ مِنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ أَنفُسَهُمْ وَأَمْوَٰلَهُم بِأَنَّ لَهُمُ
ٱلْجَنَّةَ يُقَٰتِلُونَ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ فَيَقْتُلُونَ وَيُقْتَلُونَ وَعْدًا
عَلَيْهِ حَقًّا فِى ٱلتَّوْرَىٰةِ وَٱلْإِنجِيلِ وَٱلْقُرْءَانِ وَمَنْ أَوْفَىٰ
بِعَهْدِهِۦ مِنَ ٱللَّهِ فَٱسْتَبْشِرُوا۟ بِبَيْعِكُمُ ٱلَّذِى بَايَعْتُم بِهِۦ
وَذَٰلِكَ هُوَ ٱلْفَوْزُ ٱلْعَظِيمُ
Inna Allaha ishtara mina almumineena
anfusahum waamwalahum bianna lahumu aljannata yuqatiloona fee sabeeli Allahi fayaqtuloona
wayuqtaloona waAAdan AAalayhi haqqan fee alttawrati waalinjeeli waalqurani
waman awfa biAAahdihi mina Allahi faistabshiroo bibayAAikumu allathee bayaAAtum
bihi wathalika huwa alfawzu alAAatheemu
इसमें तो शक़ ही नहीं कि ख़ुदा ने
मोमिनीन से उनकी जानें और उनके माल इस बात पर ख़रीद लिए हैं कि (उनकी क़ीमत) उनके
लिए बेहश्त है (इसी वजह से) ये लोग ख़ुदा की राह में लड़ते हैं तो (कुफ्फ़ार को)
मारते हैं और ख़ुद (भी) मारे जाते हैं (ये) पक्का वायदा है (जिसका पूरा करना) ख़ुदा
पर लाज़िम है और ऐसा पक्का है कि तौरैत और इन्जील और क़ुरान (सब) में (लिखा हुआ है)
और अपने एहद का पूरा करने वाला ख़ुदा से बढ़कर कौन है तुम तो अपनी ख़रीद फरोख्त से
जो तुमने ख़ुदा से की है खुशियाँ मनाओ यही तो बड़ी कामयाबी है
SURAH 9, AAYAT 23
يَٰٓأَيُّهَا
ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تَتَّخِذُوٓا۟ ءَابَآءَكُمْ وَإِخْوَٰنَكُمْ
أَوْلِيَآءَ إِنِ ٱسْتَحَبُّوا۟ ٱلْكُفْرَ عَلَى ٱلْإِيمَٰنِ وَمَن يَتَوَلَّهُم
مِّنكُمْ فَأُو۟لَٰٓئِكَ هُمُ ٱلظَّٰلِمُونَ
Ya ayyuha allatheena amanoo la
tattakhithoo abaakum waikhwanakum awliyaa ini istahabboo alkufra AAala aleemani
waman yatawallahum minkum faolaika humu alththalimoona
ऐ ईमानदारों अगर तुम्हारे माँ बाप और
तुम्हारे (बहन) भाई ईमान के मुक़ाबले कुफ़्र को तरजीह देते हो तो तुम उनको (अपना)
ख़ैर ख्वाह (हमदर्द) न समझो और तुममें जो शख़्स उनसे उलफ़त रखेगा तो यही लोग ज़ालिम
है
SURAH 9, AYAT 37
إِنَّمَا
ٱلنَّسِىٓءُ زِيَادَةٌ فِى ٱلْكُفْرِ يُضَلُّ بِهِ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟
يُحِلُّونَهُۥ عَامًا وَيُحَرِّمُونَهُۥ عَامًا لِّيُوَاطِـُٔوا۟ عِدَّةَ مَا
حَرَّمَ ٱللَّهُ فَيُحِلُّوا۟ مَا حَرَّمَ ٱللَّهُ زُيِّنَ لَهُمْ سُوٓءُ
أَعْمَٰلِهِمْ وَٱللَّهُ لَا يَهْدِى ٱلْقَوْمَ ٱلْكَٰفِرِينَ
Innama alnnaseeo ziyadatun fee
alkufri yudallu bihi allatheena kafaroo yuhilloonahu AAaman wayuharrimoonahu
AAaman liyuwatioo AAiddata ma harrama Allahu fayuhilloo ma harrama Allahu
zuyyina lahum sooo aAAmalihim waAllahu la yahdee alqawma alkafireena
महीनों का आगे पीछे कर देना भी कुफ़्र
ही की ज्यादती है कि उनकी बदौलत कुफ्फ़ार (और) बहक जाते हैं एक बरस तो उसी एक महीने
को हलाल समझ लेते हैं और (दूसरे) साल उसी महीने को हराम कहते हैं ताकि ख़ुदा ने जो
(चार महीने) हराम किए हैं उनकी गिनती ही पूरी कर लें और ख़ुदा की हराम की हुई चीज़
को हलाल कर लें उनकी बुरी (बुरी) कारस्तानियॉ उन्हें भली कर दिखाई गई हैं और खुदा
काफिर लोगो को मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता
SURAH 9, AAYAT 29
قَٰتِلُوا۟
ٱلَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِٱللَّهِ وَلَا بِٱلْيَوْمِ ٱلْءَاخِرِ وَلَا
يُحَرِّمُونَ مَا حَرَّمَ ٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥ وَلَا يَدِينُونَ دِينَ ٱلْحَقِّ
مِنَ ٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ ٱلْكِتَٰبَ حَتَّىٰ يُعْطُوا۟ ٱلْجِزْيَةَ عَن يَدٍ
وَهُمْ صَٰغِرُونَ
Qatiloo allatheena la yuminoona
biAllahi wala bialyawmi alakhiri wala yuharrimoona ma harrama Allahu
warasooluhu wala yadeenoona deena alhaqqi mina allatheena ootoo alkitaba hatta
yuAAtoo aljizyata AAan yadin wahum saghiroona
अहले किताब में से जो लोग न तो (दिल से) ख़ुदा ही पर ईमान रखते हैं और न रोज़े आख़िरत पर और न ख़ुदा और उसके रसूल की हराम की हुई चीज़ों को हराम समझते हैं और न सच्चे दीन ही को एख्तियार करते हैं उन लोगों से लड़े जाओ यहाँ तक कि वह लोग ज़लील होकर (अपने) हाथ से जज़िया दे
SURAH 9, AAYAT 14
قَٰتِلُوهُمْ
يُعَذِّبْهُمُ ٱللَّهُ بِأَيْدِيكُمْ وَيُخْزِهِمْ وَيَنصُرْكُمْ عَلَيْهِمْ
وَيَشْفِ صُدُورَ قَوْمٍ مُّؤْمِنِينَ
Qatiloohum yuAAaththibhumu Allahu
biaydeekum wayukhzihim wayansurkum AAalayhim wayashfi sudoora qawmin mumineena
इनसे (बेख़ौफ (ख़तर) लड़ो ख़ुदा तुम्हारे
हाथों उनकी सज़ा करेगा और उन्हें रूसवा करेगा और तुम्हें उन पर फतेह अता करेगा और
ईमानदार लोगों के कलेजे ठन्डे करेगा
SURAH 5, AAYAT 14
وَمِنَ
ٱلَّذِينَ قَالُوٓا۟ إِنَّا نَصَٰرَىٰٓ أَخَذْنَا مِيثَٰقَهُمْ فَنَسُوا۟ حَظًّا
مِّمَّا ذُكِّرُوا۟ بِهِۦ فَأَغْرَيْنَا بَيْنَهُمُ ٱلْعَدَاوَةَ وَٱلْبَغْضَآءَ
إِلَىٰ يَوْمِ ٱلْقِيَٰمَةِ وَسَوْفَ يُنَبِّئُهُمُ ٱللَّهُ بِمَا كَانُوا۟
يَصْنَعُونَ
Wamina allatheena qaloo inna nasara
akhathna meethaqahum fanasoo haththan mimma thukkiroo bihi faaghrayna baynahumu
alAAadawata waalbaghdaa ila yawmi alqiyamati wasawfa yunabbiohumu Allahu bima
kanoo yasnaAAoona
और जो लोग कहते हैं कि हम नसरानी हैं
उनसे (भी) हमने ईमान का एहद (व पैमान) लिया था मगर जब जिन जिन बातों की उन्हें
नसीहत की गयी थी उनमें से एक बड़ा हिस्सा (रिसालत) भुला बैठे तो हमने भी (उसकी सज़ा
में) क़यामत तक उनमें बाहम अदावत व दुशमनी की बुनियाद डाल दी और ख़ुदा उन्हें बहुत
जल्द (क़यामत के दिन) बता देगा कि वह क्या क्या करते थे
SURAH 5, AAYAT 51
يَٰٓأَيُّهَا
ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تَتَّخِذُوا۟ ٱلْيَهُودَ وَٱلنَّصَٰرَىٰٓ أَوْلِيَآءَ
بَعْضُهُمْ أَوْلِيَآءُ بَعْضٍ وَمَن يَتَوَلَّهُم مِّنكُمْ فَإِنَّهُۥ مِنْهُمْ
إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَهْدِى ٱلْقَوْمَ ٱلظَّٰلِمِينَ
Ya ayyuha allatheena amanoo la
tattakhithoo alyahooda waalnnasara awliyaa baAAduhum awliyao baAAdin waman
yatawallahum minkum fainnahu minhum inna Allaha la yahdee alqawma alththalimeena
ऐ ईमानदारों यहूदियों और नसरानियों को
अपना सरपरस्त न बनाओ (क्योंकि) ये लोग (तुम्हारे मुख़ालिफ़ हैं मगर) बाहम एक दूसरे
के दोस्त हैं और (याद रहे कि) तुममें से जिसने उनको अपना सरपरस्त बनाया पस फिर वह
भी उन्हीं लोगों में से हो गया बेशक ख़ुदा ज़ालिम लोगों को राहे रास्त पर नहीं लाता
SURAH 5, AAYAT 57
يَٰٓأَيُّهَا
ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تَتَّخِذُوا۟ ٱلْيَهُودَ وَٱلنَّصَٰرَىٰٓ أَوْلِيَآءَ
بَعْضُهُمْ أَوْلِيَآءُ بَعْضٍ وَمَن يَتَوَلَّهُم مِّنكُمْ فَإِنَّهُۥ مِنْهُمْ
إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَهْدِى ٱلْقَوْمَ ٱلظَّٰلِمِينَ
Ya ayyuha allatheena amanoo la
tattakhithoo alyahooda waalnnasara awliyaa baAAduhum awliyao baAAdin waman
yatawallahum minkum fainnahu minhum inna Allaha la yahdee alqawma
alththalimeena
ऐ ईमानदारों यहूदियों और नसरानियों को
अपना सरपरस्त न बनाओ (क्योंकि) ये लोग (तुम्हारे मुख़ालिफ़ हैं मगर) बाहम एक दूसरे
के दोस्त हैं और (याद रहे कि) तुममें से जिसने उनको अपना सरपरस्त बनाया पस फिर वह
भी उन्हीं लोगों में से हो गया बेशक ख़ुदा ज़ालिम लोगों को राहे रास्त पर नहीं लाता
SURAH 4, AAYAT 89 :-
Waddoo law takfuroona kama kafaroo
fatakoonoona sawaan fala tattakhithoo minhum awliyaa hatta yuhajiroo fee
sabeeli Allahi fain tawallaw fakhuthoohum waoqtuloohum haythu wajadtumoohum
wala tattakhithoo minhum waliyyan wala naseeran
उन लोगों की ख्वाहिश तो ये है कि जिस
तरह वह काफ़िर हो गए तुम भी काफ़िर हो जाओ ताकि तुम उनके बराबर हो जाओ पस जब तक वह
ख़ुदा की राह में हिजरत न करें तो उनमें से किसी को दोस्त न बनाओ फिर अगर वह उससे
भी मुंह मोड़ें तो उन्हें गिरफ्तार करो और जहॉ पाओ उनको क़त्ल करो और उनमें से किसी
को न अपना दोस्त बनाओ न मददगार
SURAH 4, AAYAT 101
وَإِذَا
ضَرَبْتُمْ فِى ٱلْأَرْضِ فَلَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ أَن تَقْصُرُوا۟ مِنَ
ٱلصَّلَوٰةِ إِنْ خِفْتُمْ أَن يَفْتِنَكُمُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓا۟ إِنَّ
ٱلْكَٰفِرِينَ كَانُوا۟ لَكُمْ عَدُوًّا مُّبِينًا
Waitha darabtum fee alardi falaysa
AAalaykum junahun an taqsuroo mina alssalati in khiftum an yaftinakumu
allatheena kafaroo inna alkafireena kanoo lakum AAaduwwan mubeenan
(मुसलमानों जब तुम रूए ज़मीन पर सफ़र करो)
और तुमको इस अम्र का ख़ौफ़ हो कि कुफ्फ़ार (असनाए नमाज़ में) तुमसे फ़साद करेंगे तो
उसमें तुम्हारे वास्ते कुछ मुज़ाएक़ा नहीं कि नमाज़ में कुछ कम कर दिया करो बेशक
कुफ्फ़ार तो तुम्हारे ख़ुल्लम ख़ुल्ला दुश्मन हैं
SURAH 33, AAYAT 61
مَّلْعُونِينَ
أَيْنَمَا ثُقِفُوٓا۟ أُخِذُوا۟ وَقُتِّلُوا۟ تَقْتِيلًا
MalAAooneena aynama thuqifoo okhithoo
waquttiloo taqteelan
लानत के मारे जहाँ कहीं हत्थे चढ़े पकड़े
गए और फिर बुरी तरह मार डाले गए
SURAH 21, AAYAT 98
نَّكُمْ وَمَا
تَعْبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ حَصَبُ جَهَنَّمَ أَنتُمْ لَهَا وَٰرِدُونَ
Innakum wama taAAbudoona min dooni
Allahi hasabu jahannama antum laha waridoona
(उस दिन किहा जाएगा कि ऐ कुफ्फ़ार) तुम
और जिस चीज़ की तुम खुदा के सिवा परसतिश करते थे यक़ीनन जहन्नुम की ईधन (जलावन)
होंगे (और) तुम सबको उसमें उतरना पड़ेगा
SURAH 32 , AAYAT 22
وَمَنْ
أَظْلَمُ مِمَّن ذُكِّرَ بِـَٔايَٰتِ رَبِّهِۦ ثُمَّ أَعْرَضَ عَنْهَآ إِنَّا
مِنَ ٱلْمُجْرِمِينَ مُنتَقِمُونَ
Waman athlamu mimman thukkira biayati
rabbihi thumma aAArada AAanha inna mina almujrimeena muntaqimoona
और जिस शख़्श को उसके परवरदिगार की
आयतें याद दिलायी जाएँ और वह उनसे मुँह फेर उससे बढ़कर और ज़ालिम कौन होगा हम
गुनाहगारों से इन्तक़ाम लेगें और ज़रुर लेंगे
SURAH 48, AAYAT 20
وَعَدَكُمُ
ٱللَّهُ مَغَانِمَ كَثِيرَةً تَأْخُذُونَهَا فَعَجَّلَ لَكُمْ هَٰذِهِۦ وَكَفَّ
أَيْدِىَ ٱلنَّاسِ عَنكُمْ وَلِتَكُونَ ءَايَةً لِّلْمُؤْمِنِينَ وَيَهْدِيَكُمْ
صِرَٰطًا مُّسْتَقِيمًا
WaAAadakumu Allahu maghanima
katheeratan takhuthoonaha faAAajjala lakum hathihi wakaffa aydiya alnnasi
AAankum walitakoona ayatan lilmumineena wayahdiyakum siratan mustaqeeman
ख़ुदा ने तुमसे बहुत सी ग़नीमतों का
वायदा फरमाया था कि तुम उन पर काबिज़ हो गए तो उसने तुम्हें ये (ख़ैबर की ग़नीमत)
जल्दी से दिलवा दीं और (हुबैदिया से) लोगों की दराज़ी को तुमसे रोक दिया और ग़रज़ ये
थी कि मोमिनीन के लिए (क़ुदरत) का नमूना हो और ख़ुदा तुमको सीधी राह पर ले चले
SURAH 8, AAYAT 69
فَكُلُوا۟
مِمَّا غَنِمْتُمْ حَلَٰلًا طَيِّبًا وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٌ
رَّحِيمٌ
Fakuloo mimma ghanimtum halalan
tayyiban waittaqoo Allaha inna Allaha ghafoorun raheemun
उसकी सज़ा में तुम पर बड़ा अज़ाब नाज़िल
होकर रहता तो (ख़ैर जो हुआ सो हुआ) अब तुमने जो माल ग़नीमत हासिल किया है उसे खाओ
(और तुम्हारे लिए) हलाल तय्यब है और ख़ुदा से डरते रहो बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला
मेहरबान है
SURAH 66, AAYAT 9
يَٰٓأَيُّهَا
ٱلنَّبِىُّ جَٰهِدِ ٱلْكُفَّارَ وَٱلْمُنَٰفِقِينَ وَٱغْلُظْ عَلَيْهِمْ
وَمَأْوَىٰهُمْ جَهَنَّمُ وَبِئْسَ ٱلْمَصِيرُ
Ya ayyuha alnnabiyyu jahidi alkuffara
waalmunafiqeena waoghluth AAalayhim wamawahum jahannamu wabisa almaseeru
ऐ रसूल काफ़िरों और मुनाफ़िकों से जेहाद
करो और उन पर सख्ती करो और उनका ठिकाना जहन्नुम है और वह क्या बुरा ठिकाना है
SURAH 41, AAYAT 27
فَلَنُذِيقَنَّ
ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ عَذَابًا شَدِيدًا وَلَنَجْزِيَنَّهُمْ أَسْوَأَ ٱلَّذِى
كَانُوا۟ يَعْمَلُونَ
Falanutheeqanna allatheena kafaroo
AAathaban shadeedan walanajziyannahum aswaa allathee kanoo yaAAmaloona
तो हम भी काफ़िरों को सख्त अज़ाब के मज़े
चखाएँगे और इनकी कारस्तानियों की बहुत बड़ी सज़ा ये दोज़ख़ है
SURAH 41, AAYAT 28
ذَٰلِكَ
جَزَآءُ أَعْدَآءِ ٱللَّهِ ٱلنَّارُ لَهُمْ فِيهَا دَارُ ٱلْخُلْدِ جَزَآءًۢ
بِمَا كَانُوا۟ بِـَٔايَٰتِنَا يَجْحَدُونَ
Thalika jazao aAAdai Allahi alnnaru
lahum feeha daru alkhuldi jazaan bima kanoo biayatina yajhadoona
ख़ुदा के दुशमनों का बदला है कि वह जो
हमरी आयतों से इन्कार करते थे उसकी सज़ा में उनके लिए उसमें हमेशा (रहने) का घर है,
SURAH 8, AAYAT 65
يَٰٓأَيُّهَا
ٱلنَّبِىُّ حَرِّضِ ٱلْمُؤْمِنِينَ عَلَى ٱلْقِتَالِ إِن يَكُن مِّنكُمْ عِشْرُونَ
صَٰبِرُونَ يَغْلِبُوا۟ مِا۟ئَتَيْنِ وَإِن يَكُن مِّنكُم مِّا۟ئَةٌ يَغْلِبُوٓا۟
أَلْفًا مِّنَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ بِأَنَّهُمْ قَوْمٌ لَّا يَفْقَهُونَ
Ya ayyuha alnnabiyyu harridi
almumineena AAala alqitali in yakun minkum AAishroona sabiroona yaghliboo
miatayni wain yakun minkum miatun yaghliboo alfan mina allatheena kafaroo
biannahum qawmun la yafqahoona
ऐ रसूल तुम मोमिनीन को जिहाद के वास्ते
आमादा करो (वह घबराए नहीं ख़ुदा उनसे वायदा करता है कि) अगर तुम लोगों में के साबित
क़दम रहने वाले बीस भी होगें तो वह दो सौ (काफिरों) पर ग़ालिब आ जायेगे और अगर तुम
लोगों में से साबित कदम रहने वालों सौ होगें तो हज़ार (काफिरों) पर ग़ालिब आ जाएँगें
इस सबब से कि ये लोग ना समझ हैं
SURAH 3, AAYAT 151
سَنُلْقِى فِى قُلُوبِ
ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ ٱلرُّعْبَ بِمَآ أَشْرَكُوا۟ بِٱللَّهِ مَا لَمْ يُنَزِّلْ
بِهِۦ سُلْطَٰنًا وَمَأْوَىٰهُمُ ٱلنَّارُ وَبِئْسَ مَثْوَى ٱلظَّٰلِمِينَ
Sanulqee fee quloobi allatheena
kafaroo alrruAAba bima ashrakoo biAllahi ma lam yunazzil bihi sultanan
wamawahumu alnnaru wabisa mathwa alththalimeena
(तुम घबराओ नहीं) हम अनक़रीब तुम्हारा
रोब काफ़िरों के दिलों में जमा देंगे इसलिए कि उन लोगों ने ख़ुदा का शरीक बनाया (भी
तो) इस चीज़ बुत को जिसे ख़ुदा ने किसी क़िस्म की हुकूमत नहीं दी और (आख़िरकार) उनका
ठिकाना दौज़ख़ है और ज़ालिमों का (भी क्या) बुरा ठिकाना है
SURAH 2, AAYAT 151
كَمَآ
أَرْسَلْنَا فِيكُمْ رَسُولًا مِّنكُمْ يَتْلُوا۟ عَلَيْكُمْ ءَايَٰتِنَا
وَيُزَكِّيكُمْ وَيُعَلِّمُكُمُ ٱلْكِتَٰبَ وَٱلْحِكْمَةَ وَيُعَلِّمُكُم مَّا
لَمْ تَكُونُوا۟ تَعْلَمُونَ
Kama arsalna feekum rasoolan minkum
yatloo AAalaykum ayatina wayuzakkeekum wayuAAallimukumu alkitaba waalhikmata
wayuAAallimukum ma lam takoonoo taAAlamoona
और तीसरा फायदा ये है ताकि तुम हिदायत पाओ मुसलमानों ये एहसान भी वैसा ही है जैसे हम ने तुम में तुम ही में का एक रसूल भेजा जो तुमको हमारी आयतें पढ़ कर सुनाए और तुम्हारे नफ्स को पाकीज़ा करे और तुम्हें किताब क़ुरान और अक्ल की बातें सिखाए और तुम को वह बातें बतांए जिन की तुम्हें पहले से खबर भी न थी
No comments:
Post a Comment