पश्चिम बंगाल में हिंसा रुकने का नाम
नहीं लेरहा है. चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद से लगातार हिंसा जारी है. बीते 7
दिनों से राज्य के विभिन्न इलाको में लोगों की हत्या लूट और मौत से चारो ओर कोहराम
मचा हुआ है. मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जारही है.
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल
में चुनाव के बाद हुई हिंसा के कारणों की पड़ताल करने और राज्य में जमीनी हालात का
जायजा लेने के लिए चार सदस्यीय दल का गठन किया है. अधिकारियों ने 6 मई को बताया कि मंत्रालय के एक
अतिरिक्त सचिव के नेतृत्व में दल पश्चिम बंगाल पहुंच चुका है और उसकी जाँच अभी
जारी है.
मंत्रालय ने राज्य सरकार को चेतावनी दी
थी कि यदि राज्य सरकार ऐसा करने में विफल होती है तो मामले को गंभीरता से लिया
जाएगा. राज्य के विभिन्न हिस्सों में चुनाव बाद हुई हिंसा अबतक कई लोगों की मौत हो
चुकी है.
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल ने भी ट्वीट कर कहा है की हिंसा को रोकने में क्या क्या कदम उठाए गए हैं इसके बारे में रिपोर्ट रिपोर्ट देने में गैर प्रतिक्रियात्मक और उपेक्षापूर्ण व्यवहार अपनाया गया है वो बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है. इसलिए चीफ सेक्रेटरी राज्य की कानून व्यवस्था पर विस्तारपूर्वक अपडेट दें. जिसमें DGP और कोलकाता CP द्वारा ACS को भेजी रिपोर्ट भी शामिल हैं. राज्यपाल खुद सपथग्रहण के दिन हीं ममता को राजधर्म का याद दिलाये थे.
राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी कहा है कि कई महिलाओं को बलात्कार की धमकियां मिल रही हैं तथा वे अपनी बच्चियों को राज्य के बाहर भेजना चाहती हैं क्योंकि पुलिस उनकी सुरक्षा के लिए प्रभावी कदम नहीं उठा रही है. आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने अपने बयान में कहा है कि पीड़िता डर की वजह से अपनी शिकायतें नहीं कह पा रही हैं.
पश्चिम बंगाल विधानसभा
चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की जीत के बाद राज्य में हिंसा की कई घटनाएं सामने आई
हैं. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी हिंसा को लेकर कड़ी आलोचना की है. संघ ने कहा
की बंगाल
हिंसा भारतीय संविधान में अंकित जन और लोकतंत्र की मूल भावना के भी विपरीत हैं.
ऐसे में ममता सरकार की चारों ओर से आलोचना होरही है. साथ ही केंद्र की भेजी गई रिपोर्ट के बाद केन्द्रीय गृह मंत्रालय क्या कुछ कदम उठाता है ये भी देखना होगा. इसलिए सुदर्शन न्यूज़ भी ये मांग करता है की तत्काल ममता सरकार को पद से हटाया जाय. ताकि बंगाल हिन्दू विहीन होने से बच सके.
01. ममता पर सीधी कार्रवाई करने के बजाय उसे संवैधानिक तरीके से समय दिया, परंतु उसने अपना कर्तव्य निभाना तो दूर, नरसंहार की रिपोर्ट तक नहीं दी क्या ममता सविधान से ऊपर है ?
02. क्या ममता से संवैधानिक मर्यादाओं की अपेक्षा करना हीं व्यर्थ था ? इससे इतर भी वह कुछ करेगी यह अपेक्षा ग़लत नहीं थी ?
03. अब सरकार ममता को कितना अधिक समय देना चाहती है, सरकार इतना समय क्यों लेरही है ? इस वक्त संवैधानिक मर्यादाओं का पालन ज़्यादा आवश्यक है या हिन्दुओं का नरसंहार रोकना ?
04. राज्यपाल महोदय को मुख्यमंत्री से ट्विटर पर सार्वजनिक संवाद करने की नौबत आना संवैधानिक मशीनरी का विफल होना नहीं है तो क्या है ?
05. राज्यपाल महोदय हीं लाचार और असहाहाय दिखें, तो अत्याचारियों का हौसला बुलंद नहीं होगा क्या ?
06. क्या सरकार विदेशी शक्तियों की प्रतिक्रिया से चिंतित है ? क्या वह कभी भी हिन्दुओं के पक्ष में आने वाली है या नहीं ?
07. देश का तथाकथित मीडिया 7 दिनों से चुप क्यों है ? उसे यह नरसंहार क्यों नहीं दिखता ?
08. न्याय में देरी भी अन्याय होता है. इस सिद्धांत से पीड़ितों पर अन्याय नहीं होरहा रहा है तो फिर क्या होरहा है ?
09. ऐसी स्थिति में अगर पीड़ित समाज या उसके संरक्षक अपने आत्म रक्षा में कुछ करे तो क्या इसे उसका आप अधिकार मानेंगे और अगर हां, तो फिर क्या कानून उसे संरक्षण प्रदान करेगा ?
10. संविधान कानून व्यवस्था के आधार पर केंद्र को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने का अधिकार देता है, राज्य में वर्तमान स्थिति उसी ओर इशारा कर रहा है, फिर भी अबतक अबतक राष्ट्रपति शासन क्यों नहीं लगाई गई ?
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