अनुपात में छात्रवृत्ति देने की घोषणा के आदेश को कोर्ट ने रद्द कर
दिया है. जस्टिस शाजी पी चाली ने अपनी और चीफ जस्टिस मणिकुमार की खंडपीठ के ओर से
बोलते हुए राज्य को अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों को समान रूप से
योग्यता-सह-साधन छात्रवृत्ति प्रदान करने का निर्देश दिया.
याचिका में आरोप लगाया गया था कि राज्य सरकार राज्य में अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों पर मुस्लिम समुदाय को अनुचित वरीयता दे रही है. केरल सरकार ने इस योजना की घोषणा 11 सदस्यीय समिति द्वारा प्रस्तुत प्रस्तावों के अनुसार की थी. समिति को केरल में जस्टिस राजिंदर सच्चर समिति की सिफारिशों को लागू करने का काम सौंपा गया था.
सच्चर समिति भारत में मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक स्थिति पर रिपोर्ट करने के लिए गठित एक उच्च स्तरीय समिति थी. योजना को फरवरी 2011 में लैटिन कैथोलिक और परिवर्तित ईसाई समुदायों के छात्रों तक बढ़ा दिया गया. 2015 में एक सरकारी आदेश के अनुसार, यह कहा गया था कि मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के बीच आरक्षण 80:20 (मुसलमानों के लिए 80%, लैटिन कैथोलिक ईसाइयों और अन्य समुदायों के लिए 20%) के अनुपात में होगा.
याचिका में कहा गया था कि राज्य सरकार की योजना 2006 में केंद्र सरकार द्वारा घोषित छात्रवृत्ति के विपरीत है, जहां अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों को योग्यता-सह-साधन के आधार पर भी छात्रवृत्ति प्रदान की जाती थी. याचिकाकर्ता ने जोर देकर कहा कि कहीं भी यह नहीं कहा गया कि किसी विशेष अल्पसंख्यक समुदाय को अन्य अल्पसंख्यक समुदायों पर तरजीह देकर छात्रवृत्ति प्रदान की गई थी.
याचिकाकर्ता ने भेदभाव को दूर करने और सभी अल्पसंख्यक समुदायों को समान रूप से छात्रवृत्ति वितरित करने की मांग की थी. वैकल्पिक प्रार्थना के रूप में, याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि छात्रवृत्ति प्रत्येक अल्पसंख्यक समुदाय की जनसंख्या के अनुपात के अनुसार वितरित की जाए. न्यायालय ने माना कि राज्य सरकार द्वारा समुदाय के कमजोर वर्गों को सुविधाएं प्रदान करने में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन जब अधिसूचित अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार करने की बात आती है, तो "उन्हें उनके साथ समान व्यवहार करना होगा".
फैसले में कहा गया है कि
सरकार को उनके साथ असमान व्यवहार करने का कोई अधिकार नहीं था. "लेकिन यहां एक
ऐसा मामला है, जहां राज्य के भीतर ईसाई अल्पसंख्यक
समुदाय के जनसंख्या अनुपात से उपलब्ध अधिकार को ध्यान में रखे बिना, राज्य मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय को 80% छात्रवृत्ति प्रदान कर रहा है, जो हमारे अनुसार, असंवैधानिक है. और किसी भी कानून
द्वारा समर्थित नहीं हैं. ऐसे में एक बार फिर से केरल सरकार के मुस्लिम तुस्टीकरण
की राजनीति खुलकर सामने आगई है.
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