आज हम आपको रजा एकेडमी की कच्चा चिट्ठा आपके सामने खोलने वाले हैं.
रजा एकेडमी पहली बार 1999 में तब चर्चित हुई थी, जब उसने मुम्बई में तस्लीमा नसरीन के उपन्यास ‘लज्जा’ के विरोध में आवाज उठाई. इसी के गुर्गों ने 12 अगस्त, 2012 को मुम्बई के आजाद मैदान पर लगी अमर ज्योति
को लात मार कर तोड़ दिया था.
यही नहीं, एकेडमी के सैयद नूरी ने दिसंबर, 2020 में कोरोना के टीका को लेकर कहा था कि इसमें सुअर की चर्बी मिलाई गई है, इसलिए जब तक इसकी जांच न हो जाए तब तक मुसलमान टीका न लगवाएं. इस संबंध में पहले मौलाना ने एक फतवा भी जारी किया था. इसमें कहा गया था कि उनकी मंजूरी के बाद ही मुसलमान इस दवा को लगवाने के लिए आगे आएं.
इस कारण अनेक लोगों ने टीका लगाने से मना कर दिया था. 2016 में इसी रजा एकेडमी ने अपने जहरीले बयानों के लिए कुख्यात और इन दिनों भगोड़े के रूप में विदेश में रहने वाले जाकिर नाइक की जांच का भी विरोध करने के लिए प्रदर्शन किया था.
रजा एकेडमी के सूत्रधार थे मुसन्ना मियां. ये आंबेडकर नगर (उ.प्र.) जिले के अकबरनगर के रहने वाले थे. पहले सरकारी नौकरी करते थे. बाद में मजहबी गुरु बने. 1980 के दशक में वे मुम्बई में बस गए. धीरे-धीरे उन्होंने वहां के मुसलमानों के बीच अपनी पैठ बनाई. उन दिनों मुम्बई में मुसलमानों के बीच उलेमा काउंसिल का प्रभाव रहता था. उसके प्रभाव को कम करने के लिए ही मोहम्मद सईद नूरी को आगे कर रजा एकेडमी की शुरुआत की गई.
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