29 July 2012

क्या आचार्य बालकृष्ण को फसाया जा रहा है ?

बाबा रामदेव ने सरकार के खिलाफ आंदोलन की घोषणा कर दी है। सरकार ने भी बाबा को कमजोर करने के हर हथखंडे अपनाने शुरू कर दिये हैं। सरकार बाबा को हर तरह से कमजोर करना चाहती है। आखिर बाबा ने सरकार की दुखती रग पर हाथ जो रख दिया है। जी हां एक बार फिर दिखाना शुरू कर दिया है सरकार ने अपना दमनकारी रूप। बाबा रामदेव के शिष्य आचार्य बालकृष्ण को सीबीआई ने हिरासत में ले लिया है। सीबीआइ ने बालकृष्ण पर फर्जी दस्तावेज के जरिए पासपोर्ट हांसिल करने और धोखधड़ी का आरोप लगाया है। सीबीआई आचार्य बालकृष्ण को फर्जी डिर्गीधारी बता रही है। बालकृष्ण के संस्कृत कॉलेज के प्रिंसिपल नरेद्गचंद्र द्ववेदी को भी आरोपी बनाया है। आचार्य बालकृष्ण को सीबीआई ने न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। ऐसे में देश  के लोग सवाल उठा रहे हैं, आखिर उसी वक्त क्यों बालकृष्ण को हिरासत में लिया जाता है, जब बाबा आंदोलन की घोषणा करते हैं। संस्कृत कॉलेज के लोग क्यों पहले बालकृष्ण की डिग्री को सही बताते है। लेकिन बाद में आखिर कौन सा दवाब आ गया जो वो डिग्री को फर्जी बता रहे हैं। प्रिंसिपल डिग्री को सही बताते हैं तो उनको भी फंसाया जाता है। अब ऐसे में एक ही सवाल उठता है कि क्या सरकार बाबा के आंदोलन से डरने लगी है। क्या सरकार काले धन को वापस नही लाना चाहती।

लगता तो ऐसा ही है। सरकार के कारनामों ने दिखाना सुरु कर दिख है। वो अपने खिलाफ होने वाले हर आंदोलन को कुचलना चाहती है। वो नही चाहती देश का काला धन वापस आये। वो नही चाहती देश से बालकृष्ण खत्म हो। आंदोलन से जुड़े लोगों को कमजोर करने के लिए सरकार किसी भी हद तक जाने को तैयार है। लेकिन इससे योग गुरू बाबा रामदेव कही कमजोर होते नही दिख रहे। योग गुरु बाबा रामदेव ने कहा कि बालकृष्ण ने क्या डकैती की है, या वो आतंकवादी हैं। झूठे मुकदमें दर्ज करके उन्हें बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। केंद्र सरकार हमें दबाने की कोशिश कर रही है। हमारा आंदोलन दबने वाला नहीं है। इससे हमारा आंदोलन और तेज होगा। बाबा रामदेव ने कहा कि हमें न्याय व्यवस्था में पूरा भरोसा है। बालकृष्ण को सताया जा रहा है, अभी तक उनकी नागरिकता को सीबीआई झुठला नहीं सकी है। लेकिन चार्जशीट दाखिल कर दी। योग गुरु ने कहा कि जो लोग लाखों रुपये के घोटाले किए हैं उन्हें सीबीआई छोड़ देती है और संत को परेशान किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि बालकृष्ण के साथ ऐसा क्यूं किया जा रहा है ये समझ से बाहर है। बाबा रामदेव ने आरोप लगाया कि ९ अगस्त को होने वाले आंदोलन को कमजोर करने की ये साजिश है। लेकिन आंदोलन होकर रहेगा।

क्या अब आर पार की लड़ाई हो जाए ?

अन्ना देश के अन्ना हैं, इस बार जंतर मंतर पर गम और गुस्से का अजीब संगम है, हर तरफ बस एक ही शोर है कि शायद अन्ना का ये अनशन आम आदमी के हक में एक ऐसा कानून बना सके जिसके डर से भ्रष्टाचारी को पसीने आ जाएं, क्योंकि अन्ना के समर्थन में आने वालों का ये मानना है कि अन्ना जो कहते हैं सही कहते हैं। बेईमान सियासत के इस न खत्म होने वाले दंगल में आम आदमी थक कर चूर हो चुका हैं। मगर फिर भी बेईमान नेताओं, मंत्रियों, अफसरों और बाबुओं की बेशर्मी को देखते हुए अन्ना लड़ रहे हैं। बेईमान और शातिर सियासतदानों की नापाक चालें हमें चाहे जितना जख्‌मी कर जाएं, अन्ना हजारों के आगे दम तोड देती हैं। देश में ऐसी परिस्थितियां बन चुकी हैं जहां आम जनता अपने आप को अकेला, असहाय और ठगा हुआ महसूस कर रही है, जिसे यह पता नहीं कि जिस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वह आन्दोलन कर रही है वह कभी उसे मिलेगा भी या नहीं। ऐसे अब इस बार लोकपाल की यह लड़ाई आर पार की स्थिति में आ पहुंची है। पिछले ४० साल से देश की आम जनता की नजर एक ऐसे विधेयक पर पड़ी है जिसे यदि पास कर दिया जाए और एक कानून का रूप दे दिया जाए तो शायद देश की आधी समस्या दूर हो सकती है। सामाजिक कार्यकर्ताओं का संघर्ष जारी है, लेकिन अब यह आंदोलन इस ओर बढ ने लगी है जहां पर अन्ना आंदोलन बनाम केंन्द्र की सोई हुई सियासतदानो के साथ जंग ए ऐलान हो जुका है। तमाम तरह की मीडिया और जनता के सपोर्ट के बाद यह आन्दोलन तो सफल रहा लेकिन अंत में सरकार ने वही किया जिसके लिए वह जानी जाती है। उसने बिल तो पास नहीं किया उलटे आंदोलन करने वाली टीम अन्ना पर ही वार कर दिया। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है की क्या टीम अन्ना को अपनी अंतिम युध्द बाड छोड नी चाहिए। इस बार टीम अन्ना भी आन्दोलन को अंतिम अंजाम तक ले जाने की मूड में हैं। पिछले डेढ साल से सरकार के धोखों और ढकोसलों से वह पूरी तरह वाकिफ हो चुकी है इसलिए इस बार टीम अन्ना लोकपाल पर कम फोकस करते हुए उन मंत्रियों पर ज्यादा हमले दाग रही है जो लोकपाल कानून बनने में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। अगर बात की जाए पिछले दो दिन से जारी इस आंदोलन की तो इस बार सरकार की बातों से बता चलता है कि वह किसी भी तरह से आंदोलन को हाइप देना नहीं चाहेगी और न ही उन सभी मुद्दों पर गौर फरमाएगी जिसे टीम अन्ना ने रखा है। इस बार के आंदोलन में मीडिया की भी कुछ कमी दिखाई दे रही है। इसका एकमात्र कारण सरकार की मीडिया जगत पर दबाव और दमनकारी नीति है। जंतर-मंतर के गम और गुस्से को करीब से सायद अभी देद्गा के सताधिशो को अभी नही हो पा रहा है। जंतर मंतर की भीड किसी वोट बैंक का हिस्सा नहीं बल्कि उनकी है जो भ्रष्टाचार से तंग आ चुके हैं। हजारों लोगों को किसी एक नाम से पुकारेंगे तो यकीनन वह नाम अन्ना ही होगा। बहरहाल ये एक ऐसा आंदोलन है जिसकी आवाज को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता । तो ऐसे में कहना गलत नही होगा की अब आर पार की लड़ाई हो ही जाय।

सरकार अणा आन्दोलन को नजर अंदाज़ क्यों कर रही है ?

टीम अन्ना जंतर-मंतर पर भ्रच्च्टाचार के खिलाफ आंदोलन कर रही है। टीम अन्ना के कई सदस्य भूख हड़ताल पर बैठे हैं। सरकार अपनी मस्ती में मद्गागूल है। भ्रच्च्टाचारी मंत्री खुलेआम देद्गा को लूट रहे हैं। टीम अन्ना हर हाल में इन भ्रच्च्टाचारियों को जेल में देखना चाहती है। लेकिन टीम अन्ना को जनता का समर्थन जोद्गा और आक्रोद्गा के साथ नहीं मिल रहा है। जंतर-मंतर पर युवा भ्रच्च्टाचार की लड़ाई में समर्पित नही दिख रहे हैं। जी हां आज ऐसा ही लग रहा है। भ्रच्च्टाचार से त्रस्त जनता सरकारी भ्रच्च्टाचार के खिलाफ सुस्त दिख रही है। ऐसा लग रहा है जनता, खुद भ्रच्च्टाचार के खिलाफ ईमानदार नही है। भ्रच्च्टाचार की लड़ाई में जनता सांझेदार नही होना चाहती। पीछले आंदोलन के मुकाबले जनता में जोद्गा कम दिख रहा है। क्या जनता हार मान गई है। क्या जनता ने भ्रच्च्ट सरकारी हुक्मरानों को मांफ कर दिया है। क्या जनता झूंठी और भ्रच्च्ट सरकार के आद्गावासनों से सहमत हो गई है। क्या सरकार जनता की बहानेबाजी को भूल गई। लगता है ऐसा ही अंदाजा लगा रही है भ्रच्च्ट सरकार। सरकार को लगता है की जंतर-मंतर पर पहले दो दिन जनता की भागेदारी कम रही। सरकार इस गुमान में है कि जनता के कम शामिल होने से भ्रच्च्टाचार की लड़ाई कमजोर हो गई है। लेकिन जनता फिर से अन्ना आंदोलन में बढ -चढ कर हिस्सा ले रही है। आखिर जनता कैसे भूल जायेगी भ्रच्च्ट सरकार के झूंठे वादों को। कैसे इस भ्रच्च्ट सरकार ने अन्ना को जनलोकपाल लाने का वादा किया था। कैसे अपने वादे से मुकरते हुए सरकारी लोकपाल लेकर आयी। सरकार की मंशा कभी भी जनलोकपाल लाने की नही रही। सरकार कभी भी काले धन को वापस नही लाना चाहती। जनता आज भी भ्रच्च्टाचार से त्रस्त है। जनता पहले भी भ्रच्च्टाचार से परेशान थी। लेकिन सरकार को गलफहमी हो है। उसे लगता है जनता सुस्त हो गई है। लेकिन नही, जनता अपनी लड़ाई आखिरी दम तक लड़ाई । अखिर जनता को अन्ना और रामदेव के रूप में दो मसीहा जो मिल गये है। लेकिन सरकार और सरकारी हुक्मरानों को गलतफहमी हो गई है। सरकारी आका तरह तरह के बयान दे रहे है। कभी अन्ना टीम को तानाशाही बताया जाता है तो कभी बिदेशी ऐजेंट। सरकार जनता को बहकाना चाहती है। बाबा रामदेव के सहयोगियों को परेशां किया जा रहा है। अन्ना टीम को तोड़ने की साजिद्गा रची जा रही है। मीडिया संस्थानों को खरीदा जा रहा है। साजिद्गा के तहत मीडिया संस्थान आंदोलन की खाबरों को नही दिखा रहे है। सरकार इसके लिए करोडो अरबों खर्च कर रही है। गरीब को रोटी नही मिल रही है। सरकारी आका आंदोलनों को तोड ने के लिए सरकारी पैसा पानी की तरह बहा रहे हैं। लेकिन सरकार समझा जाये, ये जनता का आदोलन है। जनता कभी पीछे नही हटेगी। सरकार को जनता की मांग माननी ही पड़ेगी । तो ऐसे में अब सरकार की बहानेबाजी नही चलने वाली। सरकार जल्दी से जल्दी जनता की मांगों पर गौर करे। अगर अभी भी सरकार को सदबुद्धि नही आयी तो ऐसी भ्रच्च्ट सरकार के खिलाफ देद्गा में विद्रोह भड क जायेगा। ऐसे में भड की जनता कानून व्यवस्था भी अपने हाथ में ले सकती है। इसलिए सरकार जल्दी से जल्दी आंदोलनकारियों की मांग माने और उन पर कार्यवाही करे।

क्या असम में कश्मीर दोहराया जा रहा है ?

आज हम आपके सामने एक ऐसा मुददा लेकर आये हैं, जो बड़ा ही संबेदंशील और बिदेशियो की साजिद्गा का एक नमूना है। आज देद्गा की अस्मितता, एकता और अखण्डता से खिलवाड किया जा रहा है। देद्गा के नोर्थ-इस्ट पार्ट को भी, कद्गमीर बनाने की साजिद्गा हो रही है। जैसे कद्गमीर में पाकिस्तानी घुसपैठिये नंगा नाच कर रहे है, वैसे ही असम में बंगलादेशी घुसपैठिए, असम के मूल निवासियों को खदेड रहे हैं और सरकार इन घुसपैठियों का साथ दे रही है। जी हां एक बार फिर हो रही है देद्गा को तोड ने की साजिद्गा और सरकारी हुकमरान देख रहे हैं तमाशा । असम के स्थाई निवासी बोडो समुदाय को अपना घर-बार छोड ने को मजबूर किया जा रहा है। कांग्रेसी सरकार मजे से इस खेल का मजा ले रही है। कार्यवाही के नाम पर बोडो समुदाय को ही परेशान किया जा रहा है। बंगलादेशी घुसपैठियों को सुरक्षा दी जा रही है। केंद और राज्य सरकारें वोट बैंक की राजनीति कर रही हैं। जो कभी कद्गमीर में हुआ था, आज असम में दोहराने को सरकार ने खुली छूट दे रखी है। घुसपैठियों के हौंसले बुलंद हैं। कांग्रेंस को पता है ये घुसपैठिये उसका वोट बैंक है। असम दंगों की असली तस्वीर बाहर नही आने दी जा रही है। कोई भी मीडिया संस्थान असम दंगों की सही तस्वीर पेद्गा नही कर रहा है। क्योंकि सरकार ने मीडिया संस्थानों को सही तस्वीर पेद्गा ना करने का समझौता कर रखा है। असम में घुसपैठिय नंगा नाच नाच रहे है। असम के स्थाई निवासी अपना घर बार छोड ने को मजबूर हैं। स्थाई निवासियों को कोई सुरक्षा नही दी जा रही र्है। डेढ करोड से ज्यादा बंगलादेशी असम में मौजूद हैं। २३ विधान सभाओं से ज्यादा में वो अपना प्रभाव रखते हैं। कोई भी स्थानीय नेता बोडो समुदाय पर होने वाले कहर की आवाज नही उठा रहा है। बोडों समुदाय की महिलाओं को जिंदा जलाया जा रहा है। प्रशाशन बोडों समुदाय की आवाज को दवा रहा है। बोडो समुदाय को ही दंगाई मानकर गोली मारी जा रही है। असम का मूल निवासी बोडो समुदाय असम को छोड ने को मजबूर है। जैसे कद्गमीर के मूल निवासी कद्गमीरी पंडितों को कद्गमीर छोड ने पर मजबूर किया गया, वैसे ही बोडो समुदाय को असम छोड ने पर मजबूर किया जा रहा है और इसमें सारा सरकारी महकमा घुसपैठियों का साथ दे रहा ह। कद्गमीरी पंडितों के साथ आज विदेसियों जैसा बर्ताव हो रहा है। वो भारत के मूल निवासी है मगर उनकी सुनने वाला कोई नही है। जैसे पाकिस्तान से आये घुसपैठियों और विद्रोहियों का इज्जत दी जा रही है। वैसे ही आज बंगलादेशी घुसपैठियों को कत्लेआम करने की छूट दी जा रही है। इन बंगलादेशी को भारतीय होने का प्रमाण पत्र दिया जा रहा है। भारतवासियों को शिबिरो में रहने को मजबूर किया जा रहा है। भारतीय आपने देद्गा में ही बेगाने हो रहे है। विदेशी उनका हक जबर्दस्ती छीन रहे हैं। सरकारें भी बिदेशियो को भारत में खुला तांडव करने की छूट दे रही हैं। देद्गा के सीमवर्ती इलाको पर घुसपैठियों का कब्जा हो गया है। कश्मीर की आग सीमवर्ती प्रदेशो में भी भड़कने लगी है। स्थाई निवासियों का कत्लेआम हो रहा। सरकार मौन है। असम कद्गमीर की आग में झुलस रहा है। तो क्या ऐसे ही देद्गा के सीमावर्ती इलाकों पर घुसपैठियों का कब्जा होता रहेगा। तो क्या देद्गा के मूल निवासी ऐसे ही अपना घर छोड ने को मजबूर होते रहेंगे। क्या कांग्रेस सरकार ऐसे ही वोट बैंक की राजनीति के लिए देद्गा तोड़नेवाले ने घुसपैठियों का समर्थन करती रहेंगी।

20 July 2012

पाक के साथ क्या हो क्रिकेट या जंग ?

पाकिस्तानी की क्रिकेट टीम भारत दौरे पर आएगी। बीसीसीआइ और सरकार के रहनुमाओं ने इस दौरे को हरी झंडी दी है। इस खबर से देश के लोगों के मन में तरह तरह के सवाल उठ रहे है। वे पूछ रहे हैं, हमने जब पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय क्रिकेट श्रृंखला बंद करने का फैसला किया था, तब से अब तक क्या बदला है। क्या पाकिस्तान ने मुंबई के आतंकवादी हमलों के दोषियों को सजा दी। क्या पाकिस्तान में बैठे लश्करे-तैयबा के कमांडर जकीउर रहमान लखवी जैसे लोगों को वह भारत को सौंपने को तैयार हो गया है। क्या पाकिस्तान ने अबू जुंदाल के बयान के बाद मान लिया है, कि मुंबई पर आतंकवादी हमले में आइएसआइ और पाकिस्तानी सेना के लोग शामिल थे। क्या पाकिस्तान ने अपने यहां आतंकवादियों के प्रशिक्षण शिविर बंद कर दिए हैं। जी नही ऐसा कुछ भी नही हुआ है। लेकिन लगता है भारत सरकार ने मान लिया है, पाकिस्तान से इन मुद्दों पर कोई भी उम्मीद करना बेमानी है। भारत में एक वर्ग है जो मानता है कि कुछ भी हो पाकिस्तान के साथ बातचीत चलती रहनी चाहिए। भारत सरकार की भी यही राय है। लेकिन पिछले ६४ सालों से भारत यही तो कर रहा है। हर धोखे और हमले के कुछ दिन बाद हम फिर बातचीत की मेज पर पहुंच जाते हैं। कश्मीर का एक-तिहाई हिस्सा चला गया, १९६५ और १९७१ का युद्ध हुआ, कारगिल हुआ, देश की संसद पर हमला हुआ, मुंबई पर हमला हुआ। हमने देश में मोमबत्ती जुलूस निकाला और उसके बाद पाकिस्तान के साथ विश्वास बहाली के नियमित कर्मकांड में जुट गए। भारत और पाकिस्तान आपस में क्रिकेट खेलें भला इससे क्यों इनकार होना चाहिए। लेकिन क्रिकेट के जरिये दोनों देशों के संबंध सुधारने का सपना हम १९७८ से देख रहे हैं। क्रिकेट कूटनीति में यकीन करने वाले मानते हैं कि इससे दोनों मुल्कों के लोगों में आपसी भाईचारा बढ़ेगा और तनाव कम होगा। क्रिकेट देखेंगे तो क्रिकेट की बात करेंगे। ऐसा कहने वाले शायद यह भी मानकर चलते हैं कि भारत पाकिस्तान की समस्या का एक बड़ा कारण, दोनों देशों के अवाम के बीच भाईचारे और आपसी विश्वास की कमी है। इस धारणा को दोनों देशों के लोगों ने हर उपलब्ध मौके पर झुठलाया है। जाहिर है कि मर्ज कहीं और है और इलाज कहीं और हो रहा है। भारत और पाकिस्तान की समस्या दोनों देशों के अवाम नहीं है। राजनीतिक दल और नेता भी नहीं है। समस्या पाकिस्तान की सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आइएसआइ है। मुश्किल यह है कि आइएसआइ और पाकिस्तान की सेना क्रिकेट नहीं खेलतीं। वे जो खेल खेलते हैं वही दोनों देशों की मूल समस्या है। वे चाहते हैं कि दोनों देशों के लोग क्रिकेट में मशगूल रहें, ताकि उन्हें अगले हमले की तैयारी के लिए, आतंकवादियों के प्रशिक्षण के लिए और उन्हें भारत में भेजने के लिए शांति का वातावरण मिले। ये किसी आशंका या अविश्वास पर नहीं, छह दशकों के अनुभव पर आधारित है। जब हमने द्विपक्षीय क्रिकेट श्रृंखला बंद की थी तो एक ही मुद्दा था कि क्रिकेट और आतंकवाद साथ-साथ कैसे चल सकता है। इस सवाल को उठाने वाले युद्धोन्मादी मान लिए जाते हैं। पूछा जाता है कि युद्ध से भी तो समस्या हल नहीं हुई। युद्ध का माहौल बनने से किसका फायदा होगा। मगर बातचीत से ही अब तक हमें क्या मिला। तो इसका एक ही इलाज है हमें पाक से सारे संबंध तोड़ने होगे। हमें तकतवर बनना होगा। तो पाक फौज और आइएसआइ सोचने पर मजबूर होगी। हमारी ताकत से उसे खोप होगा। लेकिन वोट बैंक की राजनीति करने वाली भारत सरकार, देद्गा को कभी मजबूत नही करना चाहती। यही है आज देद्गा की सरकार और सरकारी रहनुमाओं की हकीकत। तो आइए खड़े होइए, इस निटठल्ली सरकार को जगाने के लिए। बता दीजिए भारत की इस निटठल्ली सरकार को, कि इस देद्गा के लोगों की जिंदगी भेड बकरियों की तरह नही है, कि पाकिस्तानी आतंकी आयें और मासूम देद्गावासियों का कत्लेआम करके चले जायें।

17 July 2012

मुस्लिम बाहुल्य इलाके में केवल मुस्लिम अधिकारी कितना सही ?

केंन्द्र सरकार की मुस्लिम तुस्टीकरण की नीति एक बार फिर से खुल कर सामने आयी है। मजहब़ और धर्मनिरपेक्षता की आड में सत्ता के शिखर पर राज करने वाली कांग्रेस सरकार एक बार फिर सरेआम अपनी हदें पार कर चुकी है। आज मुस्लिम इंस्पेक्टर, कल मुस्लिम थाना। फिर मुस्लिम पुलिस, फिर मुस्लिम न्याय संहिता। फिर मुस्लिम न्यायालय, फिर मुस्लिम न्यायाधीश। फिर मुस्लिम फौज, फिर मुस्लिम राज्य। फिर अंत में देश का बंटवारा, शायद इसी ओर आज देद्गा में केंन्द्र सरकार आगे बढ रही है, और धर्म निरपेक्षता का दंभ भरने वाले सोनिया गांधी-मनमोहन सिंह, और कांग्रेसी नेताओ की ये सोच देद्गा को किस ओर धकेल रही है इसका अंदाजा आप खुद लगा सकते है। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या ये कांग्रेस सरकार की मुस्लिम तुस्टीकरण और वोट बैक की राजनीति नही है। केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को मुस्लिम बहुल इलाकों में कम से कम एक मुस्लिम इंस्पेक्टर या सब-इंस्पेक्टर तैनात करने की सच्चर कमिटी की प्रमुख सिफारिश को लागू करने को कहा है। केंद्रीय गृह सचिव आर. के. सिंह ने इस सिलसिले में सभी राज्यों के मुखय सचिवों को चिट्ठी लिखी है। उन्हें जून के आखिर तक स्टेटस रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है। तो सवाल यहा भी खड ा होता है की जब कानून व्यवस्था और अधिकारियों की तैनाती का विच्चय राज्य सरकार की है तो फिर यहा पर केंन्द्र सरकार अडंगा क्यो डाल रही है। मुस्लिम बहुल इलाकों में मुस्लिम इंस्पेक्टर कि तैनाती से क्या सरकार की इस नीति से आतंकवादियों को अपने मोहल्ले में पहले से और बेहतर छुपा पाने का मौका नही मिलेगा ? क्या हिन्दुओ पर योजना बध तरीके से हमला नही बढेगा ? क्या कांग्रेस सरकार को हिन्दुओ के लिए चिंता कोई चिंता नही है? पानी के लिए हिन्दुओ को पाकिस्तानी पुलिस अधिकारी अक्सर पीटते है। लेकिन अब लगता है, सरकार के इस पाकिस्तानी हुक्म से अपने ही देद्गा में हिन्दुओ को पीटा जाएगा । तो ऐसे में यहा प्रद्गन जरूर झकझोरने वाला है कि क्या केंन्द्र सरकार हिन्दुस्थान में कई छोटे -छोटे पकिस्तान बनाने की योजना है तो नही चला रही है। सरकार के इस तालिबानी हुक्म से तो यही लगता है। ब्रिटिश काल में अंग्रेजो द्वारा कुछ ऐसे ही आदेद्गा जारी किए गए थे। तो ऐसे में इस आदेद्गा से यही साबित होता हैं की सरकार एक बार फिर से स्वतंत्र भारम में ब्रिटिस शासन लागू कर रही है। अगर पुलिस हिंदुओं पर हमला होन पर मुसलमानों से मिल कर मामले को रफा- दफा कर लेगी तो क्या ऐसे में देद्गा के अंदर हिंदुओं को न्याय मिल पाएगा ? इसी लिए यहा यह स्वाल खड़ा हो रहा है। विभाजन के दंगों के दौरान भी इसी तरह की बात प्रस्तावित किया गया था । संबिधान में कहा गया है की धर्म के नाम पर पक्षपात ना किया जाय लेकिन मुस्लिम के नाम मुस्लिमो को बिशेस सुबिधाये दी जा रही है, क्या यह साम्प्रदायिकता नहीं है। आज वोट के लिए संबिधान बिरोधी साम्प्रदायिकता का घोर खेल खेला जा रहा है। तो ऐसे में सवाल उठना जायज है की, क्या मुस्लिम बहुल इलाके में केवल मुस्लिम अधिकारी की तैनाती कितना सही है ?

15 July 2012

क्या राष्ट्रपति पद की गरिमा घटी है ?

भारतीय राजनीति आज जिस ओर बढ़ रही है उसको लेकर अब कई सारे सवाल खड़ा होने लगा है। इस दौर में अब सवाल यहा तक उठने लगा है की राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का बैकग्राउंड क्या हो, उसका जाती क्या है। वह किस पार्टी से संबंध रखता है। वह चाहे जिस क्षेत्र से आए, मूल शर्त यही रहती है कि वह चीजों की बेहतर समझ रखने वाला हो और सभी के लिए स्वीकार्य हो। साथ ही, उसकी निष्पक्षता पर किसी को संदेह नहीं हो। राष्ट्रपति का पद बेहद सम्मानित और मर्यादापूर्ण होता है। इस पद की गरिमा बरकरार रखने की क्षमता जिस किसी व्यक्ति में हो, वह राष्ट्रपति बनने के योग्य हो सकता है। राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च पद होता है, और इस पद पर बैठे व्यक्ति के पास बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील अधिकार होते हैं। मगर इस दौर में सवाल यहा इस ओर बढ ने लगा है की क्या वाकई ये सब आज देद्गा की राजनीतिक व्यवस्था में सटिक बैठता है। डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन, और एपीजे अब्दुल कलाम का कोई सीधा राजनीति संबंध नहीं था। हालांकि राजनीति से संबंध नहीं रखने के बावजूद इन सभी ने उत्तरदायित्व अन्य राष्ट्रपतियों की तरह ही बेहतरीन ढंग से निभाए। फिर भी हमारे देश में अब तक जितने भी राष्ट्रपति हुए हैं, उनमें कम ही ऐसे थे जिनका संबंध राजनीति से न रहा हो। मसलन , राष्ट्रपति को कई तरह के विधेयकों पर अपनी मंजूरी देनी होती है। देश के प्रथम नागरिक के चयन को लेकर संर्किण राजनीति के चलते इस पद की गरिमा दिन प्रतिदिन गिर रही है। राट्रपति चुनाव को लेकर आज हर राजनीतिक दल इस कदर हो हल्ला मचाये हुए है जैसे देद्गा में आम चुनाव हो रहा है। हर कोई अपनी अपनी राजनीतिक रोटी सेकने में लगा हुआ है। इस बार का राट्रपति चुनाव राजनीतिक गलियारों में ज्यादा हलचलें इसलिए हो रही है की २०१४ में होने वाले लोकसभा चुनाव में इसका भरपूर लाभ उठाया जा सके । मगर सवाल यहा इस लिए खड़ा होता है की क्या राट्रपति का पद भी आज के दौर में राजनेताओ के लिए उतना ही अहम साबित हो रहा है जितना देद्गा के प्रधान मंत्री और केंन्द्रीय मंत्री का पद है। अगर सवाल जायज है तो जाहिर है की इस पद की गरिमा भी उसी तरह गिर रहा है जैसे आज के मंत्री परिच्चद का है। मामला चाहे राट्रपति का हो या उपराच्च्ट्रपति का सियासत इस कदर हाबी है की पद और सम्मान से बड़ा वोट बैक कही ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है। अगर उपराच्च्ट्रपति की बात करे तो यहा भी हालात वैसे ही है। यानी की उहापोह की स्थिति हर जहग हाबी है। भारत के उपराष्ट्रपति का पद निस्संदेह अत्यंत महत्वपूर्ण है। उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। पूरे विश्व में भारत का उपराष्ट्रपति ही ऐसा है, जिसे कार्यपालिका का भी अंग माना गया है और विधायिका का भी। मगर आज के दौर में सियासत और वोट बैक इस कदर राजनीतिक दलो पर हाबी हो गया है की राच्च्ट्रपती का पद भी सत्ता के अखाड़े में दब कर रह गई है। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है की क्या राष्ट्रपति पद की गरिमा घटि है ?

14 July 2012

नाइट लाइफ का समर्थन कितना सही ?

आधी रात को दिल्ली के पॉस इलाके में महिला से छेड़छाड की गई, गुड गॉव में देर रात लड की के साथ बदसलूकी की गई, असम में आधी रात को लडकी के कपडे उतारने की कोसिस की गई, मुम्बई में आधी रात को पुलिस वालों ने महिला से बदसलूकी की। जी हां आये दिन आज ऐसा ही देखने को मिल रहा है, देद्गा के बड़े बड़े द्याहरों और कस्बों में। क्या कभी हमने सोचा है इसके लिए कौन जिम्मेवार है। सोचते भी हैं तो हमेशा यही कि आज देद्गा में कोई कानून व्यवस्था नही है। देद्गा में आधी रात को गुंडा राज होता है। अब देद्गा में आधी रात को मनचलों की हरकत बढ गई हैं। बस हम इन्ही लोगों और कानून व्यवस्था को कोसना सुरु कर देते हैं। लेकिन क्या आपने कभी इसके दूसरे पहलू के बारे में सोचा है। जी हां इसका दूसरा पहलू है नाइट लाइफ। समाज के एक छोटे से वर्ग के लिए हम नाइट लाइफ का समर्थन कर रहे हैं। इस छोटे से वर्ग की वजह से ही आज आधी रातों को कई अद्गलील घटनाएं घट रही हैं। अपने आप को रॉयल कहने वाला ये समाज, नाइट लाइफ के एशो आराम में मद्गागूल रहता है। इसी वर्ग की देखादेखी मध्यम वर्ग भी, इस नाइट लाइफ में आपने आप को शामिल कर रहा है। लेकिन वो अपनी सुरक्षा और जरूरतों को भूल जाता है। ऐसे में कई घटनाओं का शिकार होना पड रहा है। ये बात सही है कि गुंडाराज के खिलाफ समाज के हर वर्ग को आवज उठानी चाहिए। अगर गुंडाराज किसी के घर पर हमला करता है या फिर दिन दहाड़े घटना को अंजाम देता हो तो ऐसे में, ये एक खतरना पहलू है। आधी रात को दिल्ली के पॉस इलाके में महिला से छेड़छाड की गई, गुड गॉव में देर रात लड की के साथ बदसलूकी की गई, असम में आधी रात को लडकी के कपड़े उतारने की कोशिस की गई, मुम्बई में आधी रात को पुलिस वालों ने महिला से बदसलूकी की। जी हां आये दिन आज ऐसा ही देखने को मिल रहा है, देद्गा के बड़े बड़े द्याहरों और कस्बों में। क्या कभी हमने सोचा है इसके लिए कौन जिम्मेवार है। सोचते भी हैं तो हमे यही कि आज देद्गा में कोई कानून व्यवस्था नही है। देद्गा में आधी रात को गुंडा राज होता है। अब देद्गा में आधी रात को मनचलों की हरकत बढ गई हैं। बस हम इन्ही लोगों और कानून व्यवस्था को कोसना सुरु कर देते हैं। लेकिन क्या आपने कभी इसके दूसरे पहलू के बारे में सोचा है। जी हां इसका दूसरा पहलू है नाइट लाइफ। समाज के एक छोटे से वर्ग के लिए हम नाइट लाइफ का समर्थन कर रहे हैं। इस छोटे से वर्ग की वजह से ही आज आधी रातों को कई अद्गलील घटनाएं घट रही हैं। अपने आप को रॉयल कहने वाला ये समाज, नाइट लाइफ के एशो आराम में मद्गागूल रहता है। इसी वर्ग की देखादेखी मध्यम वर्ग भी, इस नाइट लाइफ में आपने आप को शामिल कर रहा है। लेकिन वो अपनी सुरक्षा और जरूरतों को भूल जाता है। ऐसे में कई घटनाओं का शिकार होना पड रहा है। ये बात सही है कि गुंडाराज के खिलाफ समाज के हर वर्ग को आवज उठानी चाहिए। अगर गुंडाराज किसी के घर पर हमला करता है या फिर दिन दहाड़े घटना को अंजाम देता हो तो ऐसे में, ये एक खतरना पहलू है। जी नही हमारा मतलब तालिबानी उसूलों का समर्थन करना नही है। लेकिन अपने आप को रइसजादे कहने वाले ये लोग ही तालिबान की तरह हमारे समाज में आदर्द्गावादों को खत्म कर रहे हैं। जब हम दिखाबे के नाम पर अद्गलील, पद्गिचमी संस्कृति की ओर रूख करते हैं, तो ये भी तो हमारे समाज में एक तरह का तालीबानीकरण है। ये बात सही कि किसी भी तरह की गुडागर्दी का सपोर्ट नही किया जा सकता। मगर नाइट जिन्दगी से बढ़ने वाली गुडागर्दी के लिए कौन जिम्मेदार है। तो फिर क्या हमें ऐसी नाइट लाइफ का समर्थन करना चाहिए।

क्या राजनीति से आदर्शवाद ख़त्म हो गया है ?

वैसे तो आप सभी जानते है देद्गा के नेताओं के बारे में, क्या है देद्गा के नेताओं की असलियत। कितने स्वाभिमान और जज्बे वाले है हमारे नेता, किस तरह मलाई जैसा है नेताओं का ईमान और कितने पक्के र्हैं अपने विचारो के हमारे नेता जी जी हां यही सवाल उठ रहा है देद्गा में आज की नेता पीढी के बारे में। दरअसल अभी कुछ दिन पहले बंगाल की मुखयमंत्री ममता बनर्जी ने फेसबुक पर एक वाक्य पेस्टकिया वे कह रही थी देद्गा के तथाकथित नेता आज बिना रीढ की हडडी के हो गए है। ये एक इंट्रेस्टीग रिर्सच का विच्चय हो सकता है। भले ही ममता ने ये कांग्रेस और सपा नेताओं के धोखेबाजी पर कहा हो, मगर ये बात काफी हद तक सही लगता है । वाकई देद्गा की बागडोर देद्गा के नेताओं के हाथ मे जिनका स्वाभिमान और आर्दद्गा खत्म हो गए है। अगर देद्गा के नेताओं में थोडा भी आर्दद्गा होता तो देद्गा में फैली अराजकता और अफरा- तफरी पर अर्लट होते। लेकिन वो तो मुर्ति की तरह बैठे हुए है और तोते की जुबान में बोलते हुए महसुस हो रहे है। ये नेता बस द्याासन करने वाले और रॉयल जिदगी का मजा उठाने वाले बाकी रह गए है। देद्गा की राजनीति में कभी ऐसे नेता भी सकिय राजनीति में मौजूद थे जो देद्गा और अपने स्वाभिमान के लिए मरते थे। अटल बिहारी वाजपेयी का नाम आप है वहां भी अपनी बात हिन्दी में रखते थे। भले ही वे राजनीति से रिटायर हो गए हो पर आज भी उनके स्वाभिमान और आर्दद्गा पर कोई उगंली नहीं उठा सकता। ये ऐसे नेता रहे है जो अपने स्वाभिमान और देद्गा सेवा को सर्वोपरि मानते थे। बुद्धिजीवी भी उस वक्त कहते थे कि देद्गा में अभी कोई नेता बचा है तो वो हैं अटलबिहारी वाजपेयी। आज किसी नेता को कहते सुना है कि फलां नेता सही मायनों में आदर्द्गावादी नेता है। अब ममता बनर्जी का कहना चाहे अपने आप को उंचा दिखाना ही क्यों ना हो लेकिन तीर बड़े निशाने पर मारा है। राष्ट्रपति चुनाव को लेकर मुलायम का धोखा हो या चिदंबरम का कोलकाता की कानून व्यवस्था पर उंगली उठाना। इन्ही वजह से ममता ने तथाकथित नेताओं को बिना रीड की हडडी का बताया। वेसे जिस तरह से नेता अपने छोटे छोटे स्वार्थों के लिए देद्गाहित और अपनी विचारधारा तक से मुकरने में जरा भी द्यार्म महसूस नही करते उससे तो यही लगता है कि आज के नेता, नेता बने रहने के लिए अपनी मान मर्यादा को भी भूल जाते हैं। तो क्या है आज के नेताओं की सच्चाई। कितने आदर्द्गावादी और कितने स्वाभिमानी रह गये है हमारे देद्गा के नेता।

09 July 2012

कण में भगवान को विज्ञान की सविकृति हमारी संस्कृति की विजय है ?


ना मै मंदिर ना मै मस्जिद ना काबा कैलाद्गा में।
खोजिएगा का तो तुरंत मिलेंगें पलभर के तलाद्गा में॥

यानी की भगवान हर जगह, हर कण एक-कण कण में मौजूद है। जी हम ऐसा इसलिए कह रहे है की हम जिस ब्रह्मांड में रहते हैं, आखिर इसकी उत्पत्ति कैसे हुई आसमान में टिमटिमाते तारे आखिर कैसे बने? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए हर कोई आतुर रहता है। लेकिन अभी तक इन सभी सवालों का जवाब हमें नहीं मिला था। लेकिन दुनिया के १११ देशों के करीब पांच हजार वैज्ञानिक इन सवालों के जवाब के बेहद करीब पहुंच गए हैं। वैज्ञानिकों ने इसको हिग्स बोसान नाम दिया है, जिसे गाड पार्टिकल्स के नाम से भी जाना जाता है। पूरी दुनिया में अपनी परचम लहराने वाली भारतीय संस्कृति को अब एक नया आयाम मिल गया है। भारतीय दर्द्गान में कण कण में ब्रम्हा की मान्यता हजारो बर्च्चो से रही है। मगर अभी तक इसकी कोई पुष्टि नहीं हो सकी थी। अब गॉड पार्टिकल की खोज से विज्ञान के इस मूल सवाल के साथ ही दर्द्गान की यह रहस्यमयी गुत्थी भी लगभग सुलझती नजर आ रही है। महाविस्फोट के बाद ब्रहमाण्डनिर्माण हुआ। इस दौरान एक ही तत्व का रंग या प्रभाव बाकी सभी पर चढ़ गया। ये कुछ और नही बल्कि सुक्ष्म कण थे। इस खोज का असल फायदा यह है की ब्रहमाण्ड का अभी तक ९० प्रतिद्गात अज्ञात डार्क मैटर को जानने में मद्‌द मिलेगा। जेनेवा स्थित यूरोपियन ऑर्गनाइजेद्गान फॉर न्यूक्लियर रिसर्च द्वारा जिस गॉड पार्टिकल की खोज से पूरी दुनिया रोमांचित है, इन्हीं कणों को ईद्गवरीय कण ब्रम्हा कण या फिर दैव कण के अलग अलग नामों से संबोधित किया जा रहा है। इन सारे नामो पर पहले ही भारतीय दर्द्गान विज्ञान ने खोज कर चर्चा कर चुका है। इस खोज का श्रेय सबसे ज्यादा भारतीय सभ्यता को जाता है जो हजारो बर्च्चो पहले इसके उपर अपना खोज दुनिया को बता चुके थे। यह भारतीय सभ्यता बताती है की कण कण में भगवान है। ऐसी मान्यता है की १३.७ अरब पहले महाविस्फोट के बाद ब्रहमाण्ड की रचना इन्हीं खोजे गए ब्रम्ह कणो से हुई। भारतीय दर्शनशात्र में भी ऐसे ब्रम्ह कणो के उल्लेख मिलते है। गॉड पार्टिकल्स को हिन्दू जैन पुद्‌घ्गल और बौद्ध अनात्मा कहते हैं। भारतीय दार्शनिक इस ब्रह्माणु की अलग-अलग तरीके से व्याखया की है। ऐसे में कण कण में भगवान जैसे भारतीय दर्द्गान को गॉड पार्टिकल की खोज द्वारा वैज्ञानिक प्रमाणिकता मिलना भारतीय संस्कृति के लिए एक बरदान है।

07 July 2012

अमरनाथ यात्रा के दिन को कम करना कितना सही ?

अमरनाथ यात्रा अनादिकाल से चलती आ रही है, लेकिन अब यात्रा को मौसम का बहाना बनाकर अवधि सीमित करने की षडयंत्र हो रही है। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल अमरनाथ श्राइन बोर्ड के पदेन अध्यक्ष हैं। उनका दायित्व यात्रा का विकास है, लेकिन दुर्भाग्य से वह यात्रा को विनाश की ओर ले जा रहे हैं। सवाल उठता है कि समय रहते यात्रा सुविधाओं से जुड़ी तैयारियों को पूरा क्यों नहीं किया जा सका ? बाबा बर्फानी के दर्शनार्थी श्रद्धालुओं की तादाद जब हर साल बढ ती जा रही है तो ऐसे में अमरनाथ यात्रा की अवधि कम किए जाने का क्या औचित्य बनता है ? पहले भी यात्रा अवधि दो महीने यानी ६ दिनों की रहती थी। इस बार यह महज ३९ दिन कर दिया गया है। केन्द्र सरकार की मुस्लिम वोट बैक की राजनीति की बात करे तो, सरकार हज यात्रीयों के लिए करोड़ो रूपए खर्च करती है। उनके लिए सारी तैयारिया पहले ही पूरी कर ली जाती है। उनके उपर कभी आतंकवादी हमला नही होता है। वही दुसरी ओर अमरनाथ यात्रा को आतंकवादियों की धमकियों के चलते १९९१ से १९९५ तक बंद रखा गया था। १९९६ में आतंकियों द्वारा बाधा नहीं पहुंचाने के आश्वासन पर यात्रा शुरू हुई। अमरनाथ तीर्थयात्रियों के लिए सुविधाजनक व्यवस्थाएं बढ़ाने और सुरक्षा बंदोबस्त करोड़ो करने के बारे में कई उपाय सुझाए गए थे। सवाल उठता है कि अबतक उन सुझावों पर अमल क्यों नहीं हो सका है? अगर इस बार यात्रा अवधि घटाने का निर्णय भी अलगाववादी ताकतों के प्रभाव में आकर लिया गया है तो यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से भी खतरनाक प्रवृत्ति को बढावा देने वाला साबित होने वाला है। धर्म और आस्था से जुड़े विषयों को लेकर किसी के आगे घुटने टेकने की नीति पर चलना अनर्थकारी संकेत देता है। अमरनाथ जैसी पवित्र यात्रा को लेकर किसी तरह का विवाद पैदा करने की साजिशों और कोशिशों को पनपने देना घोर अनुचित कार्य माना जा रहा है। अनादिकाल से चली आ रही बाबा अमरनाथ यात्रा का हमेशा से ही राष्ट्रीय महत्त्व रहा है। जेहादियों को अपने लक्ष्यों को पूरा करने में यह यात्रा बहुत बड़ी बाधा लग रही है, उन्हें ध्यान में आ गया है कि जब तक यह यात्रा चलेगी हिन्दू समाज घाटी में आता रहेगा । और जब तक वह आता रहेगा घाटी को दारुल इस्लाम बनाने का संकल्प पूरा नहीं हो पायेगा।

क्या आज देश में आपातकाल जैसे हालात है ?

भ्रटाचार और काले धन को लेकर एक बार फिर से टिम अन्ना और सरकार आमने सामने है। एक ओर जहा टिम अन्ना हर हाल में २५ जुलाई से दिल्ली के जंतर मंतर पर अनद्गान करने के लिए तैयार है, तो वही दुसरी ओर सरकार उसे निरस्त करने के लिए अपनी हर ताकत को अजमा रही है। इस बार टिम अन्ना आर पार के मूड में है। ऐसे में ये प्रतित होता है की देद्गा के अंदर आपातकाल जैसी स्थिती उत्पन्न्न हो गई है। तो यहा सवाल खड़ा होता है की क्या सरकार अन्ना हजारे की ललकार से सहमी हुई है। या फिर देद्गा के अंदर आम आदमी की आवाज को दबाना और कुचलना चाहती है। आज देद्गा का हर नागरीक सरकार से सिर्फ एक ही सवाल कर रहा है, भ्रटाचारियों पर लगाम सरकार आखिर कब कसेगी,बिदेशो में जमा काला धन वापस कब आयेगा ? मगर सरकार ने आम अदमी के दर्द और कराह को नजरअंदाज किया हुआ है। मानो आज के हालात में देद्गा का हर एक आदमी आपातकाल से गुजर रहा है। १२ जून १९७५ को इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायधीद्गा जे एम एल सिन्हा ने १९७१ के लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेद्गा से निर्वाचित तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदरा गॉधी के निर्वाचन को अवैध घोसित कर दिया ।२६ जून १९७५ को राष्ट्रपति फखरूदीन अली अहमद ने आन्तरीक सुरक्षा एवं अव्यवपस्था के नाम पर आपातकाल का आदेश दे दी। आपातकाल जनवरी १९७७ तक चलता रहा । उस दौरान सरकार ने प्रतिष्टित राजनीतिक नेताओं कार्यकताओं और गैर राजनीतिक व्यक्तियों की गिरफतारी की। प्रेस पर सेंसर शिप लगा दी गई। बिना किसी न्यायिक जांच के कुछ संगठनो को प्रतिबंधित कर दिया गया। साथ ही महानगरों को सुंदर बनाने के नाम पर कई लोगों को बेघर कर दिया गया । लोग आजाद भारत में गुलाम हो गए थे। लोकतंत्र के अंदर हुए इस काले अध्याय का पूरजोर विरोध होता रहा। आखिरकार १८ जनवरी १९७७ को राच्च्ट्र के नाम संदेद्गा प्रसारित करते हुए इंदरा गांधी ने लोकसभा भंग कर चुनाव कराने की घोच्चणा कर दी। उस दौरान विरोधियों ने नारा दिया था। तानाशाह बनाम लोकतंत्र। लगता है इस बार का नारा होगा। भ्रच्च्टाचार बनाम लोकतंत्र। आपातकाल के दंद्गा को लोग भुला नही पाए थे ।आपातकाल के बहाने प्राप्त अतिरिक्त द्याक्ति का नौकरशाहो ने जम कर दुरूप्योग किया गया। पुलिस का अत्याचार और बरर्बरता ने कांगेस सरकार को सत्ता से आम आदमी ने बाहर कर दिया। अब लगता है वही स्थिति आज देद्गा के अंदर एक बार फिर से आ कर खड़ी हो गई है। जहां पर नेता और नौकशाहो देद्गा को लुट रहे, है और आम आदमी और समाजसेवी लोगों के उपर सरकार और पुलिस दोनों मिल कर अत्याचार कर रहे है। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है की क्या आज देद्गा में आपातकाल जैसी स्थिति है।

01 July 2012

आखिर हमारी सरकार चुप क्यों है ?

पाकिस्तान अपने हरकतों से बाज नही आ रहा है। पाकिस्तान की काली करतूत के चलते भारत में आए दिन निर्दोस लोगो की जाने जा रही है। आतंकियों की घुसपैठ पाकिस्तान की ओर से लगातार जारी है। आतंक और घुसपैठ से लड़ते हुए सेना और सुरक्षा बल के हजारों जवान शहीद हो चुके हैं। हजारों नागरिक मारे जा चुके हैं। लाखों की संखया में लोग देश के कई हिस्सों में शरणार्थियों का जीवन जीने को मजबूर हैं। यहां तक कि कश्मीर घाटी में भी चल रहे आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों कश्मीर में पाकिस्तान की आतंकवाद फैलाने की योजनाओं बढ ते मदरसे जमायते-इस्लामी की कट्टरवाद फैलाने की योजना अब भी जारी है। इन सब के अलावे पाकिस्तान भारत में नकली नोटों को भेज कर भारतीय अर्थव्यवस्था को भी कमजोर करने की साजीस लगातार रच रहा है। अधिकांश भारतीय नकली नोट पाकिस्तान से आते हैं। अमेरिका के पास हर नकली अमेरिकी डालर का फोटो सहित डाटाबेस है और यह जानकारी भी है कि नकली डालर कहां से आया, किस रास्ते आया और इसे लाने वाले लोग कौन थे। पीओके से आतंकियों की वापसी के लिए जो योजना जम्मू कद्गमीर सरकार तैयार की है उसे लागू करने में पाक परेशानी पैदा कर रहा है। पूर्वी पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर हुए दंगों ने २ लाख से अधिक हिंदुओं और अन्य अल्पसंखयकों को भारत आने पर मजबूर किया है। पी ओ के में ५० हजार हिन्दू-सिखों के नरसंहार पाकिस्तान द्वारा किया जा चुका है । आजाद भारत की सबसे बड़ी असफलता है कि ६३ वर्षों में लाखों करोड रूपये खर्च कर हजारों सैनिकों के बलिदान के पश्चात भी भारतीय सरकार चुप बैठी है। बाड मेर के सीमावर्ती इलाकों में पाकिस्तानी मोबाइल नेटवर्क मिलने की समस्या से भारतीय नागरीको की गोपनीयता भंग हो रही है। नई समस्या अब पाकिस्तान सरहदी इलाको में रेडियो के माध्यम से भारत के सामने खड़ी कर रहा है। रेडियो एफएम के जरिये पाकिस्तान कट्टरता के विचार सरहद पर के गाँवों तक पहुँचाने का कार्य कर रहा है। इन्डस वाटर ट्रीटमेंट के बावजूद पाकिस्तान कश्मीर में पानी के लिए भी प्रत्यक्ष युद्ध लड रहा है। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता हैं की पाकिस्तान द्वारा भारत को इतनी समस्या होने के बाद भी पाकिस्तान पर सरकार कड़ी कार्रवाई क्यों नहीं करती !

पाकिस्तान पर सरकार कड़ी कारवाई क्यों नहीं करती ?

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