21 July 2023

ज्ञानवापी मामले में कहानी उन पांच महिलाओं की, जिनकी याचिका पर पहला सर्वे हुआ था

1. राखी सिंह  

दिल्ली के हौज खास की रहने वाली राखी सिंह इस मामले की अगुवाई कर रहीं थीं। इस पूरे मामले को 'राखी सिंह और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश सरकार' नाम दिया गया। राखी के पति का नाम इंद्रजीत सिंह है। इनका दूसरा घर लखनऊ के हुसैनगंज में है। 


2. लक्ष्मी देवी 

ज्ञानवापी मामले में दूसरी याचिकाकर्ता लक्ष्मी देवी हैं। लक्ष्मी वाराणसी के महमूरगंज इलाके की रहने वाली हैं। पति डॉक्टर सोहन लाल आर्य ने भी 1996 में ज्ञानवापी को लेकर अदालत में एक मामला दर्ज कराया था। इसके बाद ज्ञानवापी का निरीक्षण भी हुआ था, लेकिन कोई सर्वे नहीं हो सका। लक्ष्मी ने मीडिया को बताया कि पति भी चाहते थे कि मैं इस मामले को उठाऊं। ये मां शृंगार गौरी का मुद्दा है। इसलिए मैंने याचिका दायर की। 

 

3. सीता साहू

वाराणसी के चेतगंज की रहने वाली सीता साहू इस मामले में तीसरी याचिकाकर्ता हैं। सीता समाज सेविका हैं। पति का नाम बाल गोपाल साहू है। सीता का कहना है, वह कई बार मां शृंगार गौरी की पूजा करने आ चुकी हैं। उनका दावा है कि मां शृंगार गौरी का मंदिर मस्जिद के अंदर बना है, लेकिन हम लोग अंदर नहीं जा सकते। इसकी अनुमति नहीं है। सिर्फ बाहर से पैर छू पाते हैं। 


4. मंजू व्यास 

ज्ञानवापी मामले में चौथी याचिकाकर्ता मंजू व्यास भी वाराणसी की रहने वाली हैं। यहां उनका राम घाट में घर है। पति का नाम विक्रम व्यास है। मंजू भी समाज सेविका हैं। वह कहती हैं, रोजाना मां शृंगार गौरी के दर्शन की अनुमति होनी चाहिए। अभी हम लोग चौखट के दर्शन करके लौट आते हैं। 

 

5. रेखा पाठक 

पांचवीं याचिकाकर्ता रेखा पाठक भी वाराणसी की रहने वाली हैं। रेखा का घर वाराणसी के हनुमान फाटक के पास है। पति का नाम अतुल कुमार पाठक है। रेखा कहती हैं, ज्ञानवापी हम सभी के आस्था का केंद्र बिंदु है। इसपर कब्जा हुआ है। इसे छुड़ाने तक ये लड़ाई जारी रहेगी।

ज्ञानवापी पर वाराणसी जिला न्यायालय का आदेश

वाराणसी जिला न्यायालय ने शुक्रवार को चार हिंदू महिलाओं द्वारा दायर आवेदन को स्वीकार कर ASI को आदेश दिया है। 

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संपूर्ण ज्ञानवापी मस्जिद परिसर (वुज़ुखाना को छोड़कर) का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने की मांग की गई थी।

ये मांग इस लिए की गई थी ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या मस्जिद का निर्माण पहले से मौजूद हिंदू मंदिर संरचना पर किया गया था।

जिला न्यायाधीश एके विश्वेश की अदालत ने आज आदेश दिया है। अदालत ने निर्देश दिया कि एएसआई द्वारा वैज्ञानिक सर्वेक्षण सुबह 8-12 बजे के बीच होना चाहिए। 

कोर्ट ने साफ किया है कि सर्वे के दौरान नमाज पर कोई रोक नहीं होगी और ज्ञानवापी मस्जिद को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा।

ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में पूरे साल पूजा करने का अधिकार मांगने के लिए वाराणसी कोर्ट में लंबित एक मुकदमे में चार हिंदू महिला उपासकों द्वारा इस साल मई में सीपीसी की धारा 75 (ई) और आदेश 26 नियम 10 ए के तहत अदालत में आवेदन दायर किया गया था।

चार हिंदू महिला उपासकों के आवेदन में कहा गया है कि स्वयंभू ज्योतिर्लिंग लाखों वर्षों से आने स्थल ज्ञानवापी मस्जिद परिसर पर मौजूद था।

काफिरों और मूर्ति के प्रति घृणा रखने वाले मुस्लिम आक्रमणकारियों (1017 ई. में महमूद गजनवी के आक्रमण) द्वारा इसे कई बार नष्ट/क्षतिग्रस्त किया कराया।

सबसे कट्टर और क्रूर मुगल सम्राटों में से एक औरंगजेब ने 1669 में संबंधित स्थल पर भगवान आदिविशेश्वर के मंदिर को ध्वस्त करने के लिए फरमान जारी किया था।

औरंगजेब और उसके आदेश के अनुसार, उसके अधीनस्थों ने ज्ञानवापी मंदिर को ध्वस्त करके अपने इस्लामिक आदेश को लागू किया।

बाद में पुराने ध्वस्त मंदिर के बगल में, काशी विश्वनाथ के नाम पर एक नया मंदिर 1777-1780 में इंदौर की रानी रानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा बनवाया गया था। 

विचाराधीन परिसर ज्ञानवापी मस्जिद जो वर्तमान में है उससे स्पष्ट रूप से इसके प्राचीन अतीत के बारे में समझा जा सकता बताता है। 

इमारत की संरचना को देखने के बाद, कोई भी आसानी से कह सकता है कि इमारत एक पुराने हिंदू मंदिर के अवशेष है और वर्तमान संरचना को किसी भी तरह से मस्जिद नहीं माना जा सकता है।

एडवोकेट कमिश्नरों की रिपोर्ट का हवाला देते हुए आवेदन में विस्तार से बताया गया है कि कैसे पूरे मस्जिद परिसर में हिंदू मंदिर की कई कलाकृतियां और चिन्ह हैं।

18 July 2023

सीमा हैदर की भारत आने की कीमत पाकिस्तान के हिन्दू चुका रहे हैं

जिस दिन से सीमा हैदर की भारत आने की खबर पाकिस्तान को लगी है तब से लगातार जिहादी कट्टरपंथी वहां के हिन्दुओं को और उनके धार्मिक स्थलों को निशाना बना रहे हैं। कभी जिहादियों द्वारा हिन्दुओं के बहन- बेटियों ले साथ बलात्कार करने की धमकी दी जा रही तो कभी उनके घरों में लूट-पाट कर भागने की गीदड़ भभकी। सीमा हैदर की भारत आने की कीमत पाकिस्तान के हिन्दू चुका रहे हैं।

सीमा हैदर सिंध प्रांत की राजधानी कराची की रहने वाली है। वह सचिन नाम के एक भारतीय युवक के प्यार में पाकिस्तान से अपने चार बच्चों के साथ भारत आई है। सीमा पाकिस्तान से पहले संयुक्त अरब अमीरात और बाद में नेपाल के रास्ते भारत में घुसपैठ की है। उसके भारत आने के बाद पाकिस्तानी हिंदुओं को कट्टरपंथियों ने अंजाम भुगतने की धमकी भी दी थी। कट्टरपंथियों ने कहा था कि अगर सीमा हैदर को भारत ने वापस नहीं किया तो पाकिस्तान में हिंदू मंदिरों पर हमले किए जाएंगे। ऐसे में कराची के सोल्जर बाजार इलाके में मौजूद मरी माता मंदिर को गिराने की घटना का कनेक्शन भी सीमा हैदर की भारत में घुसपैठ से जुड़ा हुआ है।

कराची में गिराया गया हिंदू मंदिर 150 साल पुराना है। इस मंदिर के प्रबंधन का काम स्थानीय मद्रासी समुदाय करता था। सीमा हैदर केस सामने आने के बाद से जिहादी लगातार धमकियां मिल रही थी। मंदिर के पुजारी जब सुबह पहुंते तो उन्हें गेट और बाहरी दीवार के अलावा कुछ नहीं मिला। हमलावरों ने मंदिर को पूरी तरह से तबाह कर दिया था।

स्थानीय एसएसपी सैम्मो का कहना है कि इस हमले में आठ से नौ जिहादी कट्टरपंथी बंदूकधारी शामिल थे, इस घटना से स्थानीय हिन्दू निवासियों में दहशत है। पूरे मामले की गंभीरता देखते हुए मानवाधिकार आयोग ने सिंध के काशमोर और घोटकी जिलों में बिगड़ती कानून व्यवस्था की रिपोर्टों पर अपनी चिंता जताई है। ऐसे में आगे अब देखना ये होगा की पाकिस्तान सीमा हैदर के आड़ में किस हद तक जाता है।

 

15 July 2023

आगरा के जामा मस्जिद से श्री कृष्ण भगवान की मूर्तियों को मुक्त करो

औरंगजेब के कट्टरतापूर्वक कार्यों की झलक उसके प्रशंसक इतिहासकारों की पुस्तकों में मिलती है।

'मआसिर-ए-आलमगीरी' में लिखा है कि मंदिरों की रत्नजड़ित मूर्तियों को आगरा मंगवाया गया और बेगम साहिब की मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे रखा गया। 



मथुरा का नाम बदलकर इस्लामाबाद रखा गया। बेगम साहिब की मस्जिद जहांआरा द्वारा आगरा में बनवाई गई जामा मस्जिद है।

औरंगजेब के मुख्य दरबारी साखी मुस्ताक खान की लिखी किताब ई-आलम गीरी में लिखा है, ‘जो मूर्तियां थीं वो छोटी-बड़ी थीं। 

जिसमें बहुत महंगे-महंगे रत्न लगे हुए थे। जो मंदिर के अंदर लगी हुईं थीं।



उनको मथुरा से आगरा लाया गया। और उनको बेगम साहिब मस्जिद की सीढ़ियों में दफना दिया गया। 

इसके लिए कि लोग उन पर चढ़ते-उतरते रहें। इतना ही नहीं मथुरा के जिस मंदिर को डेरा ऑफ केशव राय के नाम से जाना जाता था, उसको भी तोड़ा गया।



किताब में आगे यह भी लिखा है कि औरंगजेब का आदेश था कि मंदिरों को जल्द तोड़ा जाए। 

मंदिरों को तोड़ने के बाद उस जगह पर शानदार मस्जिद का निर्माण किया गया। सन 1670 में ईद के दिन उस मस्जिद का उद्घाटन किया गया’।


जनवरी, 1670

"रमज़ान के इस महीने औरंगजेब द्वारा पैगंबर के विश्वास को पुनर्जीवित करने हेतु मथुरा में केशव राय के मंदिर को गिराने का आदेश”



थोड़े ही समय में कुफ्र की इस मजबूत बुनियाद को चकनाचूर कर दिया गया और उसके स्थान पर एक ऊंची मस्जिद का निर्माण किया गया।

मंदिर की छोटी-बड़ी मूर्तियों को आगरा लाया गया और बेगम साहिब की मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दफना दिया गया।

ताकि वे लगातार बनी रहें लोग उसे कुचलते रहे और मथुरा का नाम बदलकर इस्लामाबाद कर दिया गया। 


मासीर-ए-आलमगिरी, पृ. 95-96