22 April 2022

जहांगीरपुरी बुलडोज़र कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई और वकीलों की दलील

सुप्रीम कोर्ट ने जहांगीरपुरी विध्वंस पर यथास्थिति के आदेश को अगले आदेश तक बढ़ा दिया. पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, "मेयर को सूचना दिए जाने के बाद हुए विध्वंस को हम गंभीरता से लेंगे।" वरिष्ठ अधिवक्ता दवे ने कहा, यह "राष्ट्रीय महत्व" से संबंधित मामला है।


न्यायमूर्ति राव ने पूछा, क्या यह "राष्ट्रीय महत्व" का मामला है ? क्योंकि यह केवल दिल्ली के एक क्षेत्र तक ही सीमित है?

दवे ने कहा, यह अब "राज्य की नीति" बन गई है कि हर दंगों के बाद, बुलडोजर का उपयोग करके समाज के एक विशेष वर्ग को निशाना बनाया जाता है।

 

न्यायमूर्ति राव ने पूछा,  "ऐसा कैसे कह सकते है कि बुलडोजर राज्य की नीति का एक साधन बन गए हैं?"

 

दवे ने कहा, "यह मामला जहांगीरपुरी तक सीमित नहीं है। यह हमारे देश के सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित करने वाला मामला है।

 

सिब्बल ने कहा, "अतिक्रमण पूरे भारत में एक गंभीर समस्या है, लेकिन मुद्दा यह है कि मुसलमानों को अतिक्रमण से जोड़ा जा रहा है।"

 

न्यायमूर्ति राव ने पूछा,  "कोई हिंदू संपत्ति प्रभावित नहीं हुई?"

 

सिब्बल ने कहा, "कुछ अलग-अलग उदाहरण हैं। जब जुलूस निकाले जाते हैं और मारपीट होती है, तो केवल एक समुदाय के घरों पर बुलडोजर क्यों चलाया जाता है!"

 

सिब्बल ने कहा, "मध्य प्रदेश को देखें। जहां मंत्री कहते हैं कि अगर मुसलमान ऐसा करते हैं तो वे न्याय की उम्मीद नहीं कर सकते। यह कौन तय करता है? उसे वह शक्ति किसने दी?"

 

वृंदा करात की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पीवी सुरेंद्रनाथ ने कहा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बारे में बताया। लेकिन दोपहर 12.25 बजे तक तोड़फोड़ जारी रही।

 

सुरेंद्रनाथ ने कहा, "उसे रोकने के लिए उसे शारीरिक रूप से बुलडोजर के सामने खड़ा होना पड़ा। अगर वह वहां नहीं होती तो पूरा सी ब्लॉक ध्वस्त हो जाता।"

 

एसजी ने कहा, "खरगोन विध्वंस में, 88 प्रभावित पक्ष हिंदू थे और 26 मुस्लिम थे। मुझे यह विभाजन करने के लिए खेद है, सरकार नहीं चाहती है।

न्यायमूर्ति राव ने कहा, "हम याचिकाकर्ताओं से नोटिस पर हलफनामा चाहते हैं और विध्वंस के विवरण पर जवाबी हलफनामे और तब तक यथास्थिति का आदेश जारी रहेगा।"

जहांगीरपुरी: आपराधियों के वकील Vs पीड़ित हिन्दुओं के वकील

अपराधी: अंसार                                               पीड़ित: सुकेन सरकार

                                                                                                                                                               

वकील                                                  कोई वकील नहीं

                                                       कोई हिन्दू संगठन नहीं

                                                       कोई भी नेता या कार्यकर्त्ता नहीं

कपिल सिब्बल  

दुष्यंत दवे

संगठन और सहयोगी-

कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया

वृंदा कारत

जमीयत उलेमा-ए-हिंद

कांग्रेस पार्टी

आम आदमी पार्टी

अमानतुल्लाह खान

तृणमूल कांग्रेस

असदुद्दीन ओवैसी


जहांगीरपुरी दंगे के वकील और अनुमानित फ़ीस

 

कपिल सिब्बल: एक दिन की पैरवी के लिए 15 लाख रुपये तक फीस लेते हैं

 

दुष्यंत दवे: एक केस की पैरवी के लिए 6 लाख तक फ़ीस लेते हैं 


कबाड़ की अर्थव्यवस्था

भारत दुनिया का सबसे बड़ा कबाड़ मार्केट है

भारत में प्रत्येक वर्ष कबाड़ से 500 बिलियन डॉलर की कमाई होती है

भारत में कबाड़ की कुल वार्षिक खपत 20.40 मिलियन टन का है

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्क्रैप आयातक है

भारत 390 बिलियन रुपए के 6.48 मिलियन टन स्क्रैप आयात करता है

यह क्षेत्र 2022 के अंत तक 30.03 मिलियन टन का हो जाएगा

दिल्ली में कबाड़ का सालाना कारोबार लगभग 9,000 करोड़ रुपये का है

दिल्ली में करीब 1,000 स्क्रैप डीलर हैं

एक डीलर लगभग 50 लाख रुपये से 100 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार करने में सक्षम हैं

दिल्ली के डीलर चीन, अमेरिका और यूरोप तक में स्क्रैप का व्यापर करते हैं

कौन है जमीयत उलेमा-ए-हिंद ? जमियत का जिहादी चरित्र!

जमीयत उलेमा-ए-हिंद का स्याह सच एकबार फिर से सबके सामने आगया है

जमियत हमेशा से आतंकियों का खुलकर समर्थन करता रहा है

जमीयत उलेमा-ए-हिंद देशभर के मुसलमानों की पैरोकारी करता है

इसी मकसद से वर्ष 1919 में इसका गठन हुआ था

संगठन में देश के प्रमुख उलेमाओं को सदस्य बनाया गया है

जमियत के पास देशभर में करीब एक करोड़ सदस्य हैं

जमियत देश में जिहादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए कार्य करता है

CAA के समय होने वाले प्रदर्शन में भी जमियत देशभर में तोड़फोड़ और आगजनी में शामिल था

बाबरी ढांचा गिराने के वक्त जमियत ने पूरे देश में ज़हर घोलने का काम किया

देशभर में प्रशासनिक कार्यालयों के अन्दर जमियत ने तोड़फोड़ किए थे

जमियत का हिन्दू विरोधी रुख हमेशा से सुर्ख़ियों में रहा है

जमियत ने अमित शाह जी को पश्चिम बंगाल में हवाई अड्डे पर कदम नहीं रखने देने की धमकी दी थी

जमियत आतंकियों का हमेशा से मददगार रहा है

बम धमाके करने के लिए साजिश रचने वाले आतंकियों का केस भी जमियत लड़ रहा है

 

जहांगीरपुरी में बुलडोज़र पर जमियत की याचिका

सुप्रीम कोर्ट ने जहांगीरपुरी में अतिक्रमण के खिलाफ नगर निगम की कार्रवाई पर रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने घरों और अवैध अतिक्रमण को हटाने के अभियान पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है.


मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे द्वारा किए गए उल्लेख पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया.

दवे ने कोर्ट से कहा, "कुछ गंभीर मामले में आपके तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता है. जिस पर कल दोपहर 2 बजे सुनवाई होनी है, लेकिन उन्होंने आज सुबह 9 बजे विध्वंस शुरू कर दिया, यह जानते हुए कि हम इसका उल्लेख करेंगे."

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने आरोपियों के खिलाफ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात में बुलडोज़र से कार्रवाई पर बहस किया.

सिब्बल ने अधिकारियों द्वारा की गई कार्रवाई के खिलाफ जमीयत उलमा-ए-हिंद द्वारा दायर याचिका का उल्लेख किया.

याचिका में यह घोषणा करने की मांग की गई है कि दंडात्मक उपाय के रूप में अभियुक्तों की संपत्तियों को ध्वस्त नहीं किया जा सकता है.

पवन हंस का नौकरी जिहाद

भारत सरकार की मिनी रत्न कंपनी पवन हंस अपनी प्रशिक्षु भर्ती प्रक्रिया को लेकर विवादों में घिर गई है. लिस्ट में सिर्फ मुस्लिम उमीदवार होने के कारण चारों तरफ चर्चा छिड़ गई है. पवन हंस में शामिल होने वाले सभी नए प्रशिक्षु मुस्लिम हैं, इसके अलावा इसमें किसी भी दूसरे धर्म के कैंडिडेट के नाम को शामिल नहीं किया गया है. इस विवाद की शुरुआत पवन हंस लिमिटेड की ओर से संगठन में शामिल होने वाले नए ग्रेजुएट ट्रेनी की लिस्ट से हुई. लिस्ट में जितने भी लोग हैं वो सभी के सभी मुस्लिम समुदाय से ही हैं.


पवन हंस लिमिटेड भारत सरकार के नागरिक उड्डयन मंत्रालय के तहत एक सरकारी स्वामित्व वाली संस्था है, जिसे इंडियन ऑयल कंपनियों के लिए कई स्थानों पर और केदारनाथ और वैष्णो देवी मंदिर जैसे पवित्र तीर्थ स्थलों पर विशेष हेलीकॉप्टर सेवाएँ प्रदान करने का काम सौंपा गया है. माओवादी उग्रवाद से निपटने के लिए राज्य सरकारों द्वारा भी इनका उपयोग किया जाता है. ऐसे में एक हीं समुदाय के लोगों की भर्ती होने के कारण सुरक्षा की दृष्टीकोण से कई अहम सवाल खड़े हो रहे हैं.


एक ऐसा हीं वाक्य वर्ष 2020 में पश्चिम बंगाल पुलिस द्वारा चुने गए सभी मुस्लिम को लेकर सामने आया था. हालाँकि, यह आरक्षण का मामला था, मगर यहां पवन हंस लिमिटेड की इस सूची में भी ऐसा भी नहीं है. ऐसे में अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानजामिया मिल्लिया इस्लामिया के साथ पवन हंस लिमिटेड के समझौते पर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. सुदर्शन न्यूज़ जब पवन हंस के ऑफिस में जाकर उनका पक्ष जानने की कोशिश की तो पवन हंस ने कुछ भी बताने से बचता रहा है. पवन हंस के अधिकारी सुदर्शन के सवालों से बचते दिखे. उनके तरफ से कोई ठोस जवाब नहीं मिला.


खास बात ये है कि केंद्र सरकार के संगठन के लिए भर्ती के दौरान ऐसा करना दूसरे धर्मों और विश्वविद्यालयों के प्रति स्पष्ट व्यवस्थित भेदभाव की तरह लगता है. साथ हीं ये स्पष्ट रूप से संविधान के मूल अधिकारों का हनन भी है. साथ हीं पवन हंस लिमिटेड के संयुक्त महाप्रबंधक (विमानन अकादमी) मोहम्मद अमीर के ऊपर भेदभाव करने का आरोप लग रहा है. तो यहां सवाल ये खड़ा होता है की क्यों न इस भर्ती को रद्द कर दिया जाय ?

12 April 2022

दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश: खाद्य पदार्थों के सभी अवयवों के नाम लिखें, बल्कि यह भी स्पष्ट करें कि वे पौधे या पशु स्रोत से उत्पन्न हुए हैं या नहीं

हल्दीराम विवाद के बाद से अब ये सवाल खड़ा होने लगा है कि आखिर इस संबंध में क्या कुछ नियम है और कैसे कंपनियां अपने आर्थिक हितों के लिए उपभोक्ताओं के अधिकारों को ताक पर रख कर नियमों की धज्जियाँ उड़ा रही है. इसी विषय पर एक याचिका की सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि मांसाहारी सामग्री का इस्तेमाल और उन्हें शाकाहारी करार देना शाकाहारियों की धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं को ठेस पहुंचाएगा और उनके धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने के उनके अधिकार में हस्तक्षेप होगा.


न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने केंद्र और एफएसएसएआइ को यह सुनिश्चित करने का निर्देश भी दिया था कि किसी भी खाद्य पदार्थ के लेबल पर उसके निर्माण में इस्तेमाल होने वाले सभी अवयवों के न केवल नाम लिखें, बल्कि यह भी स्पष्ट करें कि वे पौधे या पशु स्रोत से उत्पन्न हुए हैं या नहीं.


कोर्ट ने ये कहा था कि इस तरह की खामियों की जांच में अधिकारियों की विफलता न केवल खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम और विनियमों का पालन नहीं कर रही है, बल्कि जनता के ऐसे खाद्य व्यवसाय संचालकों द्वारा धोखा भी दे रही है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि खाद्य पदार्थ के निर्माण में उपयोग किए जाने वाले ऐसे समान अवयवों जो जानवरों से प्राप्त होते हैं उसका प्रतिशत कितना है. पीठ ने कहा कि भले ही एक छोटे प्रतिशत के रूप में ही मांसाहार की सामग्री इस्तेमाल क्यों न किया गया हो, इसके इस्तेमाल मात्र से खाद्य पदार्थ मांसाहारी हो जाता है. इसी बात को ध्यान रखते हुए सुदर्शन न्यूज़ और देश हिन्दू समाज आज हल्दीराम से सवाल पूछ रहे हैं. मगर हल्दीराम न तो नियम को मानने को तैयार हैं और ना ही सफाई देने सामने आरहा है. 


दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा था कि प्रत्येक व्यक्ति को यह जानने का अधिकार है कि वह क्या खा रहा है और छल या छलावरण का सहारा लेकर व्यक्ति को कुछ भी नहीं दिया जा सकता है. इस दौरान खाद्य व्यवसाय संचालकों को इस आधार पर खाद्य सुरक्षा और मानक विनियमों का पूर्ण और सख्त अनुपालन सुनिश्चित करने का भी निर्देश कोर्ट ने  दिया था. कोर्ट ने कहा कि अदालत के इस आदेश का पर्याप्त प्रचार किया जाना चाहिए ताकि सभी संबंधित लोगों को उनके कानूनी और संवैधानिक दायित्वों और अधिकारों से अवगत कराया जा सके.


सुनवाई के दौरान पीठ को सूचित किया गया कि एक अवयव इंस्टेंट नूडल्स, आलू के चिप्स और कई तरह के अन्य स्नैक्स में पाया जाता है जोकि व्यावसायिक रूप से मांस या मछली से तैयार किया जाता है. इस पर पीठ ने कहा कि गूगल पर खोज करने पर पता चलता है कि सामग्री में अक्सर सुअर की चर्बी से प्राप्त होती है, भले ही यह खाने वाली क्यों न हो. हालांकि, खाद्य व्यवसाय संचालक अक्सर अपनी पैकेजिंग में इसकी जानकारी नहीं देते कि जिस खाद्य पदार्थ में इस घटक का उपयोग किया जाता है, वह एक है मांसाहारी उत्पाद है.

हल्दीराम विवाद: क्या हल्दीराम उर्दू अरबी भाषा जिहाद फैला रहा है ?

खाने पीने के सामान जैसे स्नैक्स, नमकीन, मिठाई जैसी चीजें बनाने के लिए जानी जाने वाली कंपनी हल्दीराम भाषा जिहाद को बढ़ावा दे रही है. हिन्दुओं के व्रत में खाए जाने वाले फलाहार पर अरबी भाषा के इस्तेमाल से हिन्दू समाज असमंजस में है, की ये फलाहार किन उत्पादों से बना है. क्योंकी बहुसंख्यक हिन्दू समाज को अरबी या उर्दू भाषा समझ में नहीं आती है. 

इस संबंध में जब हिन्दुओं ने हल्दीराम से जानकारी मांगी तो हल्दीराम ने कुछ भी बताने से मना कर दिया. ऐसे में हिन्दूहित और राष्ट्रहित के मुद्दे पर सम्पूर्ण हिन्दू समाज के लिए बेबाकी के साथ अपनी बात को रखने वाले, सुदर्शन न्यूज़ के चेयरमैन और प्रधान संपादक सुरेश चव्हाणके जी के पास, लोग अपनी समस्या को लेकर पहुंचे. सुरेश चव्हाणके जी ने इस विषय को सबसे पहले उठाया और फिर चैनल के रिपोर्टर को हल्दीराम से पक्ष जानने के लिए भेजा. मगर यहां भी हल्दीराम कुछ भी बताने से साफ तौर पर इंकार कर दिया.


इसके बाद सोशल मीडिया पर हिन्दुओं का गुस्सा फुट पड़ा और हर तरफ हल्दीराम का फलाहार चर्चा का विषय बन गया. ट्विटर और इंस्टाग्राम पर हल्दीराम के फलाहारी नमकीन के पैकेट्स की तस्वीरें लोगों ने शेयर की और हल्दीराम कंपनी से जवाब मांगा. ऐसे में यहां सवाल ये खड़ा होता है कि जब सामान व्रत का है तो इसका डिस्क्रिप्शन हिंदी में ना होकर अरबी या उर्दू में क्यों है? क्या हल्दीराम वाकई कुछ छिपाना चाह रहा है ? या फिर हल्दीराम हिन्दुओं को धोखा दे रहा है ?


सवाल यह है कि क्या हल्दीराम व्रत वाले खाने में कोई ऐसी चीज मिला रहा है जिसे वह लोगों से छिपाना चाहता है? क्या हल्दीराम अपने धार्मिक और व्रत रखने वाले कस्टमर्स को धोखा दे रहा है? नवरात्रि के दौरान उपवास करने वाले हिंदुओं को धोखा देना क्या ये हिन्दू समाज के साथ अन्याय नहीं है ? विवाद इतना बड़ा होने के बावजूद भी हल्दीराम की ओर से अबतक कोई बड़ी प्रतिक्रिया नहीं आई है.


हमारे संवादताता ने जब हल्दीराम के स्नैक के पैकेट को हाथ में लेकर स्टोर मैनेजर से इस मामले में जवाब मांगा तो मैनेजर भी भड़क पड़ी और पैकेट पर लिखी अरबी भाषा पर कोई जवाब नहीं दी. स्टोर मैनेजर ने कहा कि आपको जो करना है करिए मैं इस पर कुछ भी नहीं बोलूंगी. इसलिए आज हम पूछ रहे हैं कि ब्रत के पैकेट पर उर्दू-अरबी भाषा क्यों ?

06 April 2022

श्रीलंका में राष्ट्रपति शासन, दाने-दाने के लिए मोहताज हुए लोग

पड़ोसी देश श्रीलंका में इस वक्त हाहाकार मचा हुआ है. श्रीलंका में इस समय डीजल खत्म हो गया है और पेट्रोल आयात करने के लिए उसके पास पैसा नहीं बचा है. डीजल खत्म होने की वजह से वहां के बड़े-बड़े पॉवर प्लांट्स बन्द कर दिए हैं. हालात इतने खराब हैं कि वहां कि स्ट्रीट लाइट भी बन्द कर दी गई हैं. अस्पतालों में सर्जरी भी रोक दी गई है. दवाइयां और खाने-पीने के सामान के लिए वहां लंबी-लंबी लाइनें लग रही हैं, जिसकी वजह से कई जगहों पर दंगे भड़क गए हैं.


दो करोड़ की आबादी वाला देश श्रीलंका अपने लोगों को पेट्रोल और डीजल नहीं दे पा रहा है. श्रीलंका में लोग दाने-दाने के लिए मोहताज़ हैं. चारो तरफ दंगे हो रहे हैं. श्रीलंका में करेंसी कागज का टुकड़ा बन कर रह गई है और श्रीलंका की ये स्थिति इसलिए हुई है क्योंकि उसका विदेशी मुद्रा भंडार पिछले दो साल में 70 प्रतिशत तक कम हो चुका है.


रसोई गैस के लिए भी वहां लोगों को लंबी-लंबी कतारों में लगना पड़ रहा है. इसके अलावा वहां महंगाई ने भी सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. श्रीलंका में एक किलो-ग्राम चावल की कीमत 200 रुपये और 400 ग्राम दूध 800 रुपये का मिल रहा है.


इस आर्थिक संकट की वजह से श्रीलंका के लोगों में वहां सरकार के खिलाफ गुस्सा है. देर रात हजारों लोगों की भीड़ ने श्रीलंका के राष्ट्रपति भवन का घेराव करने की कोशिश की. इस दौरान भीड़ ने सेना के दो ट्रक और एक बस को भी आग लगा दी और इन लोगों द्वारा श्रीलंका की सेना पर पत्थर भी बरसाए गए. हालांकि इस हिंसा से पहले श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे वहां से निकल गए थे. श्रीलंका के लोग इस आर्थिक संकट के लिए राजपक्षे परिवार को सबसे बड़ा जिम्मेदार मान रहे हैं. असल में इस समय श्रीलंका को एक सरकार, नहीं बल्कि एक परिवार चला रहा है और ये परिवार है, राजपक्षे परिवार है.


श्रीलंका की सरकार में इस परिवार के कुल सात लोग हैं. इनमें गोटबाया राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति हैं, उनके भाई महिन्दा राजपक्षे श्रीलंका के प्रधानमंत्री हैं, चमल राजपक्षे सरकार में सिंचाई मंत्री हैं और सबसे छोटे भाई बासिल राजपक्षे वित्त मंत्री हैं. यानी चारों भाई सरकार में बड़े पदों पर हैं. इसके अलावा प्रधानमंत्री महिन्दा राजपक्षे के पुत्र नमल राजपक्षे खेल मंत्री हैं और कृषि मंत्री चमल राजपक्षे के पुत्र शीशेंद्र राजपक्षे सरकार में जूनियर मिनिस्टर हैं. यानी श्रीलंका में इस समय एक ऐसी सरकार है, जो देशहित में कम और परिवारहित में ज्यादा काम कर रही है. आरोप है कि राजपक्षे परिवार ने आर्थिक संकट के बावजूद दूसरे देशों से कर्ज लेना जारी रखा और आयात पर भी अपनी निर्भरता को कम नहीं किया, जिससे वहां हालात बिगड़ते चले गए.

पालघर के आरोपियों को मिली जमानत, बॉम्बे हाईकोर्ट ने दी जमानत

पालघर नागा साधु मॉब लिचिंग मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने 10 और आरोपितों की जमानत अर्जी को मंजूर कर लिया है. वहीँ हाईकोर्ट ने 8 अन्य आरोपितों की जमानत याचिका को खारिज कर दिया है. अप्रैल 2020 में पालघर के अंदर दो नागा साधुओं और उसके ड्राइवर की पीट-पीटकर बेरहमी से हत्या कर दी गई थी. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि ये 10 आरोपित 400-500 की भीड़ का हिस्सा थे लेकिन मरते हुए कहीं वीडियो में नहीं दिखे हैं.


मुंबई पुलिस ने इस मामले में करीब 180 आरोपितों को वीडियो फुटेज के आधार पर गिरफ्तार किया था. जिसमें से पिछले 2 साल में बहुत से आरोपितों को अब तक जमानत मिल गई है. 2020 के पालघर मॉब लिंचिंग मामले में इससे पहले जनवरी, 2021 में विशेष अदालत ने मामले के 89 आरोपितों को जमानत दे दी थी. दोनों संख्याओं को ध्यान रखा जाए तो अब तक करीब 100 आरोपितों को जमानत मिल चुकी हैं. कोर्ट ने घटनास्थल पर मौजूद लोगों और वीडियो फुटेज में मृतक साधुओं के साथ मारपीट करने वालों से हमलावरों को उकसाने में शामिल लोगों के बीच अंतर बताते हुए जमानत अर्जी मंजूर की है.


बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सीसीटीवी फुटेज में देखे जाने के बावजूद हिंसा में सीधे शामिल न होने के कारण 10 आदिवासियों को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया. अब जब जाँच पूरी हो गई है तो उनकी हिरासत का वारंट नहीं है और वे जमानत पर रिहा होने के हकदार हैं.


वहीं जिन लोगों की जमानत खारिज कर दी गई उनमें से कुछ को मृतक साधुओं को मारते और पत्थर फेंकते देखा गया है. अन्य लोग साधुओं को लाठी-डंडे से मारते हुए दिखाई देते हैं.


पालघर मॉब लिंचिंग की जाँच महाराष्ट्र के स्टेट क्राइम ब्रांच की टीम को सौंपी गई थी. क्राइम ब्रांच ने 126 आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी. वहीं जस्टिस भारती डांगरे ने इस मामले में 8 आरोपितों को जमानत देने से इनकार कर दिया था. 

नेपाल फिर घोषित होगा हिंदू राष्ट्र, नेपाल के पर्यटन मंत्री ने की पहल

नेपाल एकबार फिर से हिन्दू राष्ट्र घोषित होने की ओर अग्रसर है. विश्व हिंदू फेडरेशन की कार्यकारी परिषद की बैठक में नेपाल, भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका, मलयेशिया, अमेरिका, जर्मनी और ब्रिटेन समेत 12 देशों के 150 से ज्यादा प्रतिनिधियों भाग लिया. 


इस बैठक में नेपाल को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग का समर्थन करते हुए सरकार के पर्यटन और संस्कृति मंत्री प्रेम एली ने कहा कि ज्यादातर लोग इसके समर्थन में हैं. विश्व हिंदू फेडरेशन की कार्यकारी परिषद की दो दिवसीय बैठक का उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसी मांग आती है तो वे रचनात्मक भूमिका निभाएंगे.


फेडरेशन के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष अजय सिंह के यह मुद्दा उठाने पर उन्होंने कहा कि वर्तमान पांच पार्टियों की संयुक्त सरकार को संसद में दो तिहाई बहुमत है. ऐसे में नेपाल को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग पर जनमत संग्रह कराया जा सकता है. संविधान में नेपाल को धर्मनिरपेक्ष  बनाया गया है, लेकिन ज्यादातर आबादी हिंदू राष्ट्र के पक्ष में हो तो ऐसा क्यों न किया जाए. 2006 में लोगों का आंदोलन कामयाब होने के बाद राजशाही को समाप्त कर 2008 में नेपाल को धर्मनिरपेक्ष देश बनाया गया था. नेपाल में ज्यादातर आबादी हिंदू है.


भारत की यात्रा पर आए नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने तमाम मुद्दों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से चर्चा की. द्विपक्षीय तंत्र स्थापित करने का आग्रह किया. प्रधानमंत्री मोदी और देउबा के मुलाकात के दौरान भारत में विकसित रुपे कार्ड सुविधा का नेपाल में शुरुआत किया गया. 


इसके साथ ही नेपाल और भारत को रेलवे से जोड़ने और तथा पर्यटन सर्किट के माध्यम से दोनों देशों के तीर्थस्थलों को जोड़ने के साथ-साथ सौर ऊर्जा को लेकर भी समझौता हुआ.