23 December 2012

क्या हमारी सरकार संवेदनहीन हो गयी है ?


लोकतंत्र का मतलब है हर नागरिक को बराबर अधिकार और सत्ता में भागेदारी के लिये बराबर के अवसर। लेकिन बीते 8 बरस में जिस तरह भ्रष्टाचार, महंगाई, काला धन को लेकर संसद के भीतर बहस हुई और जनता के हित-अहित को अपने- अपने राजनीतिक जरुरत की परिभाषा में पिरोकर लोकतांत्रिक होने का मुखौटा दिखाया गया। उसको लेकर अब नये- नये सवाल खड़े होने लगे है। जो सिधे सरकार के उपर संवेदहीन होने का प्रत्यक्ष प्रमाण को दर्षाता है। देष में आज एक के बाद एक बड़े बड़े आंदोलन लगातार लोग कर रहे है मगर सरकार हर बार उसे सुलझाने के बजाय दबाने और कुचलने के लिए प्रयास कर रही है। भारत कुछ दिनों बाद तानाषाही में न बदल जाय इसको भी लेकर लोगो के मन में अभी से भय सताने लगा है। आज जो आवाज उठ कर सामने आ रही हैं उसको दबाने में सत्ता पक्ष को कोई खास मुश्किल नहीं आ रही है क्योकी सरकार इसे लोकतंत्र की गला घोंट कर असानी से निपटा ले रही है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने का तमगा लगाकर जीना आसान काम नहीं है। खासकर लोकतंत्र अगर संसदीय राजनीति का मोहताज हो। और संसदीय सत्ता की राजनीति समूचे देश को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाये। और सत्ता के प्रतीक संसद पर काबिज राजनीतिक दलों के नुमाइन्दे भ्रश्टाचार, बलात्कार, जैसे विशयों पर जब चुप्पी ले तो सवाल अराजकता के मुहाने पर आकर खड़ा हो जाता है। आज देष का आक्रोस बात्कार पीडि़ता को न्याय दिलाने के लिए सड़को पर उमड़ रहा है, और सत्ता का षिखर रायसीना हिल्स अगर डगमगा रहा है तो इसका एकमात्र कारण भी सरकार की संवेदनहीनता है। जो समय रहते किसी भी मसले का समाधान निकालने के बजाय उसे रफा- दफा करने की प्रयास करती है। आम इन्सान की बिसात क्या जब इस देश में महिला आई ,ए .एस . अफसर मधु शर्मा के आई पी एस पति के ठीक उसी दिन हत्या कर दी गयी जिस दिन महिला दिवस था। अफसर की विधवा जो खुद भी आई 'ए .एस . अफसर है , जिसे खून के आंसू पीने को मजबूर कर दिया गया है तो किस से न्याय की उम्मीद की जा सकती है और किसे न्याय मिल सकती है। फिर भी देष ने बर्दास्त किया। मगर लगता है अब लोगों को न्याय से उमीद टूट चुकी है, राजनीति दलों से आस उठ चुकी है। क्योकी औरत की आबरू को सड़को पर चिरहरण होने लगा है। आम आदमी के अधिकार को दलाली के बाजार में बेचा जा रहा है तो एसे में ये जनआक्रोस बुलंद होना आम आदमी के गुस्से का प्रतीक को याद दिलाता है। जो बार- बार सरकार की संवेदनहीनता को दर्षाता है। दिल्ली में दरिंदगी की दहला देने वाली घटना के बाद जो माहौल दिखा है, वह कोई पहली बार नहीं दिखा। पिछले डेढ़ दशकों में करीब आधा दर्जन से ज्यादा बार दिल्ली इस तरह के झकझोर देने वाले माहौल से गुजर चुकी है। पिछले डेढ़ दशकों में दिल्ली कई बार उबली है। कई बार शर्मसार हुई है। कई बार मोमबत्तियों की रोशनी के साथ एकजुट हुई है, लेकिन खीझ और हताशा यही है कि बार-बार ऐसे मौकों की पुनरावृत्ति हो रही है। सवाल है कि गुस्से से उबल रहा देश इसकी पुनरावृत्ति के लिए क्यों मजबूर हो रहा है? आखिर दरिंदे इतने बेखौफ क्यों हैं? उन्हें कोई डर, अपराधबोध या चिंता क्यों नहीं होती? क्यों किसी प्रियदर्शिनी मट्टू, किसी मेडिकल कॉलेज की छात्रा, किसी कॉल सेंटर की कर्मचारी के साथ बर्बर दरिंदगी की घटना के कुछ महीनों बाद ही फिर उससे भी बड़ी दरिंदगी की घटना घट जाती है? आज सरकार की संवेदनहीनता इन्ही सवालों के इर्द- गिर्द ही घुम रही है। क्योंकि ये सवाल बार-बार हमारे गुस्से को आईना दिखाते हंै। क्योंकि ये सवाल बार-बार हमारे गुस्से को नपुंसक ठहराते हैं। हमारी सरकार हमें कैसी प्रशासन व्यवस्था प्रदान कर रही है यह आज सब के सामने आ गया है। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है की क्या सरकार संवेदनहीन हो गयी है।

बलात्कारियों को सज़ा का प्रावधान क्या होना चाहिए ?

दिल्ली को भारत का दिल कहा जाता है मगर आज इसी दिल्ली में वहशी दरिंदों का आतंक मचा हुआ है। दिल्ली में छात्रा के साथ हुए गैग रेप की घटना पर हर ओर से कड़ी सजा के लिए मांगे उठने लगी है। भारतीय दंड सहिंता की धारा 376 में ये प्रावधान है की बलात्कार के लिए सजा दस वर्ष से कम न होगी और ये अधिकतम आजीवन कारावास तक हो सकेगी, साथ ही जुर्माने का प्रावधान भी है। मगर वर्तमान बिगडती हुई परिस्थितियों में अब ये सवाल भी खड़े होने लगे है की बलात्कारीयों के लिए सजा क्या होना चाहिए ? क्या सिर्फ कोरी बयान बाजी और आन्दोलन इस समस्या का समाधान है। ऐसे में कही न कही समाजिक सानसिकता को बदला जयादा अहम साबित हो सकता है। क्योकी आज सिर्फ पुरूस प्रधान समाज को दोशी ठहराने मात्र से इसका समाधान नही हो सकता, जब तक कानुन के हाथ सजबूत न हो जाए। भारत में पिछले 5 वर्षों में दुष्कर्म और बलात्कार की घटनाओं में 20 फीसदी की भयावह वृद्धि हुई है। बलात्कार की घटनाएँ इतनी तेजी से बढ़ने की दो मुख्य वजह सामने आई है षराब की नषा और अपने आप को मार्डन दिखाने वाले की अश्लीलता और नग्नता। दुष्कर्म की घटनाओं के सभी मामलों में 80 फीसदी दोषी शराब के नशे में ये कुकर्म करता है। मगर सरकारें सराबखोरी को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही हैं। भारत के चरित्र को गिराने के लिए अंग्रेजो ने 1758 में कलकत्ता में पहला शराबखाना खोला जहाँ पहले साल सिर्फ अंग्रेज जाते थे और आज पूरा भारत जाता है। यही से सुरू होता है ये असमाजिक कुर्कमों का खेल। साथ ही आज के हिन्दी फिल्में राज़, जिस्म- 2 और मर्डर- 2 को पारित करना और ‘डर्टी पिक्चर’ को राष्ट्रीय पुरस्कार देकर अश्लीलता और नग्नता को बढ़ावा देना भी कही न कही इसका एक बड़ा कारण माना जा रहा है। आज इन दुष्कर्मियों और बलात्कारियों को फांसी या नपुंसक बनाने जैसी कठोर सजा देकर और उपर्युक्त कारणों पर रोक लगाकर समाज में ऐसी वीभत्स घटनाओं को क्या रोका जा सकता है, आज ये एक बहस का विशय बन चुका है। पैरामेडिकल छात्रा से हुई सामूहिक बलात्कार की घटना सभ्य समाज में कोई पहली घटना नहीं है बल्कि आज देश में हर रोज औसतन सौं से अधिक महिलायें बलात्कार की शिकार हो रही है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर कब तक इस तरह की घटनाएं होती रहेंगी और आखिर क्यों हर बार पुलिस और सरकार इन घटनाओं के होने के बाद ही हरकत में आती हैं और इन घटनाओं को रोकने के लिए इस पर मंथन होता है ? संसद में दिल्ली गैंगरेप के बाद ऐसे आरोपियों को फांसी की सजा देने की बात उठी और गृहमंत्री ने भी सख्त से सख्त कार्रवाई का भरोसा तो दिलाया। मगर ये अवाज़ सिर्फ संसद के अंदर ही दब कर रह गई, और सड़कों पर मस्तमौले अब भी हर जगह मौज करते दिख रहे है। ऐसे में महिलाएं खुद को असुरक्षित महसूस कर रही हैं। भारतीय समाज में पाश्चात्य सभ्यता के संस्कारों की घुसपैठ ने भारतीयों के सनातन विचारों की मानों होली ही जला डाली है। आज समाज में बढता व्याभिचार इसी का परिणाम है। किसी लड़की के साथ रेप होना केवल उसकी अस्मिता पर ही प्रहार नहीं है, बल्कि यह उसकी आत्मा पर लगने वाला ऐसा घाव है जो उसे जिंदगी भर कुरेदता है। तो सवाल खड़ा होता है की ऐसे बलात्कारीयों के लिए सजा क्या होनी चाहिए।

21 December 2012

क्या नरेन्द्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनाना चाहिए ?

नरेन्द्र दामोदरदास मोदी अक्तूबर 2001 मे पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री, इसके बाद दिसम्बर 2002 और दिसम्बर 2007 के विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत हासिल किया। जिसके चलते  नरेन्द्र मोदी को लोग विकास पुरुष के नाम से पुकारने लगे। एक बार फिर से मोदी तीसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे है। विधानसभा का यह पहला चुनाव है जिसमें मुख्यमंत्री से ज्यादा उनकी प्रधानमंत्री पद की दावेदारी की चर्चा हुई। गुजरात विधानसभा के चुनाव के दौरान लोगों को मोदी के दिल्ली आने की आहट सुनाई दे रही थी। गुजरात में मोदी की हैटिक से ज्यादा चर्चा इस बात की है कि क्या भारतीय जनता पार्टी नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाएगी? मगर अब गुजरात चुनाव के नतीजे से एक बात साफ हो गई कि विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ा और जीता जा सकता है। इस बार चुनाव में कोई भावनात्मक मुद्दा नहीं था। ऐसे में गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद अब नरेंद्र मोदी के दिल्ली आने की चर्चा तेज हो गई है। साथ ही विरोधीयों के खोखले बोल पर बिराम लग गई है। ऐसे में अब लगता है भाजपा के अंदर समीकरण बदलेंगे और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में भी समीकरण को बदलना होगा। अब तक मोदी बिरोधी भाजपा नेता उन्हे पार्टी से उपर होने का आरोप लगा रहे थे मगर मोदी ने पार्टी को मां का दर्जा देकर सबका मुंह बंद कर किया है। मोदी अपने जिंदगी में बहुत सारे मेडल हासिल किए है मगर तीसरी बार जीत के बाद जब सामने आए तो उन्होने कार्यकर्ताओं और गुजरात के मतदाताओं को अपने लिए सबसे बड़ा मेडल बताया। जिन सरकारी मुलाजिमों को बिरोधयों ने हर समय उनके उपर ज्यादा कार्य कराने के आरोप लगाते थे, मगर उन मुलाजिमों के आगे विरोधीयों की एक भी नही चली। गुजरात में मोदी की जीत देश के दूसरे राज्यों के मुस्लिम मतदाताओं को भाजपा के बारे में अपनी पुरानी राय पर पुनर्विचार के लिए प्रेरित कर सकती है। मोदी का दिल्ली आना कांग्रेस के लिए भी बड़ा सिरदर्द बनने वाला है, क्योंकि राहुल गांधी का मुकाबला अब नरेंद्र मोदी से होने वाला है। जो जिम्मेदारी लेकर अपने को साबित कर चुका है। मगर राहुल गांधी अभी तक जिम्मेदारी से बचते रहे है। लगातार तीसरी बार जीत हासिल करने के कारण नरेंद्र मोदी एक नए अवतार के रूप में सामने आए हैं। वह न केवल हिंदुत्ववादी नेता की छवि तोड़कर विकास के लिए समर्पित राजनेता के रूप में उभरे हैं, बल्कि प्रधानमंत्री पद के लिए उनकी दावेदारी और मजबूत हो गई है। ज्योति बसु भी एसे ही सफलता से प्रधानमंत्री के लिए दावेदार बन गए थे। नरेंद्र मोदी ने राजनीतिक पंडितों को भी एक नई सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया कि एंन्टी इन्कम्बन्सी यानी की सत्ता विरोधी लहर का असर विकास के आगे दम दोड़ सकती है। मोदी ने अपने जीत के संबोधन में कहा कि गुजरात के मतदाता काफी परिपक्व हैं वे जाति और क्षेत्र के आधार पर वोट नहीं करते है। ऐसा कहते हुए मोदी यूपी और बिहार के मतदाताओं को ये संदेश दे रहे थे कि हमारे मतदाताओं के इसी नजरिए के चलते गुजरात एक विकास करने वाला राज्य है। इसे नरेंद्र मोदी का करिश्मा ही कहा जाएगा कि गुजरात विधानसभा चुनाव पर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी से कहीं ज्यादा मोदी का व्यक्तित्व ही हावी रहा तो ऐसे में ये कहना गलत नही होगा कि क्या मोदी को प्रधान मंत्री बनाना चाहिए ?

16 December 2012

चार रुपये में काटो दिन, शीला दीक्षित का नया हिसाब ?

भारत की गरीबी रेखा हमेशा से ही बड़ी बहस का विषय रही है पर यह बहस आज अर्थशास्त्रियों और नीति निर्माताओं तक ही सीमित नही है। आज के इस बदलते राजनैतिक दौर में हर कोई अपना पैमाना बनाने लगा है। इस बार सामने आयी है दिल्ली के मुख्यमंत्री षीला दीक्षित ने। 600 रुपये में पांच लोगों के एक परिवार का एक महीने के लिए दाल-रोटी का इंतजाम आराम से हो सकता है, आप भले ही ये ना मानें लेकिन दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के हिसाब से ऐसा संभव है। गरीबी के खिलाफ जंग की सरकारी योजना का दम मंजिल पर पहुंचने के पहले ही भ्रश्टाचार के षिकार हो जाता है, इसलिए इसे, गरीब परिवार के महिला मुखिया के बैंक खाते में हर महीने 6 सौ रुपये ट्रांसफर करने की योजना बनाई गई है। इसकी सुरूआत अन्नश्री योजना के लिए कैश सबसिडी ट्रांसफर स्कीम के रूप में की गई है। इस योजना को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने लांच किया है। क्या इस देष का गरिब सिर्फ संख्या मात्र के लिए है, जो अपने वजूद को बचाने के लिए दिन रात मेहनत करता है। ताज्जुब इसलिए भी है की तकरीबन 15 प्रतिषत लोग अमीर वर्ग की श्रेणी में आते हैं, देष में तकरीबन 30 फीसदी लोग माध्यम वर्गीय श्रेणी में आते हैं और बचे हुए 55 प्रतिषत लोग या जनता गरीबी की श्रेणी में आती हैं। दिल्ली सरकार की ओर से कहा गया है की गरिब परिवार के लोगों को 600 रूपये में कम से कम दाल, चावल और गेहूं तो मिल ही सकता है। मगर यहा बड़ा सवाल ये है की क्या सिर्फ दाल, चावल और गेहूं मात्र से ही गरिब व्यक्ति का आहार पूरा हो जाएगा ? क्या उसे खाना तैयार करने के लिए एल पी जी गैस सिलिंडर के साथ- साथ, दुध, तेल, सबजी, की जरूरत नही पड़ेगी ? अगर इसे प्रति व्यक्ति के हिसाब से देखें तो एक दिन में सिर्फ चार रूपया बैठता है। अब सवाल उठता है कि क्या दिल्ली में रहने वाले किसी आदमी का पेट सिर्फ 4 रुपये में भर सकता है? मतलब साफ है की दिल्ली क्या देश और दुनिया के किसी कोने में भी 4 रुपये में पेट नहीं भरा जा सकता हैं, लेकिन दिल्ली की मुख्यमंत्री के मुताबिक दिल्ली में ऐसा संभव हैं। गरिबों के मजाक उडाने का ये कोई पहला एसा वाक्यां नही है इससे पहले खुद योजना आयोग भी एसे बेतूके आकडे़ को सही ठहरा चुका है। जिसमें गांव में रहने वाले गरिब परिवार के लिए 28 रूपये और षहरी क्षेत्र के लिए 32 रूपये एक दिन के लिए निर्धारित की गई थी। योजना आयोग द्वारा शौचालयों की मरम्मत के नाम पर 30 लाख रूपये खर्च किए गए। आयोग के उपाध्यक्ष मोटेंक सिंह अहलूवालिया ने 2011 के मई और अकतुबर के बीच विदेष यात्रा पर रोजाना दो लाख दो हजार रूपये खर्च किए जो उस समय काफी विवादित रहा था। मगर अब षिला का हिसाब तो योजना आयोग के आकड़े को भी झुठला रहा है। तो एैसे में आप भी कहेंगे की ये दिल्ली के गरीबों का मजाक नहीं तो और क्या है ?

15 December 2012

क्या भारत सरकार पाकिस्तान के आगे झुक गयी है ?

पाकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मलिक शुक्रवार को दिल्ली पहुंचे तो उनके आवभगत और स्वागत के लिए भारत के गृहराज्य मंत्री आर पी एन सिंह ने उनका इस कदर गर्मजोषी से स्वागत किया मानो भारत के लिए मलिक कोई तौफा लेकर आये है। बाद में बयान आया ये अमन का पैगाम लेकर आए हैं। यहा सवाल खड़ा होता है की क्या देष के दुष्मनो के सरर्णाथी पाकिस्तान के साथ भारत सरकार झुक गई है। क्या सरकार समझौते के नाम पर देष के दुष्मो को एक बार फिर से गले लगाना चाहती है। जो आए दिन देष में दहसत फैलाते है, और मासुमों का खुन बहाते है। फिर भी सरकार एक के बाद एक समझौते कर रही है। जो नए समझौते हुए है उसमें 12 वर्ष से कम तथा 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को तथा व्यापारियों को पुलिस रिपोर्टिग से छूट जैसे नए समझौते शामिल है। यह वीजा समझौता ऐसे समय में लागू होने जा रहा है, जब पाकिस्तान-भारत के बीच क्रिकेट श्रृंखला होने वाली है। इसके तहत 25 दिसम्बर से भारत में तीन एक दिवसीय और दो ट्वेंटी-20 मैच खेले जाने हैं। मगर क्रिकेट के आड़ में होने वाली सियासत की बात करे पहले हमे एक बार फिर से बाला साहब ठाकरे के द्वारा सामना में छपे उस लेख को याद करना होगा जिसमे कहा गया था की अगर देष में इन्हे जयादा संख्या में आने की अनुमती दी गई तो इससे आतंकीयों की फौज देष में घुसपैठ करेगी। मगर इन सब के अलावे अगर रहमान मलिक की बात करे तो उनके द्वारा दिए गए बयान देष के लोगो के मन में कई सवाल खड़े करते है। मलिक ने कहा बाबरी मस्जिद विध्वंस और समझौता एक्सप्रेस जैसी घटनाएं दोबारा न हों, हमें इसका ख्याल रखना होगा। मलिक का यह बयान देष के अंदर समाजिक सौहार्द को बिगाड़ने जैसा है क्योकी यहा पर मलिक को हमारे देष के आंतरिक विशयों पर बोलने का कोई नैतिक अधिकार नही है। पाकिस्तान में आए दिन मंदिरों को तोड़ा जाता है और हिन्दुओं को धरमांर्तरण कराया जाता है तब क्यो रहमान मलिक चुप्पी साध लेते है। ये सवाल आज हर हिंन्दुस्तानी मलिक से पुछ रहा है, साथ ही करगिल में शहीद हुए कैप्टन सौरभ कालिया के बारे में रहमान मलिक ने जिस प्रकार से अपना पल्ला छाड़ लिया उससे तो यही साबित होता है की रहमान मलिक भारत के प्रति सामरिक रिस्तों को लेकर कितना गंभिर है। मलिक ने कहा है की उन्हे नही मालूम कि कालिया की मौत पाकिस्तान की गोली से हुई या मौसम से। भारत जिन मुद्दों को पाकिस्तान के सामने उठाना चाहता उसे पाक मानने से इंनकार करता रहा है। मुम्बई हमले के आतंकवादियों के सूत्रधार हाफिज सईद को सौंपने को लेकर पाकिस्तान हमेषा इंकार करता है, सिमापार से फर्जी भारतीय नोटों को देष के अंदर लाने का कार्य लगातार किया जा रहा है। दाऊद इब्राहिम समेत लगभग चार दर्जन मोस्टवांटेड आतंकियों व अपराधियों को सौंपे जाने के मामले में पाकिस्तान अपने पुराने रुख पर कायम है उसे भारत के हाथ में कतई सौपने को तैयार नही है। मगर फिर भी भारत सरकार पाक को गले लगा कर इसे षांति का पैगाम बता रही है। तो सवाल खड़ा होता है की क्या पाकिस्तान के आगे सरकार झुक गई है।

14 December 2012

सरक्रीक, पाकिस्तान को सौपना कितना सही ?

गुजरात के कच्छ की समुद्री सीमा पर स्थित 650 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र सर क्रीक एक बार फिर से अचानक सुर्खियों में आ गया है। इस मुद्दे को उठाया है गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने और दबाने की कोशिश कर रही है केंद्र की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस। सर क्रीक 650 वर्ग किलोमीटर का भारत का वो समुद्री इलाका है, जिस पर पाकिस्तान अपना दावा करता है। इतिहास के पन्ने पलटें तो भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के दौरान चार्ल्स नैपियर ने 1842 में सिंध पर जीत हासिल की और उसे बंबई राज्य को सौंप दिया। उसके बाद सिंध में शासन कर रही सरकार ने सिंध और बंबई के बीच सीमारेखा खींचने का निर्णय लिया, जो कच्छ से गुजरती थी। उस निर्णय के अंतर्गत सरक्रीक खाड़ी को सिंध प्रांत में दर्शाया गया। जबकि दिल्ली में शासन कर रही अंग्रेज सरकार के नक्शे में इसे भारत में दर्शाया गया। विवाद हुआ और फाइलों में दब गया। लेकिन स्वतंत्रता के बाद जब दोनों देशों के बीच बंटवारा हुआ तो पाकिस्तान ने सरक्रीक खाड़ी पर अपना मालिकाना हक जता दिया। इस पर भारत ने एक प्रस्ताव तैयार किया जिसमें समुद्र में कच्छ के एक सिरे से दूसरे सिरे तक सीधी रेखा खींची और कहा कि इसे ही सीमारेखा मान लेनी चाहिये। यह प्रस्ताव पाकिस्तान ने ठुकरा दिया, क्योंकि इसमें 90 फीसदी हिस्सा भारत को मिल रहा था। तब से लेकर आज तक दोनों देशों के बीच इस खाड़ी के मालिकाना हक को लेकर विवाद जारी है। मगर अब खबरे आ रही है की भारत सरकार इसे पाकिस्तान को सौपे पर बिचार कर रही है। इसी बिच मोदी के प्रखर राश्ट्रवादी नजरों ने सरकार के इस कुटनीती को पकड़ा है। मोदी ने इसे किसी भी हाल में पाकिस्तान को नही सौपने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक पत्र लिखा है। जिसमे कहा गया है की इतिहास को देखते हुए सरक्रीक को पाकिस्तान को सौंपे जाने की कोई भी कोशिश एक रणनीतिक भूल होगी। साथ ही मोदी ने ये भी आग्रह किया है की, पाकिस्तान के साथ यह वार्ता बंद हो और पाकिस्तान को इसे नहीं सौंपा जाना चाहिए। ऐसी खबर आयी है कि हाल ही में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस पर डील फाइनल करने की चर्चा की। रक्षामंत्री एके एंटनी और तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी भी इस पर राजी हो गये। माना जा रहा है कि यूपीए इस मामले को जल्द ही पाकिस्तान के सामने रख सकती है।

सरक्रीक इस लिए भी महवपूर्ण है क्यों की देश की सरक्रीक प्राकृतिक संपदा का भंडार भी है। इस क्षेत्र में भारी मात्रा में कच्चा तेल अथवा गैस होने की संभावना है, जो भारतीय अर्थ व्यवस्था के लिये सकारात्मक साबित हो सकता है। दलदली भूमि होने की वजह से सैनिकों को इस इलाके से होने वाली तस्करी और घुसपैठ के खिलाफ कार्रवाई करने में कठिनाई आती है। हाल ही में केंद्रीय गृहमंत्रालय ने इस इलाके में बीएसएफ की यूनिट बढ़ाने के लिए बजट में 44 करोड़ रुपये को मंजूरी दी है। सन 2000 में पाकिस्तान ने सरक्रीक पर भारी संख्या में सैनिकों को तैनात किया था। उसका मकसद था कारगिल जैसे युद्ध की तैयारी। इसी लिए यह इलाका काफी संवेदनषील माना जा रहा है। 1965 के बाद ब्रिटिश पीएम हेरोल्ड विल्सन के हस्तक्षेप के बाद अदालत ने 1968 में फैसला सुनाया था, जिसके अनुसार पाकिस्तान को 9000 वर्ग किलोमीटर का मात्र 10 फीसदी हिस्सा मिला था। पाकिस्तान ने सिंध और कच्छ के बीच हुए एग्रीमेंट की कुछ तस्वीरों के आधार पर क्रीक को सिंध का भाग घोषित कर दिया और एक रेखा खींची जिसे ग्रीन लाइन बाउंड्री कहा जाता है। मगर भारत ने इसे मानने से इंकार करता रहा है। भारत का कहना है कि अंतर्राष्ट्रीय कानून के मुताबिक 1924 के आधार पर लगाये गये स्तंभों के आधार पर पाकिस्तान ने दावा पेश किया। पाकिस्तान ने उसे यह कहकर मानने से इंकार कर दिया कि इस सीमा से नाव पार नहीं की जा सकती है, जबकि इस सीमा को आसानी से पार किया जा सकता है। साथ ही 1999 में भारतीय वायुसेना ने सरहद के पार से आये एक पाकिस्तानी विमान को ध्वस्त कर दिया था। यह विमान भारतीय सीमा में सर क्रीक की स्थिति को टोहने के लिये आया था। यह घटना कारगिल युद्ध के कुछ महीनों बाद ही हुई थी। तो सवाल खड़ा होता है की सरक्रीक पाकिस्तान को सौपना कितना सही ?

01 December 2012

क्या जाकिर भारत का तालिबानीकरण करना चाहता है ?

आज भारत जैसे लोकतांत्रिक देष के अंदर हर धर्म और मजहब के लोगो पुरी अजादी मिली हुई है, भारत एक एैसा देष है जिसकी सभ्यता और संस्कृति से पुरा विष्व अभिभूत रहा है। जो भी इसके रास्ते पर चला वह अपने बुलंदियों को हासिल किया। मगर आज इसी देष में एक एसे कटट्रपंथी उन्माद मचा रखा है जिसका मकसद आज हिन्दुस्तान को तालिबानी नितियों में दबदिल करना है। जी हा, हम बात कर रहे है जाकिर नाईक के तालिबानी शैली, कुरान और हदीस सहित विभिन्न भाषाओं में साहित्य, और अपने संबंधित मिशनरी गतिविधियो के चलते मुस्लिम समाज ही नही देष विदेष के नागरिक चिंतित है। सबसे षर्म की बात ये है की 2010 में इंडियन एक्सप्रेस ने नाईक को शक्तिशाली भारतीयों की सूची में 89वा प्रदान किया। जो हमारे देष के अंदर तालिबानीकरण को बढ़ावा दे रहा है। आज जिस प्रकार से जाकिर देष के अंदर तालिबानी हुक्म को बढ़ावा दे रहा है उससे समाज में एक नई बहस छिड़ चुकी है और तरह- तरह के सवाल भी खड़े होने लगे है की क्या जाकिर का ये फरमान और बयान हिंन्दुस्तान को तालिबानीकरण करना चाहता है ? मुस्लिम और गैर, मुस्लिम हलकों में जाकिर का समाजिक बहिसकार करने के लिए लोग अब लामबंद हो रहे है। आज जाकिर व्यापक रूप से वीडियो और डीवीडी के अलावे मीडिया और सोषल नेटवर्किग बेब साईट के माध्यम से लोगो के बिच में अफवाहे फैला रहा है। नाईक ने दुनिया भर में नई बहस और व्याख्यान का आयोजन कर रहा है। मगर अब हर ओर इसका बहिसकार  हो रहा है क्योकी जाकिर के तालिबानी बयानो से आज हर कोई चिंतित है। नाइक कहता है कि कोई भी गैर मुसलमान अगर इस्लाम चुनता है तो वह इस्लाम के अनुसार सही है लेकिन अगर एक मुस्लिम धर्मान्तरण करना चाहता है तो यह देशद्रोह है। नाईक इसे अपराध मानता है और इसकी सजा इस्लामी कानून के तहत मौत बताता है। एसे में सवाल अब भी जस का तस बना हुआ है की क्या एसे बयानो से हिन्दुस्तान जैसे लोकतांत्रिक देष को क्या जाकिर तालिबान का सक्ल देना चाहता है, जहा पर न तो कानुन है और न ही मानावता नाम की कोई चिज। जहा पर स्कुल में महिलाओ के जाने पर प्रतिबंध है जहा पर छोटी सी गलती के लिए लोगो को मौत के घाट उतार दिया जाता है, जहा पर मंदिरो को तोड़ कर मस्जिद बनाया गया। तालिबान में आज भी पुरे दुनिया के मुकाबले सबसे कम साक्षरता दर है। लेकिन अब  लगता है भारत में भी मंदिरो को तोड़ा जाएगा, महिलाओ को भी बुर्के में निकलना पड़ेगा, और हर जुर्म की सजा मौत होगी। नाइक ने कहा है कि वह बिन लादेन की आलोचना नहीं करता। जाकिर कहता है की बिन लादेन इस्लाम के दुश्मनों से लडाई की इसलिए हम उसके साथ है। आज हिन्दुस्तान में भले ही जाकिर अपने तालिबानी प्रचार करने के इधर उधर घुम रहा है मगर ब्रिटेन सहित कई कई अन्य देष अपने यहा जाकिर के प्रवेष पर प्रतिबंध लगा दिया है। नाईक को जून 2010 मे कनाडा और लंदन में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया। रजा अकादमी, ने ब्रिटेन के उच्च आयोग को पत्र लिख कर डॉ. जाकिर नाईक के प्रवेश को प्रतिबंधित करने के लिए ब्रिटिश सरकार की पहल की प्रशंसा कि है। तो सवाल यहा भारत सरकार से भी है कि भारतीय दंड सेहिता के धारा 295, 298 और 153 के तहद हिंन्दु भावनाओं को भड़काने के अरोप जब सजा का प्रावधान है तो फिर जाकिर आखिर अब तक खुल्ला कैसे घुम रहा है। डॉ. नाईक का कहना है कि एक इस्लामी राज्य के भीतर अन्य धर्मों के प्रचार बिलकुल गलत है, जबकि वह अन्य मुसलमानों को आजादी से अपने देश में इस्लाम को फैलाने की अनुमति होने कि बात कहता है। नाईक चर्च और मंदिरों के निर्माण के बारे में, कहता है कि उनके धर्म गलत है उनकी पूजा गलत है तो एसे में मंदिर निर्माण कि अनुमति कैसे दि जा सकती हैं। आज ये कट्टरपंथी इस्लामी उपदेशक हर ओर गलत उपदेष दे रहा है। तो एसे में सवाल खड़ा होता है की क्या जाकिर नाईक भारत का तालिबानीकरण करना चाहता है?

आतंकियों के समर्थक जाकिर की गिरफ़्तारी क्यों नहीं ?

इस्लाम के विवादित विद्वान् डा. जाकिर नाईक के खिलाफ देश भर के लोग लामबंद हो रहे है। पीस चैनल से धार्मिक प्रचार करने वाले कटटरपंथी इस्लामिक विद्वान डा जाकिर नाईक ने हिंदुओं की आस्था से लगातार खिलवाड़ कर रहा है। क्या कभी जाकिर नाईक ने मुसलमानों से पूछा है। क्यों पत्थर की रस्म अदा करते हो। क्यों अल्लाह में इतनी श्रद्धा दिखाते हो। जी नही। क्योंकि उसके अनुसार इस्लाम के अलावा सभी धर्म तुच्छ हैं। जाकिर नाईक ओसामा बिन लादेन को अतंकी नही मानता हैं। सभी मुसलमानों को ओसामा की तरह आतंक फैलाने की बात कहता हैं। हर मुसलमान को ओसामा की तरह जीने का हुक्म देता हैं। यही कारण है की देष के अंदर आज उबाल मचा हुआ है। देष भर में जाकिर नाईक के खिलाफ देष भक्तों में गुस्सा भर गया है। देष के कोने- कोने से लोग जाकिर नाईक के खिलाफ केस दर्ज करा रहे है। क्योकी धर्म के आड़ में जाकिर अतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है। लोग कह रहे हैं कि ऐसे लोगों की वजह से ही दो संप्रदायों में दरार पैदा हो रही है। इसी वजह से लोग एक दूसरे की जान के दुष्मन बन गये हैं। आज हमारे देष की सरकार क्यो सोई हुईं है। जो हमेषा कहती है की धर्म के नाम पर आतंकवाद फैलाने वाले को तुरंत जेल में डाला जाये। तो फिर जाकिर को किस बात की रियायत मिली हुईं है? जो नेता धर्म निरपेक्षता की बात करते है वे खुद आज एसे धर्मविरोधी ढोंगी के प्रति चुप क्यो है? जाकिर नाईक जानबूझकर लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचा रहा हैं। मगर यहा गौर करने वाली बात ये है की कई एसे मुस्लिम धर्म गुरू है जो जाकिर के इस बेतुके बयान से बिलकुल सहमत नही है। इस्लामीक धर्मगुरूओं का मानना है की इस्लाम दूसरे धर्म के लोगों की धार्मिक भावना को ठेस पहुचाने में विष्वास रखता है। मगर जाकिर नाईक एसे धर्म विरोधी बयानो को इस्लामिक समस्याओ का निवारण मानता है, और कहता है की हर मुस्लमान को आतंकवादी होना चाहिए। लेकिन इन सब के अलावे जो काबिले गौर करने वाली बात ये है की जाकिर अंग्रेजो के विचारो से अपने आप को सहमत बताता है और कहता है की अंग्रेज स्वतंत्रता सेनानियो को आतंकवादी कहते थे क्योकी ये लोग देष में उन्माद फैलाते थे। साथ ही अमेरीका के पूर्व राश्ट्रपती जार्ज वासिंगटन को आतंकवादी नंबर वन बताता है। जिसे अमेरिका अपना राश्ट्रपिता मानता है। यही कारण है की आज देष ही नही बिदेषो में भी एसे दिगभ्रमित उन्मादी की आलोचना हो रही है। और लोगों में रोश है। अगर ऐसे कटटरपंथी को जेल में नही डाला गया तो ये देष ही नही पूरे विष्व के लिए एक समस्या बन जाएगा। तो एसे में सवाल भी फिर से वही आकर रूक जाता है की आतंकियो के समर्थक जाकिर की गिरफ्तारी क्यो नही ?