09 July 2020

गोवा सरकार की ईसाई प्रेम, चर्च पर लुटायेगी 46 करोड़

गोवा सरकार ने चर्च के लिए 46 करोड़ रूपये सरकारी खजाने से लुटाने जा रही है. देश में ये अजीबोगरीब घटना देश और लोकतंत्र दोंनों के लिए बहुत बड़ी खतरे की घंटी है. संविधान के अनुसार कोई भी सरकार सरकारी पैसा धार्मिक कार्यों के लिए खर्च नही कर सकती है. गोवा सकार ने चर्च पर पैसा खर्च करने के लिए 4 महीने का एक लंबा चौड़ा बजट जारी किया है. बेसिलिका चर्च के उपर 46 करोड़ रूपये चार महीनों में खर्च करने की योजना है.

इतनी बड़ी राशी चर्च के सिर्फ सौंदर्यीकरण के ऊपर खर्च किया जायेगा. गोवा सरकार के इस एकतरफ फैसले से हिन्दुओं में काफी नराजगी है. गोवा सरकार के इस फैसले को लेकर कई सारे हिन्दू संगठनों ने आलोचना की है. गोवा सरकार सिर्फ चर्च को टूरिज्म को बढ़ावा देने के नाम पर अथाह धन लूटा रही है. जबकि वहीँ दूसरी ओर गोवा में हिन्दू मंदिर और अनेकों हिन्दुओ के धार्मिक स्थल खंडहर में तब्दील हो रहे है.

ईसाई मिशनरियों के दबाव में गोवा सरकार असंवैधानिक फैसले ले रही है. जिसे लेकर अब राज्यभर में सरकार की आलोचना हो रही है. ऐसे में सवाल खड़ा होता है की वोट के लिए सरकारी धन का उपयोग क्या लोकतंत्र का मजाक नहीं है. अगर गोवा सरकार को टूरिज्म का इतना ही चिंता है तो फिर वो हिन्दू धार्मिक स्थलों का सौदर्यीकरण क्यों नही करा रही है ? क्या गोवा सरकार को सिर्फ ईसाईयों का वोट चाहिए..? गोवा सरकार का ये फैसला बहुत बड़ी संवैधानिक त्रासदी है, जिसपर उसे पुनर्विचार करना चाहिए.  

युवाओं की भविष्य के लिए खतरा पब्जी गेम

बैटल रोयाल गेम PUBG को बैन करने की मांग तेज हो गई है. पब्जी हमेशा से ही विवादों के घेरे में रहा है. भारत समेत दुनिया भर के कई देशों में इस गेम को माता-पिता और सरकारें इसका विरोध कर रहे हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह इस गेम से बच्चों और युवाओं के ऊपर पड़ने वाला बुरा असर है. हाल में कई ऐसी घटनाएं सामने आई है, जहां कथित तौर पर PUBG Mobile के कारण खुदखुशी, तलाक और मार-पिटाई जैसी घटनाएं देखने को मिली है. यही वजह थी कि PUBG Mobile को भारत सेमित कई देशों ने बैन भी किया था. इस गेम को Jordan में भी बैन कर दिया गया है.

Jordan की सरकार ने इस बैन के पीछे का कारण देश के नागरिकों पर पड़ रहे बुरे प्रभाव को बताया है. यह गेम भारत में काफी पॉप्युलर हो चुका है.

इससे पहले इस गेम पर इराकी सरकार भी बैन लगा चुकी है. इतना ही नहीं दुनिया के 8 देश भी इसको बैन कर चुके हैं. पहले ये गेम भारत, नेपाल और UAE में बैन कर दिया गया था. नेपाल की टेलीकम्युनिकेशन अथॉरिटी ने देश के सभी ISP, मोबाइल प्रोवाइडर्स और नेटवर्क सर्विस प्रोवाइडर्स को PUBG को ब्लॉक करने का ऑर्डर दिया है.

महाराष्ट्र के ठाणे जिले के भिवंडी में 15 साल के एक लड़के ने अपने बड़े भाई की हत्या कर दी थी. माना गया है कि हत्या का दोषी लड़का अपने मोबाइल पर PUBG गेम खेल रहा था, जब उसके बड़े भाई ने उसे गेम खेलने से मना किया और डाटा तो उसने गुस्से में आकर अपने भाई की हत्या कर दी. ऐसी ही कई खबरे हैं, जो इस गेम को बच्चों और युवाओं के भविष्य के लिए खतरा साबित कर रही है.

नेटफ्लिक्स के बहिष्कार की मांग तेज

नेटफ्लिक्स इंडिया एक बार फिर से सुर्खियों है. देशभर में नेटफ्लिक्स की आलोचना हो रही है. नेटफ्लिक्स को ट्विटर पर ट्रोल किया जा रहा है साथ ही इसे बॉयकॉट करने की भी मांग हो रही है. इसका कारण है तेलुगू फिल्म कृष्णा एंड हिज लीला. कृष्णा एंड हिज लीला में एक कृष्णा नाम के लड़के के ढेरों अफेयर्स की कहानी दिखाई गई है, जिससे देशभर के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंची है. लोग फिल्म के किरदार कृष्णा की तुलना भगवान श्री कृष्ण से कर रहे हैं. खास बात ये भी है कि फिल्म में कृष्णा की एक्स गर्लफ्रेंड का नाम राधा है. इस बात को देखते हुए लोगों का गुस्सा भड़क गया है.

#BoycottNetflix ट्रेंड कर रहा है. इस हैशटैग के साथ लोग अपना गुस्सा जाहिर कर रहे हैं. लोगों ने किसी भी धर्म के भगवान का अपमान ना करने की अपील करते हुए नेटफ्लिक्स की आलोचना की है. उनका कहना ये भी है कि नेटफ्लिक्स सेक्सुअल कंटेंट दिखाकर हमारी संस्कृति और धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहा है.

कृष्णा एंड हिज लीला तेलुगू फिल्म है, जिसमें सिद्धू जोनलागड़ा, श्रद्धा श्रीनाथ, सीरत कपूर और शालिनी वेदनीकट्टी प्रमुख भूमिका में हैं. इस फिल्म में कृष्णा नामक एक युवक, जो कि बार में गाना गाता है, उसके एक साथ कई लड़कियों से अफेयर हैं. प्यार, वासना और फिर हकीकत से रूबरू होने की काल्पनिक कहानी पर आधारित इस फिल्म को कृष्ण लीला बताने पर दर्शक काफी नाराज हैं. फिल्म की आलोचना करने के साथ ही नेटफ्लिक्स के बहिष्कार की मांग एक बार फिर से तेज हो गई है.

इससे पहले भी नेटफ्लिक्स कई बार हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ कर चूका है. हुमा कुरैशी की वेब सीरीज लैला में काल्पनिक हिंदू राष्ट्र की संकल्पना और उसकी कार्यशैली के साथ ही बाकी धर्मों के प्रति उसके द्वेष को दिखाया गया था. जिसको लेकर काफी विवाद हुआ था.

कांवड़ यात्रा और राज्य सरकारों की उदासीनता

सावन के सबसे बड़े उत्सवों में से एक कांवड़ यात्रा पर राज्य सरकारों की उदासीनता सामने आरही है. एक के बाद एक लगातार कई राज्यों ने अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए कांवड़ यात्रा पर प्रतिबन्ध लगा दिया है. हर साल सावन में शुरू होने वाली पवित्र कांवड़ यात्रा कोरोना संकट के चलते स्थगित करने के बहाने... राज्य सरकारें हिन्दुओं की धार्मिक आस्था पर गहरा अघात किया है. देश के अलग-अलग हिस्से से आने वाले लाखों की संख्या में श्रद्धालु इस यात्रा में भाग लेते हैं.

तीन राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कांवड़िया यात्रा पर बैठक की थी, जिसके बाद यह फैसला लिया है. इस वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी इसमें शामिल थे.

बैठक के बाद तीनों मुख्यमंत्रियों ने संयुक्त रूप से यह फैसला लिया कि इस साल कांवड़ यात्रा को इजाजत नहीं दी जाएगी. हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड कोरोना वायरस संकट से जूझ रहे हैं. राज्यों में कोरोना संक्रमितों की संख्या बहुत ज्यादा नही है. फिर भी सरकारें इसको लेकर कोई खास रूचि नही दिखा रही है.

राज्य सरकारों ने सीधे फैसला किया है कि कावंड़ यात्रा को रद्द कर दिया जाए... कांवड़ियों की संख्या इतनी ज्यादा होती है कि सरकार को उनकी पैदल यात्रा के लिए भारी इंतजाम करना पड़ता है. कांवड़ियों के रास्ते में जगह-जगह विश्रामशालाएं लोग बनाते हैं और उन्हें खिलाते हैं

सावन में शुरू होने वाली यह धार्मिक यात्रा बेहद चर्चा में रहती है. कांवड़िये बड़ी संख्या में हरिद्वार से से गंगाजल कांवड़ में भरकर अपने यहां के शिवमंदिरों में पहुंचते हैं.

कांवड़ यात्रा के भव्य इंतजाम किए जाते हैं. सैकड़ों वर्षों की परंपरा में यह पहली बार हो रहा है जब कांवड़ यात्रा को स्थगित कर दिया गया हो. कांवड़ यात्रा 5 जुलाई से 17 जुलाई के बीच तक प्रस्तावित है.  

दिल्ली दंगे में जाकिर नाईक की भूमिका

दिल्ली दंगे में जाँच की कड़ी अब जाकिर नाईक तक पहुँच गई है. अब इस दंगे की दुबई कनेक्शन भी निकल कर सामने आरहा है. इस मामले में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की तरफ से चल रही जांच में एक बड़ा खुलासा हुआ है... हाल ही में दिल्ली पुलिस की ओर से दाखिल की गई रिपोर्ट में ये बात सामने आया था कि ताहिर हुसैन ने इन दंगों के लिए 1 करोड़ से ज्यादा की रकम इकट्ठा की थी.

पुलिस ने दिल्ली दंगों में हुई फंडिंग को लेकर एक और चौकाने वाला खुलासा किया हैं... इस मामले में तथाकथित स्लामिक स्कॉलर जाकिर नाइक का भी नाम सामने आया हैं... जांच में पता चला है कि हिंसा से पहले जाकिर नाइक ने दिल्ली दंगे के मास्टरमाइंड खालिद सैफी से मुलाकात की थी... इसके साथ ही खालिद के पास से जब्त पास्पोर्ट से ये खुलासा हुआ है की उसने दंगों से पहले कई देशों की यात्रा की थी...और इस बीच उसने जाकिर नाइक से भी मुलाकात की...आपको बता दें की खालिद सैफी दूसरे आरोपी उमर खालिद और ताहिर हुसैन का करीबी दोस्त हैं... और हिंसा से पहले इन लोगों ने शाहिन बाग में एक बैठक भी की थी...

कोरोना वायरस और लॉकडाउन के चलते अब तक पुलिस ने खालिद सैफी और इशरत जहां से पूछताछ नहीं कर सकी है... वहीं जांच में यह भी सामने आया है कि खालिद सैफी के पास सिंगापुर के NRI खाते से दंगा भड़काने के लिए फंड मिला था... यह पैसा भारत में एक एनजीओ को ट्रांसफर किया गया था जिसे उमर खालिद और उसका मेरठ में रहने वाला पार्टनर चलाते थे... सिंगापुर के NRI की पहचान के लिए जांच जारी है... पुलिस जांच के मुताबिक, आरोपी इशरत जहां और खालिद सैफी को अनगिनत माध्यमों और PFI से भी फंड मिला था... इसके अलावा सिंगापुर और सउदी अरब से भी उसने फंडिंग की गई थी..

लॉकडाउन में तमिलनाडु पुलिस की कायरता

मिलनाडु के तूतीकोरिन में एक दिलदहला देने वाली घटना सामने आई है. तूतीकोरिन में अपने मोबाइल फोन की दुकान को अनुमति के घंटों से थोड़ी देर हो जाने पर पुलिस ने ऐसी बर्बरता दिखाई जिसे सुन कर आपका रूह कॉप उठेगा. मिलनाडु पुलिस ने पिता पुत्र को इतनी यातनाएं दी की दोनों की पुलिस हिरासत में मौत हो गई. तमिलनाडु में पुलिस हिरासत में पिता-पुत्र की मौत के बाद राज्यभर में गुस्सा है. मृतक पिता-पुत्र के परिवार ने जेल के अंदर पुलिस अत्याचार का आरोप लगाया है. इसके विरोध में राज्य के सभी दुकानें बंद कर के व्यापारियों ने अपना विरोध जताया है. परिवार के सदस्यों ने पोस्टमार्टम के बाद उनके शव लेने से इनकार कर दिया. परिवार के सदस्यों का कहना है कि मलाशय और शरीर के अन्य हिस्सों पर पुलिस द्वारा दी गई यातनाओं के निशान थे. परिवार ने इस अत्याचार में शामिल पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या के आरोप में केस चलाए जाने की मांग की है.

मृतक यराज की बेटी फारस ने कहा है कि यह डबल मर्डर है. इसमें अकथनीय यातनाएं दी गई हैं. एक महिला के रूप में जिसका मैं वर्णन भी नहीं कर सकती. हम तब तक शव स्वीकार नहीं करेंगे जब तक कि पुलिस के खिलाफ हत्या के मामले दर्ज न हों. संथानकुलम में मोबाइल फोन की दुकान चलाने वाले जयराज और उनके बेटे को पुलिस ने गिरफ्तार किया गया था.

पुलिस शिकायत के आधार पर दर्ज की गई एआईआर के अनुसार, दो आदमी जमीन पर लुढ़क गए और इस तरह उन्हें अंदरूनी चोटें आईं. उनके खिलाफ आरोपों में आपराधिक धमकी, अवज्ञा और दुर्व्यवहार शामिल हैं. परिवार का आरोप है कि पुरुषों को पूरी रात पुलिस स्टेशन में रखा गया और अगली सुबह तक यातना दी गई, जब उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने पेश होना था.

उप-जेल में, जहां दुकान के मालिकों को रखा गया था, बेटे, पेन्निस ने पहले सीने में दर्द की शिकायत की थी. अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई. उनके पिता, जिन्हें गंभीर बुखार की शिकायत थी, उनको अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मृत्यु हो गई. मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ ने इस मामले को उठाया था. साथ ही तीन सरकारी डॉक्टरों द्वारा पोस्टमार्टम करने का आदेश भी कोर्ट ने दिया था. राज्य के मुख्यमंत्री ई पलानीस्वामी ने अबतक सिर्फ मुआवजे की राशी घोषित किये है. राज्यभर में मुख्यमंत्री ई पलानीस्वामी को लोग बर्खास्त करने की मांग कर रहे. तमिलनाडु पुलिस महकमा मुख्यमंत्री के पास है. ऐसे इसे लेकर सवाल और गंभीर हो जाता है.    



सुशांत सिंह राजपूत और बॉलीवुड भाई भतिजावाद

एक्‍टर सुशांत सिंह राजपूत को लेकर हररोज नये नये खुलासे हो रहे है. सुशांत सिंह राजपूत के सुसाइड केस को सुलझाने में मुंबई पुलिस हर एंगल से जांच करने में जुटी है. सुशांत की आखिरी फिल्‍म की हीरोइन संजना संघी से लेकर उनकी कथित गर्लफ्रेंड एक्‍ट्रेस रिया चक्रवर्ती और यश राज फिल्‍म्‍स की कास्टिंग एजेंसी तक, पुलिस ने कई लोगों से पूछताछ की है. अब खबर आ रही है कि मुंबई पुलिस इस पूरे मामले में पहली बार निर्देशक संजय लीला भंसाली को नोटिस जारी किया है. अपनी फिल्मों 'बाजीराव मस्तानी' और 'रामलीला' में सुशांत को कास्ट करना चाहते थे, लेकिन बाद में भाई भतीजावाद के कारण फैसला बदलना पड़ा था. अगर सूत्रों की माने तो भंसाली से इस बारे पुलिस पूछताछ की है. मुंबई पुलिस एक बार फिर से संजय लीला भंसाली को पूछताछ के लिए बुलाने वाली है.

जाँच की कड़ी अब शेखर कपूर तक पहुंच गई है. सुशांत सिंह राजपूत के साथ फिल्‍म 'पानी' बना रहे थे, जो यश राज प्रोडक्‍शन की ही फिल्‍म थी. सुशांत की मौत के बाद शेखर कपूर ने अपने ट्वीट में खुलाया किया था कि सुशांत पिछले कुछ महीनों से काफी परेशान थे. ऐसे में अब सुशांत सिंह राजपूत के केस में मुंबई पुलिस की जांच तेज हो गई है. अब तक 20 से ज्यादा लोगों से पूछताछ की जा चुकी है. आगे भी यह सिलसिला जारी रहेगा. जल्द ही कंगना रनोट को भी तलब किया जाएगा. यही नहीं, यशराज फिल्म्स के कास्टिंग डायरेक्टर शानू शर्मा को भी दोबार तलाब किया जाएगा. पुलिस सूत्रों के मुताबिक, यदि जरूरत हुई तो आदित्य चोपड़ा और करण जौहर को भी थाने बुलाया जा सकता है.

सुशांत सिंह राजपूत के सुसाइड मामले की जांच मुंबई पुलिस कर रही है. पोस्टमार्टम और विसरा रिपोर्ट आने के बाद मुंबई पुलिस ने अब उस कपड़े को भी टेस्ट के लिए फोरेंसिक लैब में भेजा है, जिससे उन्होंने फांसी लगाई थी. लैब में उस कपड़े की टेंसाइल स्ट्रेंथ का पता लगाया जाएगा कि क्या वह सुशांत का भार उठाने में सक्षम था या नहीं. सुसाइड के वक्त सुशांत का वजन 80 किलोग्राम था.

जांचकर्ताओं के मुताबिक, सुशांत सिंह ने हरे रंग के कपड़े को फांसी फंदा बनाकर छत के पंखे से लटकर सुसाइड की थी. यह कपड़ा एक सूती नाइट गाउन था. उनके पास से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला था. पुलिस अधिकारी ने कहा, 'विसरा के अलावा, पुलिस ने गाउन को भी केमिकल और फोरेंसिक एनालिसिस के लिए कलिना स्थित फोरेंसिक साइंस लैब में भेजा है. तीन दिन बाद इसकी फाइनल रिपोर्ट भी जाएगी. सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या के बाद से उनका परिवार इस सदमे से उबर नहीं पा रहा है. सुशांत सिंह राजपूत के पिता केके सिंह की ओर से शनिवार को किए गए ट्वीट में कहा गया है कि वे जल्‍दी ही बेटे की मौत की सीबीआइ जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करेंगे.

चीन के साथ 1962 का युद्ध और देश के गद्द्दार कम्युनिस्ट पार्टी

देश के गद्दार हमेशा से ही अपनी राष्ट्र विरोधी गतिविधियाँ चलाते रहे हैं. मगर चीन के मुद्दे पर सबसे बड़ी गद्दारी 1962 के युद्ध के समय देखने को मिला था. 1962 के युद्ध में सिर्फ सीमा पर दुश्मन ही नहीं थे, घर के अंदर ही दुश्मन बैठे थे. यह दुश्मन कोई और नहीं बल्कि भारत के वामपंथी थे, जो चीन के वामपंथियों को अपना भाई समझते थे और भारत-चीन युद्ध में चीन का समर्थन कर रहे थे.

जब 1962 का युद्ध हुआ था, तो भारत के वामपंथियों के एक वर्ग ने यह कहते चीन का समर्थन किया था कि यह युद्ध नहीं बल्कि एक समाजवादी देश और एक पूंजीवादी देश के बीच का संघर्ष है. यह तब हो रहा था, जब भारत के वामपंथी उस वक्त देश के मुख्य विपक्षी थे. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) मुख्य विपक्षी पार्टी थी.

उस वक्त पूरा देश हमलावर चीन को खदेड़ने की बात कर रहा था लेकिन भारत के वामपंथी यह मानने को तैयार नहीं थे कि सीमा पर चीन ने हमला किया था, उनका मानना था कि उग्र रवैया भारत का था और हमलावर भारत है. यहां तक कि कई वामपंथी नेता चीन के समर्थन में रैलियां कर रहे थे.

इनमें ज्योति बसु, हरकिशन सिंह सुरजीत मणिशंकर अय्यर जैसे उस वक्त के युवा नेता भी थे, जिन्होंने कहा था कि चीन तो कभी हमला कर ही नहीं सकता. 1962 के युद्ध में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया चीन का इस तरह से समर्थन कर रही थी कि ज्योति बसु और हरकिशन सिंह सुरजीत जैसे नेताओं को जेल में डालना पड़ा था

यह भारत के कम्युनिस्टों की चीन के कम्युनिस्टों के प्रति ऐसी वफादारी थी, जिसमें देश के साथ गद्दारी करने में भी हिचक नहीं हुई. चीन के प्रति इसी वफादारी की वजह से भारत में कम्यूनिस्ट पार्टी का विभाजन भी हुआ. कांग्रेस के बाद कम्युनिस्ट पार्टी देश की दूसरी सबसे पुरानी पार्टी थी. लेकिन भारत-चीन युद्ध के दो वर्ष बाद इस पार्टी के दो टुकड़े हो गए.

चीन का समर्थन करने वाले गुट ने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया यानी CPI से अलग होकर एक नया दल बना लिया, जिसे कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया मार्क्सिस्ट यानी CPM के नाम से जाना जाता है. CPM में वो लोगशामिल हुए, जो चीन को ही अपना मसीहा मानते थे.

देश में गद्दारी का इतिहास

देश में गद्दारी का इतिहास काफी पुराना है और गद्दारों की फेहरिस्त भी काफी लम्बी है. इस गद्दारी की फेहरिस्त में भारतीय वामपंथियों नाम सबसे पहले है. देश के सामने एक बार फीर से कम्युनिस्टों का चेहरा बेनकाब हो गया है. वामपंथियों ने घायल जवानों के लिए रक्तदान करना पार्टी विरोधी बताया है. साथ ही वामपंथियों ने चीन की निंदा में अभी तक एक शब्द कुछ भी नहीं कहा है. इनकी ये चुप्पी कहीं न कहीं चीन का मूक समर्थन है.

 

भारतीय कम्युनिस्ट अपने धर्म और मातृभूमि के नहीं होते है, ये चीन क्यूबा और उत्तर कोरिया को अपना देश मानते हैं. जहाँ लोकतंत्र नाम की कोई चीज नहीं है. सीपीएम व अन्य कम्युनिस्ट पार्टियों के इस व्यवहार को समझने के लिए 1962 के युद्ध की चर्चा भी ज़रूरी है. उस समय जब युद्ध छिड़ा था और चेयरमैन माओ ने भारत की पीठ में छुरी घोंपते हुए हमला किया था, तब वामपंथियों ने चीन का समर्थन किया था. उस समय वामपंथियों ने माओ को अपना चेयरमैन बताया था.

चीन के प्रति कांग्रेस का भी शुरू से ही सहानुभूति रही है. 1962 में नेहरू ने हिन्दी चीनी भाई-भाई का नारा दिया था. तो वहीँ धोखेबाज चीन भारत के लद्दाख पर चढ़ाई करने के लिए रोड बना रहा था. मगर गद्दारी की हद तो तब हो गई जब नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सीट पर चीन के दावे का समर्थन किया कर दिया. ये सिट भारत को मिलने वाली थी. 


नेहरु की बहन और उस वक्त के तत्तकालीन भारतीय राजदूत विजय लक्ष्मी ने भी नेहरु को इस बात की जानकारी दी थी. मगर नेहरु उस पत्र को नजरंदाज कर दिया. नेहरु ने पत्र के जवाब में लिखा कि चीन की जगह भारत को सुरक्षा परिषद् में स्थान लेना ठीक नही होगा, इससे चीन नराज हो जायेगा. चीन इसके बदले में 1962 का युद्ध दिया. इसी युद्ध में आक्साई चिन पर चीन ने कब्ज़ा कर लिया.

 

आज से तकरीबन 58 साल पहले जब आधा हिंदुस्तान सो रहा था उस वक्त विश्वासघात और छल की एक पटकथा लिखी जा रही थी. चीन ने भारत पर सुनियोजित हमला किया. अरुणाचल से तवांग तक चीन की सेना ने न सिर्फ सीमा रेखा लांघी बल्कि दोस्ती के नाम पर हज़ारों वर्ग मीटर किलोमीटर जमीन चीन ने हथिया लिया.

वर्ष 1950 में सरदार पटेल ने नेहरू को चीन से सावधान रहने के लिए कहा था. देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने चीन के खतरे को लेकर नेहरू को आगाह करते हुए एक चिट्ठी में लिखा था कि भले ही हम चीन को मित्र के तौर पर देखते हैं लेकिन कम्युनिस्ट चीन की अपनी महत्वकांक्षाएं और विस्तारवाद का उद्देश्य हैं हमें ध्यान रखना चाहिए कि तिब्बत के गायब होने के बाद अब चीन हमारे दरवाजे तक पहुंच गया है. लेकिन नेहरू ने इस सलाह को अहमियत नहीं दी.

कांग्रेस पार्टी अब भी वही कर रही है जो पूर्व में करते आई है. कांग्रेस की तरफ़ से राहुल गांधी खुद चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी के साथ मेमोरैंडम ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग पर दस्तख़त कर चुके है. यह समझौता पार्टी के स्तर पर हुआ था. सोनिया गांधी और तब के चीनी उपराष्ट्रपति शी जिनपिंग कांग्रेस-कम्यूनिस्ट पार्टी समझौते के गवाह थे. राहुल के दस्तख़त किए जाने से पहले सोनिया गांधी ने शी चिनपिंग के साथ एक अलग मीटिंग भी की थी. ये देश के प्रति गद्दारी का एक नयाब नमूना था.

मगर अब देश बदल चुका है. भारत लद्दाख में अपने सैनिकों की संख्या बढ़ाकर अब खुद चीन को धमका रहा है. आज भारत की सरहदों पर कोई आँख उठा कर नही देख सकता है. आज चीन का कोई भी हथकंडा भारत के सामने काम नहीं कर पा रहा है. क्योकि की ये 2020 का भारत है. ये देश में घुश कर मारना जानता है.

क्या चीन समर्थकों को गिरफ्तार किया जाय..?

आज ये देश का दुर्भाग्य ही है की हमारे देश के तथा कथित नेता एक बार फिर से चीन के समर्थन में आगये है. एक ओर गलवान घाटी में जहां पर हमारे देश के वीर जवान अपनी शहादत दे रहे है तो वहीँ दूसरी ओर चीनी फंडिंग पर पहले वाला राष्ट्र विरोधी धड़ा चीन का गुणगान कर रहा है. आज भारत के समर्थन में एक दर्जन से भी ज्यादा अमेरिकी सांसदों ने चीन के मुद्दे पर भारत का समर्थन किया है. मगर आज खुद पी चिदंबरम और कप्पिल सिब्बल जैसे कांग्रेसी नेता एक बार फिर से खुल कर चीन के समर्थन में आगये है. कपिल सिब्बल ने तो यहां तक कह डाला की भारत सरकार को चीनी एप्प को बैन नहीं करना चाहिए ये देश के लोगों के हीत में ठीक नही है. 

आधार और अन्य देशी प्राइवेसी के मुद्दे पर सुप्रीम तक का दरवाजा खटखटाने वाले सिब्बल आज खुद देश की करोड़ो जनता का प्राइवेसी चुराने वाले चीन का समर्थक कैसे हो गये ? ये अपने आप एक बड़ा सवाल है.  

वर्ष 1975 के बाद ऐसा पहली बार हो रहा था कि LAC पर भारत ने किसी जवान को खोया हो. ऐसे मौके पर पूरा देश भारतीय सेना के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है लेकिन कांग्रेस पार्टी ऐसे वक्त में भी देश और सेना को बदनाम करने का एक भी मौका नहीं छोड़ रही है. कांग्रेस का चीन प्रेम किसी से छुपा नही है. चीन के प्रति कांग्रेस की सहानुभूति आजादी के समय से ही चली आरही है. पिछले कई दिनों से कांग्रेस पार्टी चीन को साथ देने और सुरक्षा मामलों पर भारत विरोधी बयान जारी कर रही है. 

कांग्रेस और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी का चोली दामन का रिश्ता रहा है.  तीन वर्ष पहले जब भारतीय सेना और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के बीच डोकलाम में झड़प हुआ था तब, राहुल गांधी ने चीनी राजदूत लुओ झाओहुई से गुप्त रूप से मीटिंग की थी. भारत ने जब 1998 में परमाणु परीक्षण किया था तब भी कांग्रेस पार्टी ने वाजपेयी सरकार के खिलाफ प्रोपोगेंडा फैलाया था. सलमान खुर्शीद से लेकर मणिशंकर अय्यर तक ने सवाल खड़े करते हुए सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की थी. मणिशंकर अय्यर ने सोनिया गांधी से परीक्षण को सिरे से नकारने की सलाह दी थी. अब यही मणिशंकर अय्यर लगातार सोशल मीडिया पर जहर उगल रहे है. 

लोकसभा चुनाव के वक़्त राहुल गांधी मानसरोवर की तीर्थयात्रा पर गए थे. वहां वो चीन के कई अधिकारियों से मिले थे. इस मीटिंग में कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ़ चाइना के वरिष्ठ नेता भी थे. इस संकट की घड़ी में देश को जब सबसे ज्यादा एकजुट रहने की जरुरत है. मगर ऐसे मौके पर चीन परस्त नेता और समर्थक अनावश्यक तौर पर सरकार के ऊपर सवाल खड़ा कर रहे हैं. आज देश का विपक्ष सरकार पर तोहमत गढने में लगा हुआ है. ये सभी सेना और  सरकार का आत्मविश्वास व मनोबल को कमजोर करने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ रहे हैं. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था की संकट काल में सरकार और सेना पर सवाल उठाना देशद्रोह होता है. तो फिर ऐसे में सवाल खड़ा होता है की क्या चीन समर्थकों को गिरफ्तार किया जाय..?  

08 July 2020

युद्ध में हारने की चीन का इतिहास

यह बात उन लोगों को बहुत अजीब लग सकती है जो चीन को एक महाशक्ति मानते हैं. युद्ध में हारने का चीन का एक लंबा इतिहास रहा है. यह भी एक सच्चाई है कि इतिहास में गिने-चुने मौकों पर ही चीन को विजय हासिल हुई है. ज्यादातर लड़ाइयों में चीन को हार का सामना ही करना पड़ा है. आधुनिक चीन के इतिहास की बात करें तो 1894-95 में उसके आकार की तुलना में काफी छोटे देश जापान ने चीन को बुरी तरह से हरा दिया था.

इसके बाद एक दौर ऐसा भी आया जब ब्रिटेन, रूस, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी और जापान जैसे देशों ने खरबूजे की तरह चीन को आपस में बांट लिया था. उस समय एक देश के तौर पर चीन का अस्तित्व स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में ही था..लेकिन लगातार हो रही पराजय की वजह से इन देशों के साथ चीन को कई तरह की अपमानजनक संधि करनी पड़ी थी.. और इसकी दयनीय हालत को इतिहास में चीनी खरबूजे के काटे जाने के नाम से आज भी जाना जाता है.

1949 की चीनी क्रांति के बाद वहां पर कम्यूनिस्ट सरकार की स्थापना हुई जो आज तक चल रही है लेकिन इनके दौर में भी चीन को कई बार हार का सामना करना पड़ा. हॉन्गकॉन्ग को लेकर चीन 1842 में ब्रिटिशों के साथ हुए युद्ध में हार चुका है.. इस हार के बाद चीन को हॉन्गकॉन्ग को गंवाना पड़ा. 1969 में चीन ने रूस पर हमला किया था, मगर रूस ने चीन को हरा दिया. इस युद्ध में चीन को मुंह की खानी पड़ी. वही हालांकि मंगोलिया के शासक चंगेज ने भी चीन को कई बार युद्ध में परास्त किया था.

1962 की लड़ाई भले ही चीन धोखे से जीत गया लेकिन इसके कुछ सालों के बाद ही चीन को सिक्किम के मोर्चे पर भारत से करारी हार का सामना करना पड़ा था. चीन भले ही पूरी दुनिया पर अपना उलुल-जुलूल दावा करता हो मगर वह खुद दुनिया की कई देशों से युद्ध हार चुका है.


चीन दुनिया के 22 देशों को अपना हिस्सा बता रहा है

हमारे देश में एक कहावत प्रचलित है, पड़ौसी से अच्छा कोई मित्र नहीं और पड़ौसी से बुरा कोई दुश्मन नहीं’’ चीन की विस्तारवादी नीति के कारण आज ये कहावत पूरी दुनिया के लिए सच्ची साबित हो रही है. चीन की सीमाएं 14 देशों से लगती है, लेकिन चीन 22 देशों के इलाकों को अपना हिस्सा बता है.

झगड़ालू चीन ने 22 देशों की जमीन पर नजर लगाये हुए है. ऐसे में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को झगड़ालू रिपब्लिक ऑफ चाइना कहना गलत नहीं होगा. चीन के कारनामे ही उसकी हकीकत बयान करते हैं. जिन भी देशों से चीन की सीमा सटी हैउनसे तो विवाद है हीजहां सीमाएं नहीं मिलतींवहां भी वह दूसरे देशों से उलझते रहता है.

गनीमत यह है कि सरहदें मिटाने वाली रबर’ चीन के पास नहीं है. अगर उसके पास ऐसी रबर’ होती तो पूरी दुनिया पर उसका कब्जा होता. खैर आपको जानकर आश्चर्य होगा कि चीन एकदो नहीं बल्कि 22 पड़ोसी देशों से विवाद मोल ले चुका है.

इंडोनेशिया भी चीन की आखों में खटक रहा है. चीन सागर के कुछ इलाकों को चीन इंडोनेशिया से खाली करने के लिए बार-बार दबाव डालता है. चीन इंडोनेशिया के सागर पर अपना दावा जता रहा है.

चीन की चालबाजियों से दुनिया का हर मुल्क त्रस्त है. सिंगापुर से चीन की सीमाएं नहीं मिलतीं है, लेकिन वह हमेशा वहां पर टांग अड़ाता रहता है. दक्षिण चीन सागर में सिंगापुर की सरकार का शासन हैवहां चीन सिंगापुर के मछुआरों को नहीं आने देता है. पूरे चीन सागर पर वह अपना दावा जता रहा है.

दक्षिण चीन सागर के जिन तटीय द्वीपों पर मलेशिया का अधिकार हैवहां पर चीन अब अपना दावा बताता है. दोनों देशों के बीच आज वहां पर तनाव बना हुआ है. झगड़ालू चीन और उसके सैनिक रोजाना वहां पर नया विवाद खड़ा करते रहते हैं.

कजाखिस्तान के बड़े भूभाग पर चीन अपना दावा जता रहा है..साथ ही कजाखिस्तान के कुछ हिस्से पर चीन ने कब्जा भी कर लिया है. किर्गिस्तान के साथ भी चीन आयेदिन नये-नये विवाद खड़ा कर रहा है. चीन का दावा है कि 19वीं सदी में किर्गिस्तान के कुछ भूभाग को उसने जीता था. अब चीन पूरे किर्गिस्तान पर अपना दावा जता रहा है.

ताजिकिस्तान से भी चीन उलझा हुआ है. कभी सोवियत संघ का हिस्सा रहे इस देश के भी कुछ हिस्सों को चीन अपना बताता रहा है. चीन की माने तो ताजिकिस्तान पर 1644 से 1912 के बीच किंग राजवंश का शासन था. इस लिहाज से ताजिकिस्तान पर उसका हक है. भले ही चीन के पास कोई ठोस आधार नहीं है मगर फिर भी चीन अपने झगड़ालू रुख से ताजिकिस्तान हड़पने के लिए नूराकुस्ती कर रहा है.

अफगानिस्तान की भी सीमा चीन से मिलती है.. दोनों देशों के बिच 92.45 किमी का सीमा लगता है. बदखशां के वखन क्षेत्र पर अफगानिस्तान का शासन है. मगर चीन इसे अपना बताता है. 1963 में दोनों देशों के बीच समझौता हुआलेकिन वखन क्षेत्र को लेकर अब भी चीन अड़ा हुआ है.

रुस को भी चीन ने सीमा विवाद में उलझा रखा है. दोनों देशों के बीच 1969 में युद्ध भी हो चुका है. रूस के दमानस्की द्वीप पर चीन अपना दावा जता रहा है.

पूर्वी चीन सागर में सेनकाकू द्वीप को लेकर जापान चीन का विवाद है. इस द्वीप पर जापान का अधिकार हैलेकिन चीन कहता है कि 1874 तक यह द्वीप उसका बंदरगाह था. चीन अब इस द्वीप को वापस लेना चाह रहा है. मंगोलिया को चीन अपना बताता है. चीन का दावा है कि युआन राजवंश के दौर में मंगोलिया उसका हिस्सा था.

दक्षिण कोरिया का पूर्वी चीन सागर के कई द्वीपों पर अधिकार है. चीन ऐतिहासिक रूप से पूरे दक्षिण कोरिया को अपना हिस्सा बताता है. चीन का दावा है कि दक्षिण कोरिया में युआन राजवंश का शासन था. इसलिए इस इलाके पर अब भी उसका अधिकार है. फिलीपींस से भी चीन सीमा को लेकर उलझा हुआ है. चीन दावा है कि फिलीपींस तक उसका राज्य हुआ करता था.

मंदिरों के लिए मशहूर कंबोडिया पर भी चीन की गंदी नजर लगी हुई है. पुराने जमाने के नक्शे के आधार पर चीन इसे भी अपना हिस्सा बताता है. उत्तर कोरिया से तो चीन का बड़ा याराना हैलेकिन उससे भी सीमा को लेकर विवाद है. उत्तर कोरिया के जिंदाओ इलाके को चीन अपना बताता है. भूटान को भी चीन अक्सर डराता रहता है. भूटान को कमजोर समझकर वह डोकलाम तक घुस आया था. भारत के हस्तक्षेप पर चीन को पीछे तो हटना पड़ा. 

युआन राजवंश के जमाने में म्यांमार चीन का हिस्सा हुआ करता था तब का बर्मा युआन राजवंश का अंग था. चीन इसी आधार पर म्यांमार के बड़े हिस्से को अपना बताता है.

दक्षिण चीन सागर के कुछ द्वीप पर ब्रुनेई का शासन है. हालांकि चीन का दावा है कि वे द्वीप उसके हैं. वियतनाम से भी चीन का सीमा विवाद चल रहा है. मिंग राजवंश का 1368 से 1644 के बीच वियतनाम पर शासन था. इसी आधार पर चीन वियतनाम पर अपना दावा जताता है.

युआन राजवंश का कभी लाओस पर शासन था. इसी आधर पर चीन लाओस को भी अपना बताता है. इस समय नेपाल भले ही चीन के गोद में जा बैठा हैलेकिन उसका भी चीन से सीमा विवाद रहा है. चीन और नेपाल के बीच विवाद 1788 से 1792 के युद्ध के बाद से चला आ रहा है.

चीन का मानना है कि नेपाल असल में तिब्बत का हिस्सा है. तिब्बत को वहअपने में मिला चुका हैइसी आधार पर नेपाल भी उसका है. चीन के इस उलटे सीधे दावे के लंबी फेहरिस्त है जिसे सुन कर अपमा माथा चकरा जायेगा. चीन का दाव अभी पूरी दुनिया पर ख़त्म नहीं हुआ है. हो सकता आने वाले समय चीन के दावे की लिस्ट इससे भी बड़ी हो जाये.

चीन दुनिया के 6 बड़े देशों की जमीन पर कब्ज़ा कर चुका है

चीन दुनिया के 6 बड़े देश सहित पड़ोसी देशों की जमीन का एक बड़े हिस्से पर कब्ज़ा कर चुका है...और अब चीन अपने आसपास के सभी छोटे बड़े देश को हड़पने का प्लान बना रहा है. भारत सहीत 23 अन्य देशों के उपर चीन की टेड़ी नजर है. रूस का 52 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अपने कब्जे में करने के लिए सभी साम, दाम, दंड, भेद को अपना रहा है. 



वहीँ जापान के 81 हजार वर्ग किमी के आठ द्वीपों पर चीन की नजर है. चीन इन द्वीपों को हड़पने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहा है.   2013 में चीन के वायु सीमा जोन बनाने के बाद से यहां पर विवाद बढ़ा हुआ है. चीन ने भारत में भी अक्साई चिन और तवांग को हड़पा लिया है. अब पूर्वी लद्दाख में गलवान घाटी पर अपना कब्जा जमाने की नापाक कोशिश कर रहा है. केवल भारत ही नहीं वह करीब दो दर्जन देशों की जमीनों को हड़पना चाहता है.

 


चीन की सीमा भले ही 14 देशों से लगती हो, लेकिन वह कम से 23 देशों की जमीन या समुद्री सीमाओं को हड़पने पर आमादा है. ड्रैगन ने अपनी विस्तारवादी नीति से पिछले 6-7 दशकों में अपने साइज को लगभग दोगुना कर लिया है. चीन की लालच अभी भी खत्म नहीं हुआ है.


चीन 1949 से लगातार जमीन हथियाने की नीति अपना रहा है. जिन देशों को चीन सीधे तौर पर नहीं हड़प पा रहा है उनको कर्ज के जाल में फंसा कर अपने कब्जे में ले रहा है. नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से हाथ मिला लिया है. आज नेपाल की सरकार इस कदर चीन के चंगुल फंस गई है की वह अपने ही देश की भूमि पर चीनी कब्ज़ा को नहीं रोक पा रही है. नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से हाथ मिला कर नेपाल को चीन के हाथों में सौपना चाहती है. नेपाल चीन के जाल में पूरी तरीके से फंस चुका है.


वहीँ श्रीलंका भी अब ड्रैगन की चाल में फंस कर लड़खड़ा रहा है. चीन श्रीलंका को अपने कब्जे में लेने के लिए वर्षों से प्रयास कर रहा है. श्रीलंका का हम्बनटोटा बंदरगाह पहले से ही चीन हड़प चुका है. अब उसकी नियत पूरे श्रीलंका को कब्जाने की है. श्रीलंका की 15 हजार एकड़ जमीन को ड्रैगन पहले ही निगल चुका है.


श्रीलंका की तरह अब बांग्लादेश को भी चीन अपने आगोश में लेने की फ़िराक में है. बांग्लादेश के पायरा बंदगाह पर चीन अपना अतिक्रमण शुरू कर दिया है. ऐसे में अब बांग्लादेश की सरकार को ये डर सताने लगा है की कहीं चीन पूरे देश को न निगल जाये!


पाकिस्तान पहले से ही चीन के सामने सरनागत हो चुका है. पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह और सीमावर्ती इलाके पर चीन पहले से ही कब्ज़ा किये बैठा है. पकिस्तान चीन के हाथों का कठपुतली बना हुआ है. ऐसे में चीन जब चाहे पाकिस्तान को निगल लेगा.


मंगोलिया में बड़े पैमाने पर चीन अपना सैन्य ठिकाना बना लिया है. चीन मंगोलिया के सभी गतिबिधियों पर पैनी नजर बनाये हुए है. ऐसे में अब मंगोलिया का चीन के आगोश में आना निश्चित है. वियतनाम और भूटान पर चीन आर्थिक कर्ज का दबाव डाल कर उसके महत्वपूर्ण ठिकाने और प्राकृतिक संसाधनों पर अपना वर्चस्व स्थापित कर रहा है.


ऐसे में मतलब साफ है की चीन अपने सभी छोटे-मोटे पड़ोशी देशों को निगलने का खाका खीच चुका है. आज नही तो कल ड्रैगन इन्हें निगल लेगा. इसीलिए आज सुदर्शन पूरी दुनिया से अपील कर रहा है की चीन को चारों ओर से घेरो.

 

 


चीन को चरों ओर से घेरो

ड्रैगन आज पूरी दुनिया को हड़प रहा है. चीन अब तक 6 देशों की 41.13 लाख स्क्वायर किमी जमीन पर चीन का कब्जा कर चुका है. अगर क्षेत्रफल की लिहाज से बात करें तो चीन का हड़पा हुआ कुल हिस्सा चीन के 43% क्षेत्रफल के बराबर है. मतलब ये की चीन अपने देश के लगभग आधे हिस्से के बराबर जमीन दूसरे देशों का हड़पा हुआ है. साथ ही भारत की भी 43 हजार वर्ग किमी जमीन पर भी चीन पहले से ही कब्ज़ा किया हुआ है.


1949 में कम्युनिस्ट शासन सत्ता में आते ही तिब्बत, पूर्वी तुर्किस्तान और इनर मंगोलिया पर कब्जा कर लिया था. हॉन्गकॉन्ग को 1997 में जबकि मकाउ को 1999 में चीन ने हड़प लिया. चीन जमीन के अलावा समंदर को हड़प चुका है. 35 लाख स्क्वायर किमी में फैले दक्षिणी चीन सागर पर चीन आर्टिफिशियल आइलैंड भी बना लिया है.

चीन ने पूर्वी तुर्किस्तान पर 1949 में कब्जा किया था. चीन इसे शिनजियांग प्रांत बताता है. मगर शिनजियांग एक अलग देश था. वहीँ 23 मई 1950 को चीन के हजारों सैनिकों ने तिब्बत पर हमला कर हड़प लिया. मकाउ पर करीब 450 साल तक पुर्तगालियों का कब्जा था. मगर दिसंबर 1999 में चीन ने इसको भी हड़प लिया.

इसके अलावा 2 मार्च 1963 को चीन ने पाकिस्तान को डरा धमका कर पीओके का 5 हजार 180 स्क्वायर किमी जमीन को हड़प लिया है. आज यही कारण है की पूरी दुनिया चीन को घेरने की रणनीति बना रही है. चीन पूरी दुनिया का भू-माफिया बन चूका है. चीन सिर्फ इन्हीं देशों तक सिमित नहीं है..अब चीन की नजर दुनिया की 23 अन्य देश पर भी है जिसे हम आपको अपने अगले रिपोर्ट में दिखायेंगे. इसीलिए आज हम कर रहे है की चीन को चरों ओर से घेरो.