04 September 2024

बांगर की धरती से सियासी समीकरण, चौधर की राजनीति- किसे फायदा किसको नुकसान? बांगर की धरती देगी सत्ता की चाबी !

बांगर बेल्ट में आने वाली कैथल जिले की विधानसभा सीटें काफी महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। बांगर क्षेत्र में इस बार कांटे का मुकाबला देखने को मिल सकता है। इस बार यहां पर मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा का माना जा रहा है.. लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी का किया गया प्रदर्शन विधानसभा में कोई नया समीकरण बना सकता है। हालांकि ये तो आगे तय होगा लेकिन फिलहाल मुख्य रूप से सियासी भिड़ंत कांग्रेस और भाजपा में है। अगर पीछले तीन विधानसभा चुनाओं की बात करें तो 2004, 2009 और 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहा था जबकि पिछले चुनाव 2019 में लीला राम ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी। कैथल जिले में 4 विधानसभा सीटें हैं...गुहला, कलायत, कैथल और पुण्डरी।


आईटीआई और क्योड़क बूथ सबसे बड़ा माना जाता है। यहां करीब 30 हजार मतदाता हैं। दोनों ही बूथ के मतदाता, प्रत्याशियों की हार-जीत में अहम भूमिका निभाते हैं। इस वजह से इन बूथों पर पार्टी प्रत्याशी और नेताओं की खास नजर रहती है। महिलाओं की आधी आबादी होने के बावजूद इस सीट पर कांग्रेस पार्टी को छोड़कर आज तक किसी भी राजनीतिक दल ने महिला प्रत्यासी को मैदान में नहीं उतारा है। इस क्षेत्र के मतदाताओं ने दो बार निर्दलीय विधायकों को चुना है, 11 बार पार्टी प्रत्याशियों को कमान सौंपी है। प्रदेश की पुरानी सीटों में शुमार कैथल का चाहे संयुक्त पंजाब हो या हरियाणा गठन के बाद की सरकार, 13 में से सात बार मंत्री मंडल में अहम पद मिला है।


वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर रणदीप सिंह सुरजेवाला विधायक बने थे। सुरजेवाला को 65 हजार 524 वोट मिले थे। इनेलो की टिकट पर चुनाव लड़ रहे कैलाश भगत को 41 हजार 849 वोट मिले, वे दूसरे नंबर पर रहे थे। तीसरे नंबर पर भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ रहे राव सुरेंद्र सिंह मैदान में थे। वर्ष 2019 में विधायक लीला राम ने सुरजेवाला को करीब 750 मतों से मात दी थी।

 

बागर बेल्ट की एक और महत्वपूर्ण सीट गुहला भी काफी चर्चीत रहा है। 1977 को अस्तित्व में आया इस विधान सभा क्षेत्र सीट पर अब तक हुए 9 चुनावों में आईएनएलडी के सबसे अधिक यहां चार बार विधायक बने हैं, जबकि दो कांग्रेस, एक बार जनता पार्टी, एक बार बीजेपी तो पिछले चुनाव में जेजेपी यहां जीत हासिल करने में कामयाब रही। इस क्षेत्र से आज तक कोई भी महिला नेत्री विधायक नहीं बनी है। हर चुनाव में महिला प्रत्याशी मैदान में तो उतरी हैं, लेकिन विधानसभा में पहुंचने का मौका किसी को नहीं मिला है।

2019 के चुनावों के परिणाम

 

पार्टी

कैंडिडेट

वोट

जेजेपी

ईश्वर सिंह

36,518

कांग्रेस

दिल्लू राम

31,944

निर्दलीय

देवेंद्र हंस

29,473

 

बांगर बेल्ट की एक और सीट पुंडरी विधानसभा है। ये सीट पहले कुरुक्षेत्र का हिस्सा हुआ करती थी। इस सीट पर 1967 में पहली बार कांग्रेस के आरपी सिंह विधायक चुने गए थे। पुंडरी सीट का इतिहास रहा है कि 25 वर्षों में यहां से किसी पार्टी का उम्मीदवार नहीं जीता है। 2019 में हुए चुनाव में बीजेपी ने रणधीर सिंह गोलन का टिकट काटकर वेदपाल एडवोकेट पर भरोसा जताया था। ऐसे में रणधीर सिंह गोलन निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में उतरे थे। गोलन ने इस सीट से जीत भी हासिल की थी।

2019 के चुनावों के परिणाम

 

 

पार्टी

कैंडिडेट

वोट

निर्दलीय

रणधीर सिंह गोलन

41,008

कांग्रेस

सतबीर सिंह जांगड़ा

28,184

बीजेपी

वेदपाल एडवोकेट

20,990

 

2014 में हुए चुनाव में भी इस सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत हासिल की थी। 2014 में निर्दलीय प्रत्याशी दिनेश कौशिक ने 4832 वोटों से जीत दर्ज की थी। उन्हें 38,312 वोट मिले थे। दूसरे नंबर पर बीजेपी के रणधीर सिंह गोलन रहे थे, जिन्हें कुल 33,480 वोट मिले थे।

बांगर बेल्ट में बढ़ा सियासी तापमान, मुख्य सियासी केंद्र है बांगर, क्या है बीजेपी- कांग्रेस की रणनीति ?

बांगर बेल्ट हरियाणा की राजनीति में मुख्य सियासी केंद्र रहा है। हिसार का क्षेत्र इसमे काफी अहम माना जाता है। हिसार की धरती ने देश व प्रदेश को राजनीति के बड़े चेहरे दिए हैं, जिन्होंने एक अलग पहचान कायम की। हिसार के प्रथम सांसद लाला अचिंत राम थे। बाद में उनके पुत्र कृष्णकांत देश के उपराष्ट्रपति बने। हिसार लोकसभा सीट के दूसरे सांसद ठाकुर दास भार्गव थे, जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किए। उनके छोटे भाई गोपीचंद भार्गव वर्ष 1947 1951 तक संयुक्त पंजाब के प्रथम मुख्यमंत्री रहे। वर्ष 1962 1980 में सांसद बने मनीराम बागड़ी के चर्चे पूरे देश में रहे हैं। अगर हिसार विधानसभा  की अगर बात करें तो यहां पर हमेशा से जातीय समीकरण हावी रहा है। 

 वर्ग              मतदाता

सामान्य जाति          83600

अनुसूचित जाति        33300

पिछड़ा वर्ग से           62500


चौधरी भजनलाल के समय करीब 13 साल तक हिसार को सीएम सिटी का गौरव मिला। पिछले दो दशक से शहर विधायक को मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी मिली है। स्टील नगरी के तौर पर पहचान रखने वाला हिसार व्यापारियों का शहर माना जाता है। अग्रवाल समाज का हिसार के बड़े हिस्से पर प्रभाव है। अधिकतर बड़े उद्योग अग्रवाल समाज के लोगों का है। यहां तैयार होने वाला स्टील 22 देशों में पहुंचता है। हिसार के बटन और कॉटन का भी 17 देशों में निर्यात होता है। कारोबार में अग्रवाल समाज के साथ-साथ पंजाबी और बनिया समाज का भी हिस्सेदारी है। अनाज मंडी-सब्जी मंडी में सैनी समाज भी बराबर का हिस्सेदार हैं। कारोबार में बड़ी भागीदारी रखने वाली तीनों जातियों में राजनीतिक जंग भी रहती है। अब तक तीन जाति के विधायक ही जीतते रहे हैं। दूसरे नंबर पर भी इन तीनों के बीच ही टक्कर रहती है। यही कारण है कि सभी प्रमुख दल इन तीन जातियों के उम्मीदवारों को ही टिकट देना पहली प्राथमिकता रखते हैं।


हिसार विधानसभा सीट का जातीय समीकरण

 

जाति           संख्या


बनिया             22760

पंजाबी             22500

सैनी              18500

जाट              18000

ब्राह्मण            10300

बिश्नोई            5430

राजपूत            3150                                                                

कुल  मतदाता      180088


हिसार सीट पर अग्रवाल और पंजाबी मतदाता करीब 12-12 प्रतिशत हैं। तीसरे नंबर पर करीब 10 प्रतिशत सैनी समाज के मतदाता हैं। वर्ष 1952 से लेकर अब तक की बात करें तो... इस सीट पर सबसे अधिक 14 बार अग्रवाल समाज के विधायक बने हैं। एक प्रतिशत से भी कम मतदाताओं वाले जैन समाज से भी एक बार विधायक बना है। एक बार लोकदल की टिकट पर सैनी समाज से भी विधायक चुना गया। बांगर बेल्ट में उचाना सीट प्रदेश की सबसे हॉट सीट मानी जाती है। यहां हमेशा बीरेंद्र सिंह व चौटाला परिवार या उनके उम्मीदवार के बीच सीधा मुकाबला रहा है। साढ़े चार दशक तक उचाना कलां की राजनीति बीरेंद्र सिंह परिवार के इर्द-गिर्द ही घूमती रही, लेकिन पिछली बार दुष्यंत चौटाला यहां से जीते और उप मुख्यमंत्री बने। अब दोनों बड़े राजनीतिक परिवारों के बीच भाजपा अपना मजबूत उम्मीदवार उतारने की जुगत में है। प्रेमलता भाजपा के टिकट पर विधायक बनी थीं, अब बीरेंद्र सिंह सपरिवार कांग्रेस में चले गए हैं। जजपा और भाजपा का गठबंधन टूट चुका है। ऐसे में इस बार त्रिकोणीय मुकाबले के आसार दिख रहे हैं। जननायक जनता पार्टी की ओर से दुष्यंत चौटाला चुनाव लड़ने की घोषणा पहले ही कर चुके हैं।

 

2014 के विधानसभा चुनाव में उचाना से पहली बार भाजपा का कमल खिल चुका है। तब भी उम्मीदवार बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता ही थीं। उन्होंने इनेलो के दुष्यंत चौटाला को 7480 मतों से हराया था। हालांकि 2019 के चुनाव में दुष्यंत चौटाला जजपा के टिकट पर चुनाव लड़े और उन्होंने भाजपा की प्रेमलता को 47452 मतों से हरा दिया।

बांगर बेल्ट का हरियाणा की राजनीति में है बड़ा प्रभाव, बांगर बेल्ट पर चौधरी बीरेंद्र सिंह का रहा है दबदबा- किस तरफ है इस बार चौधर की राजनीतिक हवा ?

हरियाणा की बांगर बेल्ट शुरू से ही प्रदेश की राजनीति की दिशा और दशा तय करती आई है। ऐसे तो बांगर बेल्ट के कई नेता हरियाणा की राजनीति में अपना प्रभाव रखते हैं...मगर यहां के कद्दावर नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह सियासत के केंद्र बिंदु रहे हैं। 10 साल पहले कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाकर उन्होंने कांग्रेस को इस बेल्ट में खासा नुकसान पहुंचाया था। चौधरी बीरेंद्र सिंह कांग्रेस में दोबारा सियासी पारी खेलने के लिए काफी सक्रिय नजर आ रहे हैं। 

 

कौन हैं चौधरी बीरेंद्र सिंह ?

 

रोहतक में जन्म, जींद को बनाया कर्मभूमि

1972 में पहला चुनाव लड़ा और उचाना ब्लॉक समिति के अध्यक्ष बने

1977 में कांग्रेस की टिकट पर उचाना से MLA बने

5 बार MLA और 2 बार राज्यसभा और एक बार लोकसभा के सांसद रहे

पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल और भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार में मंत्री बने

2014 में BJP में शामिल होने के बाद केंद्र सरकार में पहली बार मंत्री बने

 

बीरेंद्र सिंह और उनके बेटे, बांगर की धरती से एक बार फिर विधानसभा चुनावों में अहम भूमिका निभाते दिख रहे हैं। चौधरी छोटूराम की विरासत संभाल रहे बीरेंद्र सिंह का अपनी बेल्ट के साथ-साथ पूरे प्रदेश में प्रभाव है। बीरेंद्र सिंह अपने क्षेत्र में किसी भी सियासी हवा का रूख मोड़ने की महारत रखते हैं। कांग्रेस को उम्मीद है कि हरियाणा में पार्टी को मजबूती देने में इसबार चौधर की राजनीति से उसे  लाभ मिल सकता है। बांगर बेल्ट में जींद, कैथल और हिसार लोकसभा क्षेत्र के 28 विधानसभा क्षेत्र आते हैं।

 

बांगर बेल्ट की विधानसभा क्षेत्र

 

जुलाना     सफीदों जींद     उचाना कलां     नरवाना

गुहला      कलयात       कैथल          पुंडरी

आदमपुर      उकलाना     नारनौद      हांसी       बरवाला     हिसार     नलवा

 

1986 में कांग्रेस की बंसीलाल सरकार के खिलाफ चौधरी देवीलाल ने न्याय युद्ध बांगर बेल्ट जींद से ही शुरू किया था। इसका असर ये रहा कि 1987 में हुए विधानसभा चुनाव में जनता दल- भाजपा गठबंधन को 90 में से 85 सीटें मिली थी।  चौधरी बंसीलाल ने 1995 में हरियाणा विकास पार्टी की बड़ी रैली की थी, जिसके बाद प्रदेश में उनकी लहर बनी और 1996 में वह सत्ता तक पहुंचे थे। वहीं, कंडेला कांड के बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने 2002 में जींद से किसान पदयात्रा शुरू की थी, जिसके बाद 2005 में वह सीएम की कुर्सी हासिल कर सके। प्रदेश के मध्य में पड़ने वाले जींद से उठने वाली राजनीतिक आवाज का पूरे प्रदेश में असर पड़ता है। यही कारण है कि बांगर बेल्ट हमेशा से ही हरियाणा की राजनीति में काफी अहम रहा है।


इनेलो का शुरू से ही जींद गढ़ रहा है, खुद ओमप्रकाश चौटाला नरवाना से विधायक बनकर सीएम बने थे। इसके बाद, इनेलो टूटने के बाद जजपा ने भी 9 दिसंबर, 2018 को इसी बांगर की धरती से नई शुरुआत की थी और सत्ता की चाबी उनके हाथ लगी। उचाना से विधायक दुष्यंत चौटाला डिप्टी सीएम बने थे। भाजपा के कई बड़े नेता और गृह मंत्री अमित शाह भी जींद की जमीं से हरियाणा की राजनीति को साधते रहे हैं। 2019 की रैली में अमित शाह ने कहा था कि....

 

महाभारत का युद्ध जीतने के बाद पांडवों ने भी इसी धरती पर जयंती देवी मंदिर की स्थापना करवाई थी। वे चौथी बार जींद आए हैं और जयंती देवी की धरती से उन्हें हमेशा ऊर्जा मिली है। पांडवों की जमीं से प्रदेश की जनता उन्हें जरूर आशीर्वाद देगी

             - अमित शाह, गृह मंत्री


इस धरती की ताकत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि हरियाणा में राजनीतिक जमीन तलाश रही आम आदमी पार्टी यहां पर कई बड़ी रैली कर चुकी है। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और पंजाब के सीएम भगवंत मान यहां के लोगों से सीधे रूबरू हो चुके हैं। वहीं, महम से निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू ने अपनी नई पार्टी हरियाणा जनसेवक पार्टी का आगाज भी जींद से ही किया था।  जिंद जिले की एक और विधानसभा सीट उंचाना कलां हमेशा से हरियाणा की राजनीति में अहम स्थान रखता है। ट्रेजडी किंग के खिताब के पीछे की कहानी भी यहीं से जुड़ा हुआ है। हरियाणा की राजनीतिक सें चौधरी बीरेंद्र सिंह को ट्रेजडी किंग के नाम से भी जाना जाता है। उनके प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए वर्ष 1991 में हरियाणा विधानसभा के चुनाव हुए। जिसमें कांग्रेस ने बहुमत हासिल किया। बीरेंद्र सिंह का CM बनना तय था, लेकिन उसी समय राजीव गांधी की हत्या हो गई। इसके साथ ही बीरेंद्र सिंह के सितारे गर्दिश में चले गए और कांग्रेस हाईकमान ने 23 जुलाई 1991 को उनकी जगह भजनलाल को CM बना दिया।

बीरेंद्र सिंह खुद कई बार कह चुके हैं कि उनका 2009 में मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली यूपीए-2 सरकार में मंत्री बनना तय हो चुका था। उन्हें पार्टी का ऑफिशियली इन्विटेशन भी मिल गया कि कल सुबह मंत्रिपद की शपथ लेनी है। उन्होंने नया सूट सिलवा लिया, लेकिन सुबह पता चला कि केंद्रीय मंत्रियों वाली लिस्ट से उनका नाम कट चुका है। ऐन मौके पर होने वाले ऐसे घटनाक्रमों के चलते ही बीरेंद्र सिंह को हरियाणा की राजनीति का ट्रेजडी किंग कहा जाने लगा।