हरियाणा में राज्यसभा सीट के लिए 21 अगस्त को नामांकन का आखिरी तारिख है।
नामांकन से ठीक पहले प्रदेश की सियासत में भूचाल मची हुई है। हाल ही में कांग्रेस
छोड़कर भाजपा में शामिल हुई विधायक किरण चौधरी ने अपनी विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा
दे दिया है। विधानसभा स्पीकर ज्ञान चंद गुप्ता ने इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया है।
ऐसे में अब क्लीयर हो गया है कि वह भाजपा की तरफ से राज्यसभा के लिए प्रत्याशी होंगी।
वर्तमान सियासी गणित के हिसाव से किरण चौधरी का निर्विरोध चुना जाना करीब करीब तय माना
जा रहा है। कभी कांग्रेस की दिग्गत नेता रही किरण चौधरी भिवानी के तोशाम विधायक थी।
हाल ही में कांग्रेस को अलविदा कहते हुए भाजपा में शामिल हो गई थी। उनकी बेटी को
कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के लिए टिकट नहीं दिया था और इसके बाद उन्होंने बगावत
करते हुए कांग्रेस को टाटा-बाय-बाय कर दिया था। ऐसे में ये जानना बेहद दिलचस्प हो
जाता है कि आखिर कौन हैं किरण चौधरी और क्या है इनका राजनीतिक भविष्य इसपर भी एक
नजर डाल लेते हैं।
कौन हैं
किरण चौधरी ?
पूर्व
मुख्यमंत्री बंसीलाल की पुत्रवधू हैं किरण चौधरी
किरण चौधरी
दिल्ली से बनी थीं पहली बार विधायक
हरियाणा में दो बार मंत्री और
नेता विपक्ष रह चुकी हैं
तोशाम विधानसभा
क्षेत्र से विधायक रह चुकी हैं
2024
लोकसभा चुनाव में बेटी को टिकट नहीं मिलने से थीं नाराज
कांग्रेस से अपना नाता तोड़कर बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली
पति की मृत्यु के बाद हरियाणा की राजनीति में सक्रिय हुई
किरण चौधरी की जीत लगभग पक्की
मानी जा रही है...दरअसल, हरियाणा
में कांग्रेस के पास केवल 28 विधायक हैं।
वहीं, भाजपा के
पास 41 विधायक
सहित दो अन्य विधायकों का भी समर्थन है। वहीं, जेजेपी के पास 10 विधायक हैं, लेकिन उनके पांच विधायकों ने तो
पार्टी छोड़ दी है। हरियाणा के कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा पहले ही कह
चुके हैं कि उनके पास नंबर नहीं हैं और ऐसे में वह राज्यसभा चुनाव में प्रत्याशी
नहीं उतारेंगे। ऐसे में तय माना जा रहा कि किरण चौधरी राज्यसभा जाएंगी। लोकसभा
चुनाव में दीपेंद्र हुड्डी की जीत के बाद यह सीट खाली हो गई थी। उधर, कुलदीप बिश्नोई भी राज्यसभा जाने
के इच्छुक थे और उन्होंने टिकट के लिए कोशश भी की, मगर बाजी किरण चौधरी मार ले गई। राज्यसभा चुनाव में नामांकन की 21 अगस्त को अंतिम तारीख है और किरण
चौधरी बीजेपी की ओर से अपना नामांकन दाखिल करेंगी। ऐसे में यदि विपक्ष की तरफ से
अगले 28 घंटे में
कोई नामांकन दाखिल नहीं किया गया तो किरण चौधरी निर्विरोध सांसद बन जाएंगी।
हरियाणा में एक सीट के लिए होने वाले राज्यसभा चुनाव के लिए सत्तारूढ़
भारतीय जनता पार्टी की राह आसान हो गई है। विधानसभा में विधायकों की संख्या के
आधार पर यह साफ है कि यह सीट भाजपा के पास हर हाल में जाएगी। राज्यसभा के लिए चुने जाने वाले सदस्य का कार्यकाल वर्ष 2026 तक रहेगा। प्रदेश में विधानसभा चुनाव का एलान होने के बाद राजनीतिक समीकरण
लगातार बदल रहे हैं। जननायक जनता पार्टी (जजपा) के पांच विधायक अब तक पार्टी से
इस्तीफा दे चुके हैं। निर्वाचन के आधार पर यह विधायक भले ही अभी भी विधानसभा के
रिकॉर्ड में जेजेपी के विधायक हैं लेकिन राजनीतिक रूप से यह विधायक राज्यसभा में
वोट डालने के लिए स्वतंत्र हो गए हैं। जजपा के दो विधायक पहले से ही भाजपा के साथ
चल रहे हैं। विधानसभा चुनाव का एलान होने के बाद पार्टी छोड़ने वाले पांच विधायकों
में से तीन विधायकों के बीजेपी में आने की चर्चा है। साथ ही कांग्रेस की चुप्पी के
बाद यह साफ हो गया है कि विपक्ष इस सीट के लिए कोई प्रत्याशी नहीं उतारेगा।
हरियाणा में राज्यसभा चुनाव
नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख 21 अगस्त है
नामांकन-पत्रों की जांच 22 अगस्त को होगी
27 अगस्त को नामांकन वापसी की आखिरी
तारीख होगी
चुनाव मैदान में दो प्रत्याशी हुए तो तीन सितंबर को मतदान होगा
अन्यथा 27 अगस्त को निर्विरोध भाजपा उम्मीदवार को चुन लिया जाएगा
राज्यसभा के एक-तिहाई सदस्य हर दो साल में सेवानिवृत्त हो जाते हैं।
हरियाणा से राज्यसभा के 5 सदस्य निर्वाचित होते हैं। दीपेंद्र सिंह हुड्डा 2020
में निर्वाचित हुए थे। हरियाणा से एक सांसद के निर्वाचन के लिए 31
वोट की जरूरत होती है। हरियाणा में विधानसभा सदस्यों की संख्या 90
है। राज्यसभा चुनाव की
घोषणा के साथ ही प्रदेश में राजनीति काफी गरमा गई थी, लेकिन आचार संहिता लगते ही ये मामला थोड़ा
ठंडा जरूर पड़ गया था,
मगर पूर्व डिप्टी
सीएम दुष्यंत चौटाला के ट्वीट के लिए बाद एक बार फिर से सियासी माहौल गर्माता नजर
आ रहा है।
राज्ससभा सीट को लेकर
हरियाणा के पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने सोशल मीडिया एक्स पर निशाना साधाते हुए
कहा है कि….
दुष्यंत
चौटाला ने हुड्डा पर साधा निशाना
“अब तो कांग्रेस को राज्यसभा के लिए अपना उम्मीदवार उतार देना चाहिए
क्योंकि उनके भी चार से पांच विधायक कांग्रेस में जा चुके हैं। कांग्रेस का
उम्मीदवार अब तो जीतने के करीब है और अगर भूपेंद्र हुड्डा की बीजेपी से सांठगांठ
नहीं है तो वो राज्यसभा चुनाव में उम्मीदवार खड़ा करें, हम पहले ही बीजेपी के खिलाफ वोट करने का
वादा कर चुके हैं”।
इससे पहले रेसलर
विनेश फोगाट को भी राज्यसभा में भेजने को लेकर हुड्डा और उनके बेटे पैरवी कर चुके
हैं और बार बार कह रहे हैं कि सबको मिलकर विनेश फोगाट को राज्यसभा भेजना चाहिए।
वहीं नवीन जयहिंद विनेश फोगाट के नाम को लेकर अपने कदम पीछे खींच चुके हैं। पहले
नवीन जयहिंद ने अभियान के माध्यम से हरियाणा के सभी विधायकों से खुद के लिए समर्थन
मांगा था।
हरियाणा विधानसभा की
मौजूदा स्थिति
अभी 90 में से 87 विधायक हैं
बीजेपी के पास 41 विधायक हैं
कांग्रेस के पास 29 विधायक हैं
जजपा के 10 विधायक हैं
हलोपा और INLD के 1-1 विधायक हैं
इसके अलावा
5 निर्दलीय
हैं
वहीं तीन
विधानसभा की सीटें अभी खाली हैं
जिनमें से किरण चौधरी
बीजेपी की सदस्यता ले चुकी है। इसके साथ कांग्रेस के साथ पांच में से तीन निर्दलीय
विधायकों का भी समर्थन है,
जेजेपी के पास 10 विधायक विधानसभा में हैं लेकिन 5 विधायक पार्टी से तो इस्तीफा दे चुके हैं
लेकिन विधानसभा से इस्तीफा नहीं दिया है। वहीं एक निर्दलीय विधायक बलराज कुंडु हैं
जो अपनी पार्टी बना चुके हैं। जेजेपी ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वो बीजेपी
उम्मीदवार के खिलाफ वोट करेगी।
किरण
चौधरी राज्यसभा चुनाव में सबसे मजबूत उम्मीदवार के तौर पर देखी जा रही हैं। किरण
चौधरी को राजनीति विरासत में मिली है...हरियाणा के सीएम रहे चौधरी बंसीलाल के बेटे
सुरेंद्र सिंह के साथ किरण चौधरी की शादी हुई थी। भिवानी महेंद्रगढ़ लोकसभा में आने
वाली पांच से छह सीटों पर बंसीलाल के परिवार का प्रभाव माना जाता है। अप्रैल,
2021 में
कोरोना महामारी में उनके माता पिता की एक ही दिन मौत हो गई थी। किरण चौधरी के पिता
के बाद मां का निधन हो गया था। चौधरी बंसीलाल के रहते हुए उनके बेटे सुरेंद्र सिंह
ने राजनीतिक विरासत संभाली थी। वह 1996 और 1998
में
भिवानी से जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। इससे पहले 1986-1992 तक राज्यसभा के सदस्य रहे।
सुरेंद्र
सिंह ने दो बार हरियाणा विधानसभा में तोशाम का प्रतिनिधित्व किया। 2005
में
एक हेलीकॉप्टर क्रैश में मौत के बाद तोशाम सीट पर उपचुनाव हुआ था। तोशाम से जीत के
बाद किरण चौधरी ने बंसीलाल परिवार की विरासत को आगे बढ़ाया। हालांकि वह राजनीति में
इससे पहले कदम रख चुकी थी। 1993 में दिल्ली कैंट से पहली बार
किस्मत आजमाई थी। तब वह हार गई थी। 1998 में जीतकर वह 2003
तक वह
दिल्ली विधानसभा की उपाध्यक्ष भी रहीं। 2003 में वह फिर चुनाव लड़ीं।
इसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 2004 में राज्यसभा के लिए खड़ी
हुई। जिसमें भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
2004 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार में हरियाणा की कैबिनेट मंत्री बनी। इसके बाद जब 2014 में पार्टी हार गई तब उन्हें सदन का नेता बनाया गया। अब राज्यसभा में बीजेपी उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज करा कर केन्द्र की राजनीति में जाने के लिए तैयार हैं।
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