22 August 2024

इनेलो- बसपा गठबंधन कितना असरदार ? गिरते जनाधार का डर या सत्ता की है लालसा ?

हरियाणा में सभी राजनीतिक पार्टियां विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई हैं। कोई अपने दम पर अकेले चुनाव लड़ना चाहता है तो कोई गठबंधन के सहारे। इसी बीच इंडियन नेशनल लोकदल के नेता नेता अभय चौटाला ने बसपा के साथ चुनावी रण में उतरने का ऐलान कर दिया है। वह पहले भी बीएसपी के साथ प्रदेश में चुनाव लड़ चुके हैं। इन दोनों दलों के प्रदर्शन की बात करें तो, रेकॉर्ड बताते हैं कि फरीदाबाद-पलवल में कुछ सीटों पर बीएसपी का तो कुछ पर आईएनलडी ने बेहतर प्रदर्शन किया है। बहुजन समाज पार्टी की नजर अपने दलित वोट बैंक पर हैं। फरीदाबाद के शहर और ग्रामीण इलाकों में दलितों की अच्छी संख्या है। बीएसपी के प्रत्याशियों का लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कई बार संतोषजनक प्रदर्शन भी रहा है। पार्टी अपनी उपस्थिति मजबूत करने के लिए अंदरखाने जुट गई है। मगर गठबंधन के बावजूद दोनों दलों की राह इतनी आसान भी नहीं है कि चुनाव में ज्यादा सीटें जीत सकें। फरीदाबाद की 6 विधानसभा क्षेत्रों में आईएनएलडी को चुनौती का सामना करना होगा। पिछले कुछ विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो उसकी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। कई चुनानों में उसका ग्राफ नीचे रहा है। पिछले चार हरियाणा विधानसभा चुनावों में बीएसपी का प्रदर्शन कोई खास नहीं रहा है। 

पिछले चार हरियाणा विधानसभा चुनावों में बीएसपी का प्रदर्शन

 

  

विधानसभा चुनाव

सीटें लड़ी

सीटें जीतीं

कुल वोट    प्रतिशत

2005

84

1

3.22

2009

86

1

6.73

2014

87

1

4.37

2019

87

0

4.14

इन आकड़ों से आप अनुमान लगा सकते हैं कि आईएनएलडी- बीएसपी गठबंधन का प्रदर्शन कैसा रहने वाला है। ये दोनों फैसले चुनाव में कितना असर डालेंगे? इन दोनों घटनाक्रमों से बीजेपी- कांग्रेस का कोई लेना-देना नहीं है, पर क्या इनकी सियासत पर आईएनएलडी- बीएसपी गठबंधन कोई बड़ा असर डालेगा? इसपर भी एक नजर डाल लेते हैं। बसपा की जड़ें उत्तर प्रदेश में ही अबतक जमी हैं मगर यूपी में मायावती की पार्टी के पास विधानसभा में एक सीट है और लोकसभा में एक भी सीट नहीं है। 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे कहते हैं कि बसपा अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। और कुछ ऐसा ही हाल चौटाला की पार्टी INLD का भी है। हरियाणा विधासभा में INLD की एक सीट है और लोकसभा में एक भी नहीं। हरियाणा चुनाव से पहले दोनों पार्टियां एक बार फिर साथ आई हैं। बीएसपी के नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि 90 में से 37 सीटों पर बीएसपी चुनाव लड़ेगी और बाकी पर INLD. INLD नेता अभय चौटाला का कहना है कि यह गठबंधन किसी स्वार्थ पर आधारित नहीं है, बल्कि लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखकर बनाया गया है।

हरियाणा में करीब 28 प्रतिशत जाट आबादी है और करीब 20 प्रतिशत दलित। दोनों को मिलाकर राज्य की करीब आधी जनसंख्या बनती है। यानी हरियाणा में दोनों समाज मिलकर भी और अकेले भी सरकार बनाने और बिगाड़ने की हैसियत रखते हैं। बीते लोकसभा चुनाव में ये दोनों वोट बैंक कांग्रेस के लिए वरदान साबित हुए हैं। चुनावी आकड़ों की विश्लेषण करें तो पता चलता है कि 64 प्रतिशत जाट समुदाय ने इस बार कांग्रेस को वोट दिया। जबकि बीजेपी को सिर्फ 27 फीसदी वोट मिल पाया। दलित समुदाय की बात करें तो, इस समाज के 68 फीसदी वोटरों ने कांग्रेस को वोट दिया। जो कि 2019 के मुकाबले 40 फीसदी ज्यादा है। जबकि बीजेपी को सिर्फ 24 प्रतिशत वोट मिले। नतीजा ये रहा कि बीजेपी 2019 के 58 प्रतिशत वोट से फिसल कर इस बार 46 प्रतिशत पर आ गई। और कांग्रेस 28 प्रतिशत से 44 पर पहुंच गई। कांग्रेस शून्य सीट से पांच पर आ गई। और बीजेपी 10 से पांच पर पहुंच गई। लेकिन राज्य में इन्हीं दोनों वोट बैंक पर दावा करने वाली दो अलग-अलग पार्टियां अब साथ आ गई हैं। लोकसभा के नतीजों के पैटर्न को अगर देखा जाए तो ये गठबंधन कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकता है। जाट और दलित समुदाय के वोटर फिलहाल कांग्रेस के पीछे लामबंद नजर आते हैं।

इनेलो व बसपा के बीच पहली बार 1996 के लोकसभा चुनाव में समझौता हुआ था। इनेलो ने सात व बसपा ने तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में अंबाला सीट बसपा व कुरूक्षेत्र, हिसार, भिवानी और सिरसा सीट इनेलो ने जीती थी। 2018 में इनेलो के दो फाड़ होने के बाद एक बार फिर इनेलो व बसपा में समझौता हुआ, परंतु विधानसभा चुनावों से पहले ही दोनों अलग अलग हो गए। 2019 के विधानसभा व 2024 के लोकसभा चुनाव में मिले वोट प्रतिशत के बाद पार्टी का मान्यता रद होने का खतरा मंडराता देख अभय चौटाला ने 2024 के विधानसभा चुनाव से पहले तीसरी बार बसपा के साथ हाथ मिलाया है।

पिछले चार दशक में बहुजन समाज पार्टी ने हरियाणा में अनेक चुनाव लड़े हैं लेकिन 1998 के बाद पार्टी का कोई भी उम्मीदवार संसद तक नहीं पहुंच पाया। 1998 में अमन नागरा बसपा के पहले और आखिरी निर्वाचित सांसद थे। कहा जाता है कि हाथी का पांव जमाने में अमन नागरा की अहम भूमिका थी। आठ चुनाव हारने के बाद उन्होंने अंबाला से भाजपा प्रत्याशी को हराकर जीत हासिल की थी। मायावती के मुंह मोड़ने के बाद अमन नागरा राजनीतिक हाशिए पर चले गए। इसके बाद बसपा का कोई प्रत्याशी लोकसभा चुनाव जीत नहीं पाया। प्रदेश में बसपा के अब तक 5 विधायक निर्वाचित हुए हैं। 2014 में टेकचंद शर्मा विधायक चुने गए थे। उसके बाद बसपा को किसी चुनाव में सफलता नहीं मिली।

हरियाणा में BSP का बार-बार गठबंधन


वर्ष                नेता                     पार्टी

1998                    ओमप्रकाश चौटाला              इनेलो

2009                     कुलदीप बिश्नोई                  हजकां

2018                     अभय चौटाला                     इनेलो

2019                    दुष्यंत चौटाला                    जजपा

2024            अभय चौटाला                     इनेलो

 

2019 में बीएसपी 87 सीटों पर लड़ी थी, 82 सीटों पर जमानत जब्त हो गई थी। पार्टी को कुल 4.14 फीसदी वोट मिले थे। 2014 में बीएसपी एक सीट पर जीती थी। तब पार्टी 87 सीटों पर चुनाव लड़ा था। 81 पर जमानत जब्त हुई थी। पार्टी को वोट शेयर तब 4.37% रहा था। 2024 लोकसभा चुनावों में बीएसपी को सिर्फ 1.28 फीसदी वोट मिले थे। तो वहीं इनेलो भी राज्य में लगातार कमजोर हुई है। पार्टी को लोकसभा चुनावों में 1.74 प्रतिशत वोट मिले थे। राज्य की 10 लोकसभा सीटों में कांग्रेस और बीजेपी ने पांच-पांच पर जीत हासिल की थी।

कभी राज्य की सत्ता पर काबिज रही इंडियन नेशनल लोकदल के सामने इस चुनाव में अपने अस्तित्व को बचाने की चुनौती है। पिछले चुनावों में सिर्फ अभय चौटाला ही जीत पाए थे। किसानों के मुद्दे पर इस्तीफा देने के बाद भी वह दोबारा लड़े थे। तब उन्हें थोड़ा संघर्ष करना पड़ा था, मगर वो चुनाव जितने में सफल रहे। 2005 में इनेलो 89 सीटों पर लड़कर 9 सीटों पर जीती थी। उसे 26.77 प्रतिशत वोट मिले थे। 2009 में इनेलो ने अच्छा प्रदर्शन किया था राज्य में कांग्रेस की सत्ता बरकरार रही थी लेकिन आईएनएलडी ने 88 सीटों पर पर लड़क 31 सीटें जीती थीं। पार्टी को 25.79 वोट मिले थे। 2014 के चुनाव में पार्टी 88 सीटों पर लड़कर 19 सीटें जीती थी। उसे 24.11 वोट मिले थे, लेकिन दुष्यंत के जाने के बाद पार्टी कमजोर हो गई। INLD-BSP गठबंधन कांग्रेस को कितना नुकसान और बीजेपी को कितना फायदा पहुंचाएगा, अगले कुछ महीनों में साफ हो जाएगा जरूर हो जाएगा, मगर चुनावी मौसम में INLD-BSP गठबंधन चर्चा का विषय जरूर बना रहेगा।

 

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