भारत
में विदेशी वकीलों की बहुत जल्द बाढ़ आने वाली है। एक बड़े फैसले में विदेशी वकीलों
को इंटरनेशनल लॉ और आर्बिट्रेशन के मामले में भारत में प्रैक्टिस की इजाजत दी गई
है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने इसके लिए नियम भी तय कर दिए हैं। फिलहाल विदेशी
वकीलों और फर्म को इंटरनेशनल लॉ व विदेशी कानून के बारे में कानूनी सलाह की इजाजत
दी गई है।
मगर इस फैसले का विरोध भी शुरू हो गया है। वकालत के पेशे से जुड़े हुए लाखों अधिवक्ता इसका विरोध कर रहे हैं। इस पेशे से जुड़े लोगों को आशंका है कि कहीं यह बैकडोर एंट्री तो नहीं है। वकील इसका विरोध 1999 व वर्ष 2000 में काफी विरोध भी कर चुके हैं। देश भर के वकीलों ने विरोध किया था और सरकार ने इस मामले में अपने कदम वापस ले लिए थे।
वकालत
करने की ये अनुमति आदान प्रदान के बेसिस पर होगा, यानी भारतीय वकील को अगर विदेश में
इंटरनेशनल लॉ और विदेशी लॉ के मामले में जितनी इजाजत होगी उतनी ही इजाजत विदेशी
वकील को यहां होगी। हालांकि विदेशी वकीलों का बार काउंसिल में रजिस्ट्रेशन भी
होगा। इसी बाद से भारतीय वकील घुसपैठ की आशंका जता रहे हैं।
विदेशी
वकीलों के लिए मुख्य रूप से तीन एरिया होगा जिसे प्रैक्टिस के लिए खोला गया है
जिनमें विदेशी कानून, आर्बिट्रेशन और इंटरनेशनल लॉ के मुद्दे शामिल हैं। बार काउंसिल ऑफ
इंडिया रूल्स फॉर रजिस्ट्रेशन एंड रेग्युलेशन ऑफ फॉरेन लॉयर्स एंड फॉरेन लॉ फर्म
इन इंडिया 2022 के तहत नोटिफिकेशन जारी किया गया है।
इसके
तहत लीगल सलाह की इजाजत होगी। इस नियम से भारत को इंटरनेशनल कमर्शियल आर्बिट्रेशन
हब बनाने में मदद मिलेगी। लेकिन इस मामले में बार काउंसिल ऑफ दिल्ली के वाइस
चेयरमैन का कहना है कि यह एक तरह से बैक डोर एंट्री है। इससे रोजगार और न्यायतंत्र
दोनों पप्रभावित होगा।
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